( 'डाकोत ब्राह्मण कुलीन वंश परंपरा' पुस्तक की समीक्षा, यह पुस्तक असम के जिला होजाई के निवासी श्री बृजमोहन भार्गव जी ने समीक्षा हेतु भेजी है। संपर्क नंबर-087219-89264)
किसी विद्वान ने ठीक कहा है कि विदेशी आक्रांताओं द्वारा भारत में की गई आर्थिक लूट तो आंशिक है। देवों के लिए भी दुर्लभ इस सस्यश्यामल भारतभूमि में इतनी क्षमता है कि कुछ ही समय में वह इसकी क्षतिपूर्ति कर सकती है परंतु विदेशियों ने इसकी संस्कृति पर प्रहार कर जिस तरह से यहां के समाज को जड़विहीन करने का प्रयास किया है उसकी भरपाई करने में काफी समय लगेगा। श्री बृजमोहन भार्गव जी की पुस्तक 'डाकोत ब्राह्मण कुलीन वंश परंपरा' का नीर-क्षीर यही निकल कर सामने आता है कि हिंदू समाज का प्रतिष्ठित अंग डाकोत समाज अपनी जड़ों से जुडऩे को व्याकुल है। अपनी पहचान के लिए व्याकुल दिखता है। देववैद्य धन्वंतरी की पुत्री सावित्री व महान् ऋषि डग की संतान डाकोत समाज वास्तव में भगवान शिव की भांति विषपान कर सृष्टि को अमृतपान कराने वाला नीलकंठ समाज है। डाकोत बंधु दंड के देवता शनि, राहु-केतु के नाम से कठोर से कठोर दान के रूप में समाज का भार अपने सिर लेकर उसे निर्भय करते हैं। विष पी कर आशीष देने वाला डकोत समाज नीलकंठ कहलाने का ही हकदार है।
देश में लगभग एक हजार साल तक चले पराधीनता के दौर में हिंदू समाज आत्मविस्मृति का शिकार हुआ। सभी जानते हैं कि आत्मविस्मृत समाज या व्यक्ति किसी भी भ्रांति का शिकार हो सकता है, उसे आसानी से बहकाया और पथभ्रष्ट किया जा सकता है। हमारे साथ ऐसा हुआ भी, हमें जातियों में विभक्त, जातिगत शत्रु समाज बताया जाने लगा और शनै शनै हम इस भ्रांति को सत्य मानने भी लगे। लेकिन यह सच्चाई नहीं है, जैसा कि इस पुस्तक में ही बताया गया है कि हमारी वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित थी न कि जन्म पर। इस व्यवस्था में कोई ऊंच-नीच या बंधन न था। स्वयं ऋषि डग व माता सावित्री (भडली) का संबंध बताता है कि जातिबंधन कठोर न थे। मुख से निकले वचनों को पूरा किया जाना धर्म था परंतु हम अपनी इस गौरवशाली परंपरा को विस्मृत कर बैठे। आत्मविस्मृत समाज को विदेशियों ने जातियों, उपजातियों में विभक्त करने का प्रयास किया और वे अपने इस षड्यंत्र में काफी सीमा तक सफल भी रहे। लेकिन देश में भक्तिकाल के दौरान हमारे यहां अवतार लेने वाली संत परंपरा ने समाज को इस आत्मविस्मृति से निकालने का प्रयास किया। गुरु गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरुजी ने हिंदू समाज को मंत्र दिया : -
हिन्दव:सोदरा: सर्वे, न हिन्दू: पतितो भवेत्।
मम दीक्षा हिन्दू रक्षा, मम मंत्र: समानता।।
भाव कि सब हिन्दू भाई है, कोई भी हिन्दू पतित नहीं है। हिंदुओं की रक्षा मेरी दीक्षा है, समानता यही मेरा मंत्र है। अपनी पुस्तक के माध्यम से आत्मविस्मृत और जड़ों को भुला बैठे हिंदू समाज के एक वशिष्ठ अंग डाकोत समाज को उनकी गौरवशाली जड़ों से जोडऩे का काम किया है श्री बृजमोहन भार्गव जी ने। पुस्तक में संग्रहित व अन्वेषित सामग्री पठनीय व ज्ञानवद्र्धक है। इसमें दिए तथ्यों पर वाद-विवाद और भाषाई शुद्धता की गुंजाइश है परंतु यह निरापद है कि डाकोत समाज का एक गौरवशाली अतीत व कुलीन वंश परंपरा रही है। पुस्तक के रूप में हुए इस अग्निहौत्र के मुख्य यजमान चाहे श्री बृजमोहन भार्गव हैं परंतु इसके सहयोगी डा. चंद्रदेव ठाकुर, डा. श्यामसुंदर भार्गव, श्री नवनीत कुमार भार्गव, श्री रमेश कुमार भार्गव, श्री मुकेश कुमार भार्गव सहित वह सभी लोग साधुवाद के पात्र हैं जिन्होंने किसी भी रूप में न्यूनाधिक सामग्री आहूत की है। आशा है कि लेखक भार्गव जी का यह जामवंत प्रयास आत्ममुग्ध व आत्मविस्मृत हिंदू समाज को जगाने में उसी तरह सफल होगा जैसे ऋक्षराज की हुंकार पर हनुमानजी ने सौ योजन समुद्र को एक ही छलांग में लांघ लिया। इसी तरह के प्रयासों से ही हिंदू समाज का पुनर्जागरण होगा और भारतमाता पुन: विश्वगुरु के पद पर आसीन होगी। एसी कामना के साथ इस पुस्तक के लिए कोटि-कोटि साधुवाद।
- राकेश सैन
संपादक 'पथिक संदेश' एवं स्तंभकार
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर, पंजाब।
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