'सदाशिव समारम्भाम् शंकराचार्य मध्यमाम् अस्मद् आचार्य पर्यन्ताम् वंदे गुरु परम्पराम्' अर्थात भगवान शिव से आरंभ हुई गुरु शिष्य परंपरा जिसको आदि गुरु शंकराचार्य जी ने वर्तमान पीढ़ी तक पहुंचाया उस परंपरा को मैं प्रणाम करता हूं। भारतीय संस्कृति में गुरु का अत्यंत महत्त्व है और भगवान शंकर से आरंभ हुई इस परंपरा को जिस शंकराचार्य जी ने अगली पीढ़ी तक पहुंचाया उस महान आत्मा के पंरपरागत वंशज शंकराचार्य जयेंंद्र सरस्वती जी विगत बुधवार गोलोकगमन कर गए। वे 83 साल के थे और 22 मार्च, 1954 को चंद्रशेखेंद्र सरस्वती स्वामीगल ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, जिसके बाद वो 69वें मठप्रमुख बने थे। जयेंद्र सरस्वती जी के जीवन की महानता का परिचय केवल इतना सीमित नहीं बल्कि उन्होंने एक ऐसा परिवर्तनकारी कदम उठाया जिससे हिंदू समाज के वंचित वर्ग जिसे अज्ञानतावश दलित भी कहते हैं को पुजारी बनाने का अधिकार मिला। अर्थात अज्ञानतावश जिन स्थानों पर वंचितों को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता था वहां उन्होंने इन अपेक्षित हिंदुओं को पुजारी बनाने का साहस दिखाया। इसके अतिरिक्त जयेंद्र सरस्वती जी ने समाज में सेवा प्रकल्प शुरु किए और अपने आप को कभी मंदिरों व मठों की चारदिवारियों में कैद करके नहीं रखा बल्कि सेवा बस्तियों में विचरन करते रहते थे।
क्रांतिकारी विचारों के स्वामी जयेंद्र सरस्वती जी ने हिंदू समाज में कालबाह्य रूढिय़ां और मान्यताएं बदलीं एवं वे संन्यासी हुए जिन्होंने अनुसूचित जाति के युवाओं को मंदिरों में अर्चक बनाने के लिए दीक्षित एवं प्रशिक्षित किया। आज दक्षिण के हजारों मंदिरों में ये पुजारी वैदिक कर्मकांड करते हुए मिलते हैं। गरीब, कमजोर तथा विशेषकर दलित बस्तियों में छोटे से छोटे मंदिर के श्रीगणेश के लिए यदि उन्हें आमंत्रण दिया जाता था तो वे बड़े चाव से वहां जाते थे। स्वामी जी ने रूढि़वादी परंपराओं को तोड़ा और मठ की गतिवधियों का विस्तार समाज कल्याण, खासकर दलितों के शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे कार्यों तक किया। उन्होंने मठ को एक नई दिशा दी। पहले मठ सिर्फ आध्यात्मिक कार्यों तक सीमित होता था। उन्होंने धार्मिक संस्थानों को सामाजिक कार्यों से जोड़ा। यही कारण है कि वो देशभर में लोकप्रिय हुए। उनका आंदोलन समाज के सबसे निचले स्तर पर खड़े लोगों को मदद पहुंचाने के लिए था। पहले मठ कांचीपुरम और राज्य के भीतर तक सीमित था। वो इसे उत्तर-पूर्वी राज्यों तक ले गए। वहां उन्होंने स्कूल और अस्पताल शुरू किए। उन्होंने मठ को समाज से जोड़ा, सार्वजनिक मामलों में रुचि ली और दूसरे धर्मों के नेताओं से भी अच्छे संबंध स्थापित किए।
दुर्भाग्य से स्वामी जी चर्चा में तब आए जब तमिलनाडु पुलिस ने उन्हें हैदराबाद में 11 नवंबर, 2004 को गिरफ्तार कर लिया। उनपर कांची मठ के प्रबंधक शंकररमण की हत्या का आरोप था। शंकररमण की हत्या 3 सितंबर, 2004 को मंदिर परिसर में कर दी गई थी। स्वामी जी को पुलिस ने शक के आधार पर गिरफ्तार किया था क्योंकि शंकरारमन उनके खिलाफ अभियान चला रहे थे। इसके बाद कनिष्ठ स्वामी विजेंद्र सरस्वती को 22 अन्य लोगों के साथ मामले में गिरफ्तार किया गया। मामले की सुनवाई 2009 में शुरू हुई, जिसमें न्यायालय में 189 गवाहों को प्रस्तुत किया गया था। पुदुचेरी न्यायालय ने सभी आरोपियों को 13 नवंबर, 2013 को बरी कर दिया। पूरे प्रकरण के पीछे तमिलनाडू की मुख्यमंत्री स्वर्गीय जयललिता का हाथ बताया गया।
शंकर नेत्रालय शृंखला को लेकर उनके सेवा कार्यों के चलते उन्हें याद किया जाता रहेगा। उनके द्वारा स्थापित शंकर नेत्रालय चेन्नई लाभ-निरपेक्ष नेत्र चिकित्सालय है। इस चिकित्सालय में पूरे भारत से तथा विश्व भर से लोग आंखों से सम्बन्धित समस्याओं की चिकित्सा के लिये आते हैं। इस नेत्रालय में 1000 कर्मचारी कार्यरत हैं। इसमें प्रतिदिन 1200 रोगियों का इलाज होता है और 100 शल्यकर्म प्रतिदिन होती है। इसका वार्षिक राजस्व लगभग 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर है। शंकर नेत्रालय ने अनेकों प्रसिद्ध नेत्र-चिकित्सक पैदा किये हैं जिनमें मुम्बई के आदित्य ज्योति नेत्र अस्पताल के संस्थापक डॉ एस नटराजन भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त सेवा बस्तियों में अनेक तरह से सेवा प्रकल्प शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी ने आरंभ किए जो सफलतापूर्वक चल रहे हैं। उन्होंने समाज में शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण आदि अनेक क्षेत्रों में आगे बढ़ कर सेवा की। स्वामी जी अपने सद्कार्यों को लेकर सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे।
राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी
वीपीओ रंधावा मसंदा
जालंधर।
मो. 097797-14324
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