Thursday, 28 March 2019

शिवाजी, जनरल स्कीन और मोदी

27 मार्च सुबह 11.16 बजे का समय उस समय इतिहास में दर्ज हो गया जब भारत ने अंतरिक्ष युद्ध के क्षेत्र में पदार्पण किया। यह गौरवशाली कारनामा करके देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतिहास के उन महापुरुषों की श्रेणी में शामिल हो गए जिन्होंने अपने-अपने समय में देश की रक्षा के समक्ष उपजी चुनौतियों का सामना करने के लिए नए पुरुषार्थ किए। देश में नौसेना को पुनर्जीवित करने का श्रेय छत्रपति मराठा सरदार शिवाजी को जाता है तो वायुसेना की स्थापना 8 अक्तूबर, 1932 को जनरल स्कीम समिति की रिपोर्ट की सिफारिश पर की गई। बदलते हुए समय के साथ अब जब पूरी दुनिया के सामने अंतरिक्ष युद्ध का भी खतरा मंडराने लगा तो इसके लिए देश को साथ्र्यशाली बनाने का श्रेय निश्चित तौर पर इतिहास नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को ही देगा। यह ठीक है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्थापना के बाद 1962 से ही देश ने अनेक उपग्रहों व प्रक्षेपास्त्रों का सफल परीक्षण किया है परंतु मिशन शक्ति की सफलता देश को नए क्षेत्र में प्रवेश के गौरव का एहसास करवा रही है।

फरवरी 2017 में जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान ने एक प्रक्षेपास्त्र के जरिए 104 उपग्रहों को सफलता पूर्वक अंतरिक्ष में भेजा तो सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था अमरीका बनाम रूस भूल जाइए क्योंकि अंतरिक्ष में असली दौड़ तो एशिया में चल रही है। इस रिपोर्ट में भारतीय सफलता की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई थी। एशिया में भारत, चीन और जापान अंतरिक्ष में एक लंबा सफर तय कर चुके हैं। अब भारत ने उपग्रह रोधी प्रक्षेपास्त्र का सफलता पूर्वक परीक्षण किया है। इस परीक्षण में भारत ने 300 किलोमीटर दूर एक उपग्रह को मार गिराया। इस सफलता के साथ ही भारत अब अमरीका, रूस और चीन की पंक्ति में खड़ा हो गया है। दो रॉकेट बुस्टर के साथ 18 टन की मिसाइल से 740 किलो के उपग्रह को पृथ्वी के निचली परिधि में तीन मिनट में मार गिराया गया। भारत अब उपग्रह घातक प्रक्षेपास्त्र से अपने दुश्मन के उपग्रह को नष्ट कर सकता है। इसका परीक्षण 300 किलोमीटर की ऊंचाई पर किया है लेकिन रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन के वैज्ञानिकों का मानना है कि जरूरत पडऩे पर 1000 किलोमीटर तक भी जाया जा सकता है।

रणनीतिक दृष्टि के साथ-साथ सुरक्षा व विज्ञान की दृष्टि से भारत की यह बहुत बड़ी सफलता है। सभी जानते हैं कि तकनीकी व सूचना क्रांति की आवश्यकताओं के चलते अंतरिक्ष में उपग्रहों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है और इससे पृथ्वी को नए तरह के खतरे का सामना करना पड़ रहा है। अपनी आयु पूरी करने के बाद यही उपग्रह नियंत्रणहीन हो जाते हैं या इनकी आवश्यकता नहीं रहती। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण शक्ति से दूर होने के कारण यह धरती पर भी नहीं गिरते और अंतरिक्ष में ध्वनि की गति से भी कई हजार गुणा तेज गति से घूमते रहते हैं। कई बार तो यह अन्य उपग्रहों के साथ-साथ धरती पर जीवन के लिए असुरक्षा के कारण भी बन जाते हैं। याद करें 2007 और 08 में अमेरिका के उपग्रह नियंत्रणहीन हो अंतरिक्ष से गिर रहे थे तो नासा ने इसी तकनीक से इनको धरती से सैंकड़ों किलोमीटर दूर ही मार गिराया। भारत के पास भी यह तकनीक आई है तो इसका स्वागत होना चाहिए क्योंकि भविष्य में इस तरह की कोई परिस्थिति पैदा हो तो हम उससे अपने स्तर पर निपट सकते हैं।

सामरिक दृष्टि से भी इस तकनीक का विशेष महत्त्व है क्योंकि जिस तरह हम पाकिस्तान जैसे दुश्मन और चीन जैसे चालबाज देशों से घिरे हैं ऐसे में भारत का तकनीकी रूप से एक कदम आगे रहना ही उचित है। सभी जानते हैं कि अमेरिका का अफगानिस्तान से मोहभंग हो चुका है और वह अपनी नाटो सेना के साथ जल्द ही यहां से रवाना होने वाला है। अमेरिका की अनुपस्थिति में वह तालिबान फिर हावी हो सकता है जिसका नियंत्रण काफी सीमा तक पाकिस्तान के हाथ में है। कमजोर नेतृत्व वाला परमाणु शक्ति संपन्न पाकिस्तान भविष्य की एक अत्यंत खतरनाक तस्वीर पेश करता है। पूरी दुनिया के वैज्ञानिक इस बात से चिंतित हैं कि वहां के परमाणु हथियार कभी भी आतंकियों या कट्टरपंथियों के हाथ लग सकते हैं। ऐसे में भारत का नवीनतम सामरिक तकनीकों से लैस होना अत्यंत जरूरी है ताकि हम उस समय की परिस्थितियों से निपट सकें। यूं भी पाकिस्तान की सेना व राजनीतिक नेतृत्व गाहे-बगाहे भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश होने के नाम पर ब्लैकमेल करने की कोशिश करता रहता है। मिशन शक्ति की सफलता से इस बात की पूरी संभावना है कि उसकी ब्लैकमेलिंग का यह क्रम अवश्य थमेगा।

जैसा कि सामरिक मामलों के विशेषज्ञ मानते हैं कि युद्ध में केवल सैनिक व हथियार ही सबकुछ नहीं होते बल्कि संचार व्यवस्था भी बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। विश्व की संचार व्यवस्था अधिकतर उपग्रहों पर ही निर्भर है और उपग्रहों की मारक क्षमता होने के कारण किसी भी आशंकित युद्ध में हम दुश्मन सेना को दिशा हीन व सूचना विहीन कर सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत की यह शक्ति किसी देश को डराने धमकाने के लिए नहीं बल्कि आत्मरक्षा के लिए है। भारत का इतिहास भी यही रहा है कि हमने शक्ति का अह्वान मानव कल्याण व दुष्टों के संहार के लिए किया है न कि कमजोरों पर अत्याचार ढहाने या धौंसपट्टी जमाने के लिए। वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए उन्होंने ठीक ही कहा है कि किसी गैर-जिम्मेवार देश का शक्तिसंपन्न होना पूरी मानवता के लिए घातक है और जिम्मेवार देश का शक्तिशाली होना मानवता की सुरक्षा, विश्व की शांति के लिए आवश्यक है। पोखरन में किए परमाणु परीक्षणों व घातक प्रक्षेपास्त्रों के परीक्षण के बाद भी भारत ने जिस तरह से अति विकट समय में भी संयम व धैर्य का परिचय दिया है वह पूरी दुनिया को आश्वस्त करने के लिए पर्याप्त है कि हमारा यह कार्यक्रम केवल और केवल आत्मरक्षा के लिए है। भारत विकास की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है और विकास की पहली शर्त सुरक्षा व शक्तिसंपन्न होना है। निर्बल हाथों आई संपदा उसकी दुश्मन बन सकती है। हम शांति पसंद हैं परंतु विद्वान कहते हैं कि शांति तभी संभव है जब आप सदैव युद्ध के लिए तैयार रहें और शक्तिसंपन्न हों। कमजोर व्यक्ति की शांतिप्रियता को कोई महत्त्व नहीं देता। इसी शक्ति का पूजन करते हुए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं : -

तीन दिवस तक पंथ मांगते रघुपति सिंधु किनारे,
बैठे पढते रहे छन्द अनुनय के प्यारे प्यारे।
उत्तर में जब एक नाद भी उठा नही सागर से,
उठी अधीर धधक पौरुष की आग राम के शर से।
सिंधु देह धर त्राहि-त्राहि करता आ गिरा शरण में,
चरण पूज दासता गृहण की बंधा मूढ़ बन्धन में।
- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ लिदड़ां,
जालंधर।

Monday, 18 March 2019

कांग्रेस 2024 के चुनावों की तैयारी में ?

चाहे चुनाव आयोग द्वारा आम चुनावों की घोषणा से कुछ दिन पहले ही राजनीतिक दलों ने अपने लंगर लंगोट कसने शुरू कर दिए थे परंतु राजनीतिक रणभेरी बजने के एक सप्ताह में ही कुछ ऐसा दिखने लगा कि कल तक सत्ता परिवर्तन का दावा करने वाली कांग्रेस 2024 के चुनावों की तैयारी कर रही है। पार्टी के रणनीतिकार व नेता जोर खूब लगा रहे हैं परंतु मन ही मन में वर्तमान सत्तारूढ़ दल भाजपा को वाकओवर देने का मन बना चुके दिखने लगे हैं। इसके पीछे मुद्दों के अकाल के साथ-साथ पुलवामा के बाद भारतीय वायुसेना की एयरस्ट्राईक, राहुल गांधी के नेतृत्व आदि कारणों को माना जा सकता है। पार्टी के रणनीति वर्तमान चुनावों में अपने खोए हुए जनाधार को हासिल करने व अगले आम चुनाव में पूरी तैयारी से मैदान में उतरने की तैयारी करते दिखने लगे हैं।

कर्नाटक में पिछडऩे के बावजूद भाजपा को मुख्यमंत्री की कुर्सी से दूर रखने और वर्ष के अंत में मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में मिली सफलता से एक बार लगने लगा था कि आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी फ्रंट फुट पर खेलने जा रही है। राहुल गांधी के आक्रामक तेवरों और राफेल मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर किए गए हमलों के चलते वे पिछले पांच सालों में पहली बार विपक्ष के नेता दिखने लगे परंतु सर्वोच्च न्यायालय के साथ-साथ सार्वजनिक स्तर पर सरकार की रणनीति ने राहुल के राजनीतिक राफेल को तारपीड़ो कर दिया। बसपा, सपा, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, तेलगु देशम पार्टी सहित अनेक क्षत्रप कहने को तो मोदी विरोध के नाम पर महागठबंधन की बात चलाते रहे परंतु लगता है कि इन क्षेत्रीय ताकतों को भी उस कांग्रेस का उभार पसंद नहीं आया जिसके विरोध में ही इनका जन्म हुआ। सभी जानते हैं कि बसपा कांग्रेस के दलित वोट बैंक की खाद-पानी पर ही पली बढ़ी और सपा व टीडीपी कांग्रेस विरोध के नाम पर अस्तित्व में आई। ममता ने कांग्रेस से निकल कर तृणमूल कांग्रेस और शरद पवार ने एनसीपी का गठन किया। अगर कांग्रेस का पुर्नोत्थान होता है तो स्वभाविक है कि यह इन क्षेत्रीय दलों की राजनीतिक मौत का ही पैगाम होगा। दूसरी ओर क्षत्रपों को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का नेतृत्व कतई स्वीकार नहीं हो सकता जो अभी तक न तो इतने अनुभवी हैं और जिन्हें अभी अपनी नेतृत्व कुशलता का अभी प्रमाण भी नहीं दिया है। कांग्रेस का अहंकार व क्षत्रपों की असुरक्षा की भावना से महागठजोड़ की घटाएं बिना बरसे हीं छंट गईं। सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस, 'आप' से तो ना हो चुकी है और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल से भी बात बिगड़ती दिखाई देने लगी है। उधर टीडीपी ने भी कह दिया है कि वह विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से गठजोड़ नहीं करेगी। अब महागठबंधन के गर्भपात और बालाकोट एयरस्ट्राईक के बाद कांग्रेस बदली हुई रणनीति पर काम करती दिखने लगी है।

कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि देश के बड़े भू-भाग जिसमें राजस्थान, एमपी, छत्तीसगढ़, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, पुर्वोत्तर के कई राज्यों में उसका सीधा मुकाबला भारतीय जनता पार्टी से है। इसीलिए यहां महागठबंधन का उसे कोई लाभ नहीं मिलने वाला। यूपी, बंगाल, दिल्ली और बिहार में भी उसे महागठबंधन के कोटे से इतनी कम सीटें मिल रही हैं कि जो शर्मनाक तो हैं ही साथ में अगर पार्टी अपने दम पर चुनाव लड़े तो भी वह महागठबंधन के नाम पर खैरात में मिलने वाली सीटों से अधिक सीटें हासिल कर सकती है। साथ में इन बड़े राज्यों में अकेले चुनाव लडऩे से इन प्रदेशों में पार्टी का संगठनात्मक ढांचे को भी राजनीतिक वियाग्रा मिलेगी जो निरंतर पराजयों व तरह-तरह के गठबंधनों के चलते लगभग नपुंसक सा हो चुका है। बिहार, बंगाल, यूपी में कांग्रेस अपने संगठनात्मक ढांचे को खड़ा कर लेती है तो 2024 की राह उसके लिए अत्यंत आसान हो सकती है। शायद यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी अपने आखिरी तुरुप के पत्ते प्रियंका गांधी को राजनीति में सक्रिय तो कर चुकी है परंतु उन्हें अभी चुनावी मैदान में नहीं उतारा गया है। कुछ समय पहले तक समझा जा रहा था कि सोनिया गांधी के अस्वस्थ होने के चलते अबकी बार रायबरेली से प्रियंका को उतारा जा सकता है परंतु पार्टी ने ऐन वक्त पर अपनी रणनीति बदलनी पड़ी और प्रियंका को केवल प्रचार अभियान तक सीमित कर दिया। पार्टी नहीं चाहती कि इन परिस्थितियों में प्रियंका पर दांव लगाया जाए क्योंकि आशंका है कि इसके वांछित परिणाम नहीं निकले तो पार्टी नेतृत्व शून्य सी हो सकती है।

पार्टी की बदली हुई रणनीति के पीछे राहुल गांधी को भी माना जा रहा है, जिसे पार्टी कल तक मोदी का विकल्प बता रही थी वे हाल ही के दिनों में हकलान का शिकार होते दिखने लगे हैं। पुलवामा और बालाकोट एयर स्ट्राईक के बाद की परिस्थितियों को राहुल गांधी ने जिस तरीके निपटा उसे एड़ी उठा कर गले में फंदा डालना ही कहा जा सकता है। पुलवामा के बाद सरकार से एकजुटता दिखा कर जहां राहुल परिपक्व नेता दिखे परंतु दो दिनों के भीतर ही उनके मुंहजोर सिपहसालारों ने कई दिनों तक परा जोर लगा कर आत्मघाती तोपों का इस्तेमाल किया। संदेह नहीं कि इससे देश में आतंकवाद व पाकिस्तान के खिलाफ पनपे आक्रोश के छर्रों से कांग्रेस भी जख्मी हो गई। इन परिस्थितियों के लिए कोई और नहीं बल्कि खुद राहुल गांधी को जिम्मेवार ठहराया जा सकता है क्योंकि पुलवामा हमले के बाद न जाने किसके कहने पर उन्होंने  गुजरात में होने वाली कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक को स्थगित किया। असल में ऐसे महत्त्वपूर्ण मौकों पर तो राष्ट्रीय दल विशेष बैठकें करके सरकार को अपने फैसलों से प्रभावित करते और अपने काडर को उक्त मुद्दों पर पार्टी लाईन से अवगत करवाते हैं। अगर पुलवामा हमले के बाद सीडब्ल्यूसी की बैठक को स्थगित न करके बैठक में सरकार को आतंकवाद पर हुई चूक  पर घेरा जा सकता था। सरकार की तर्कसंगत आलोचना की जाती तो संभव है कि पार्टी के मुंहफटों को अपनी-अपनी लाईन पर चलने की स्वच्छंदता भी न मिलती और पार्टी किरकिरी से बच जाती। लेकिन गलत रणनीतिकारों के पीछे चल कर राहुल गांधी ने गुड़ गोबर कर दिया। देश में मतदान का पहला चरण पूरा होने में आज एक महीने से भी कम का समय रहा है परंतु महागबंधन तो दूर छोटे-छोटे दलों से तालमेल बैठाने में भी पसीने छुटते दिख रहे हैं। कांग्रेस के मुकाबले भारतीय जनता पार्टी नए पुराने 29 दलों से चुनावी गठजोड़ कर चुकी है और प्रचार में कहीं आगे  है। इसके विपरीत कांग्रेस की तैयारियों से लगने लगा है कि शायद वह 2024 के लिए दंड पेल रही है।

- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी
वीपीओ रंधावा मसंदां,
जालंधर।

Tuesday, 5 March 2019

एयर स्ट्राईक, वयं पंचाधिकम् शतम्

अर्थात् हम सौ और पांच नहीं एक सौ पांच हैं। अपने मुखिया की कन्या से दुव्र्यवहार के  बाद गंधर्वों द्वारा दुर्योधन को बंदी बनाए जाने का समाचार सुनते ही धर्मराज युधिष्ठिर अपने अनुज भीम को उसे मुक्त करवाने का आदेश देते हैं। कौरवों दुष्टता का संदर्भ देते हुए भीम जब गांधारी नंदन दुर्योधन के प्रति इस उदारता का औचित्य पूछते हैं तो कुंतिश्रेष्ठ कहते हैं 'वयं पंचाधिकम् शतम्' अर्थात परिवार में कितने भी आपसी मतभेद हों परंतु बाहर के लोगों के लिए वे एक ही हैं। पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान स्थित आतंकी अड्डों पर हुई एयर स्ट्राईक के बाद देश का राजनीतिक वर्ग जिस तरह बंटा हुआ नजर आरहा है वह केवल दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं बल्कि आतंकवाद व दुश्मन देश के खिलाफ हमारी लड़ाई को कमजोर करने वाला भी है। एयर स्ट्राईक के बाद पहले तो देश के सभी राजनीतिक दल सरकार के साथ एक सुर में बोलते दिखे परंतु जल्द ही गाते-गाते चिल्लाने की मुद्रा में आगए। विचित्र विरोधाभास है कि आतंक के खिलाफ पूरी दुनिया भारत के साथ खड़ी है परंतु भारत आंतरिक तौर पर अपने आप से लड़ता नजर आरहा है। जैसा कि वायुसेना प्रमुख एयर मार्शल बीएस धनोआ व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं और सीमा पार संकेत भी मिल रहे हैं कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई अभी जारी है परंतु बिना अंदरूनी एकता के इसे जीत पाना बहुत मुश्किल होगा।

एयर स्ट्राईक के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर इस कार्रवाई की सराहना और सेना का अभिनंदन किया परंतु कुछ समय बाद ही उनकी जुबान उस समय फिर गई जब उन्होंने 21 विपक्षी दलों की बैठक के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सेना के राजनीतिकरण के आरोप मढ़े। विपक्ष का आरोप है कि प्रधानमंत्री अपनी रैलियों में सेना की सफलता को अपनी बता रहे हैं और इसका चुनावी लाभ लेना चाहते हैं। सेना पर गौरव जताना, आतंकवाद व बदनीयत पड़ौसी को चेतावनी देना सेना का राजनीतिकरण कैसे हो गया यह समझ से परे की बात है। ऐसा करके मोदी अपने संवैधानिक दायित्व का ही पालन कर रहे हैं। क्यं संकट की घड़ी में सेना के साथ खड़ा होना उसका राजनीतिकरण माना जाना चाहिए? पुलवामा हमले, सेना की जवाबी कार्रवाई व इसके बाद भारत को मिली विश्व भर में कूटनीतिक जीत से देशभर में राष्ट्रभक्ति का ज्वार है। लोग स्वस्फूर्त रूप से इसका प्रदर्शन भी कर रहे हैं, जगह-जगह हो रहे प्रदर्शनों में भारत माता की जय, वंदेमातरम् के जयघोष लग रहे हैं तो इससे विपक्ष में घबराहट क्यों फैल रही है? कांग्रेस इस तरह के नारे लगाने वाले को अपना विरोधी मानती है तो उसका या तो वैचारिक दिवालियापन है या अतीत में की हुई भूलें व अपराध, जो देशभक्ति के दर्पण में उसे डराने लगे हैं। राहुल गांधी जब जेएनयू में टुकड़े-टुकड़ेवादी लोगों के साथ खड़े होंगे और धर्मनिरपेक्षता की आड़ में कांग्रेस वंदेमातरम् के विरोधियों का साथ देगी तो देशभक्ति के नारे स्वभाविक तौर पर ही पार्टी को डराएंगे ही और यह नारे लगाने वाले अपने विरोधी ही तो लगेंगे। इस हालत में कांग्रेस को दूसरों पर कीचड़ उछालने की बजाय अपनी पीढ़ी के नीचे मूसल घुमा कर देखना चाहिए।

सेना को लेकर राजनीतिक घमासान की आग तो राहुल गांधी ने लगाई परंतु इसको प्रचंड रूप देने का काम किया दिग्विजय सिंह ने जिन्होंने न केवल पाकिस्तान के बालाकोट में हुई एयर स्ट्राईक के न केवल सबूत मांगे बल्कि पुलवामा में हुए आतंकी हमले को दुर्घटना भी बता दिया। कांग्रेस हाईकमान को सावधान हो जाना चाहिए, क्योंकि यह वही दिग्विजय सिंह हैं जो मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले खुद ही स्वीकार कर चुके हैं कि वे जब-जब बोलते हैं तब-तब कांग्रेस के वोट कटते हैं। उनका यह आत्मज्ञान सही भी साबित हुआ है क्योंकि विधानसभा चुनाव में वह मौन रहे तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को जीत भी मिल गई। अब फिर उनका श्रीमुख खुल गया है, कांग्रेस को अपनी खैर मनानी चाहिए। कांग्रेस को ज्यादा चिंतित इसलिए भी होना चाहिए कि उसकी पनौती दशानन का रूप धरत रही लगती है। पहले तो नाव में छेद करने का काम केवल दिग्गी राजा की जुबान से ही होता था अब तो उनको पार्टी के बुद्धिजीवी शशि थरूर, पी. चिदंबरम, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और पंजाब के दादुरवक्ता नवजोत सिंह सिद्धू का भी साथ मिल चुका है। यानि हर शाख पर दिग्विजय ही दिग्विजय बैठे दिखने लगे हैं।

जैसे पुलवामा हमले को राजनीति से नहीं जोड़ा जा सकता परंतु यह तथ्य भी उतना ही सत्य है कि आतंकवाद फैलाने के साथ-साथ इसका एक उद्देेश्य राजनीतिक भी है। जैसा कि सभी जानते हैं कि देश विरोधी ताकतों, आतंकी संगठनों व जिहादी तंजीमों को नरेंद्र मोदी फूटी आंख नहीं सुहाते। हमले का समय चुनने वाली देश विरोधी ताकतें इसके जरिए मोदी को राजनीतिक रूप से भी कमजोर करना चाहती थीं। इसका एक उद्देश्य यह भी था कि चुनावों के समय हमला कर मोदी सरकार को आतंकवाद, पाकिस्तान, कश्मीर के मोर्चों पर असफल साबित किया जाए परंतु प्रधानमंत्री ने कड़ा कदम उठा कर पूरे खेल को उलट दिया। प्रधानमंत्री का यह पूछना भी सही है कि अगर एयर स्ट्राईक में थोड़ी चूक हो जाती या भारत को थोड़ी सी भी असफलता हाथ लगती तो क्या विपक्ष इसके लिए उनसे इस्तीफे की मांग नहीं करता ? स्वभाविक तौर पर विरोधी ऐसा करते और यह करने का उन्हें अधिकार भी होता। यह ठीक है कि दुश्मन के साथ सेना ही लड़ती है, खेत में हल किसान ही चलाता है, उद्योगों को उद्योगपति संचालित करते हैं और प्रशासनिक कामों को अधिकारी ही अंजाम देते हैं परंतु इनकी सफलता या असफलता के लिए राजनीतिक नेतृत्व ही जिम्मेवार माना जाता है। कांग्रेस क्यों भूलती है कि 1971 के भारत-पाक युद्ध में जीत का श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को मिला था और सदन में सभी ने खड़े हो कर उनका अभिनंदन किया। उस समय भी तो सेना ही लड़ी थी, श्रीमती गांधी या कोई कांग्रेसी नेता तोप या टैंक लेकर सीमा पर नहीं गये थेे। आज सेना की सफलता का श्रेय देश की जनता वर्तमान नेतृत्व की दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति को दे रही है तो कांग्रेस को लोकतंत्र की इस रीत को खुले मन से स्वीकार करना चाहिए न कि सत्ताधारी दल को छोटा साबित करने के लिए सेना के शौर्य पर ही सवालिया निशान लगाए जाएं। जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जारी है और अभी सैन्य अभियान भी जारी है। ऐसे में हमारी तरफ से दिखाई जाने वाली थोड़ी सी भी नासमझी अलग-थलग पड़े दुश्मन देश पाकिस्तान के लिए ऑक्सीजन का काम करेगी। समय देश, सेना व सरकार के साथ एकजुटता दिखाने का और वयं पंचाधिकम् शतम् के महावाक्य को व्यवहार में लाने का है न कि क्षूद्र राजनीतिक हित साधने का।
- राकेश सैन
32,खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।

कांग्रेस और खालिस्तान में गर्भनाल का रिश्ता

माँ और सन्तान के बीच गर्भनाल का रिश्ता ही ऐसा होता है, कि प्रसव के बाद शरीर अलग होने के बावजूद भी आत्मीयता बनी रहती है। सन्तान को पीड़ा हो त...