Saturday, 16 March 2024

अनुकूलता के खतरों से सचेत रहे भाजपा

एक कहानी है, देवराज इन्द्र के गजराज अक्सर गन्ने खाने के लिए पृथ्वीलोक पर एक खेत में आते थे। उस खेत का मालिक बहुत परेशान था, क्योंकि फसल का नुक्सान तो होता परन्तु उसे चोर के कहीं पदचिन्ह नहीं मिलते। एक रात गुस्साया किसान चोर को पकडऩे के लिए खेत में छिप कर बैठ गया, जब गजराज धरती पर उतरे तो किसान ने उस एरावत की पूंछ पकड़ ली। गजराज घबरा गए और जान बचाने के लिए तुरन्त इन्द्रलोक की ओर उड़ लिए और उसके साथ -साथ किसान भी पूंछ पकड़े उड़ चला। गजराज को चिन्ता हो गई कि जीवित व्यक्ति स्वर्गलोक पहुंचा तो सारी मर्यादा भंग हो जाएगी, तो उसने अपनी पूंछ मुक्त करवाने के लिए खूब मेहनत की। गजरात उड़ते-उड़ते कभी उल्टा-पुल्टा हुए तो कभी शरीर को झटकाया, लेकिन ज्यों-ज्यों झटके लगें किसान की पकड़ त्यों-त्यों मजबूत होती जाए। अब गजराज ने युक्ति से काम लिया और रणनीति बदली। उसने किसान से बातचीत करनी शुरू कर दी। एरावत ने पूछ लिया कि तुम इतने मीठे गन्ने उगाते कैसे हो? अपनी बड़ाई सुन फूल कर कुप्पा हुए किसान ने सारी तकनीक बता दी। बातचीत करते-करते दोनों में मित्रता हो गई। मौका देख कर एरावत ने कहा, आज तक जितने गन्ने मैने तुम्हारे खेत के खाए हैं चलो मैं महाराज इन्द्रदेव से बोल कर उतना सोना तुम्हे पुरस्कार में दिलवा देता हूं। सोने का नाम सुनते ही किसान इतना खुश हुआ कि  ताली बजाने लगा, उसने जैसे ही ताली बजाने के लिए हाथ खोले तो धड़ाम से धरती पर आ गिरा और गजराज महोदय स्वर्गलोक को प्रस्थान कर गए। जो किसान हाथी के साथ संघर्ष के समय विकट परिस्थितियों में भी उसकी पूंछ पकड़े रहा वह अनुकूल परिस्थिति होते ही धड़ाम से धरती पर आ गिरा। प्रतिकूल परिस्थितियों के खतरे तो सर्वज्ञात हैं परन्तु कहानी बताती है कि अनुकूल हालात भी खतरे से खाली नहीं होते, प्रतिकूल हालातों में इंसान संघर्ष करता है परन्तु महौल बदलेत ही अक्सर असावधान हो जाता है और यही चूक कर जाता है।

देश में आज लोकसभा चुनावों का शंखनाद हो चुका है। आज परिस्थितियां सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठजोड़ के पक्ष में बताई जा रही हैं। वर्तमान में द्रुत गति से हो रहा विकास, कुलांचे भरती अर्थव्यवस्था, स्वदेशी और आत्मनिर्भरता को लक्ष्य बना अग्रसर हो रहा भारत व विदेशी कूटनीतिक मोर्चों पर देश को मिलती सफलता या बात करें सांस्कृतिक उत्थान और साम्प्रदायिक सौहार्द की, तो थोड़ी बहुत नुक्ताचीनी के बाद कमोबेश हर विरोधी भी मान रहा है कि वर्तमान सरकार का कार्यकाल अच्छा रहा है। इन परिस्थितियों से ही तो उत्साहित हो कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अबकी बार चार सौ पार का उत्साही नारा दिया है, सत्ताधारियों की दृष्टि से हर कहीं बम-बम  है, बस यहीं से शुरू हो सकता है अनुकूल परिस्थिति के खतरे पैदा होने का क्रम। अतिउत्साही भाजपा को यह विस्मृत नहीं होना चाहिए कि साल 2004 में भी उसके पास नरेन्द्र मोदी व अमित शाह की तरह अटल बिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी जैसे करिश्माई नेतृत्व की छत्रछाया थी। उस लोकसभा चुनावों में भारत उदय का आकर्षक नारा दिया गया था, अर्थव्यवस्था व विकास तब भी मृगझुण्डों के साथ चुंगियां भरने की स्पर्धा कर रहे थे परन्तु पार्टी की दृष्टि से परिणाम निराशाजनक रहे। छोटे-छोटे दलों को साथ लेकर कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्षा सोनिया गान्धी ने राजग को ऐसी पटकनी दी कि अगले दस साल तक केंद्र में कांग्रेस की सरकार सत्ता में रही।

माना कि इस तरह की चेतावनी पहली बार नहीं दी जा रही और भाजपा नेतृत्व इस प्रकरण से कुछ सीखा नहीं होगा परन्तु इसके बावजूद भी पार्टी को संघर्ष के मार्ग को हर हालत में पकड़ कर रखना होगा। वैसे भी मोदी-शाह की जुगलबन्दी और अटल-आडवाणी की जोड़ी की कार्यप्रणाली में गांधी जी व सरदार पटेल जैसी भिन्नता सर्वज्ञात है और विपक्ष की डांवाडोल हालत में 2004 दोहराया जाना  फिलहाल सम्भव नहीं लगता परन्तु भाजपा को अपनी संघर्षमयी कार्यप्रणाली को बनाए रखना होगा।

देश में केवल भाजपा व वामदलों को ही कार्यकर्ता आधारित दल होने का श्रेय प्राप्त है। कार्यकर्ता के गुणों की पहचान, कार्यकर्ता निर्माण, उसे रुचि व क्षमता अनुसार काम और पूरा सम्मान व इसके साथ जनता से निरन्तर सम्पर्क भारतीय जनता पार्टी की प्रमाणिक कार्यप्रणाली मानी जाती है। पालने से लेकर पार्लियामेण्ट तक पार्टी इसी पद्धति से आगे बढ़ी है। आज चाहे भाजपा को लक्ष्य सरल लग रहा है परन्तु मार्ग इतना भी आसान नहीं है कि लोकसभा में चार सौ सदस्यों को बिना संघर्ष किए शपथ दिलवाई जा सके। चाहे कांग्रेस कमजोर दिख रही है परन्तु तृणमूल कांग्रेस, सपा, डीएमके, एआईएडीएमके, बसपा, आम आदमी पार्टी, पीडीपी, नैशनल कान्फ्रेंस सहित अनेक क्षत्रप अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूती के साथ पांव जमाए हुए
हैं। कहीं-कहीं इण्डिया गठजोड़ के प्लेटफार्म पर मिल कर ये सूबेदार भाजपा की कड़ी परीक्षा लेने वाले हैं। दूसरी ओर विकसित और आत्मनिर्भरता के मार्ग पर बढ़ रहा भारत बहुत सी शक्तियों के आंखों की किरकिरी बना हुआ है। जो भारत दुनिया हथियारों की दुनिया का सबसे  बड़ा आयातक था वो आज सैन्य सामग्री निर्यात करने लगा है, भला देसी-विदेशी शस्त्रलॉबी इसे कैसे बर्दाश्त कर सकती है? प्रतिबन्ध के बाद से देश में जिन लाखों विदेशी एनजीओ•ा की दुकानदारी बन्द हो गई क्या वे सत्तापरिवर्तन नहीं चाह रही होंगी? इन सबके मद्देनजर भाजपा को कार्यपद्धति पर चलते हुए पूरी शक्ति के साथ चुनावों में उतरना होगा और अनुकूलता के खतरों से सावधान रहना होगा।

- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्म कालोनी,
ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ा, 
जालन्धर।
सम्पर्क : 77106-55605

Monday, 11 March 2024

अब स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी की साख पर सवाल

 

मौके बेमौके दुनिया को मानवाधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और समानता का पाठ पढ़ाने वाले अमेरिका की स्थिति 
रों को नसीहत खुद मीयां फजीहत वाली बनी हुई है। कारण है कि वहां पर दूसरे देशों से आए नागरिकों पर नस्लीय हमले बढ़ते जा रहे हैं और इसकी बहुत बड़ी संख्या में शिकार भारतीय बन रहे हैं। अपनी मेधा-परिश्रम के बूते अमेरिका में विशिष्ट जगह बनाते भारतीय युवा उन नस्लीय अमेरिकी युवाओं की आंख की किरकिरी बने हुए हैं जिन्हें लगता है कि भारतीय उनकी जगह ले रहे हैं। दरअसल, इस सोच को दक्षिणपन्थी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हवा दी। इसी साल फरवरी के पहले सप्ताह शिकागो में एक भारतीय युवा को अज्ञात हमलावरों ने निशाना बनाया। इससे पहले एमबीए की डिग्री लेने करने वाले विवेक सैनी की लिथोनिया में पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। इण्डियाना में समीर कामत कुछ दिन पहले मृत पाए गए। एक अन्य छात्र नील आचार्य लापता हुए, बाद में उनकी मृत्यु हो गई। वहीं एक युवा अकुल धवन, जो इलिनोइस विश्वविद्यालय का छात्र था, जनवरी में मृत पाया गया। इसी तरह श्रेयस रेड्डी की मौत की खबर भी कुछ सप्ताह पूर्व आई। निश्चय ही ये घटनाएं अमेरिका जैसे उस देश के लिए शर्मनाक हैं जो अपने आप को दुनिया का आदर्श लोकतांत्रिक देश होने का दावा करता है। ये घटनाएं स्टैच्यू आफ लिबर्टी की साख पर भी सवाल उठाने का काम कर रही हैं।

भोगवादी संस्कृति में पले अमेरिकी युवाओं को परिश्रमी व मेधावी भारतीयों की सफलता हजम नहीं हो रही। आज एक प्रतिशत भारतीय अमेरिकी अर्थव्यवस्था में प्रतिशत आयकर दे रहे हैं। दरअसल, अमेरिका में बेरोजगारी काफी है और स्थानीय छात्र भारतीयों का मुकाबला नहीं कर पा रहे और वे स्पर्धा की बजाय हिंसाचार से खुन्नस निकालने का प्रयास करते हैं। वे स्वयं को यहां का मूलनिवासी बता कर अपनी दुर्दशा के लिए मेधावी भारतीयों को जिम्मेवार मानते हैं। रोजगार के अवसरों की कमी के चलते उत्पन्न असन्तोष के कारण बड़ी संख्या में अमेरिकी नशे और अपराध की दुनिया में उतर रहे हैं। यह दुखद ही है कि पिछले एक साल में अमेरिका में रह रहे पांच सौ बीस भारतीय मूल के लोगों के साथ नस्लीय हिंसा की घटनाएं हुई हैं जो विगत साल के मुकाबले में चालीस प्रतिशत अधिक हैं। हिंसा की चपेट में केवल छात्र ही नहीं बल्कि वहां नौकरी कर रहे और वहां बस चुके लोग भी शामिल हैं।

अतीत में जाएं तो पता चलेगा कि भारतीयों का अमेरिकी प्रवास काफी पुराना है। साल 1900 तक संयुक्त राज्य अमेरिका में दो हजार से अधिक भारतीय थे, मुख्यतरू कैलिफोर्निया में। आज, भारतीय अमेरिकी संयुक्त राज्य अमेरिका में दूसरा सबसे बड़ा अप्रवासी समूह हैं। जनगणना ब्यूरो द्वारा संचालित 2018 अमेरिकी सामुदायिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार संयुक्त राज्य में रहने वाले भारतीय मूल के 4.2 मिलियन लोग हैं। जैसे-जैसे भारतीय अमेरिकी समुदाय की प्रोफाइल बढ़ी है, वैसे ही इसका आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव भी बढ़ा है।

वहां की हर पार्टी की सरकारों में भारतीयों की संख्या काफी सराहनीय रही है। ट्वीटर (एक्स) के सीईओ पराग अग्रवाल हैं तो गूगल के सीईओ सुन्दर पिचाई हैं जिनकी वार्षिक आय 242 मिलियन डॉलर है। पिचाई 2015 में गूगल के सीईओ बने थे। आज गूगल क्रोम सबसे पॉपुलर इंटरनेट ब्राउजर है और इसका श्रेय पिचाई को ही जाता है। इसके साथ ही गूगल हर सर्च से करीब हर मिनट 2 करोड़ रुपये की कमाई करता है। सत्या नडेला वर्ष 2014 में माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ बने थे। वर्तमान में कम्पनी का बाजार पूंजीकरण करीब 2.53 खरब डॉलर है। नडेला की आय 23 लाख डॉलर पहुँच गई। नडेला को ग्लोबल इंडियन बिजनेस आइकॉन का सम्मान भी मिल चुका है। भारतीय मूल के अरविन्द कृष्णा 2020 से अमेरिका की बड़ी कम्पनी इण्टरनेशनल बिजनेस मशींस के सीईओ हैं। इस कम्पनी की बाजार पूंजी 8 लाख करोड़ रुपए से ऊपर है।

भारतीय मूल के शान्तनु नारायण 2007 से एडॉब इंक के सीईओ हैं। इसके अलावा अमेरिका की प्रमुख फूड और बेवरेज कम्पनी पेप्सीको में इन्दिरा नूई लगभग 12 साल तक सीईओ बनी रहीं। नूई के 12 साल के कार्यकाल में पेप्सिको की आय में 80 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई। वर्तमान में भारतीय मूल के जो लोग अमेरिकी टेक कम्पनियों को सम्भाल रहे हैं उनकी कुल बाजार सम्पदा लगभग 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। माइक्रोसॉफ्ट के 34 प्रतिशत कर्मी भारतीय मूल के लोग हैं। अमेरिका के वैज्ञानिकों में भी 12 प्रतिशत भारतीय हैं और नासा के तो 36 प्रतिशत वैज्ञानिक भारतीय मूल के हैं। भारतीयों की भूमिका अमेरिका के विकास में गिनाने बैठें तो शायद ये चर्चा कभी खत्म न हो। ये भारतीय हैं जो अमेरिका को विकास की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और अमेरिका भी इस बात को स्वीकार करता है।

भारतीय किसी की कृपा या दया पर नहीं बल्कि अपनी योग्यता, परिश्रम व मेधा के बल पर मौजूदा मुकाम पर पहुंचे हैं। असल में पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प की संकीर्ण दक्षिणपन्थी सोच जो वहां के युवाओं में तेजी से फैल रही है और यह मानती है कि अमेरिका पर केवल वहां के निवासियों का ही अधिकार है। ऐसी सोच रखने वालों को एक बार अमेरिका के असली मूलनिवासियों के बारे भी सोचना चाहिए जो आज लुप्तप्राय प्रजाति में शामिल हो चुके हैं। अमेरिका में आज जो भी हैं वो सभी बाहर से आए लोग हैं और अपने परिश्रम से आगे बढ़े हैं। वहां के युवाओं को भारतीयों से ईर्ष्या करने की बजाय इनसे सीख व प्रेरणा लेनी चाहिए।

Rakesh Sain, Jallandhar


Mob. 77106-55605

Saturday, 9 March 2024

भारत एक राष्ट्र है न कि राज्यों का गठबन्धन

 

गत दिनों विपक्षी दलों के ‘इण्डी’ गठजोड़ के मुख्य घटक  दल द्रविड़ मुन्नेत्र कडग़म (डीएमके) के सांसद श्री ए. राजा ने विवादित ब्यान दिया कि ‘हमें अच्छी तरह समझ लेना चहिए कि भारत कभी एक राष्ट्र नहीं रहा। एक राष्ट्र का अर्थ है एक भाषा, एक परम्परा और एक संस्कृति। भारत एक राष्ट्र नहीं बल्कि उप-महाद्वीप है।’ उन्होंने तमिलनाडू, मलयालम, उडिय़ा की भाषाई, खानपान व पहनावे की विविधता को विभिन्नता व अलगव बता कर भारत को कई नेशन् का संघ बताया।

ए. राजा ने जो कहा उसे वैचारिक भटकाहट कहना अतिशयोक्ति न होगा। अक्सर अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोग इस तरह की गलती कर जाते हैं जो राष्ट्र और अंग्रेजी में उसके आधे-अधूरे अनुवाद नेशन के बीच अन्तर नहीं समझ पाते। भारतीय दृष्टिकोण में संस्कृत साहित्य अनुसार, राष्ट्र शब्द की व्युत्पत्ति ‘रज’ धातु से हुई है, 
‘राजते दिप्यते प्रकाशते शोभते इति राष्ट्रम्’ 
अर्थात जो स्वयं दैदिप्यमान होने वाला है वह राष्ट्र कहलाता है। पश्चिम ने इस शब्द का अनुवाद ‘नेशन’ के रूप में किया है जो लैटिन भाषा के शब्द ‘नेशियो’ से आया है। नेशियो का अर्थ पैदा होना या जन्म लेना है, इस प्रकार ‘नेशन’ उस मानव समूह को कहते हैं जो जाति, भाषा, धर्म और परम्परा के रूप में एक हो। अंग्रेजी में ‘नेशन’ शब्द के जो अर्थ हैं वह राष्ट्र की तुलना में संकीर्ण व सीमित अर्थों वाले हैं अर्थात अंग्रेजी में राष्ट्र शब्द का समूचित अनुवाद उपलब्ध नहीं। यहीं से पैदा होती है वैचारिक असमंजस की स्थिति जिससे बड़े-बड़े विद्वान भी भ्रमित हो जाते हैं व विभाजनकारी शक्तियां इस भ्रम का प्रयोग देश को तोडऩे के काम में करती हैं।
डीएमके सांसद को यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत शब्द कहते ही हमारे सामने एक भौगोलिक चित्र के साथ-साथ हजारों वर्षों की सांस्कृतिक धरोहर की अनुभूति आ जाती है। विष्णुपुराण में भी भारत के भौगोलिक स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा गया है - 
उत्तरंयत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्ष तद्भारतं नाम भारती यत्र सन्तति:।। 
अर्थात् समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो भूमि स्थित है, उसे भारत भूमि कहते हैं और इस पवित्र भूमि पर निवास करने वालों को भारतीय कहा जाता है। भारत को एक राष्ट्र के रूप में मात्र इसलिए नहीं जाना जाता कि वह एक भू-भाग है, बल्कि इसलिए भी जाना जाता है कि भारत विश्व की सबसे पुरानी एवं जीवित संस्कृतियों में से एक है जिसमें विविधताओं के साथ-साथ यहां की संस्कृति में एकात्मभाव देखने को मिलता है। यह एक स्थापित सत्य है कि भारत में विभिन्न क्षेत्र, मत सम्प्रदाय, असंख्य भाषाएं, बोलियां, वेश-भूषा, जातियां, रीति-रिवाज, आदि पाए जाते हैं, उसके बावजूद भी पुरातनकाल से ही हमारी संपूर्ण रचना एकात्मता पर आधारित है। यह विविधता हमारी वैचारिक सहिष्णुता व विशाल भू-गौलिक स्थिति के कारण है, इनमें कहीं कोई टकराव नहीं।
भारत को राष्ट्रीयताओं का समूह बताने वाला चिंतन विदेशी और नास्तिक वामपन्थी विचारधारा का प्रतिबिम्ब है, जिसमें वह भारत को अपने उद्भवकाल से भाषाई-सांस्कृतिक आधार पर बहुराष्ट्रीय राज्यों का समूह मानता आया है, साथ ही यहां की आधारभूत हिन्दू परम्पराओं और उसकी समस्त ब्रह्म्राण्ड को जोडऩे वाली संस्कृति से घृणा करता है। इसी दर्शन से तमिलनाडू की राजनीति भी अभिशप्त है जो अर्य-द्रविड़ रूपी अलगाववादी सिद्धान्त से प्रभावित है। निर्विवाद रूप से भारत विविधताओं से भरा और बहुलतावाद से ओतप्रोत राष्ट्र है जिसे इसकी प्रेरणा अनादिकाल से यहां की सनातन संस्कृति और कालजयी परम्परा से मिल रही है।  गांधी जी ने 1909 में अपनी पुस्तक ‘हिन्द-स्वराज्य’ में एक स्थान पर लिखा है, ‘दो अंग्रेज जितने एक नहीं, उतने हम भारतीय एक थे और एक हैं। विदेशियों के दाखिल होने से राष्ट्र खत्म नहीं हो जाते।’
भारत सहस्राब्दियों से सांस्कृतिक रूप से एक राष्ट्र रहा है। इसकी संस्कृति में ऊपरी तौर पर जो विविधता दिखाई देती है वह एक विशाल राष्ट्र की भू-गौलिक परिस्थितियों के चलते है। हमारे उत्तर में हिमअच्छादित पर्वत हैं तो उसकी तलहटी पर गंगा-जमना के उपजाऊ मैदान, पश्चिम में विशाल रेगिस्तान है तो पूर्व में अलांघ्य वन और दक्षिण में पठार। 500-600 वर्षों से पहले तक राज्यों को एक-दूसरे से सम्पर्क और तारतम्य स्थापित करने में भीषण कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। तब पर्याप्त यातायात और संचार व्यवस्था नहीं होने पर केन्द्रीय रूप से राज्यों को नियन्त्रित करना दुस्साध्य था, इसलिए राज्यों का बनना-बिगडऩा स्वाभाविक था। किन्तु सबके लिए भारत भावनात्मक रूप से और लोकमानस के चिन्तन में सदैव एक राष्ट्र ही रहा। चाणक्य अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में कहते हैं कि हमारे जनपद चाहे विभिन्न हों परन्तु हमारा राष्ट्र एक और माँ भारती सबकी एक ही है।
कुछ पश्चिमी व वामपंथी चिंतक भारत की तुलना यूएसएसआर (रूस का पुराना नाम) से करते हैं और यह बताने का प्रयास करते हैं कि इसी तरह भारत कई राष्ट्रीयताओं का समूह है। केवल इतना ही नहीं ये लोग इसी आधार पर भारत का विभाजन भी चाहते हैं। कश्मीर, पंजाब, तमिलनाडू, देश के पूर्वी राज्यों में चल रहे अलगाववादी आन्दोलनों को विदेशों से समर्थन और मध्य भारत में नक्सली आतंक को वामपन्थी शक्तियों का सहयोग मिलना इसी बात का प्रमाण है कि विखण्डनकारी शक्तियां गलत विमर्श स्थापित कर भारत की एकता-अखण्डता को छिन्न-भिन्न करना चाहती हैं। देशवासियों, विशेषकर राजनेताओं को इस प्रकार की राष्ट्रविच्छेदक शक्तियों से सावधान रहना चाहिए, क्योंकि जो राजनेता उनकी हां में हां मिला कर इस तरह का दुष्प्रचार करता है उसके अधिकतर समर्थक उसी का अन्धानुकरण करते हैं। राष्ट्र के रूप में भारत प्राचीनकाल से एक था, आज भी एक है और सृष्टि के अंत तक एक ही रहेगा।







- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्म कालोनी,
ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ा,
जालन्धर।
सम्पर्क : 77106-55605

Saturday, 2 March 2024

यात्रा से भटकी कांग्रेस

 


पंजाबी में कहावत है- ‘बुहे आई जन्न, विन्नो कुड़ी दे कन्न’ अर्थात दरवाजे पर बारात आने पर लडक़ी के कान बींधना साधारण शब्दों में कहें तो असमय कार्य करना। हिन्दी में इसकी समानार्थी कहावत है ‘फेरों के समय जूएं देखना’, कांग्रेस के साथ आजकल यही कुछ होता दिख रहा है, आम चुनाव सिर पर हैं और पार्टी जुटी है न्याय यात्रा में। स्कूली भाषा में बोलें तो फाइनल परीक्षा के समय एजुकेशनल टूअर पर निकलना। देखने में आ रहा है कि इस यात्रा में न केवल कांग्रेस बल्कि वह ‘इण्डी गठजोड़’ भी भटकता और झटके खाता नजर आ रहा है जो अभी भ्रूण अवस्था में भी नहीं आया है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की दूसरी यात्रा 14 जनवरी को मणिपुर से शुरू हुई और 20 मार्च को मुम्बई में संपन्न होगी। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हो रही यह यात्रा 67 दिन में 6713 किलोमीटर लम्बा सफर तय करने के लिए देश के 15 राज्यों के 110 जिलों और 100 लोकसभा क्षेत्रों से गुजरेगी।  यह राहुल गांधी की दूसरी यात्रा है। इससे पहले उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी, जो 7 सितंबर, 2022 को कन्याकुमारी से शुरू हो कर 30 जनवरी, 2023 को कश्मीर में संपन्न हुई। 136 दिन की उस यात्रा में 12 राज्यों और दो केन्द्र शासित प्रदेशों के 75 जिलों और 76 लोकसभा क्षेत्रों से गुजरते हुए चार हजार किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय किया गया था। पहली यात्रा पदयात्रा ही थी, जबकि न्याय यात्रा में हर दिन आठ से दस किलोमीटर पैदल चल कर शेष सफर विशेष वाहनों से तय किया जाएगा। राहुल की इस नई यात्रा का राजनीतिक आकलन तो लोकसभा चुनाव के बाद ही हो पाएगा लेकिन पहली यात्रा को एक नजरिए से देखें तो उसका परिणाम मिलाजुला रहा। कर्नाटक और तेलंगाना विधानसभा चुनावों में कांग्रेस जीत गई तो राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उसे करारी हार झेलनी पड़ी। कांग्रेस को विश्वास है कि अबकी बार न्याय यात्रा परिवर्तनकारी साबित होगी। राहुल गान्धी की इन दो यात्राओं के बीच एक बड़ी घटना यह हुई है दो दर्जन से भी ज्यादा विपक्षी दल मिल कर नया ‘इंडि गठबंधन’ बना चुके हैं। लेकिन इस बार की यात्रा में सबसे बड़ी चूक साबित हो सकती है इसका समय, पहली यात्रा के समय देश के कुछ राज्यों में ही विधानसभा चुनाव होने थे परन्तु अब इस यात्रा के समय आम चुनाव होने हैं जो हर राजनीतिक दल के लिए जीवन-मरन का प्रश्न माने जाते हैं। अभी सबसे बड़ा सवाल न्याय यात्रा के समय को लेकर ही उठ रहा है। मार्च के दूसरे पखवाड़े में जब यह यात्रा संपन्न होगी, तब तक शायद देश में लोकसभा चुनाव के कार्यक्रम घोषित हो चुके होंगे या होने वाले होंगे। ऐसे में फरवरी और मार्च के महीने कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव की तैयारी के हिसाब से महत्वपूर्ण समय है। ऐसे समय पार्टी की पूरी ऊर्जा केवल यात्रा के आयोजन और उससे जुड़े विवादों से जूझने में लग जाए, यह राजनीतिक आत्महत्या करने जैसा होगा।

यात्रा में केवल कांग्रेस ही नहीं भटकी लगता है वह ‘इण्डि गठजोड़’ भी भटकता और झटके खाता दिख रहा है जो अभी भ्रूण अवस्था में भी नहीं आया। सभी जानते हैं कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एकला चलो का राग अलाप चुकी हैं तो देश की नई-नई परन्तु अति महत्वाकांक्षी आम आदमी पार्टी पंजाब, हरियाणा व दिल्ली में कांग्रेस के साथ समझौते से लगभग इंकार कर चुकी है। ‘इण्डि गठजोड़’ को सबसे करारा झटका दिया है बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने जो कहां तो कल तक खुद को इस गठजोड़ का संयोजक मान कर चल रहे थे और अब वे भाजपा के पाले में पलटी मार चुके हैं। केवल इतना ही नहीं गठजोड़ के अन्य दलों में भी इसके भविष्य को लेकर संदेह पैदा होने लगा है।

आज फरवरी का महीना शुरू हो चुका है,  ‘इण्डि गठजोड़’ की सफलता के लिए अभी तक संयोजक का नाम तय और सीटों के बण्टवारे पर बातचीत का काम पूरा हो जाना चाहिए था, परन्तु कांग्रेस के लिए ये कार्य अभी बहुत दूर की कौड़ी लगती है। ‘इण्डि गठजोड़’ के ही अभी तक सहयोगी माने जाने वाले दल तृणमूल कांग्रेस के शासन बंगाल में राहुल गान्धी की यात्रा पर हुई कथित पत्थरबाजी बताती है कि इस यात्रा के लिए गठजोड़ के सहयोगी दलों को न तो विश्वास में लिया गया और न ही उनका सहयोग मांगा गया। इतनी दयनीय स्थिति में भी कांग्रेस का अहं अभी गया नहीं लगता, उसे लगता है कि गठजोड़ में केवल वही एकमात्र दल है जिसकी उपस्थिति देशव्यापी है। तभी तो अपने संभावित सहयोगी दलों को यात्रा से दूर रखा गया। एक तरफ अहं जहां गठजोड़ में बाधा बनता दिख रहा है वहीं यात्रा का बेमौसमी आयोजन कांग्रेस को भी भटका रहा है। 
कुछ विश्लेषक मानते हैं कि न्याय यात्रा कांग्रेस के लिए शेर की सवारी हो गई है, जिसको न तो जारी रखना और न ही बीच में छोडऩा खतरे से खाली है। पार्टी की सारी शक्तियां अप्रत्यक्ष रूप से राहुल गांधी के हाथों में सीमित हैं तो यात्रा का नेतृत्व भी वही कर रहे हैं। राहुल की अनुमति के बिना न तो पार्टी के अन्य नेता संगठन को लेकर कोई निर्णय कर पा रहे हैं और न ही राहुल गांधी को इसके लिए समय मिल रहा है। यही दुविधा कांग्रेस को भटका रही है और ‘इण्डि’ गठजोड़ को झटके दे रही है। चुनाव सिर पर आ चुके हैं, श्रीराम मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा से कमण्डल, पिछड़ा वर्ग के महानायक माने जाने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दे कर मण्डल साधने और ‘इण्डि गठजोड़’ के स्तम्भ नीतिश कुमार को साध कर भाजपा ने बड़ी बढ़त हासिल कर ली है, उससे कांग्रेस के नेतृत्व को इस बारे अवश्य सोचना चाहिए कि यात्रा पार्टी के भले के लिए निकालनी है या भटकने के लिए।

- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्म कालोनी,
डाकखाना लिदड़ा,
जालन्धर।
सम्पर्क : 77106-55605

सन्देशखाली : टीएमसी का तालिबानी तंत्र

 

पश्चिम बंगाल के उत्तर परगना जिले के सन्देशखाली से जिस तरह के समाचार आरहे हैं उससे एक बार तो सन्देह होता है कि क्या यह वही 'आमार शोनार बांग्ला' भूमि है जहां कभी रविन्द्रनाथ टैगोर और स्वामी विवेकानन्द जी जैसी पुण्यात्माओं ने जन्म लिया। बंगाल की प्रगतिशीलता के बारे कहा जाता है कि जो बात देशवासी आज सोचता है 'बांग्ला मानुसÓ उसे वर्षों पहले सोच चुका होता है। माँ दुर्गा की पावन धरा बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के नेताओं द्वारा महिलाओं पर भीषण अत्याचार के जो समाचार वहां से आरहे हैं उनको सुन कर तो एक बार तालिबानी और आईएस सरीखे आतंकी संगठन भी शर्मसार हो जाएं। यह और भी शर्मनाक है कि सुश्री ममता बैनर्जी जैसी एक महिला मुख्यमंत्री के शासन में ये सबकुछ हो रहा है जो अपने आप को बंगाल की शेरनी कहलाना ज्यादा पसन्द करती हैं।

बीते कुछ दिनों से सन्देशखाली हिंसा की आग में झुलस रहा है। यहां का पूरा मामला प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई के बाद लोगों के सामने आया है। पिछले माह 5 जनवरी, को निदेशालय के अधिकारी राशन भ्रष्टाचार मामले में सन्देशखाली के सरबेडिय़ा में तृणमूल नेता शेख शाहजहां से पूछताछ करने पहुंचे। सत्ताधारी दल के कार्यकताओं की मदद से न सिर्फ उनका नेता शाहजहां शेख फरार हो जाने में सफल रहा, बल्कि इस दौरान सरकारी अधिकारियों पर हमले भी किए गए। उसकी फरारी के बाद उन स्थानीय लोगों ने अपनी आवाज तेज कर दी जो उससे पीडि़त थे। गांव के लोग शेख शाहजहां और उसके सहयोगियों को गिरफ्तार करने की मांग कर रहे हैं और अपनी मांगों को लेकर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। इन प्रदर्शन में महिलाएं भी शामिल हो रही है। यहां की पीडि़त अनुसूचित जाति और आदिवासी महिलाओं की बातें हर किसी को अन्दर तक झकझोरने वाली हैं। इन महिलाओं ने वहां के तृणमूल नेता शेख शाहजहां और उनके साथियों पर यौन उत्पीडऩ व जमीन हड़पने के आरोप लगाये। आक्रोशित महिलाओं और लोगों ने शाहजहां के करीबी नेता शिबू हाजरा व उत्तम सरदार के खेत और मुर्गीखाने व घरों में आग भी लगा दी। आरोप है कि स्थान गांव के लोगों की जमीन छीनकर उसपर अवैध तरीके से यह मुर्गीखाना बनाया गया है। ये कई तरह के अवैध कार्यों का केन्द्र भी था। महिला आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति आयोग व कई राजनीतिक दलों के तथ्यान्वेषी दलों के सामने पीडि़त महिलाओं ने जो-जो बताया उनको कहने और लिखने में भी शर्म महसूस हो रही है। राज्य के 24 उत्तरी परगना जिले में हिंसा को लेकर बंगाल के राज्यपाल भी राज्य के कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर चुके हैं। राज्यपाल सीवी आनन्द बोस ने सन्देशखाली में अशान्त क्षेत्रों का दौरा किया और तृणमूल कांग्रेस के फरार नेता शेख शाहजहां और उसके साथियों पर यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाने वाली महिला प्रदर्शनकारियों से बात की। इस दौरान राज्यपाल ने महिलाओं को आश्वासन दिया कि उनकी कलाई पर राखी बान्धने वाली महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए पूरी सहायता की जाएगी। यहां महिलाओं को कहते सुना गया कि वह अपने लिए शान्ति और सुरक्षा चाहती हैं, वह और प्रताडऩा नहीं झेल सकतीं है। दौरे के बाद राज्यपाल ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने जो देखा वह भयावह, स्तब्ध करने वाला और उनकी अन्र्तात्मा को हिला देने वाला था।
परेशान करने वाली बात है कि सन्देशखाली की घटानओं को लेकर पूरा देश शर्मसार है परन्तु लगता है कि शायद सत्ताधारियों की आँखों का पानी सूख चुका है। लाख बदनामी झेलने और कलकत्ता उच्च न्यायालय की फटकार के बाद भी वहां की सरकार इन पंक्तियों के लिखे जाने तक वर्तमान के नरकासुर शाहजहां को गिरफ्तार नहीं कर पाई। अपना संवैधानिक दायित्व निभाने की बजाय सुश्री ममता बैनर्जी इस मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी को भी खींच लाई हैं और इन संगठनों को लेकर तरह-तरह के उपहासपूर्ण आरोप लगा रही हैं। केवल सत्ताधारी ही क्यों अन्र्तात्मा उन संगठनों की भी मर चुकी दिखती हैं जो कल तक मणिपुर में हुई इसी तरह की घटनाओं को लेकर बीच चौराहों पर छाती पीट रहे थे और महिला सम्मान की ओट में अपने राजनीतिक हित साध रहे थे। ठीक ही कहा गया है कि महिला सम्मान में राजनीतिक लाभ हानि देख कर मोमबत्तियां फूकने या बुझाने वाले असल में उसी स्तर के अपराधी हैं जितना कि उत्पीडऩ करने वाले दोषी।
एक बार लक्ष्मीजी ने नारायण से पूछा कि भगवन आपने एक युग में तो मरणासन्न जटायु नामक मुर्दाखोर गिद्ध के अपने हाथों से जख्म धोए और मरने पर अन्तिम संस्कार तक किया और दूसरे युग में शरशैया पर लेटे भीष्म पितामह जैसे पुण्यात्मा को पीने के लिए जल तक नहीं दिया। इस पर श्रीहरि कहते हैं कि गिद्धराज जटायु को मालूम था कि वह रावण से नहीं जीत पाएगा परन्तु इसके बावजूद वह एक महिला सीता को बचाने के लिए दशानन से भिड़ गया। दूसरी ओर कौरव सभा में अधिकार संपन्न व शस्त्रों से सुसज्जित होने के बाद भी गंगापुत्र भीष्म  द्रोपदी जैसी महिला के चीरहरण पर मौन रहे, इसीलिए मैने उसे पानी देने लायक भी नहीं समझा और खगराज जटायु का तर्पण भी किया। आज यह तय ममता दीदी को करना है कि भविष्य में वे पक्षीराज जटायु की श्रेणी में अपना नाम लिखवाना चाहेंगी या कौरव शिरोमणि भीष्म की परम्परा में। चाहे लोकतन्त्र व हिंसा को लेकर तृणमूल कांग्रेस सरकार का विवादित अतीत रहा है परन्तु महिला सम्मान की खातिर तो उन्हें अपने समस्त राजनीतिक, साम्प्रदायिक व वैचारिक पूर्वाग्र
ह त्यागने ही होंगे और सन्देशखाली के आरोपियों को सींखचों के पीछे पहुंचाना ही होगा। यही संवैधानिक मर्यादा व न्याय की मांग है।

- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्म कालोनी,
ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ा, जालन्धर।
सम्पर्क : 77106-55605

कांग्रेस और ‘आप’: इस रिश्ते को क्या नाम दें ?

 देश में लोकसभा चुनावों की तैयारी को लेकर ‘इंडी’ गठजोड़ के तहत कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबन्धन हो चुका है। देश के अन्य हिस्सों जैसे दिल्ली, हरियाणा, गुजरात और गोवा में दोनं दल मिल कर चुनाव लड़ेंगे जबकि पंजाब में एक-दूसरे के खिलाफ। इस अजीबो-गरीब गठजोड़  को देख कर हास्य अभिनेता कादर खान की उस फिल्म में कमेडी का स्मरण हो आया जिसमें प्रेमी की माँ और प्रेमिका का बाप भी एक दूसरे के चक्कर में पड़ कर शादी कर बैठते हैं। अब इस रिश्ते से प्रेमी अपनी प्रेमिका भाई हो गया और उसका अपना पिता उसका ससुर भी बन गया। प्रेमिका भी अपनी माँ को सासू कहे या मम्मी, उसे समझ नहीं आरहा था। परिवार में इन दोनों जोडिय़ों के होने वाले बच्चों के सामने समस्या पैदा हो गई कि कौन किसको किस रिश्ते से पुकारे? इसी तर्ज पर उक्त राजनीतिक गठजोड़ को देख कर यह बात सत्य साबित हो गई है कि देश में नई तरह की राजनीति का वायदा करके आए अरविंद केजरीवाल ने वास्तव में नया कर दिखाया है। हालांकि इस तरह के बेमेल गठजोड़ अतीत में भी कुछ स्थानों पर होते रहे हैं परन्तु राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार यह बेर और केर का साथ चर्चा का विषय बना हुआ है। कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ चले अन्ना हजारे आन्दोलन से ऊपजी आम आदमी पार्टी अब उसी के पक्ष में भुगतती दिखाई दे रही है।


रोचक है कि चुनावों में प्रचार के दौरान पंजाब में कांग्रेस जहां भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार को कोसेगी और अरविंद केजरीवाल पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को उछालेगी वहीं दोनों दल दूसरे राज्यों में एक-दूसरे की पीठ खुजाएंगे। केंद्र में अगर सत्ता परिवर्तन होता है तो यहां के सांसद चाहे वह कांग्रेस के हों या आप के एकसाथ सरकार में बैठेंगे और भाजपा सरकार बनी रहती है तो विपक्ष में गलबहियां डाले दिखेंगे, यानि हमीं से मुहब्बत हमीं से लड़ाई-अरे मार डाला दुहाई दुहाई। पंजाब में इस रिश्ते को फिक्स मैच या नूरा कुश्ती का नाम दिया जाने लगा है। कल 1 मार्च को पंजाब विधानसभा में शुरू हुए बजट सत्र के दौरान कांग्रेस ने पंजाब में शंभू सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन में मारे गए युवक को लेकर आप की सरकार को घेरा तो सत्तापक्ष ने कांग्रेस पर पलटवार किया। भाजपा ने इसे फिक्स मैच बता कर उपहास किया है और कहा है कि किसानों के खिलाफ दोनों अंदर से मिले हुए हैं।
 


इस बेमेल खिचड़ी गठबन्धन को लेकर एक कहानी सुनाई जाने लगी है कि जैसे बाढ़ के समय जान बचाने के लिए अपनी दुश्मनी भुला कर हर तरह के जीव-जन्तु ऊंचाई वाली जगह पर एकत्रित हो जाते हैं परन्तु पानी उतरते ही उनकी मित्रता उसी बाढ़ के जल में प्रवाहित हो जाती है और फिर एक दूसरे की जान के दुश्मन बन जाते हैं। लगता है कि देश में जिस तरह का राजनीतिक वातावरण बना हुआ है और भाजपा की विजय की अभी से भविष्यवाणी करने वालों की संख्या बढ़ रही है, शायद उसी के भय से आम आदमी पार्टी व कांग्रेस ने मिल कर भानूमती का कुनबा जुटाया है। देश के इतिहास में यह दूसरा चुनाव है जब भ्रष्टाचार को लेकर सरकार हावी है और विपक्षी दल रक्षात्मक मुद्रा में हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पर तो काफी समय से इस तरह के केस चले आ रहे हैं परन्तु कट्टर ईमानदार अरविंद केजरीवाल व आप के कई बड़े नेताओं पर भी दिल्ली आबकारी घोटाले के छींटे पड़े हैं जो उन्हें बेचैन किए हुए हैं। आम आदमी पार्टी के कई नेता तो जेलों में कैद हैं और यहां तक कि उन्हें इन केसों में सर्वोच्च न्यायालय से जमानत तक नहीं मिल पा रही। ये वही केजरीवाल हैं जो सोनिया गांधी को मंच पर खड़े हो कर भ्रष्टाचारी बताते थे और दिल्ली की पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री दिवंगत शीला दीक्षित के कथित भ्रष्टाचार के सबूतों का पुलिंदा होने का दावा करते थे। दिल्ली विधानसभा चुनावों में उन्होंने दावा किया था कि सत्ता में आते ही इन सबको जेल की हवा खिलाई जाएगी।    पर आज वही केजरीवाल कांग्रेस को परममित्र बताते नहीं अघाते।
पंजाब में भी भगवंत मान की सरकार ने आते ही कथित भ्रष्टाचार उन्मूलन अभियान चला कर एक दर्जन के करीब पूर्व कांग्रेसी मंत्रियों व विधायकों के यहां सतर्कता विभाग की छापामारी करवाई और कईयों को जेल में भेजा परन्तु वर्तमान में न जाने किस कारण से उनका यह अभियान केवल पटवारियों-क्लर्कों तक सीमित हो कर रह गया। बड़े नेताओं के केस लम्बी तारीख पर डाल दिए गए हैं। पंजाब के बड़े कांग्रेसियों के भ्रष्टाचार पर न केवल भगवंत मान बल्कि उनके मंत्रियों व नेताओं तक ने बोलना कम कर दिया।
जैसे कि बताया जा चुका है कि विरोधी दलों से गठजोड़ होना कोई नई बात नहीं है परंतु किसी दो दलों में एक स्थान पर तो गठबंधन हो और दूसरी जगह पर एक-दूसरे से भिड़ते दिखें तो अतीत में ऐसा राजनीतिक उदाहरण दुर्लभ ही है। कहने को दोनों दल दावा करते
हैं कि वे देश में लोकतंत्र व संविधान बचाने के लिए एक दूसरे के साथ आए हैं अगर ऐसा है तो इतने पवित्र यज्ञ में पंजाब को क्यों आहूति डालने से वंचित कर दिया ? देशवासी अब आम आदमी पार्टी व कांग्रेस दोनं से पूछ रहे हैं कि इस रिश्ते को क्या नाम दें ?

- राकेश सैन

32, खण्डाला फार्म कालोनी,

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जालन्धर।

सम्पर्क : 77106-55605

कांग्रेस और खालिस्तान में गर्भनाल का रिश्ता

माँ और सन्तान के बीच गर्भनाल का रिश्ता ही ऐसा होता है, कि प्रसव के बाद शरीर अलग होने के बावजूद भी आत्मीयता बनी रहती है। सन्तान को पीड़ा हो त...