भारत दूत
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ।।
Thursday, 25 July 2024
कांग्रेस और खालिस्तान में गर्भनाल का रिश्ता
Friday, 19 April 2024
पंजाब का लोकजीवन : लक्ष्मण ने बन्धनमुक्त करवाई राम की बारात
Tuesday, 2 April 2024
केजरीवाल रामायण का सीता वनवास प्रसंग जरूर पढ़ें
श्री केजरीवाल के समर्थक दलील देते हैं कि संविधान में इसकी कोई व्यवस्था नहीं है कि कोई मुख्यमंत्री जेल में सरकार नहीं चला सकता। इस प्रश्न को पलट कर भी पूछा जा सकता है कि क्या संविधान में इसकी व्यवस्था है कि एक मुख्यमंत्री जेल में रह कर सरकार चला सकता है ? दरअसल हमारे संविधान निर्माताओं ने इस बात की कल्पना भी नहीं की होगी कि देश को ऐसे दिन भी देखने पड़ेंगे कि जब एक मुख्यमंत्री को जेल जाना पड़े। देश के संचालन में केवल संवैधानिक व्यवस्थाएं ही सबकुछ नहीं होतीं बल्कि लोकलाज के बिना लोकराज सम्भव ही नहीं है। आखिर राजनीतिक शूचिता व नैतिकता भी तो कुछ अर्थ रखती हैं। देश में इससे पहले ऐसी कभी पेचीदा स्थिति पैदा नहीं हुई कि किसी मुख्यमंत्री को अपने पद पर रहते हुए जेल जाना पड़ा हो। एक सामाजिक आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी के एकछत्र नेता श्री अरविन्द केजरीवाल तो नैतिकता के मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव व झारखण्ड के मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन से भी उन्नीस निकले, क्योंकि इन नेताओं ने गिरफ्तारी से पहले कम से कम अपने-अपने पदों से त्यागपत्र देने का तो हौंसला दिखाया। पर लगता है कि अन्ना हजारे के शिष्य श्री केजरीवाल तो नाखून कटाने जैसे बलिदान का भी साहस नहीं कर पा रहे हैं।
एक मुख्यमंत्री जेल में सरकार चला सकता है या नहीं इसको लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय उभर कर सामने आ रही हैं। लगता है कि इस मामले को लेकर श्री केजरीवाल दो विकल्प लेकर चल रहे हैं, पहला कि अगर जेल में ही सरकार चला सकें तो वे मुख्यमंत्री बने ही रहेंगे परंतु अगर ऐसा न कर पाए तो वे इसके लिए अपनी धर्मपत्नी श्रीमती सुनीता केजरीवाल को नंबर दो के रूप में स्थापित कर रहे हैं। श्रीमती केजरीवाल जिस तरह से दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई इंडी गठजोड़ की महारैली में गठबंधन के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठी नजर आईं और जिस तरह से आम आदमी पार्टी के विधायकों की बैठकें ले रही हैं उससे यह पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि दिल्ली में लालू-राबड़ी वाला इतिहास दोहराया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो नई तरह की राजनीति के दावे के साथ आई आम आदमी पार्टी पर भ्रष्टाचार के बाद परिवारवाद के आरोपों के भी छींटे पडऩे शुरू हो जाएंगे। कैसी विडम्बना है कि पार्टी अक्तूबर, 2012 में जन्मी आम आदमी पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र व्यक्ति विशेष के पंजों में दम तोड़ता नजर आरहा है, पार्टी के आरम्भ से ही श्री केजरीवाल इसके राष्ट्रीय संयोजक चले आ रहे हैं। क्या उनके दल में कोई ऐसा नेता नहीं जो इस पद पर पहुंच पाए ? अब श्री केजरीवाल ने अपनी धर्मपत्नी को अपनी क्रान्तिकारी पार्टी पर थोपना शुरू कर दिया है जो भारतीय राजनीति में परिवारवाद की निकृष्टतम उदारहणों में से एक है।
भ्रष्टाचार को लेकर अब आम आदमी पार्टी ही दुविधा में दिखाई दे रही है। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार आते ही मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में हुए कथित घोटालों का मामला उठाया और विभिन्न मामलों में लगभग एक दर्जन पूर्व कांग्रेसी मंत्रियों व पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ केस दर्ज किए। इन कार्रवाईयों के जरिए भगवंत मान ने जनता को भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने व अपनी छवि ईमानदार नेता के रूप में बनाने का प्रयास किया। लेकिन अब यह कहने में कोई संशय नहीं है कि भगवंत मान की राजनीतिक कमाई दिल्ली की आप सरकार ने लुटा दी है। आज भगवंत मान को न केवल अपनी पार्टी के सुप्रीमो श्री अरविंद केजरीवाल का बचाव करना पड़ रहा है बल्कि उस कांग्रेस पार्टी के नेताओं के साथ भी मंच सांझा करना पड़ रहा है जिसको वे पंजाब में पानी पी-पी कर कोसते रहे हैं। पंजाब में आप कार्यकर्ताओं को लगने लगा है कि श्री केजरीवाल ने खुद की ही पार्टी को गहन संकट में ला कर खड़ा कर दिया है। आशा की जानी चाहिए कि जेल में स्वाध्याय करते समय श्री केजरीवाल को अवश्य ऐसा कोई धर्मसम्मत मार्ग मिलेगा जिससे वे अपनी पार्टी की डोलती हुई नैया को पार लगा सकेंगे।
राकेश सैन
32, खण्डाला फार्म
ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ा
जालन्धर।
सम्पर्क : 77106-55605
Saturday, 16 March 2024
अनुकूलता के खतरों से सचेत रहे भाजपा
हैं। कहीं-कहीं इण्डिया गठजोड़ के प्लेटफार्म पर मिल कर ये सूबेदार भाजपा की कड़ी परीक्षा लेने वाले हैं। दूसरी ओर विकसित और आत्मनिर्भरता के मार्ग पर बढ़ रहा भारत बहुत सी शक्तियों के आंखों की किरकिरी बना हुआ है। जो भारत दुनिया हथियारों की दुनिया का सबसे बड़ा आयातक था वो आज सैन्य सामग्री निर्यात करने लगा है, भला देसी-विदेशी शस्त्रलॉबी इसे कैसे बर्दाश्त कर सकती है? प्रतिबन्ध के बाद से देश में जिन लाखों विदेशी एनजीओ•ा की दुकानदारी बन्द हो गई क्या वे सत्तापरिवर्तन नहीं चाह रही होंगी? इन सबके मद्देनजर भाजपा को कार्यपद्धति पर चलते हुए पूरी शक्ति के साथ चुनावों में उतरना होगा और अनुकूलता के खतरों से सावधान रहना होगा।
Monday, 11 March 2024
अब स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी की साख पर सवाल
मौके बेमौके दुनिया को मानवाधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और समानता का पाठ पढ़ाने वाले अमेरिका की स्थिति औरों को नसीहत खुद मीयां फजीहत वाली बनी हुई है। कारण है कि वहां पर दूसरे देशों से आए नागरिकों पर नस्लीय हमले बढ़ते जा रहे हैं और इसकी बहुत बड़ी संख्या में शिकार भारतीय बन रहे हैं। अपनी मेधा-परिश्रम के बूते अमेरिका में विशिष्ट जगह बनाते भारतीय युवा उन नस्लीय अमेरिकी युवाओं की आंख की किरकिरी बने हुए हैं जिन्हें लगता है कि भारतीय उनकी जगह ले रहे हैं। दरअसल, इस सोच को दक्षिणपन्थी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हवा दी। इसी साल फरवरी के पहले सप्ताह शिकागो में एक भारतीय युवा को अज्ञात हमलावरों ने निशाना बनाया। इससे पहले एमबीए की डिग्री लेने करने वाले विवेक सैनी की लिथोनिया में पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। इण्डियाना में समीर कामत कुछ दिन पहले मृत पाए गए। एक अन्य छात्र नील आचार्य लापता हुए, बाद में उनकी मृत्यु हो गई। वहीं एक युवा अकुल धवन, जो इलिनोइस विश्वविद्यालय का छात्र था, जनवरी में मृत पाया गया। इसी तरह श्रेयस रेड्डी की मौत की खबर भी कुछ सप्ताह पूर्व आई। निश्चय ही ये घटनाएं अमेरिका जैसे उस देश के लिए शर्मनाक हैं जो अपने आप को दुनिया का आदर्श लोकतांत्रिक देश होने का दावा करता है। ये घटनाएं स्टैच्यू आफ लिबर्टी की साख पर भी सवाल उठाने का काम कर रही हैं।
भोगवादी संस्कृति में पले अमेरिकी युवाओं को परिश्रमी व मेधावी भारतीयों की सफलता हजम नहीं हो रही। आज एक प्रतिशत भारतीय अमेरिकी अर्थव्यवस्था में प्रतिशत आयकर दे रहे हैं। दरअसल, अमेरिका में बेरोजगारी काफी है और स्थानीय छात्र भारतीयों का मुकाबला नहीं कर पा रहे और वे स्पर्धा की बजाय हिंसाचार से खुन्नस निकालने का प्रयास करते हैं। वे स्वयं को यहां का मूलनिवासी बता कर अपनी दुर्दशा के लिए मेधावी भारतीयों को जिम्मेवार मानते हैं। रोजगार के अवसरों की कमी के चलते उत्पन्न असन्तोष के कारण बड़ी संख्या में अमेरिकी नशे और अपराध की दुनिया में उतर रहे हैं। यह दुखद ही है कि पिछले एक साल में अमेरिका में रह रहे पांच सौ बीस भारतीय मूल के लोगों के साथ नस्लीय हिंसा की घटनाएं हुई हैं जो विगत साल के मुकाबले में चालीस प्रतिशत अधिक हैं। हिंसा की चपेट में केवल छात्र ही नहीं बल्कि वहां नौकरी कर रहे और वहां बस चुके लोग भी शामिल हैं।
अतीत में जाएं तो पता चलेगा कि भारतीयों का अमेरिकी प्रवास काफी पुराना है। साल 1900 तक संयुक्त राज्य अमेरिका में दो हजार से अधिक भारतीय थे, मुख्यतरू कैलिफोर्निया में। आज, भारतीय अमेरिकी संयुक्त राज्य अमेरिका में दूसरा सबसे बड़ा अप्रवासी समूह हैं। जनगणना ब्यूरो द्वारा संचालित 2018 अमेरिकी सामुदायिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार संयुक्त राज्य में रहने वाले भारतीय मूल के 4.2 मिलियन लोग हैं। जैसे-जैसे भारतीय अमेरिकी समुदाय की प्रोफाइल बढ़ी है, वैसे ही इसका आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव भी बढ़ा है।
वहां की हर पार्टी की सरकारों में भारतीयों की संख्या काफी सराहनीय रही है। ट्वीटर (एक्स) के सीईओ पराग अग्रवाल हैं तो गूगल के सीईओ सुन्दर पिचाई हैं जिनकी वार्षिक आय 242 मिलियन डॉलर है। पिचाई 2015 में गूगल के सीईओ बने थे। आज गूगल क्रोम सबसे पॉपुलर इंटरनेट ब्राउजर है और इसका श्रेय पिचाई को ही जाता है। इसके साथ ही गूगल हर सर्च से करीब हर मिनट 2 करोड़ रुपये की कमाई करता है। सत्या नडेला वर्ष 2014 में माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ बने थे। वर्तमान में कम्पनी का बाजार पूंजीकरण करीब 2.53 खरब डॉलर है। नडेला की आय 23 लाख डॉलर पहुँच गई। नडेला को ग्लोबल इंडियन बिजनेस आइकॉन का सम्मान भी मिल चुका है। भारतीय मूल के अरविन्द कृष्णा 2020 से अमेरिका की बड़ी कम्पनी इण्टरनेशनल बिजनेस मशींस के सीईओ हैं। इस कम्पनी की बाजार पूंजी 8 लाख करोड़ रुपए से ऊपर है।
भारतीय मूल के शान्तनु नारायण 2007 से एडॉब इंक के सीईओ हैं। इसके अलावा अमेरिका की प्रमुख फूड और बेवरेज कम्पनी पेप्सीको में इन्दिरा नूई लगभग 12 साल तक सीईओ बनी रहीं। नूई के 12 साल के कार्यकाल में पेप्सिको की आय में 80 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई। वर्तमान में भारतीय मूल के जो लोग अमेरिकी टेक कम्पनियों को सम्भाल रहे हैं उनकी कुल बाजार सम्पदा लगभग 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। माइक्रोसॉफ्ट के 34 प्रतिशत कर्मी भारतीय मूल के लोग हैं। अमेरिका के वैज्ञानिकों में भी 12 प्रतिशत भारतीय हैं और नासा के तो 36 प्रतिशत वैज्ञानिक भारतीय मूल के हैं। भारतीयों की भूमिका अमेरिका के विकास में गिनाने बैठें तो शायद ये चर्चा कभी खत्म न हो। ये भारतीय हैं जो अमेरिका को विकास की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और अमेरिका भी इस बात को स्वीकार करता है।
भारतीय किसी की कृपा या दया पर नहीं बल्कि अपनी योग्यता, परिश्रम व मेधा के बल पर मौजूदा मुकाम पर पहुंचे हैं। असल में पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प की संकीर्ण दक्षिणपन्थी सोच जो वहां के युवाओं में तेजी से फैल रही है और यह मानती है कि अमेरिका पर केवल वहां के निवासियों का ही अधिकार है। ऐसी सोच रखने वालों को एक बार अमेरिका के असली मूलनिवासियों के बारे भी सोचना चाहिए जो आज लुप्तप्राय प्रजाति में शामिल हो चुके हैं। अमेरिका में आज जो भी हैं वो सभी बाहर से आए लोग हैं और अपने परिश्रम से आगे बढ़े हैं। वहां के युवाओं को भारतीयों से ईर्ष्या करने की बजाय इनसे सीख व प्रेरणा लेनी चाहिए।
Rakesh Sain, Jallandhar
Mob. 77106-55605
Saturday, 9 March 2024
भारत एक राष्ट्र है न कि राज्यों का गठबन्धन
गत दिनों विपक्षी दलों के ‘इण्डी’ गठजोड़ के मुख्य घटक दल द्रविड़ मुन्नेत्र कडग़म (डीएमके) के सांसद श्री ए. राजा ने विवादित ब्यान दिया कि ‘हमें अच्छी तरह समझ लेना चहिए कि भारत कभी एक राष्ट्र नहीं रहा। एक राष्ट्र का अर्थ है एक भाषा, एक परम्परा और एक संस्कृति। भारत एक राष्ट्र नहीं बल्कि उप-महाद्वीप है।’ उन्होंने तमिलनाडू, मलयालम, उडिय़ा की भाषाई, खानपान व पहनावे की विविधता को विभिन्नता व अलगव बता कर भारत को कई नेशन्ज का संघ बताया।
- राकेश सैन32, खण्डाला फार्म कालोनी,ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ा,जालन्धर।सम्पर्क : 77106-55605
Saturday, 2 March 2024
यात्रा से भटकी कांग्रेस
- राकेश सैन32, खण्डाला फार्म कालोनी,डाकखाना लिदड़ा,जालन्धर।सम्पर्क : 77106-55605
कांग्रेस और खालिस्तान में गर्भनाल का रिश्ता
माँ और सन्तान के बीच गर्भनाल का रिश्ता ही ऐसा होता है, कि प्रसव के बाद शरीर अलग होने के बावजूद भी आत्मीयता बनी रहती है। सन्तान को पीड़ा हो त...
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अर्थात सिर कटाने से भी वृक्ष बचता है तो यह भी सस्ता सौदा है। इस तरह पर्यावरण संरक्षण के लिए जीवन तक बलिदान करने की प्रेरणा देता है बिश्न...
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आओ आपको लिए चलते हैं द्वापर युग के चक्रवर्ती सम्राट भरत के हस्तिनापुर राजदरबार, जहां दुनिया में पहली बार प्रजातंत्र जन्म ले रहा है। जी ह...
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पटियाला राजघराने की राजमाता मोहिंद्र कौर केवल इस अलंकार को धारण करने वाली ही नहीं थी बल्कि उन्होंने अपनी पदवी के अनुरूप हर अवसर पर ...