श्री केजरीवाल के समर्थक दलील देते हैं कि संविधान में इसकी कोई व्यवस्था नहीं है कि कोई मुख्यमंत्री जेल में सरकार नहीं चला सकता। इस प्रश्न को पलट कर भी पूछा जा सकता है कि क्या संविधान में इसकी व्यवस्था है कि एक मुख्यमंत्री जेल में रह कर सरकार चला सकता है ? दरअसल हमारे संविधान निर्माताओं ने इस बात की कल्पना भी नहीं की होगी कि देश को ऐसे दिन भी देखने पड़ेंगे कि जब एक मुख्यमंत्री को जेल जाना पड़े। देश के संचालन में केवल संवैधानिक व्यवस्थाएं ही सबकुछ नहीं होतीं बल्कि लोकलाज के बिना लोकराज सम्भव ही नहीं है। आखिर राजनीतिक शूचिता व नैतिकता भी तो कुछ अर्थ रखती हैं। देश में इससे पहले ऐसी कभी पेचीदा स्थिति पैदा नहीं हुई कि किसी मुख्यमंत्री को अपने पद पर रहते हुए जेल जाना पड़ा हो। एक सामाजिक आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी के एकछत्र नेता श्री अरविन्द केजरीवाल तो नैतिकता के मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव व झारखण्ड के मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन से भी उन्नीस निकले, क्योंकि इन नेताओं ने गिरफ्तारी से पहले कम से कम अपने-अपने पदों से त्यागपत्र देने का तो हौंसला दिखाया। पर लगता है कि अन्ना हजारे के शिष्य श्री केजरीवाल तो नाखून कटाने जैसे बलिदान का भी साहस नहीं कर पा रहे हैं।
एक मुख्यमंत्री जेल में सरकार चला सकता है या नहीं इसको लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय उभर कर सामने आ रही हैं। लगता है कि इस मामले को लेकर श्री केजरीवाल दो विकल्प लेकर चल रहे हैं, पहला कि अगर जेल में ही सरकार चला सकें तो वे मुख्यमंत्री बने ही रहेंगे परंतु अगर ऐसा न कर पाए तो वे इसके लिए अपनी धर्मपत्नी श्रीमती सुनीता केजरीवाल को नंबर दो के रूप में स्थापित कर रहे हैं। श्रीमती केजरीवाल जिस तरह से दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई इंडी गठजोड़ की महारैली में गठबंधन के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठी नजर आईं और जिस तरह से आम आदमी पार्टी के विधायकों की बैठकें ले रही हैं उससे यह पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि दिल्ली में लालू-राबड़ी वाला इतिहास दोहराया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो नई तरह की राजनीति के दावे के साथ आई आम आदमी पार्टी पर भ्रष्टाचार के बाद परिवारवाद के आरोपों के भी छींटे पडऩे शुरू हो जाएंगे। कैसी विडम्बना है कि पार्टी अक्तूबर, 2012 में जन्मी आम आदमी पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र व्यक्ति विशेष के पंजों में दम तोड़ता नजर आरहा है, पार्टी के आरम्भ से ही श्री केजरीवाल इसके राष्ट्रीय संयोजक चले आ रहे हैं। क्या उनके दल में कोई ऐसा नेता नहीं जो इस पद पर पहुंच पाए ? अब श्री केजरीवाल ने अपनी धर्मपत्नी को अपनी क्रान्तिकारी पार्टी पर थोपना शुरू कर दिया है जो भारतीय राजनीति में परिवारवाद की निकृष्टतम उदारहणों में से एक है।
भ्रष्टाचार को लेकर अब आम आदमी पार्टी ही दुविधा में दिखाई दे रही है। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार आते ही मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में हुए कथित घोटालों का मामला उठाया और विभिन्न मामलों में लगभग एक दर्जन पूर्व कांग्रेसी मंत्रियों व पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ केस दर्ज किए। इन कार्रवाईयों के जरिए भगवंत मान ने जनता को भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने व अपनी छवि ईमानदार नेता के रूप में बनाने का प्रयास किया। लेकिन अब यह कहने में कोई संशय नहीं है कि भगवंत मान की राजनीतिक कमाई दिल्ली की आप सरकार ने लुटा दी है। आज भगवंत मान को न केवल अपनी पार्टी के सुप्रीमो श्री अरविंद केजरीवाल का बचाव करना पड़ रहा है बल्कि उस कांग्रेस पार्टी के नेताओं के साथ भी मंच सांझा करना पड़ रहा है जिसको वे पंजाब में पानी पी-पी कर कोसते रहे हैं। पंजाब में आप कार्यकर्ताओं को लगने लगा है कि श्री केजरीवाल ने खुद की ही पार्टी को गहन संकट में ला कर खड़ा कर दिया है। आशा की जानी चाहिए कि जेल में स्वाध्याय करते समय श्री केजरीवाल को अवश्य ऐसा कोई धर्मसम्मत मार्ग मिलेगा जिससे वे अपनी पार्टी की डोलती हुई नैया को पार लगा सकेंगे।
राकेश सैन
32, खण्डाला फार्म
ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ा
जालन्धर।
सम्पर्क : 77106-55605
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