विषय आरंभ करने से पहले एक प्रसंग सुनाना चाहूंगा। क्षीरसागर में शेषशैया पर विराजमान लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु से पूछा, भगवन! त्रेता युग में आपने सीताहरण के समय घायल जटायु जैसे पक्षीराज के जख्मों को न केवल अपने हाथों से साफ किया बल्कि उसका दाहसंस्कार व श्राद्ध कर्म भी किया परंतु द्वापर युग दौरान महाभारात युद्ध के अंत में जब धर्मध्वजावाहक भीष्म पितामह शरशैया पर मरणासन्न अवस्था में थे तो आपने उन्हें पानी तक नहीं दिया? अर्जुन को पानी उपलब्ध करवाने को कहा? इस पर भगवान विष्णु जी ने उत्तर दिया कि गिद्धराज एक महिला की अस्मिता की रक्षार्थ अपने से कई गुणा बलशाली रावण से भिड़ गये और अपने प्राणों का बलिदान किया परंतु द्रोपदी चीरहरण जैसे घोर अपराध के समय सक्षम होते हुए भी कौरव दरबार में भीष्म मौन रहे। जो पुरुष महिला के मान की रक्षा नहीं करता, उसका सम्मान नहीं करता वह कितना भी धर्मविद्, ज्ञानी, योद्धा हो वह मुझे प्रिय नहीं है।
उक्त संदर्भ में अगर पंचकूला में हरियाणा भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला के बेटे विकास द्वारा एक युवति के साथ की गई छेड़छाड़ की घटना का आकलन किया जाए तो आज वहां की पुलिस न केवल भीष्म के पाले में खड़ी दिखाई दे रही है बल्कि उससे भी आगे दुषासन का हाथ बंटाने का भी आभास करवा रही है। महिला की शिकायत पर पुलिस ने तत्काल उसको सहायता उपलब्ध करवा कर सराहनीय कार्य किया परंतु उसके बाद जिस तरह आरोपियों को बचाने के प्रयास हो रहे हैं वह लज्जाजनक हैं। मीडिया में छन कर आरहे समाचारों से जानकारी मिलती है कि पुलिस ने इस मामले से अपहरण व अपहरण का प्रयास करने की धाराओं को हटा कर केस को कमजोर करने का प्रयास किया है। बकौल देश की प्रथम महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी आरोपियों को न्यायिक संरक्षण में लेने और जांच किए बिना उनको जमानत दिया जाना भी गलत है। आश्चर्य की बात है कि मौके पर पुलिस ने आरोपियों की चिकित्सीय जांच भी नहीं करवाई। बताया जाता है कि आरोपियों द्वारा पीछा किए जाने के बाद पीडि़त युवति जिस-जिस रास्ते से गुजरी वहां पर 9 सीसीटीवी कैमरे लगे थे परंतु आश्चर्य है कि किसी में उसकी फुटेज नहीं मिली। उक्त सारी बातें बताती हैं कि चंडीगढ़ पुलिस अपने कर्तव्य का निर्वहन कर पाने में असमर्थ साबित हो रही है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने लाल बत्ती परंपरा को तिरोहित कर 'वैरी इंपोर्टेट पर्सन' (वीआईपी) के स्थान पर 'एवरी पर्सन इंपोर्टेंट' की बात कही परंतु लगता है कि वीआईपी संस्कृति की जड़ें समाज में इतनी गहरी हैं कि उखडऩे का नाम नहीं ले रहीं। इसका शिकार जहां रसूखदार लोग हैं वहीं प्रशासनिक स्तर पर भी इसके रोगाणु नष्ट नहीं हुए हैं। यही कारण है कि एक संगीन अपराध का आरोपी विकास केवल इसलिए कानून की गिरफ्त से बाहर है क्योंकि वह एक रसूखदार बाप का बेटा है। पूरे मामले में पुलिस प्रशासन सिर के बल खड़ा है आरोपियों को बचाने के लिए, न कि उन्हें उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए। भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने चंडीगढ़ पुलिस को रीढ़विहीन बता कर उसका स्टीक ही आकलन किया है।
आश्चर्य की बात है कि इस मामले के आरोपी विकास को राजनीतिक संरक्षण भी उपलब्ध करवाया जा रहा है। हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा है कि 'विकास के अपराध की सजा उसके पिता याने भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला को नहीं दी जा सकती।' लेकिन क्या श्री खट्टर बताएंगे कि क्या रसूखदारों की बिगड़ैल औलादें अपने माँ-बाप की राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक हैसियत का लाभ नहीं उठाती? क्या इन बिगड़ैलों को अपने परिवार का संरक्षण प्राप्त नहीं होता? इसी के चलते क्या प्रशासनिक अधिकारी इनके सामने बेबस नहीं हो जाते? अब भी कानून को ताक पर रख कर विकास को इसलिए नहीं बचाया जा रहा क्योंकि वह एक बड़े नेता का बेटा है? पूरे मामले को लेकर भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष रामबीर भट्टी का ब्यान तो और भी चौंकाने वाला है जिसमें उन्होंने पूछा है कि रात के समय लड़की घर के बाहर क्या कर रही थी? इसका जवाब पीडि़त युवति वर्णिका कुंडू ने उचित ही दिया है कि उनसे प्रश्न करने वाले अपने बिगड़ैल लड़कों से सवाल क्यों नहीं पूछते कि रात के समय वे शराब पी कर अकेली लड़की के पीछे क्यों लगे। कोई पूछे कि क्या रात के समय किसी युवति का घर से बाहर निकलना अपराध है?
इस तरह की बातें करने वाले सत्ता में उन्मुक्त नेताओं को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष श्री मुलायम सिंह व उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी की सरकार का हश्र नहीं भूलना चाहिए जिन्होंने महिला उत्पीडऩ की इसी तरह की एक घटना पर कहा था कि 'लड़के हैं, लड़कों से गलती हो जाती है।' इस तरह की घटनाओं पर मौन रहना या प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से आरोपियों को संरक्षण देना समाज में सीधे-सीधे अपराध को बढ़ावा देना है। पुलिस प्रशासन का भी दायित्व बनता है कि वह केवल और केवल न्याय का पक्ष ले। कांगे्रस के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री जयवीर सिंह शेरगिल ने ठीक ही पूछा है कि जब एक भारतीय प्रशासनिक अधिकारी की बेटी चंडीगढ़ जैसे महानगरों में सुरक्षित नहीं तो जनसाधारण की सुरक्षा का जिम्मा कौन उठाएगा ? पुलिस प्रशासन को यह सदैव स्मरण रहे कि वह कानून के रखवाले हैं न कि रसूखदारों के।
- राकेश सैन
coregous writeup
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