Monday, 20 November 2017

कांग्रेस को महंगी पड़ेगी राहुल की ताजपोशी

कांग्रेस पार्टी की कार्यसमिति की 20 नवंबर को संपन्न हुई बैठक में पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने संबंधी प्रस्ताव को सर्वसम्मति से अनुमोदित कर दिया। पार्टी के संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया 19 दिसंबर को पूरी कर ली जाएगी जिसमें राहुल का अध्यक्ष बनना तय है। आंकड़ा शास्त्रियों के लिए राहुल के अध्यक्ष बनने की तारीख 19 दिसंबर, 2017 हो सकती है परंतु राजनीति के विद्यार्थी उनकी ताजपोशी की तारीख 19 जून, 1970 ही बताएंगे जिस दिन उनका जन्म हुआ। इस देश ने एक तरफ दुष्यंत व शकुंतला के पुत्र कुरुश्रेष्ठ चक्रवर्ती महाराजा भरत द्वारा अपने अयोग्य पुत्रों की बजाय भरद्वाज पुत्र भूमन्यू को राजपाट सौंपते देखा तो एक दौर ऐसा भी आया कि इसी धरती पर औरंगजेब ने सिंहासन के लिए अपने भाईयों की हत्या की व पिता को बंदी बनाया। राहुल की ताजपोशी की तैयारी में जुटी कांग्रेस भी आज भरतवंशियों की परंपरा को छोड़ मुगलिया संस्कृति का अनुसरन करती दिख रही है, जब सभी कसौटियों को ताक पर रख कर केवल गांधी वंशबेल के पुष्प होने की योग्यता रखने वाले नेता को गद्दी सौंपी जा रही है। देश की राजनीतिक परिस्थितियां बताती हैं कि कांग्रेस को राहुल की अध्यक्षता महंगी पड़ सकती हैं।

राहुल के अध्यक्ष बनने से पार्टी पर नेतृत्व की दृष्टि से वैसे भी कोई अंतर नहीं पडऩे वाला क्योंकि उपाध्यक्ष रहते हुए वे पिछले चार सालों से पार्टी के शीर्ष पर ही चले आरहे हैं। पार्टी के हर निर्णय पर अंतिम मुहर उन्हीं की लगती है। इसी पद के आवेश में वे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा पारित अध्यादेश की प्रति भरी कान्फ्रेंस में फाडऩे का पराक्रम कर चुके हैं। लगभग 132 साल पुराना देश का राजनीतिक दल आज सबसे खराब दौर से गुजर रहा है। राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी आम चुनाव को मिला कर 27 से अधिक चुनाव हार चुकी है। मध्य प्रदेश के प्रशांत नामक एक युवक ने कांग्रेस की इस उपलब्धि को 'गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड' में शामिल करने का आवेदन किया है। गुजरात में उनकी सभाओं में उमड़ रही भीड़ व सोशल मीडिया में राहुल की बढ़ी सक्रियता से अति उत्साह में आए कांग्रेसियों को चाहे लगे कि उनमें बदलाव आरहा है परंतु ऐसे मौके पर जब देश में 2019 के आम चुनाव दरवाजे पर आने वाले हैं पार्टी की कमान ऐसे नेता को नहीं सौंपी जानी चाहिए जिनको अपनी योग्यता अभी साबित करनी हो। देश के आम चुनाव इतने आम नहीं होंगे,देश की आंतरिक व बाह्य परिस्थितियों के चलते पूरी दुनिया की इन पर नजरें होंगी। ये चुनाव सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से अधिक उस कांग्रेस पार्टी की अग्निपरीक्षा लेंगे जो अपने इतिहास के न्यूनतम 46 सांसदों के साथ अभी भी भाजपा के बाद दूसरा बड़ा राजनीतिक दल होने का दावा कर सकती है।

वर्तमान में कांग्रेस व एआईडीएमके के सांसद लगभग बराबर-बराबर हैं। दिल्ली, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना की विधानसभाएं कांग्रेस मुक्त हैं। देश का राजनीतिक भविष्य तय करने वाले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के 7 विधायक हैं जो अपना दल जैसे स्थानीय राजनीतिक दल से भी 4 कम हैं। बिहार में लालू प्रसाद यादव की छाया से कांग्रेस बाहर निकलने की स्थिति में नहीं है। बंगाल में कांग्रेस टीएमसी, सीपीआई (एम) और भाजपा के बाद अंतिम स्थान पर पहुंच चुकी है। तामिलनाडू में डीएमके कांग्रेस पर पूरी तरह हावी है। स्वभाविक है कि कांग्रेस आम चुनाव अपने बलबूते पर नहीं लड़ पाएगी और उसे बिहार की तर्ज पर भाजपा के खिलाफ महागठजोड़ बनाना पड़ेगा। इस महागठजोड़ के संभावित सहयोगी होंगे मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, मायावती, लालू प्रसाद यादव, ममता बैनर्जी, शरद यादव, स्टालिन जैसे महत्वाकांक्षी क्षत्रप जिनको एकसाथ लाना, साथ-साथ रख पाना और इनका नेतृत्व करना कुशल से कुशल नेता के लिए भी टेढी खीर साबित हो सकता है। अपने को राजनीति का धुरंधर मानने वाले ये क्षेत्रीय नेता राहुल को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मानें इस पर कम से कम आज तो विश्वास नहीं किया जा सकता और कांग्रेस किसी ओर को चेहरा बनाए वह उसे स्वीकार नहीं होगा। दूसरी ओर अपने सहयोगी दलों अकाली दल बादल, शिवसेना, जनता दल (यू) पर हावी भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे नेता के सामने बिना कोई ठोस चेहरे के विपक्ष का चुनावी मैदान में उतरना लगभग टीम इंडिया और केन्या की टीम के बीच खेले जाने वाले ऐसे क्रिकेट मैच जैसा होगा जिसके परिणाम का अनुमान मैच की पहली बाल पर ही लगाया जा सकता है।

कांग्रेस हितैषी माने जाने वाली जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर जोया हसन ने अपने लेख में लिखा है कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी त्रासदी नेहरू-गांधी परिवार बन चुका है,जिसमें अब चुनाव जिताने का आकर्षण नहीं बचा। पार्टी जितना गांधी परिवार के निकट जाएगी उतना ही जनता और अंतत: सत्ता से दूर होती जाएगी। समय है कि कांग्रेस अपनी 132 वर्षीय एतिहासिक व 60 वर्षों के प्रशासनिक अनुभवों का दोहन करे और अपने भीतर छिपी प्रतिभाओं को सामने लाए और देश को एक ऐसा कुशल नेतृत्व प्रदान करे जो बिखरे हुए विपक्ष को एकजुट कर न केवल उसका नेतृत्व कर सके बल्कि सत्तापक्ष को मजबूत चुनौती भी प्रदान कर सके। देश में लोकतंत्र की सफलता के लिए विपक्ष का मजबूत होना अति जरूरी है जिसकी सबसे बड़ी जिम्मेवारी वर्तमान में कांग्रेस पार्टी की है।
- राकेश सैन
32, खण्डाला फामिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324

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