
ताजा आतंकी हमले का एक खास पहलू यह है कि एक ऐसी मसजिद में आए लोगों को निशाना बनाया गया जो सूफी मसजिद कही जाती है। मिस्र में ईसाइयों पर कई आतंकी हमले हो चुके हैं। इस साल मई में मध्य मिस्र में कुछ बंदूकधारी हमलावरों ने ईसाइयों को ले जा रही एक बस को बमों से उड़ा दिया था, जिसमें अ_ाईस लोग मारे गए थे। फिर, अप्रैल में उत्तरी शहर एलेक्जेंड्रिया में एक चर्च के नजदीक हुए दो फिदायीन हमलों में छियालीस लोग मारे गए थे। लेकिन अब सूफी भी आतंकियों के निशाने पर आ गए हैं। केवल इतना ही नहीं, इस्लाम के नाम भारत के रूप में हिंदू, म्यांमार में बौद्ध यानि हर धर्म इस्लाम की कट्टरपंथी वहाबी विचारधारा की जद में है।
इस्लामिक समाजशास्त्र समूचे विश्व को मात्र दो भागों में विभक्त करता है, पहला है दारुल हरब अर्थात् युद्ध का क्षेत्र, गैर मुसलमानों का देश। वह क्षेत्र जहां के लोगों ने अभी इस्लाम को कबूल नहीं किया। जहां लोगों को मतांतरित करने के उद्देश्य से संघर्ष चल रहा है। दूसराहै दारुल इस्लाम अर्थात शांति का क्षेत्र अर्थात जहां के लोग इस्लाम को कबूल कर चुके हैं। सारे संसार को दारुल इस्लाम में तब्दील करना इस्लाम का घोषित उद्देश्य है। जहां अभी इस्लाम की राज्यसत्ता स्थापित नहीं हुई उस दारुल हरब क्षेत्र के लोगों को अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निरंतर संघर्षरत रहने का आदेश दिया गया है। इसका अर्थ यह हुआ कि गैर इस्लामिक मुल्क में रह रहे मुसलमान वहां के मूल समाज, मूल संस्कृति और स्थानीय परंपराओं के साथ तालमेल बिठाते हुए शांति के साथ नहीं रह सकते। वे तो दारुल इस्लाम के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहेंगे। गैर मुस्लिम देशों को अपने मजहब में किसी भी तरीके से सम्मिलित करना और फिर उसे अपने मिल्लत (मुस्लिम जगत) में शामिल कर लेना मजहबी कार्य और अल्लाह का हुकुम माना जाता है। जिहाद की संकल्पना भी इस्लाम का एक आवश्यक हिस्सा है। इस्लामिक विद्वान बताते हैं कि जिहाद मानव को आंतरिक बुराईयों के खिलाफ संघर्ष करने, सामाजिक बुराईयों के खिलाफ जागरुक करने का काम करता है परंतु कट्टरपंथी इस शब्द का गलत इस्तेमाल करते रहे हैं और कर भी रहे हैं। कट्टरपंथियों के लिए जिहाद का अर्थ संघर्ष के लिए प्रोत्साहन देना और इस्लाम की रक्षा के लिए गैर इस्लामिक जनता से टकराना है। आज का आतंकवाद भी जिहाद के नाम पर चल रहा है।
दुनिया के अब तक के लगभग सभी पंथों के चिंतन में यह स्वीकार किया गया है कि परमात्मा की योजनानुसार संसार का उद्धार करने हेतु समय-समय पर ईश दूत, पैगंबर और अवतारों का आविर्भाव होता है। इस संदर्भ में हजरत मुहम्मद भी एक महापुरुष एवं अवतार थे। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा.सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपनी पुस्तक 'प्राच्य धर्म और पाश्चात्य विचार' में इस्लाम का लघु परंतु संपूर्ण परिचय इस तरह दिया है, 'इस्लाम एक अकेले मस्तिष्क की रचना है और एक ही वाक्य में उसे अभिव्यक्त कर दिया गया है। इस्लाम ने केवल दो ही विकल्प छोड़े हैं-इस्लाम को कबूल कर लो या इस्लाम की अधीनता स्वीकार कर लो।' इसी सिद्धांत की पैदाइश है दारुल हरब और दारुल इस्लाम का चिंतन। यदि इस इस्लामिक साम्राज्य के जुनून को हटाकर दारुल इस्लाम (शांति क्षेत्र) और जिहाद (कुर्बानी का आह्वान) चिंतन को भूल मजहबी धरातल तक ही सीमित रखा जाए तो यही चिंतन मानवता के लिए वरदान सिद्ध हो सकता है। परंतु दारुल हरब (संघर्ष का क्षेत्र) की कल्पना मजहबी उन्माद को जन्म देकर उपरोक्त दोनों शब्दों की आध्यात्मिक पवित्रता को जड़ से समाप्त कर देती है। अत: इस्लाम के उलेमाओं, धर्मगुरुओं एवं विद्वानों को समस्त मानवता की भलाई के लिए पैगंबर हजरत मुहम्मद साहिब के उन उपदेशों और पवित्र कुरान की उन आयतों को उजागर करना चाहिए जिनमें सह अस्तित्व, गरीब की मदद, असहाय को सहारा, शोषितों का उत्थान, बराबरी के हक और नमाज का आध्यात्मिक संदेश दर्ज है। मुस्लिम समाज के मजहबी रहनुमाओं द्वारा ऐसा रचनात्मक रुख अपनाने से इस्लाम की वे नकारात्मक परिभाषाएं दम तोड़ देंगी, जिनकी कोख से युद्ध पिपासा, साम्राज्यवादी आकांक्षा, सत्तालोलुपता और वासना जैसी राक्षसी वृत्ति जन्म लेती है। समय आगया है कि मुस्लिम धर्मगुरु केवल मुस्लिम इलाकों को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को दारुल अमन अर्थात अमन की धरती घोषित करें। आज के समय इस्लाम की और अंतत: मानवता की यह सबसे बड़ी सेवा होगी। इसी तरह ही आतंकवाद को इस्लाम व जिहाद से अलग-थलग किया जा सकेगा।
- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
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