
संतुलन बैठाने वाले साक्षी महाराज जैसे नेताओं का उदाहरण दे कर मामला बराबरी पर लाने का प्रयास कर सकते हैं परंतु जिस असंयमित भाषा का प्रयोग अय्यर ने किया है वह टपोरी किस्म के लोगों में भी स्वीकार्य नहीं हो सकती। मणि शंकर कांग्रेस के प्रतिष्ठि नेता ही नहीं पूर्व कैबिनेट मंत्री व राजनयिक भी रहे हैं। 1989 में वे ब्रिटेन से विदेश सेवा से इस्तीफा देकर राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में सक्रिय हुए। निजी जीवन में अय्यर दून स्कूल व सेंट स्टीफन जैसे कालेज में शिक्षित हैं। इतने कुलीन व शिक्षित व्यक्ति का इस तरह बदजुबान होना वास्तव में देश को मर्माहत कर रहा है।
जिस तरह अपराध विज्ञान जुर्म करने वालों को आदतन व परिस्थितिजन्य अपराधियों की दो श्रेणियों में विभाजित करता है उसी तरह अय्यर भी आदतन बदजुबान नेता कहे जा सकते हैं। यह कोई पहला अवसर नहीं जब उन्होंने अपने श्रीमुख को प्रदूषणयंत्र बनाया हो। साल 2014 में उन्होंने कहा था- 21वीं सदी में नरेंद्र मोदी इस देश का प्रधानमंत्री कभी नहीं बन पाएंगे। लेकिन अगर वो यहां आकर चाय बेचना चाहते हैं, तो हम उन्हें इसके लिए जगह दिला सकते हैं। मोदी की विदेश यात्राओं पर भी मणिशंकर ने विवादित बयान देते हुए कहा था -ये सब बस ड्रामेबाज़ी है। दुनिया भर में घूमते हैं और क्या होता है? उन्हीं के समर्थक पहुँच जाते हैं और मोदी, मोदी कहते रहते हैं। ये मोदी, मोदी कहलवाना कोई विदेश नीति है? मार्च 2013 को जब दिल्ली में हुई भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस पार्टी को दीमक बुलाया तो अय्यर ने कहा, मोदी ने हमें दीमक बुलाया है, वो एक सांप हैं, बिच्छू हैं। दिसंबर 2013 में अय्यर ने नरेंद्र मोदी को जोकर बताया और कहा, चार-पांच भाषण देकर उन्होंने बता दिया है कि कितने गंदे-गंदे शब्द उनके मुंह में हैं। उन्हें न इतिहास पता है, न अर्थशास्त्र और न ही संविधान की जानकारी है। जो मुंह में आता है, बोलते रहते हैं।
नैय्यर उवाच की फेरहिस्त काफी लंबी है और कई तरह के प्रश्न पैदा करती है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में राजनयन की भाषा अत्यंत शालीन, सुस्पष्ट, दूरदृष्टि लिए रहती है जिसमें व्याकरण की दृष्टि से मात्राओं, पूर्ण विराम और अल्पविराम का भी अपना महत्त्व माना जाता है परंतु श्री नेय्यर ने अपने राजनीतिक जीवन में इन गुणों का परिचय नहीं दिया है। नैय्यर शायद नहीं जानते कि उनके द्वारा मोदी के लिए प्रयोग किया गया 'नीच' शब्द कांग्रेस पार्टी के लिए उस बूमरैंग हथियार की तरह साबित हो सकता है जो चलाने वाले के हाथ पहले घायल करता है। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी नैय्यर की ही तरह हिंदी के अल्पज्ञान के चलते मोदी को 'मत का सौदागर' कहते-कहते 'मौत का सौदागर' कह गई थीं। वर्तमान का 'नीच' शब्द 'मौत के सौदागर' का दूसरा संस्करण बन सकता है। गुजरात जहां आज कांग्रेस कुछ आशान्वित नजर आरही है वहां फिर उसके लिए अंधकार छा सकता है। कांग्रेस पार्टी भी इस बात को अच्छी तरह जानती है तभी तो पार्टी ने इस ब्यान के चार-पांच घंटों के भीतर ही नैय्यर को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित कर दिया। लेकिन जो नुक्सान होना था वह हो चुका है क्योंकि कमान से छूटा तीर और जुबान से छूटे शब्द कभी वापिस नहीं आते।
शब्दों के पीछे भी अपना मनोविज्ञान होता है। शब्द तो केवल अभिव्यक्ति है अंदर छिपे भावों की और जुबान इन भावों कासाधन। असल मुद्दा है मनोभाव, जो किसी व्यक्ति के लिए मन के गर्भ में छिपे रहते हैं। किसी भी व्यक्ति की भाषा बताती है कि उसका व्यक्तित्व, संस्कार, दूसरों के प्रति आपके विचार क्या हैं? केवल अंग्रेजी बोलने, कोट-पैंट पहनने, विलासिता के साधन जुटाने भर से कोई सभ्य नहीं हो जाता इस तथ्य का जीवंत उदाहरण बन गए हैं मणिशंकर अय्यर। लोकतंत्र में किसी को स्वीकार करने, पसंद करने या न करने, सहमत होने या न होने की आजादी है परंतु असभ्यता दिखाने की किसी को स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती। कांग्रेस पार्टी के नेताओं का अपने विरोधियों के प्रति इस तरह का व्यवहार यह भी दिखाता है कि वे सत्ता में रहते हुए अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के प्रति किस तरह का व्यवहार करते रहे होंगे। लगता है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के 7 दशकों में अधिकतर समय तक सत्ता भोगते-भोगते कांग्रेस पार्टी के नेताओं में यह श्रेष्ठ ग्रंथी घर कर गई है कि देश में सत्ता संचालन का नैसर्गिक अधिकार केवल उन्हीं के पास है। राजनीति का सर्वश्रेष्ठ ज्ञान केवल उन्हीं की बपौती है। वे चाहे कुछ भी कहें या करें वही सही है बाकी सभी गलत। लोकतंत्र में किसी दल या नेता के लिए यह अहंकार भाव ठीक नहीं। संगठन या व्यक्ति का अहंकार किसी और का कम स्वयं का अधिक नुक्सान करता है। यह कांग्रेस का अहंकार ही है जो ट्वीट कर प्रधानमंत्री को कहता है 'तू जाकर चाय बेच'। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और सबसे सफल लोकशाही बनना हमारा लक्ष्य है परंतु क्या मणि शंकर अय्यर जैसे लोगों के नेतृत्व में हम अपना लक्ष्य हासिल कर सकते हैं? आज यह एक यक्ष प्रश्न देश के सामने आखड़ा हुआ है।
-राकेश सैन
32, खण्डाला फामिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324
No comments:
Post a Comment