Sunday, 10 December 2017

जायरा वसीम और परदारा मातृेषु का वेदघोष

हिंदी फिल्म दंगल से प्रसिद्ध हुई कलाकार जायरा वसीम के साथ हुई छेड़छाड़ और दिल्ली में एक पांच वर्षीय बच्ची के साथ हुई अमानवीय की घटनाओं ने सवाल पैदा कर दिया है कि क्या हमें उसी देश में रह रहे हैं जिनके पूर्वजों ने दुनिया को 'परदारा मातृेषु परद्रव्य लोषढ़वत्' अर्थात परस्त्री माता की तरह पूजनीय व पराया धन मिट्टी के ढेले के समान होता है। कहने को हम 21वीं सदी में जी रहे हैं परंतु समाज में कुछ तत्वों की मानसिकता है कि वह आदिम युग से आगे बढऩे का नाम नहीं ले रही। 

जायरा वसीम के लिए दिल्ली से मुंबई का हवाई जहाज का सफर एक कभी का भूलने वाला अनुभव देकर गया है। मुंबई पहुंचने के बाद ही उन्होंने इंस्टाग्राम पर लाइव वीडियो किया। जिसमें उन्होंने बताया कि उनके साथ विमान में एक अधेड़ व्यक्ति ने छेड़छाड़ की। जायरा विस्तारा एयरलाइंस में यात्रा कर रही थीं जब उनके साथ यह घटना घटी। उन्होंने बताया कि शिकायत के बावजूद एयरलाइंस के कर्मचारियों ने उनकी सहायता नहीं की। अपने इंस्टाग्राम के माध्यम से उन्होंने अपनी आपबीती बताई कि - मैं बस अभी-अभी उतरी हूं। यह सही नहीं है। यह सही तरीके का व्यवहार नहीं और न ही आपको इस तरह किसी के द्वारा महसूस करवाया जाना चाहिए। यह खौफनाक है। इस तरह से ये लड़कियों की सुरक्षा करते हैं? किसी ने भी हमारी मदद नहीं की, अगर हम अपनी मदद खुद करने का निर्णय नहीं ले सकते तो यह सबसे भयावह चीज है। उन्होंने कहा, ''मैं दिल्ली से मुंबई की उड़ान पर थी और मेरे ठीक पीछे एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति था, जिसने दो घंटे की मेरी यात्रा को दुखद बना दिया। मैंने इसे अच्छे से समझने के लिए फोन में रिकॉर्ड करने की कोशिश की क्योंकि केबिन में रोशनी कम थी। लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकी। वो लगातार अपने पैरों से मेरी गर्दन और कमर को रगड़ रहा था।'' इससे भी भयावह घटना दिल्ली में घटी जब एक पांच वर्षीय बच्ची की खून से सनी लाश मिली और उसके साथ वह व्यवहार किया गया जो असुरों को भी शर्मसार कर सकता है।

जायरा को जहाज में कुलीन कहे जाने वर्ग से प्रताडऩा का सामना करना पड़ा और दिल्ली में बच्ची के साथ हुई दुर्घटना निम्न-मध्य वर्गीय समाज में हुई। मलिन बस्तियों व झुग्गी झौंपडिय़ों में महिलाओं की जो स्थिति है उसकी भयावह तस्वीर तो समाज के सामने आती ही नहीं। कहने का भाव कि आज समाज का कोई भी वर्ग हो महिला कहीं भी सुरक्षित नहीं। जब जहाज में और जायरा जैसी नामचीन युवती के साथ ऐसा व्यहार हो सकता है तो रेल गाडिय़ों, बसों सफर करने वाली महिलाओं, कामकाजी स्त्रियों को हर रोज किन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है उसकी परेशानियों का आकलन करना भी मुश्किल है। अपराध विज्ञान के आंकड़ों के अनुसार देश में हर घंटे एक दुराचार की घटना होती है और इससे अधिक शारीरिक शोषण की। ये तो वे घटनाएं वो हंै जो रिकार्ड में आ पाती हैं और भी न जाने कितनी दुर्घटनाएं समाज के सामने आती भी नहीं। हालात बताते हैं कि वर्तमान में बच्चियों से लेकर वृद्धावस्था तक सभी आयु वर्ग की महिलाएं शोषण की शिकार हो रही हैं।

कहते हैं कि यह देश ऐसा था जहां आधी रात को गहनों से लदी कोई महिला कहीं भी सफर कर सकती थी। हो सकता हो यह बहुत पुरानी बात हो परंतु अभी हाल के समय तक हमारे समाज में आसप-ड़ौस तो क्या गांव की महिला को भी पूरे गांव की बहु-बेटी मान कर उसका सम्मान किया जाता रहा है। सौभाग्य से इस विचार को मानने वाले आज भी लोग मौजूद हैं परंतु उन लोगों का क्या जो हर स्त्री को वस्तु की नजरों से देखते व उसी तरह व्यवहार करते हैं। जायरा के प्रसंग के बाद स्वभाविक रूप से बवाल मचेगा और मचना भी चाहिए। नए कानून बनाने की मांग उठेगी और भी कई तरह के सुझाव आएंगे परंतु प्रश्न है कानून तो केवल अपराधियों को दंड देने के लिए बनते हैं। अपराध रोकने का काम तो लोगों की नैतिकता व सद् आचरण ही कर सकता हैं। कानून अपराधियों को दंडित कर सकते हैं परंतु क्या अपराधियों को दंड मिलने से भुगतभोगी का पीड़ांत संभव हो पाता है? महिलाओं की सुरक्षा, छेड़छाड़, उत्पीडऩ, दुराचार के खिलाफ बहुत से कानून हैं परंतु सवाल पैदा होता है कि इतना कुछ होने का बावजूद लोगों की मानसिकता बदल क्यों नहीं रही, ये अपराध रुक क्यों नहीं रहे? स्पष्ट है कि समस्या कुछ और है या रोग उससे बड़ा है जितनी कि उसके उपचार के लिए दवा दी जा रही है। महिला जन्य अपराधयों से निपटने व समाज में स्त्रियों को पूर्ण सुरक्षा देने के लिए सभी पक्षों पर गौर करना होगा। इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। कुछ ऐसा प्रयास करना चाहिए जिससे दुनिया में हमारी छवि अपराधमुक्त समाज की हो न कि उस समुदाय की जो अपराधियों से जूझता दिखता हो।
हमारी परंपरा में महिला को उच्च स्थान दिया गया है और उसे हर रूप में सम्मानित दर्जा दिया गया है। बाल रूप में वह बेटी, युवा अवस्था में अर्धांगिनी, प्रौढ़ावस्था में माँ और वृद्धावस्था में वह संपूर्ण कुल की स्वामिनी है। वह हर रूप में सम्मानित है। महिला सम्मान सिखाने के लिए हमारे ग्रंथ अनेक शिक्षाओं से भरे पड़े हैं और जहां परस्त्री को माता माना गया है परंतु वहीं उसको कुदृष्टि से देखने वालों के लिए वह तलवार के समान भी बताई गई है। कबीरदास जी कहते हैं कि - 

परनारी पैनी छुरी, मति कोई करो प्रसंग।
रावन के दस शीश गये, परनारी के संग।।

इस बात को तो हर कोई जानता है कि महापराक्रमी रावण ने भगवान श्रीराम की पत्नी माता सीता का हरण किया था जो न केवल उसके बल्कि पूरे कुल के काल का कारण बनीं। महिला का सम्मान उसके प्रति दया, सहानुभूति या अनुकंपा नहीं बल्कि उसका अधिकार व जीवन व्यवस्था सुचारू ढंग से चलाने के लिए अनिवार्य है। यह बात हमारा समाज जितनी जल्दी समझ ले उतना श्रेयस्कर होगा।
- राकेश सैन
32-खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324

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