वैसे तो अपना समाज सदा से वैचारिक स्तर पर प्रखर रहा है। कुरुक्षेत्र में कही गई गीता साक्षी है कि हमने युद्ध जैसे आपात्काल में भी विचारों के धाराप्रवाह को बाधित नहीं होने दिया परंतु संचार के क्षेत्र में नवीनतम क्रांति आने के बाद नई चुनौतियां सामने आती दिख रही हैं। देश में कई बार प्रेस की स्वतंत्रता के बहाने अभिव्यक्ति की आजादी, लक्ष्मणरेखा व सीमोल्लंघन जैसे मुद्दों को लेकर बहस हो चुकी है और अब आधार डेटा लीक का खुलासा करने वाले अखबार 'द ट्रिब्यून' की पत्रकार रचना खैरा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने के बाद इन मुद्दों पर नए स्तर पर चर्चा छिड़ गई है।
समाचारपत्र ने 3 जनवरी को एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें दावा किया गया कि कई गिरोह पैसे लेकर आधार कार्ड का डेटा लीक कर रहे हैं। खुलासा होने पर यूनीक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) ने इसकी संभावना से इनकार कर दिया। अगले दिन यूआईडीएआई के निदेशक ने पत्रकार रचना खैरा के खिलाफ दिल्ली स्थित अपराध शाखा में विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज करवाई। संपादकों की संस्था एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने यूआईडीएआई के इस फैसले की कड़ी निंदा की और इसे अनुचित, अन्यायपूर्ण और प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया है। इस पर यूआईडीएआई ने सफाई दी है कि प्राथमिकी दर्ज करवाए जाने को मीडिया की आजादी पर हमला नहीं माना जाए। यूआईडीएआई पूरी तरह से प्रेस की आजादी का सम्मान करता है। इस मामले ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है और लोकसभा में दूसरे सबसे बड़े दल कांग्रेस ने कहा कि सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मामले की जांच करने के बजाय मामले में टालमटोल कर रहे हैं और खबर देने वाले को ही निशाना बना रहे हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में इस मामले को लेकर पत्रकारों ने प्रदर्शन किए और प्राथमिकी वापिस लेने की भी मांग की है।
देश के संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत हर भारतीय को विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। इसी अधिकार के तहत मीडिया या प्रेस को काम करने की पूरी स्वतंत्रता मिली हुई है। भारतीय समाज के जीवन का कोई ही शायद हिस्सा ऐसा हो जिसे वर्तमान मीडिया प्रभावित न करता हो। यहां मीडिया के शक्तिशाली होने का इसी बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि साल 2016 के आंकड़ों के अनुसार, देश में 70000 दैनिक समाचारपत्र पंजीकृत हैं और प्रतिदिन 10 करोड़ प्रतियां प्रकाशित की जाती हैं। देश में 1600 सैटेलाइट चैनल व 400 न्यूज चैनल हैं। प्रसार भारती की आल इंडिया रेडियो व दूरदर्शन के माध्यम से सभी पौने छह लाख गांवों तक पहुंच बनी हुई है। देश में 45 करोड़ के करीब लोग विभिन्न सोशल मीडिया से जुड़े हुए हैं। आपात्काल को छोड़ दिया जाए तो यहां प्रेस की स्वतंत्रता का सदैव सम्मान किया गया है और सत्ता परिवर्तन से लेकर राजनेताओं,अधिकारियों व बड़े घरानों के घोटालों के पटाक्षेप में मीडिया ने अहम भूमिका निभाई है। परंतु तस्वीर का दूसरा श्याम पक्ष भी है कि प्रेस की स्वतंत्रता आंकने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था रिपोट्र्स विदाउट बार्डर के आकलन में भारत का विश्व में 148वां स्थान है जो पाकिस्तान, आफगानिस्तान व अफ्रीकी देशों के आसपास बैठता है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए यह चिंताजनक तथ्य है कि गणतंत्र की प्राथमिक आवश्यकता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मामले में हम कंजूस हैं।
द ट्रिब्यून की पत्रकार रचना खैरा के मामले में इसी तरह की दलीलें दी जा रही हैं। आधार पर किए उनके स्टिंग को जनहित में बताया जा रहा है। स्टिंग शब्द की उत्पत्ति अमेरिका से हुई, इसे वहां की पुलिस द्वारा अपराधियों को पकडऩे के लिए गुप्त योजना के अर्थ में प्रयोग किया जाता था। इसे खोजी और गुप्त पत्रकारिता भी कह सकते हैं। स्टिंग ऑपरेशन असल में सूचना एकत्र करने का एक ऐसा तरीका है जिसमें उस सूचना को प्राप्त किया जाता है जिसे हासिल करना दूसरी तरह से बहुत ही कठिन हो। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता दिलीप सिंह जूदेव के खिलाफ हुए एक स्टिंग ऑपरेशन से संबंधित मामले में सुनवाई के दौरान न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने कहा कि वह स्टिंग ऑपरेशन से पूर्णत: सहमत हैं अधिक से अधिक स्टिंग ऑपरेशन होने चाहिएं, जिससे भ्रष्ट लोगों को सामने लाया जा सके। साथ ही उन्होंने कहा कि जो स्टिंग ऑपरेशन कर रहा है उसके साथ अपराधी जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। उसका उद्देश्य समाज में फैले भ्रष्टाचार को सामने लाना होता है। काटजू के विचार भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के जी बालकृष्णन की अध्यक्षता वाली एक दूसरी खंडपीठ के उलट हैं, जिसने एक चैनल के पत्रकार-जिसने गुजरात के एक अधीनस्थ कोर्ट में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया,से बिना शर्त क्षमा मांगने के लिए कहा। 2004 में उस रिपोर्टर ने चार बड़ी हस्तियों-जिनमें पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश शामिल थे-के खिलाफ अहमदाबाद के कोर्ट से जमानती वारंट जारी करा लिए थे।
प्रेस की स्वतंत्रता के बीच कभी-कभी आवश्यकता यह भी महसूस होती रही है कि मीडिया के लिए भी कोई न कोई लक्ष्मणरेखा तय होनी चाहिए, चाहे वह इसका निर्धारण खुद करे। तर्क दिया जाता है कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तो इसमें एक उपबंध भी है जो कहता है कि देश की सुरक्षा, विदेशों के साथ संबंध, कानून-व्यवस्था, नैतिकता, किसी की अवमानना, भारत की एकता-अखण्डता से जुड़ा मुद्दा हो तो राज्य इन अधिकारों को सीमित भी कर सकता है। कहने का भाव कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो है परंतु शर्तों के साथ, बेलगाम नहीं।
पिछले साल 24 अगस्त को एक महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए देश की सर्वोच्च अदालत निजता को नागरिक के मौलिक अधिकारों की हिस्सा मान चुकी है, हालांकि अदालत ने यह भी कहा है कि आधार कार्ड से जुड़े मामले का निर्णय अभी किया जाना है। ऐसे में द ट्रिब्यून की पत्रकार रचना खैरा ने किसी आधार कार्ड की जानकारी का प्रिंट प्राप्त किया है तो वह अदालत के इस आदेश का उल्लंघन ही माना जा सकता है। तथ्य यह भी है कि किसी निजी व्यक्ति (पत्रकार) को किसी भी के यहां छापामारी की अनुमति नहीं दी जा सकती। कहीं अपराध हो रहा हो और उसको साबित करने के लिए कोई पत्रकार खुद अपराध करता है तो उसे पत्रकार होने के तर्क पर निरपराध घोषित नहीं किया जा सकता। आदर्श स्थिति तो यह है कि अगर कहीं गलत हो रहा है और उसके बारे में गुप्त जानकारी जुटानी है तो इसके लिए स्थानीय प्रशासन को विश्वास में लिया जाए। कहने वाले कहेंगे कि अगर प्रशासन ने ही कार्रवाई करनी होती तो वह पहले क्यों नहीं करता तो सच्चाई यह भी है कि मीडिया के पटाक्षेप के बाद भी कार्रवाई तो आखिर प्रशासन को ही करनी होती है। अपराधी के लिए सजा का निर्धारण अदालतें ही करती हैं तो ऐसे में मीडिया कर्मियों को स्टिंग से पहले प्रशासन को विश्वास में लेना कैसे अनुचित हो जाएगा। पत्रकार भी देश का एक नागरिक है और उसे किसी तरह का विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है, लेकिन देखने में आता है कि बहुत से मीडिया कर्मी अपने कत्र्तव्य को अंजाम देते समय इस तथ्य की उपेक्षा करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। बहुत से प्रेस वाले अपनी जान पहचान व बड़े लोगों के साथ संबंधों के चलते खुद को कुलीन वर्गीय या कानून से ऊंचा समझना शुरू कर देते हैं। जैसे कि देश का संविधान बताता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता स्वच्छंदता नहीं, इसके साथ प्रतिबंध भी जुड़े हैं और कत्र्तव्य बोध भी। आदर्श स्थिति तो यह होगी कि मीडिया अपने दायित्वों का पालन भी करे पूरी स्वतंत्रता के साथ परंतु सीमोल्लंघन से बचे।
- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324
No comments:
Post a Comment