
सोलहवीं सदी में भारत पर महान मुगल बादशाह अकबर की हकूमत थी। उसका मुख्य संगीतकार तानसेन विभिन्न रागों के उस्ताद गवैये थे। जब अकबर ने सुना कि तानसेन दिपक राग इतनी अच्छी तरह गा सकता है कि उस की शक्ति से दिये जल उठते हैं, तब उसने तानसेन की कसौटी करने की ठान ली। एक दिन राज-दरबार में अकबर ने तानसेन को दिपक राग गाने के लिये कहा। तानसेन ने बादशाह से बहुत बिनती की कि उसे दीपक राग गाने के लिये आग्रह न किया जाय, क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि उसका क्या दुष्परिणाम आ सकता है। लेकिन अकबर ने उस संगीतकार की एक न मानी और दीपक गाने का आदेश दे दिया।
तानसेन ने दीपक राग गाना शुरु किया और जैसे वह उसकी चरम सीमा पर पहुंचा, तो सचमुच सारे महल में रखे गये दिये अपने आप जल उठे। अकबर सहित सारे दरबारी चकित हो कर तानसेन पर फिदा हो गये। लेकिन, उधर राग के असर से तानसेन का पूरा बदन भीतर ही भीतर जलने लगा। अपने बदन में जलती हुई आग बुझाने का सिर्फ एक ही रास्ता था और वह था मल्हार राग गाना। शुद्ध मल्हार राग बरसात बरसाने की क्षमता रखता है और उससे दीपक गानेवाले के बदन को शांति भी मिलती है। लेकिन तानसेन खूद तो मल्हार जानता नही था। और न तो अकबर के दरबार में और कोई गवैया वह जानता था। तब जलते हुए बदन से परेशान तानसेन ऐसे कोई संगीतकार की तलाश में दिल्ली छोड़ कर निकल पड़ा। वह सारे मुल्क में घूमता रहा, लेकिन उसे मल्हार का कोई गवैया नही मिला। तब जा कर कहीं से उसे मालुम हुआ कि वडनगर में कला और संगीत का बहुत जतन होता है और वहां उसे मल्हार का कोई सच्चा कलाकार मिल सकता है।
तानसेन जब वडनगर पहुंचा तो रात ढल चूकी थी। उसने शर्मिष्ठा के किनारे ही रात बिताने चाही। प्रात:काल में नगर की स्त्रीयां सरोवर से पानी भरने हेतु आना शुरु हुई। तानसेन उनको गौर से देखने लगा। उनमें ताना और रीरी नाम की दो बहनें भी शामिल थीं। उन्होंने अपने घड़े पानी से भरे, लेकिन ताना ने तुरंत ही अपना घड़ा खाली कर दिया। उसने ऐसा कई बार किया। तानसेन यह देख रहा था। रीरी ने ताना से पूछा, बहन, ऐसा कितनी बार करोगी? तो ताना ने जवाब दिया, जब तक हमें घड़े से मल्हार राग सुनाई न दे। आखिरकर, जब वह घड़ा इस तरह भरने में कामियाब हुई कि उसके अंदर जाते हुए पानी की आवाज से मल्हार राग निकला, तब संतुष्ट हो कर बोली, अब चलें।
तानसेन, जो उनकी बातचीत सुन रहा था। अपने दोनों हाथ जोड़े वह दोनों बहनों के सामने जा कर बोला, मैं एक ब्राह्मण हूं। मैं दीपक राग जानता हूं और बादशाह के हुकूम पर मैंने दीपक गाया। तो अब मेरा पूरा बदन उसकी आग से जल रहा है। मैं मल्हार तो जानता नही हूं। अब आप ही मुझे बचा सकती हो। वरना, मैं मेरे बदन के भीतर लगी आग से मर ही जाऊंगा। अचानक एक अजनबी से ऐसी विनती सुन कर ताना और रीरी अवाक रह गयीं, लेकिन उस आदमी पर दया आयी। उन्होंने उसे तब तक राह देखने के लिये कहा, जब तक वे बड़ों की सलाह न ले ले।
ताना और रीरी ने मल्हार गाना शुरु किया। थोडी देर में तो आकाश काले काले बादलों से घिर गया और जल्द ही बरसात बरसने लगी। जब तक उन्हों ने गाना बंद न किया, तब तक जोरों से बरसात होती रही। बरसात के ठंडे पानी में तानसेन पूरा भिग गया और उसके बदन के भीतर लगी आग भी अजायब सी शांत हो गई। उस बीच ताना उस अनजान आदमी को पहचान गयी थी। ब्राह्मण का ढोंग रचाये आया वह आदमी सचमुच में तानसेन के सिवा और कोई नही हो सकता था। तानसेन व अकबर की बातचीत दो शहजादों ने भी सुन ली और दोनों बहनों को पाने के लिए वडनगर की ओर निकल पड़े। वे उसी तरह वडनगर पहुंचे और सुबह होने पर पानी भरने आई महिलाओं को देखने लगे। इस बीच दो बहनें भी दिखाई दीं जिनकी सुंदरता पर शहजादे मोहित हो गए। जब महिलाओं ने इनको देखा तो शोर मचा दिया और लोगों ने हमला कर दोनों शहजादों को घोड़ों सहित मार डाला।
इस घटना की सूचना मिलने पर अकबर आग बबूला हो गया और उसने अपनी सेना के साथ वहां वडनगर कत्लेआम मचा दिया। उसकी सेना ताना और रीरी को लेकर जा ही रहे थे कि मंदिर के सामने आते ही दोनों बहनों ने जो पालकी में विराजमान थीं ने अंगूठियों में मौजूद जहर निगल लिया। आज भी वडगर में इनकी समाधियां मौजूद हैं। वडनगर के लोग आज भी इन बहनों का नाम सम्मान के साथ लेते हैं।
- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
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जालंधर।
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