
रामेश्वरनाथ काव का जन्म 10, मई, 1918 को वाराणसी में हुआ। 1940 में उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा जिसे उस जमाने मे आईपी कहा जाता था की परीक्षा उत्तीर्ण की और उन्हें उत्तर प्रदेश काडर दिया गया। 1948 में जब इंटेलिजेंस ब्यूरो की स्थापना हुई तो उन्हें उसका सहायक निदेशक बनाया गया और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई। अपने करियर की शुरुआत में ही उन्हें एक बहुत बारीक खुफिया ऑपरेशन करने का मौका मिला। 1955 में चीन की सरकार ने एयर इंडिया का एक विमान कश्मीर प्रिंसेज चार्टर किया जो हांगकांग से जकार्ता के लिए उड़ान भरने वाला था और जिसमें बैठ कर चीन के प्रधानमंत्री चू एन लाई बांडुंग सम्मेलन में भाग लेने जाने वाले थे, लेकिन अंतिम मौके पर एपेंडेसाइसटिस का दर्द उठने के कारण उन्होंने अपनी यात्रा रद्द कर दी। वो विमान इंडोनेशिया के तट के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया और इसमें बैठे अधिकतर चीनी अधिकारी और पत्रकार मारे गए। काव को इस दुर्घटना की जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। काव ने जांच कर पता लगाया था कि इस दुर्घटना के पीछे ताइवान का हाथ था। चीन के प्रधानमंत्री चू एन लाई उनकी जाँच से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने काव को अपने दफ्तर बुलाया और यादगार के तौर पर उन्हें अपनी निजी सील भेंट की जो अंत तक काव की मेज़ की शोभा बनी रही। 1968 में इंदिरा गांधी ने सीआईए और एमआई 6 की तर्ज पर भारत में भी देश के बाहर के खुफिया मामलों के लिए एक एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) बनाने का फैसला किया और काव को इसका पहला निदेशक बनाया गया।
रॉ ने अपनी उपयोगिता 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में सिद्ध करी। काव और उनके साथियों की देखरेख में एक लाख से अधिक मुक्तिवाहिनी के जवानों को भारत में प्रशिक्षण दिया गया। काव का खुफिया तंत्र इतना मजबूत था कि उन्हें इस बात तक की जानकारी थी कि किस दिन पाकिस्तान भारत पर हमला करने वाला है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति याहिया खाँ के दफ्तर के हमारे एक सोर्स से रॉ को इसकी जानकारी मिली। 3 दिसंबर को पाकिस्तान ने हमला किया और भारतीय वायुसेना उस हमले के लिए पूरी तरह से तैयार थी और उसने पाकिस्तान का मुंहतोड़ जवाब दिया।
भारत में सिक्किम के विलय में भी रामेश्वर काव की जबरदस्त भूमिका रही। उन्होंने इस काम को महज चार अफसरों के सहयोग से अंजाम दिया और इस पूरे मिशन में इतनी गोपनीयता बरती गई कि उनके विभाग के नंबर दो शंकरन नायर को भी इसके बारे में कुछ भी पता नहीं था। सिक्किम की योजना आरएन काव की जरूर थी लेकिन तब तक इंदिरा गाँधी इस क्षेत्र की निर्विवाद नेता बन चुकी थीं। बांगलादेश की लड़ाई के बाद उनमें इतना आत्मविश्वास आ गया था कि वो सोचती थीं कि आसपास की समस्याओं को सुलझाने का जिम्मा उनका है। सिक्किम समस्या की शुरुआत तब हुई जब चोग्याल ने एक अमरीकी महिला से शादी कर ली थी और सीआईए का थोड़ा बहुत हस्तक्षेप वहाँ शुरू हो गया था। काव ने इंदिरा गाँधी को सुझाव दिया कि सिक्किम का भारत के साथ विलय कराया जा सकता है। ये एक तरह से रक्तविहीन तख्तापलट था और इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी बात ये थी कि ये चीन की नाक के नीचे हुआ। चीन की सेनाएं सीमा पर थीं लेकिन इंदिरा गाँधी ने चीन की कोई परवाह नहीं की। काव को ही श्रेय जाता है कि उन्होंने 3000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र का भारत में विलय कराया और सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य बना।
- राकेश सैन
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