मछली को आटा लगा कर कांटा फेंका जाता है। कांटा फेंकने वाला मछुआरा मछली की माँ नहीं और न ही भार्या जो चिंता करे, उसे चिंता है खुद की। वह मछली को खिलाना नहीं चाहता बल्कि खुद मछली खाना चाहता है परंतु मछली के अन्नदाता का रूप धर कर। मछलियों को अपने कुटुंब की उन बहनों को भी देखना चाहिए जो इस अन्न दाता के आटे के रूप में कांटे गिटक चुकी हैं। लहुलुहान है अंदर तक, आटा तो दूर पानी से बिछडऩे के बाद सांस के लिए भी तड़प रही हैं। आज बहुत से लोग व संगठन दलित-दलित चिल्ला रहे हैं, हमदर्द बन आंसू बहा रहे हैं। कभी कहते हैं तुम्हें फलां ने मारा तो कभी तथ्हीन कथाएं सुनाई जाती हैं। कहते हैं कि इंसान की परख होनी चाहिए, आटे में छिपे कांटे को देखने की कला आनी चाहिए।
31 दिसंबर को पुणे के भीमा कोरेगांव में यलगार परिषद् का कार्यक्रम था,जिसमें पेशवा बाजीराव द्वितीय और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए 200 वर्ष पुराने युद्ध की वर्षगांठ पर आयोजित किया जाना था। बताया जाता है कि ब्रिटिश सेना में महार भी शामिल थे तो इस युद्ध को कुछ महारों ने जातीय अस्मिता के साथ जोड़ा गया और बताया जाता है कि यहां हर साल कार्यक्रम होता है। अब समारोह के मंच पर आसीन महानुभावों के बारे जानकारी हासिल करें, इनमें प्रकाश आंबेडकर, जिग्नेश मेवाणी, उमर खालिद, रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला, सोनी सोरी, विनय रतन सिंह, प्रशांत दौंढ़, मौलाना अब्दुल हामिद अजहरी इत्यादि इत्यादि। ऐसे कोई 25-30 संगठनों के नामों की सूची मंच से पढ़ी गई जिन्होंने रैली का समर्थन किया था, जिनमें पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, मूल निवासी मुस्लिम मंच, छत्रपति शिवाजी मुस्लिम ब्रिगेड, दलित ईलम आदि संगठन थे। मंच पर एक से बढ़ कर एक वक्ता ने दलित उत्पीडऩ की सच्ची-झूठी कहानी सुनाई। वही पुरानी बातें, पुराने अपराधी, पुराना संघर्ष और भी न जाने क्या क्या बोला गया।
इस जमावड़े में जुटे लोगों से परिचय करें तो साफ पता चलता है कि समारोह की आत्मा क्या रही होगी। यलगार उर्दू का शब्द है जिसका अर्थ है अचानक हमला करके मार देना। यहां बात जंग और खून-खराबे की हो रही थी। दूसरा शब्द है ईलम। मंच से नाम पढ़ा गया दलित ईलम। ईलम का अर्थ होता है ज्ञान और एक अर्थ देश भी होता है। जैसे एलटीटीई लिब्रेशन टाईगर्स आफ तामिल ईलम, याने अलग तामिल देश के लिए लडऩे वाला संगठन जो श्रीलंका में लाखों लोगों का जीवन बर्बाद करने का दोषी है। अब नामों पर आएं. एक नाम है जिग्नेश मेवाणी उर्फ दलित नेता। जिसने भारत से भगौड़े इस्लामिक विद्वान जाकिर नाइक के एक छद्म संगठन से आर्थिक सहायता ली और तीस्ता सीतलवाड़ ने भी उसकी आर्थिक मदद की। वही तीस्ता जो विदेशों में हर भारत विरोधी मंच की शान बनती हैं। जिग्नेश अभी कांग्रेस की मदद से गुजरात में विधानसभा का चुनाव जीते हैं। दूसरा नाम है रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला का। फिर नाम आता है उमर खालिद, सोनी सोरी, विनय रतन सिंह, प्रशांत दौंढ़ और अब्दुल हामिद अजहरी। याने सारे का सारा भारत विरोधी जमावड़ा जो देश के टुकड़े करने की सार्वजनिक रूप से हिमाकत करता रहा है। बाजीवार द्वितीय व पेशवा तो एक बहाना है अर्थात आटा है असली एजेंडा या यो कह लें कि आटे के पीछे कांटा है 'भारत की बर्बादी तक, जंग चलेगी, जंग चलेगी।' फिर ऐसा क्यों न कहा जाए कि दलितों को मोहरा बनाया जा रहा है।
मीडिया कह रहा है कि दंगा करने वाले भगवा ध्वजधारी थे और इसी लिहाज से वे संघी हो गए। वातानुकूलित न्यूजरूम में बैठ कर दुनिया को देखने वाले हमारे बुद्धिजीवी यह कब जानेंगे कि हर भगवाधारी आरएसएस का कार्यकर्ता नहीं होता। भगवा कलावा तो आतंकी कसाब ने भी बांध रखा था और शायद यही कारण रहा होगा कि इसी भगवा रंग से संकेत लेकर कुछ लोगों ने 'आरएसएस एक आतंकी संगठन' नाम से पुस्तक का भी लोकार्पण कर दिया और लोकार्पण समारोह की शोभा बढ़ाई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने। एक बार फिर उसी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने पुणे में दंगाईयों के हाथों में भगवा ध्वज देख कर तत्काल ट्वीट कर देशवासियों को ज्ञान दिया कि महाराष्ट्र जातीय हिंसा के पीछे संघ का हाथ है। वही संघ जिसे दलित, अल्पसंख्यक और महिला विरोधी, फासिस्ट और लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताते हैं। वही संघ जिसका एक स्वयंसेवक जो पिछड़ी जाति से है और अपने खानदान के चलते नहीं बल्कि योग्यता के कारण प्रधानमंत्री बना है। दूसरा स्वयंसेवक जो दलित है वो राष्ट्रपति जो साधारण परिवार से निकल कर अपने संघर्ष के कारण देश के शीर्ष संवैधानिक पद पर पहुंचे हैं। सुमित्रा महाजन जो लोकसभा अध्यक्ष हैं। वह संघ जिसके स्वयंसेवकों को पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने गणतंत्रदिवस में शामिल किया था। देश को इस तरह के उच्च स्तर के नेता देने वाला संघ गांधी खानदान के वारिस राहुल गांधी के लिए फासिस्ट है अलोकतांत्रिक है। धन्य राहुल धन्य राहुल की परवरिश करने वाले जिन्होंने देश को इतना योग्य नेता दिया।
झूठ के पुलिंदे का दूसरा स्रोत है- इतिहास के भारी-भरकम तोड़ मरोड़. पेशवा-अंग्रेज युद्ध को सीधे ब्राह्मण-महार युद्ध में बदल दिया गया। बेईमान मैकाले व माक्र्सपुत्रों ने अतीत यह काम इतनी चतुराई से किया कि आज यह सत्य जान पड़ता है कि यह महारों व मराठाओं की ही लड़ाई थी। अंग्रेजों का इससे कोई लेना देना नहीं था। सवाल पैदा होता है कि आखिर आखिर सेकुलरवाद के नाम पर तुष्टिकरण करने वाली कांग्रेस, जिहादी, जातिवादी, माओवादी, नक्सली ताकतें एक ध्रुव में क्यों सिमट गईं। दरअसल गुजरात में इन्हीं शक्तियों के प्रयासों से कांग्रेस को मिली अक्सीजन से एक अघोषित गठजोड़ सक्रिय हो गया है और मोहरा बनाया गया है दलित को। दलित समाज को चाहिए कि वह आटे में छिपे कांटे को देखने का प्रयास करे। दलित समाज के मसीहा बाबा साहिब भीमराव अंबेदकर हैं जो देश को एकजुट करने वाले थे जबकि नया गठजोड़ भारत के टुकड़े करने की बात करता है। तो सावधान!
राकेश सैन
32, खण्डाला फामिंंग कालोनी
वीपीओ रंधावा मसंदा, जालंधर।
मो. 097797-14324
No comments:
Post a Comment