Saturday, 24 February 2018

अतिथि देवो भव:

देश में दूसरे राष्ट्रध्यक्षों का आना और अपने देश के नेताओं का वहां जाना सामान्य कूटनीतिक व्यवहार है। भारत की संस्कृति अतिथि को देवस्वरूप मान कर उसका सम्मान करती है परंतु महाभारत का वकासुर प्रसंग बताता है कि मेहमान का मेजबान के प्रति संबंध भी निरापद नहीं है। अतिथि का भी धर्म निर्धारित किया गया है कि वह मेजबान के संकट का निराकरण और उसके कल्याण की कामना करे। सभी जानते हैं कि किस तरह चक्रानगरी में पांडव अपने शरणदाता ब्राह्मण परिवार का संकट अपने सिर पर लेते हैं। माता कुंती ब्राह्मण परिवार के बेटे की जगह भीम को वकासुर के पास भेजती हैं भोजन का छकड़ा लेकर। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो भारत के सात दिन के दौरे पर आए, वे हमारे देवस्वरूप अतिथि रहे परंतु उन्हें यह जरूर आत्मविश्लेषण करना चाहिए कि वे अतिथि धर्म का कितना पालन कर रहे हैं। उनकी यात्रा की परिणति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ द्विपक्षीय मसलों पर बातचीत और दोनों देशों के बीच छह समझौतों के साथ हुई। इन समझौतों में उच्च शिक्षा, ऊर्जा और खेलकूद आदि क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने की बात कही गई है। लेकिन इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने उन्हें यह भी साफ शब्दों में कह दिया कि भारत को तोडऩे और हिंसा करने वाले बर्दाश्त नहीं किए जा सकते। धर्म का दुरुपयोग राजनीतिक उद्देश्यों की खातिर नहीं होना चाहिए। इससे पहले पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी उन्हें अलगाववाद को प्रोत्साहन न देने को कहा और वहां शरण लिए हुए 9 अपराधियों की सूची सौंपी। ट्रुडो चाहे महसूस करें या नहीं परंतु शालीन नागरिक होते हुए भारतीयों को यह बात कचोटती रहेगी कि उन्हें पहली बार किसी मेहमान को इस तरह अतिथि धर्म समझाना पड़ा हो।
जस्टिन ट्रुडो कनाडा के लोकप्रिय प्रधानमंत्री व उदारवादी नेता हैं, अपने देश में रहने वाले खालिस्तानी अलगाववादियों के साथ उनके संबंध किसे से छिपे नहीं। यहां तक कि उनके मंत्रीमंडल में शामिल कुछ मंत्रियों पर भी भारत विरोध को प्रोत्साहन देने के आरोप लगते रहे हैं। ट्रुडू की लिबरल पार्टी के कई नेताओं और मंत्रियों के बारे में माना जाता है कि खालिस्तानी आंदोलन से उनका करीबी रिश्ता है। यह खालिस्तानी तत्वों को मिली छूट का ही प्रमाण है कि वहां के लगभग 9 गुरुद्वारों में भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों का प्रवेश वर्जित है। अनेकों गुरुद्वारे धर्मप्रचार की जगह खालिस्तानी तत्त्वों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के अड्डे बन चुके हैं। इन धर्मस्थलों में भारत विरोधी दुष्प्रचार होता है और देश को तोडऩे के मनसूबे गढ़े जाते हैं। ऐसा नहीं कि कनाडा सरकार इनसे अनभिज्ञ है बल्कि जानबूझ कर इन अपराधियों के प्रति आंखें बंद किए हुए है। खालिस्तानी तत्वों को मिली छूट की बानगी यहीं से देखने को मिल जाती है कि जस्टिन ट्रुडो के भारत दौरे के में भी जसपाल अटवाल अपराधियों को रात्रिभोज पर आमंत्रित किया जाता है। ऐसा करते हुए ट्रुडो यह भी भूल जाते हैं कि वे दो दिन पहले ही वे अमृतसर स्थित श्री हरिमंदिर साहिब की पावन हाजिरी में भारत की एकता-अखण्डता का सम्मान करने का वायदा करके आए हैं। कनाडा में लाखों सिख बसे हैं, उनके पास वोट और नोट की ताकत भी है। इसी ताकत और इसी मदद का हवाला देकर जसपाल अटवाल जैसे तत्त्व अपना उल्लू सीधा करते हैं, राजनीतिक पैठ बनाते हैं या राजनीतिक संरक्षण हासिल करते हैं। लिबरल पार्टी के नेताओं और मंत्रियों को देशभक्त सिख समाज और अटवाल जैसे अपराधियों के बीच अंतर सीखना होगा। इस मामले में भारत ने इशारों ही इशारों में भी सख्त संदेश दिया है जो उचित भी है। ट्रुडो के दौरे के दौरान उन्हें उचित सम्मान न मिलने की शिकायतें भी सुनने को मिलीं परंतु इसके लिए भारत को जिम्मेवार नहीं ठहराया जाना चाहिए। कोई भी देश नहीं चाहेगा कि जिस देश के राष्ट्राध्यक्ष को उसकी एकता-अखण्डता और कानून-व्यवस्था की चिंता नहीं उसको ज्यादा भाव दिया जाए।
खालिस्तान आतंकवाद भारत के सीने पर वह घाव है जिसने तीन दशकों तक यहां के लोगों को तड़पाया, आज भी यदाकदा इन जख्मों के रिसने की वेदना झेलनी पड़ जाती है। इस आतंकवाद ने 30000 से अधिक कीमती जानों को लील लिया और अरबों रुपयों का नुक्सान हुआ। विकास की यात्रा में भारत का उत्तरी हिस्सा तीन दशकों थमा रहा था इसी आतंकवाद के कारण। इसीने दुनिया भर में भारतीय सिखों की पहचान को संदिग्ध किया। आज चाहे भारत की धरती पर इस आतंकवाद की आंच मद्धम पड़ गई परंतु कनाडा साहित कई पश्चिमी देशों में आज भी इसको या तो धधकाने का प्रयास हो रहा है या इसकी तपिश के प्रति भारतीय चिंताओं की अनदेखी हो रही है। कनाडा भारत का मित्र देश है परंतु यह मैत्रीभाव धरातल पर दिखाई भी देना चाहिए। बगल में छुरी दबा कर गलबहियां डालने वालों को भारत अच्छी तरह पहचानने लगा है। कनाडा अगर भारत के साथ सही अर्थों में मित्रता और सहयोग चाहता है तो उन्हें अपने यहां चल रही भारत विरोधी हर गतिविधि को सख्ती से रोकना होगा। ट्रुडो को यह नहीं भूलना चाहिए कि आतंकवाद व अलगाववाद वह भस्मासुर है जो पैदा करने वालों और शरण देने वालों को भी नष्ट कर सकता है। कल को यही जसपाल अटवाल जैसे अलगाववादी कनाडा में भी अलग राष्ट्र की मांग करनी शुरु कर कानून व्यवस्था को चुनौती देने लगें तो तब ट्रुडो क्या करेंगे?
राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324

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