Thursday, 15 March 2018

मैं समय हूं ...राही मसूम रजा


मैं समय हूं ... पिछली सदी के आखिरी दशक में हर रविवार को प्रात: दस बजे दूरदर्शन पर जब यह शब्द गूंजते थे तो मानो सारे देश में सन्नाटा पसर जाता। यह पौराणिक टीवी सीरियल महाभारत के आरंभिक शब्द थे और इनको लिखने वाले थे डा. राही मसूम रजा, जिनका 15 मार्च को देहांत हो गया। डा. रजा वे साहित्यकार हैं जिन्होंने संस्कृत की महान रचना महाभारत के संवादों के इतनी सरल भाषा में ढाला कि सामान्य जन तक को गीताज्ञान तक कंठस्थ हो गया। अपनी इस उपलब्धि के कारण डा. राही को आधुनिक युग का वेद व्यास कहा जाने लगा था। डा. रजा आज हमारे बीच नहीं हैं परंतु वे वास्तव में अपने शब्दों से समय के समान स्थाई बन गए। जब तक दुनिया रहेगी डा. रजा के भारतीय साहित्य सेवा के इस महान कार्य को याद किया जाता रहेगा।


डॉ. राही मासूम रजा हिंदुस्तानी भाषा के अप्रतिम साहित्यकार थे। उनकी कई कालजयी रचनाएं न सिर्फ लोगों ने खूब पढ़ी हैं बल्कि उनके रचनांशों को अनेक लोगों द्वारा कंठस्थ होने की भी कथाएं अक्सर सुनी जाती हैं। सरल-सहज भाषा शैली और कहानियों का यथार्थ चित्रण राही साहब का लेखकीय चरित्र था लेकिन जब उन्हें महाभारत जैसे पौराणिक और धार्मिक आस्थागत महत्व वाले धारावाहिक का संवाद लिखने का जिम्मा मिला तब उन्होंने धारावाहिक की मांग के हिसाब से ऐसी भाषा का हाथ पकड़ा जिसे सामान्य जन के बीच संस्कृतनिष्ठ और थोड़ी कठिन हिंदी के रूप में जाना जाता है। राही साहब ने संस्कृतनिष्ठ हिंदी को भी बेहद ही सरल और सुबोध्य बनाकर महाभारत में प्रस्तुत किया था, जिसे सारे देश ने न सिर्फ समझा बल्कि उसके कई संवाद लोगों की जुबान पर भी चढ़ गए थे ।

राही साहब से जब पहली बार निर्देशक बी आर चोपड़ा ने महाभारत धारावाहिक के संवाद लिखने की पेशकश की थी तब उन्होंने समय की कमी का हवाला देते हुए संवाद लिखने से इंकार कर दिया था, लेकिन बी.आर. चोपड़ा ने एक प्रेस कान्फ्रेंस में महाभारत के संवाद लेखक के रूप में राही मासूम रजा के नाम की घोषणा पहले ही कर दी थी। राही साहब के उपन्यास सीन : 75 का अंग्रेजी में अनुवाद करने वाली पूनम सक्सेना ने अपनी इस किताब से संबंधित एक अंग्रेजी लेख में इस बात का उल्लेख किया है।

बी.आर. चोपड़ा द्वारा संवाददाता सम्मेलन में संवाद लेखक के बतौर राही मासूम रजा का नाम घोषित करने के बाद संकीर्ण मानसिकता के लोगों के पत्र पर पत्र आने शुरू हो गए। वे एक मुसलमान के हिंदू धर्मग्रंथ पर आधारित धारावाहिक के संवाद लेखक होने का विरोध करते हुए लगातार लिख रहे थे कि 'क्या सभी हिंदू मर गए हैं, जो चोपड़ा ने एक मुसलमान को इसके संवाद लेखन का काम दे दिया।'  बी.आर. चोपड़ा ने ये सारे पत्र राही साहब के पास भेज दिए। इसके बाद गंगा-जमुनी तहजीब के सशक्त पैरोकार राही साहब ने चोपड़ा साहब को फोन करके कहा-मैं महाभारत लिखूंगा। मैं गंगा का पुत्र हूं। मुझसे ज़्यादा भारत की सभ्यता और संस्कृति के बारे में कौन जानता है।' इस संबंध में राही साहब ने साक्षात्कार में कहा था  'मुझे बहुत दुख हुआ। मैं हैरान था कि एक मुसलमान द्वारा पटकथा लेखन को लेकर इतना हंगामा क्यों किया जा रहा है। क्या मैं एक भारतीय नहीं हूं।'

गंगा किनारे गाजीपुर में 1927 में जन्में राही मासूम रजा अपने आपको गंगापुत्र या गंगा किनारे वाला कहा करते थे। टोपी शुक्ला, आधा गांव, नीम का पेड़ जैसे कालजयी कहानियों के रचयिता राही साहब दिल से भारतीय थे। उन्होंने न सिर्फ अपनी रचनाओं से हिंदुस्तानी साहित्य को समृद्ध किया बल्कि 300 से ज्यादा फिल्मों की पटकथा और संवाद भी लिखे। राही मासूम रजा को महाभारत धारावाहिक के संवादों के लिए खासतौर पर जाना जाता है जिसके बाद से ही उन्हें आधुनिक भारत का वेदव्यास कहा जाने लगा था।


- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324

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