लगभग चार साल पहले देश में आम आदमी की भांति 'मफलर' ओढ़ कर परंपरागत राजनीति को बदलने निकले एक क्रांतिकारी ने देशवासियों से जुबां की परिवर्तन की। लोगों में यह देख कुछ विश्वास भी पनपा कि कोई तो है जो उनके लिए बिजली के खंभों पर चढ़ सकता है। सड़कों पर धरने तो सभी लगाते हैं परंतु यह क्रांतिकारी जरूरत पड़े तो ठिठुरती धुंध भरी रात में सड़क पर बिस्तर भी लगा सकता है। लोगों का विश्वास बढ़ता गया, क्रांतिकारी ने ईमानदारी व बेईमानी के प्रमाणपत्र बांटने शुरू कर दिए। लोग इसे भी वेदवाक्य मानने लगे और ऐसा करिश्मा हुआ कि क्रांतिकारी दिल्ली की 70 में से 67 सीटें जीतने में सफल रहा, ठीक चीन में अकेले ही चुनाव लडऩे वाले किसी कम्यूनिस्ट नेता की तरह, बिल्कुल एकतरफा जीत। कुछ लोगों को क्रांतिकारी की खांसी भी खासीयत लगने लगी, लेकिन जिस जुबां पर जनता ने विश्वास किया वह लंबी होते-होते पहले बेजुबां फिर बदजुबां का सफर तय करती हुई बेलगाम हो गई। आज हालात यह है कि इसी जुबान पर अपनों ने भी फिकरा कसा कि-हम क्या उस शख्स पर थूकें जो खुद, थूक कर चाटने में माहिर है।
जी हां! सही पकड़े हो, उसी क्रांतिकारी अरविंद केजरीवाल की बात हो रही है जो दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं और सिर्फ चार सालों में लोगों के लिए 'जोक मैटीरियल' और खुद अपनों के लिए 'हेट पर्सनेलिटी' बन चुके हैं। उनकी छवि ऐसे व्यक्ति की बन गई जो मकड़ी की भांति जाल बुनता है, उससे शिकार कर भूख शांत करता है, फिर उलझ कर अंतत: उस जाल को ही निगल लेता है। अरविंद ने जिन ऊंचे आदर्शों और विचारों का जाला बुनकर राजनीति के शिखर पर जाने की सोची थी, वे झूठे साबित हुए। अब पूरा लाव-लश्कर किसी भी वक्त टूटने की नौबत है। जैसे-जैसे पार्टी और उसके नेताओं की रीति-नीति के अंतर्विरोध खुल रहे हैं, उलझनें बढ़ती जा रही हैं। अकाली नेता बिक्रम मजीठिया से केजरीवाल की माफी के बाद पार्टी की पंजाब यूनिट में टूट की नौबत है। दिल्ली में पहले से गदर मचा हुआ है। 20 विधायकों के सदस्यता-प्रसंग की तार्किक परिणति सामने है। मामला चल ही रहा था कि माफीनामे ने घेर लिया है।
पार्टी प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज का कहना है कि अदालतों में पड़े मुकदमों को सहमति से खत्म करने का फैसला पार्टी की कानूनी टीम के साथ मिलकर किया गया है, क्योंकि इन मुकदमों की वजह से साधनों और समय की बर्बादी हो रही है। हमारे पास यों भी साधन कम हैं। बताते हैं कि जिस तरह मजीठिया मामले को सुलझाया गया है, पार्टी उसी तरह अरुण जेटली, नितिन गडकरी और शीला दीक्षित जैसे मामलों को भी सुलझाना चाहती है। यानी माफीनामों की लाइन लगेगी। पिछले साल बीजेपी नेता अवतार सिंह भड़ाना से भी एक मामले में माफी माँगी गई थी। सौरभ भारद्वाज ने पार्टी के फ़ैसले का जिक्र किया है, पर पार्टी के भीतरी स्रोत बता रहे हैं कि माफीनामे का फैसला केजरीवाल के स्तर पर किया गया है। इस मुकदमे में केजरीवाल के अलावा आशीष खेतान और संजय सिंह के नाम भी हैं। संजय की प्रतिक्रिया से लगता है कि इस फैसले की जानकारी उन्हें नहीं थी या वो इससे सहमत नहीं हैं। पंजाब से पार्टी के विधायक और विपक्ष के नेता सुखपाल सिंह खैरा ने ट्वीट किया, हमसे इस बारे में कोई चर्चा नहीं की गई। पार्टी के पंजाब प्रभारी और सांसद भगवंत मान प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके हैं। राज्य की पूरी यूनिट में नाराजगी है, संकट इसलिए खड़ा हुआ, क्योंकि सड़क की राजनीति के फौरन बाद पार्टी ने सत्ता का दामन थाम लिया। सड़क छाप नारों, बयानों और सोशल मीडिया की कीचड़ उछाल छीछालेदर का जितना लाभ उसे मिल सकता था, वह एकबारगी और जरूरत से ज्यादा मिल गया। आम आदमी पार्टी सपनों के सौदागर की तरह आई. जनता को लगा कि उसके सपनों के नेता सामने खड़े हैं। पर यह सपना टूट रहा है। उसकी भावुक राजनीति न्याय-व्यवस्था के कठोर धरातल पर आ गई है।
मजीठिया ने अमृतसर की एक अदालत में केजरीवाल, संजय सिंह और आशीष खेतान के खिलाफ मानहानि का केस दायर किया था। इस मामले में कई पेशियां हो चुकी हैं। अगली तारीख दो अप्रैल की है, जिसमें केजरीवाल के माफीनामे को पेश किया जा सकता है। मजीठिया को उन्होंने न केवल ड्रग तस्कर बताया, बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि वे गांव-गांव और गली-गली में इस बात के पोस्टर लगाएं। अब व्यावहारिक सत्य उनके सामने है। उन्होंने आरोप लगाने में जितनी तेजी दिखाई, शायद माफी माँगने में भी वे जल्दबाजी कर रहे हैं। सच यह है कि उनके माफी माँगने के बाद पंजाब में आम आदमी पार्टी की राजनीति बुरी तरह पिट जाएगी। बिक्रम मजीठिया ने कहा है, मैंने केजरीवाल को माफ किया, पर क्या केजरीवाल के अपने उन्हें माफ कर देंगे? राजनीति में ऐसी माफियां बरसों याद रहती हैं। वैसे झुकना बडप्पन की निशानी है परंतु गोस्वामी तुलसीदास जी चालाक व मौकापरस्त लोगों के झुकने से सचेत करते कहते हैं कि बिल्ली, धनुष, सांप झुके तो सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि ये झुक कर भी घात ही करते हैं। पग-पग पर झूठ का सहारा लेने वाले केजरीवाल की माफी कितनी विश्वसनीय है यह समय बताएगा परंतु क्रांतिकारी मफलरमैन का माफी मैन बनना साबित करता है कि झूठ और आरोपों की राजनीतिक तत्काल तो कुछ लाभ दे सकती है परंतु लंबी नहीं चलती। देश के अन्य राजनेताओं को भी केजरीवाल-मजीठिया माफी प्रकरण से कुछ सबक लेना चाहिए।
- राकेश सैन
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