जिस तरह महाभारत से पहले विराट युद्ध में अर्जुन व शेष कौरव सेना ने अपनी-अपनी ताकत का सिंहावलोकन किया लगभग उसी तर्ज पर कल रविवार को पंजाब में अकाली दल बादल और सत्ताधारी कांग्रेस लोकसभा चुनाव 2019 से पूर्व अपने-अपने पर तोलने उतरेंगे। अकाली दल के अभेद्य गढ़ लंबी विधानसभा क्षेत्र के किल्लेयांवाली में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी रैली करने जा रही है तो मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के गृहनगर पटियाला में अकाली दल अपनी ताकत का एहसास करवाएगा। आम आदमी पार्टी के तेजी से स्थान छोडऩे के कारण प्रदेश में पुन: स्थापित हो रही दो ध्रुवीय राजनीति के संदर्भ में भी यह रैलियां अहम भूमिका निभाने वाली हैं क्योंकि आप का खिसकता हुआ परंतु महत्वाकांक्षी जनाधार इनकी सफलता या असफलता के आधार पर अपने भविष्य की रणनीति तय करने वाला है।
बात करते हैं अकाली दल बादल की जो विधानसभा चुनाव के बाद से निरंतर पराजय का मुंह देखती आरही है। विधानसभा चुनाव के बाद अकाली दल के भीष्म पितामह स. प्रकाश सिंह बादल तो एक तरह से संन्यास आश्रम में चले गए थे और विपक्ष का रुतबा भी गंवा चुके इस दल का नेतृत्व उनके पुत्र सुखबीर सिंह बादल ने किया। चाहे सत्ताधारी कांग्रेस पर आरोप है कि उसकी सरकार ने अपने चुनावी वायदों पर इतना ध्यान नहीं दिया जितना कि वे वायदा करके आए थे। लोगों में इसको लेकर चाहे रोष है परंतु अकाली दल इन परिस्थितियों का लाभ उठाने में असफल रहा। अकाली-भाजपा सरकार के सत्ता में रहते हुए राज्य में हुई बेअदबियों, बहबलकलां प्रकरण, कोटकपूरा हिंसक टकराव, डेरा सच्चा सौदा प्रकरण को गलत ढंग से हैंडल करना जैसी गलतियों का खमियाजा आज तक अकाली दल को भुगतना पड़ रहा है। इसी का ही परिणाम लगता है कि विधानसभा चुनाव के बाद हुए लोकसभा व विधानसभा उपचुनावों में अकाली दल व भारतीय जनता पार्टी गठजोड़ के हाथ असफलता ही लगी। पिछले दस सालों में हर चुनाव जीतने का करिश्मा करने वाले सुखबीर सिंह बादल बदली हुई परिस्थितियों में बेबस नजर आने लगे और यही कारण है कि दल की कमान एक बार फिर बूढ़े योद्धा प्रकाश सिंह बादल संभालते दिख रहे हैं। विगत पंचायत व ब्लाक समिति चुनावों में कांग्रेस पार्टी पर जिस तरीके से धक्केशाही के आरोप लगे और चुनावों के दौरान हिंसा हुई उसने बादल के रूप में वृद्ध राजनीतिक शेर को एक बार फिर जगा दिया है। विगत दिनों सरकार की रोक के बावजूद फरीदकोट में उत्साहजनक रैली करके प्रकाश सिंह बादल ने दिखा दिया है कि पंथक राजनीति पर उनकी पकड़ आज भी बरकरार है और वे ही कांग्रेस को टक्कर दे सकते हैं। इसी रैली की सफलता को देखते हुए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को लंबी में रैली करने की घोषणा करनी पड़ी जिसके जवाब में अकाली दल भी पटियाला में रैली करेगा।
अकाली दल की रैली की सफलता केवल विरोधियों के लिए ही नहीं बल्कि राज्य में अपनी कनिष्ठ और केंद्र में वरिष्ठ सहोगी भारतीय जनता पार्टी के लिए भी संदेश देने वाली होगी। अकाली दल का प्रयास होगा कि उसकी सहयोगी भाजपा कहीं उसे प्रदेश की राजनीति में इतना भी कमजोर न समझ बैठे कि लोकसभा चुनाव में अपने कोटे से अधिक हिस्से की मांग करने लगे। गठजोड़ के निर्धारित कोटे के अनुसार, अकाली दल-भाजपा का हिस्सा लोकसभा सीटों का 10-3 और विधानसभा सीटों 94-23 का है। अकाली दल अपनी सहयोगी भाजपा की राजनीतिक भूख से भलिभांति परिचित है और जानता है कि किस तरह भाजपा उसे हरियाणा, राजस्थान में दुत्कारती और दिल्ली में हांकती है। केवल पंजाब में ही अकाली दल को वरिष्ठ होने का सौभाग्य मिलता है जिसे वह किसी सूरत में गंवाना नहीं चाहेगा। अकाली दल अपनी सफल रैली से एहसास करवाने का पूरा प्रयास करेगा कि तलवार की धार अभी बरकरार है।
राज्य में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी का हौंसला सातवें आसमान पर है। इसका कारण भी है कि पार्टी के पास कैप्टन अमरिंदर सिंह सरीखा लोकप्रिय नेता और चौधरी सुनील कुमार जाखड़ जैसा धारदार प्रधान है। विधानसभा चुनावों के बाद निरंतर मिल रही सफलता पार्टी के पैर जमीन पर नहीं टिकने दे रही परंतु मार्च 2017 और अक्तूबर 2018 के दौरान सतलुज-ब्यास के पुलों के नीचे से बहुत पानी बह चुका है। लोग अब कांग्रेस सरकार से भी हिसाब मांगने लगे हैं। किसान ऋण माफी और नशे के मोर्चे पर आंशिक सफलता को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस पार्टी अपने चुनावी वायदों पर पूरी तरह से खरा नहीं उतर पाई है। घर-घर रोजगार, युवाओं को स्मार्ट फोन, महंगी होती रेत-बजरी, अवैध खनन आदि बहुत से मोर्चे हैं जिन पर कांग्रेस को आने वाले चुनावों में कड़ी चुनौती मिलने वाली है। कांग्रेस के अंदर भी सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा है। नवजोत सिंह सिद्धू सहित अनेक मंत्री समय-समय पर पार्टी को असहज स्थिती में लाते रहते हैं। अभी हाल ही में एक साक्षात्कार के दौरान नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी पूर्व सीपीएस नवजोत कौर सिद्धू ने अपनी ही कांग्रेस पार्टी की सरकार को दस में से चार अंक दिए हैं। अवैध खनन को लेकर सरकार के एक मंत्री को अपना पद छोडऩा पड़ चुका है। नशे के खिलाफ चाहे सरकार गंभीर दिखती है परंतु सच्चाई यह है कि समस्या कुछ कम जरूर हुई है परंतु इसका उन्मूलन नहीं हो पाया। लोकसभा चुनावों में राजनीतिक परिदृश्य व मुद्दे राज्य विधानसभा चुनाव से अलग होंगे और चुनाव परिणामों को अवश्य प्रभावित करेंगे। विगत विधानसभा चुनाव के दौरान तो आम आदमी पार्टी द्वारा सत्ताधारी दल के वोट काटने के चलते राज्य में कांग्रेस को आशातीत सफलता मिल गई परंतु अब राज्य में हालात बदलने लगे हैं। लोकसभा चुनावों में मुकाबला दो पक्षीय होता है तो कांग्रेस को झटका भी लग सकता है। कांग्रेस की कल की रैली की सफलता या असफलता पार्टी के भविष्य पर गहरा असर डालने वाली है यह लगभग सुनिश्चित है।
राज्य के विधानसभा चुनाव व इसके बाद होने वाले तमाम चुनावों के परिणाम बताते हैं कि पंजाब में तूफान की तरह आई आम आदमी पार्टी आंधी की तरह वापिस हो ली है। विधानसभा चुनाव में 100 सीटों का दावा करने वाली आप को मात्र 18 सीटों पर संतोष करना पड़ा और उसके बाद उपचुनाव हो या गली मोहल्ले के लिए मतदान पार्टी के उम्मीदवार अपनी जमानतें तक बचाने में असफल हो रहे हैं। प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में बादल सरकार से नाराज अकाली दल के ही वोटबैंक का बहुत बड़ा हिस्सा आम आदमी पार्टी को शिफ्ट कर गया था और कल की रैलियों के बाद यह खिसका हुआ वोटबैंक किसकी ओर आकर्षित होता है इसका प्रदेश की राजनीति पर बड़ा असर पडऩे वाला है। यही कारण है कि अकाली दल और कांग्रेस पार्टी दोनों ही अपनी-अपनी रैलियों में भीड़ जुटाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं।
- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
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