Monday, 26 November 2018

मेरे पापा

वो दिन याद मुझे है पापा।
जब तेरे कंधे पे खड़ा हो गया।
तुम्ही से कहने लगा।
देखो पापा मैं तुमसे बड़ा हो गया।
पापा बोले, सपनों में भले जकड़े रहना।
लेकिन जीवन में हाथ हमेशा पकड़े रहना।
दरसल दुनिया इतनी हसीं नही है।
तेरे पांव तले अभी जमीं नही है।
उस दिन तू असल में बड़ा हो जाएगा।
मगर मेरे कंधे पे नही।
जब जमीन पे खड़ा हो जाएगा।
ये बाप तुझे अपना सब कुछ दे जाएगा।
तेरे कंधे पर चढ़ सबसे बिदा ले जाएगा।
वक्त बीत गया लेकिन रह गई परछाईं।
निकल पड़ते हैं आंख से आंसू।
और दिल बैठ सा जाता है।
याद आती हैं वे बातें जो कभी पापा ने बताईं।
विलियम शेक्सपीयर ने शायद नासमझी में कह दिया कि-नाम में क्या रखा है। अगर नाम में कुछ न होता तो मेरे पिता श्री सुमेरचंद गुप्ता का जीवन पुराणों में वर्णित उस विशाल सुमेरु पर्वत की छाया न होता। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सुमेरु पर्वत के चारों ओर चार विशाल पर्वत माने गए हैं। पूर्व में मंदराचल, दक्षिण में गंधमादन, पश्चिम में सुपाश्र्व तथा उत्तर में कुमुद नामक पर्वत है। मंदराचल पर्वत समुद्रमंथन का मुख्य साधन है जिसने सागरमंथन कर दुनिया को रत्न और विष दिया। परिवार के लिए पिता जी न जाने कब-कब और कितना विष पचाया परंतु सभी सदस्यों के बीच अमृत का ही वितरण किया। उनके सम्मुख हम खुद को बच्चा ही समझते रहे परंतु उनके जीवन में बदलती भूमिकाओं को मैने करीब से महसूस किया है।
बचपन की मधुर स्मृतियां औरों की भांति मुझे भी गुदगुदाती हैं। पापा का वह लाड-प्यार और डांट डपट और फटकार। कभी हम ज्यादा परेशान करते तो पीट भी देते। अजीब बात थी, कभी माँ मारती तो पापा बचाने को आगे आ जाते और पापा मारने दौड़ते तो माँ का आंचल आसरा बनता। कोई भाई-बहन रूस जाता तो उसे मनाते, प्यार से गोद में उठा कर गली में ले जाते और न जाने क्या गुरुमंत्र देते कि दोनों हंसते हुए घर में लौटते। बच्चों की लड़ाई में वे ही निर्णायक बनते और ऐसा न्याय करते कि सभी संतुष्ट हो जाते। जब भी बाहर से आते हम बच्चों का ध्यान उनके थैले पर रहता क्योंकि कभी खाली हाथ घर नहीं लौटते। थैले में निकली चीजों के लिए भाई-बहनों से मारा-मारी, ज्यादा मिलते तो एक दूसरे को चिढ़ाना और कम हाथ लगे तो धरती पर लोटपोट हो जाना, स्कूल न जाने की जिद्द करना, बहाने बनाना, बाहर से किसी की शिकायत आने पर पापा से डर के मारे घर में छिप जाना आदि कितनी ही ढेर सारी बाते हैं जो मां-बाप से जुड़ी हैं। बचपन में पापा ने सारी जिम्मेवारी बाखूबी निभाई डांटा भी प्यार भी किया, गुरु की तरह राह भी दिखाई और अध्यापक बन ज्ञान भी दिया। हम जानते हैं कि उनकी बहुत सी इच्छाएं थीं, निजी जीवन में ख्वाइशें भी थीं परंतु परिवार जुटने पर उनकी प्राथमिकता हम ही बन गए।
बचपन से लड़कपन में दाखिल हुआ तो उनकी भी भूमिका बदली-बदली नजर आई। हर बात पर खूब समझाते और कई बार तो इतनी हद हो जाती कि खिझ चढऩे लगती। बहुत सी बातों पर ऐसा लगता कि पापा का कहना ठीक नहीं। जब आयुजनित खुदी पनपने लगी तो ऐसा लगा कि पापा पिछले समय की बातें करते हैं, आज समय बदल चुका है। पापा की बातें इस समय में फिट नहीं बैठतीं। कई बार तो आपस में कहा सुनी भी हो जाती, माँ बीच में कूदती और दोनों को समझाती। दुनिया के लोगों को अमीर होते देख लगने लगा कि पापा असफल इंसान हैं, जीवन में इतना नहीं कमा पाए कि हम भी औरों की तरह ऐश कर सकें। न जाने क्यों उनकी अव्हेलना करने में संतोष सा मिलने लगा। पापा भी मेरी इस मनोदशा को समझते क्योंकि अपने युवावस्था में वे भी इन्हीं परिस्थितियों से गुजरे होंगे। उन्होंने समझाना-बुझाना जारी रखा, कोई अमल करे या न करे, माने या न माने वे सही बात कहने से नहीं कतराते। जानते थे कि बेटा अभी बड़ा हुआ है परंतु जमीन पर खड़ा नहीं हुआ।
किशोरावस्था के अस्तांचल तक पहुंचते-पहुंचते मैने महसूस किया कि वे मेरे कामकाज को लेकर मुझ से अधिक चिंतित रहते। भईया पढऩे-लिखने में ओजस्वी थे और मैं औसत इसी कारण वे मुझ को लेकर अधिक चिंतित रहते। अपनी सोच व साधन के अनुसार, कई तरह के काम सुझाते। कुछ छोटा-बड़ा काम शुरू करता तो खूब हल्लाशेरी देते। हर काम में सहयोगी और सहायक की भूमिका निभाते रहते। जंग-ए-समाचार का अबतक की सफलता में जिस व्यक्ति का सबसे बड़ा हाथ है वे मेरे पापा ही हैं। प्रूफ रीडर से लेकर संपादक मंडल का काम वे मुझ से अधिक बेहतर जानते थे। गीता प्रेस गोरखपुर की मासिक पत्रिका कल्याण के वे नियमित पाठक रहे। हर माह उसकी बेसब्री से प्रतीक्षा करते और समझाते कि अखबार ऐसा होना चाहिए कि पाठक मेरी तरह प्रतीक्षा करे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक होने के नाते हिंदुत्व व राष्ट्रीयता के बीज उनके बाल मन में ही पड़ गए जिनको पल्लवित-पोषित किया गीता प्रेस गोरखपुर के साहित्य ने। पापा जंग-ए-समाचार के सबसे अच्छे पाठक भी थे, समाचार पत्र में कौन सी रचना किस स्तर की है यह मुझे उनकी प्रतिक्रिया से जान पड़ता। नियमित योग, ध्यान, अनुशासित जीवन उनके जीवन की पूंजी था जिसके बल पर उन्होंने 80 साल का स्वस्थ जीवन व्यतीत किया। परिवार की अगली पीढ़ी याने मेरे व भईया के बच्चों के लिए तो वे जान छिड़कते। बहुत लंबी है पापा के जीवन की गाथा, आज वे हमारे बीच नहीं हैं और उनकी हर बात स्मृति पटल पर घूमती दिख रही है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि जीवन के चारों पुरुषार्थों को उन्होंने अपने जीवन में अर्जित किया। ईश्वर से यही कामना है कि जब भी मानव जीवन मिले मुझे पिता के रूप में यही महान आत्मा का सान्निध्य प्राप्त हो।
- सुभाष गुप्ता
(श्री सुभाष गुप्ता मेरे मित्र हैं। उनके पिताजी के देहांत पर उनकी पितृभावना को शब्दों में ढालने का मुझे अवसर मिला)

Friday, 23 November 2018

करतारपुर साहिब, बर्लिन की दीवार ढहनी चाहिए

सिख समुदाय द्वारा पिछले 70 सालों से करतारपुर गलियारे संबंधी की जा रही मांग स्वीकार करने के बाद प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी भी गुरु नानाक देव जी के भक्त लाला दुनीचंद जी की श्रेणी में आगए हैं जिन्होंने गुरु जी को 100 एकड़ जमीन दान देकर अपने को कृतज्ञ किया था। लाला दुनीचंद के बारे बताया जाता है कि वे दिल्ली में शासन कर रही लोधी राजवंश सत्ता के गवर्नर थे और गुरु नानक देव जी के सच्चे श्रद्धालु भी। इतिहासकार बताते हैं कि 1522 में वे गुरु जी के संपर्क में आए। सिख धर्म में ननकाना साहिब, अमृतसर, सुल्तानपुर लोधी सहित असंख्य आस्था स्थल हैं जिनमें करतारपुर साहिब का अपना ही महत्त्व है। गुरु नानक देव जी ने रावी नदी के किनारे एक नगर बसाया और यहां खेती कर उन्होंने नाम जपो, किरत करो और वंड छको (नाम जपें, परिश्रम करें और बांट कर खाएं) का सिद्धांत दिया था। इतिहास के अनुसार गुरु जी की तरफ से भाई लहणा जी को गुरु गद्दी भी इसी स्थान पर सौंपी गई थी जिन्हें दूसरे गुरु अंगद देव जी के नाम से जाना जाता है और आखिर में गुरुनानक देव जी यहीं पर ज्योति ज्योत समाए। बताया जाता है कि लंगर और पंगत की परंपरा भी यहीं से शुरू हुई।

सदियों तक यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना रहा परंतु देश के विभाजन के बाद यह पाकिस्तान में चला गया। करतारपुर साहिब, पाकिस्तान के नारोवाल जिले में है। यह जगह लाहौर से 120 किलोमीटर और भारतीय सीमा से महज 4 किलोमीटर दूर है जिस जगह पर गुरुद्वारा बना हुआ है। अपने आस्था स्थलों के बिछडऩे का सिख समाज को अत्यंत दुख हुआ और इसकी सेवा संभाव को अपने हाथों में लेेने के लिए विभाजन के तुरंत बाद ही ललायित हो उठे। उन्होंने अपने दैनिक असरास में अपनी इस इच्छा को शामिल किया कि- श्री ननकाना साहिब ते होर गुरुद्वारेयां, गुरुधामां दे, जिनां तों पंथ नूं विछोडय़ा गया है, खुले दर्शन दीदार ते सेवा संभाल दा दान खालसा जी नूं बख्शो...।' (अर्थात ननकाना साहिब और बाकी गुरुद्वारे या गुरुधाम जो बंटवारे के चलते पाकिस्तान में रह गए उनके खुले दर्शन सिख कर सकें इसकी हम मांग करते हैं।)

सिख संगत द्वारा की जाने वाली अरदास को उस समय बोर पडऩा शुरू हुआ जब 1974 में भारतीय सेना ने इस मामले को पाकिस्तान के समक्ष उठाया।  1999 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बस लेकर लाहौर पहुंचे तो इस मसले को फिर उठाया गया। अकाली दल के नेता कुलदीप सिंह वडाला के तरफ से 2001 में - करतारपुर रावी दर्शन अभिलाखी संस्था की शुरुआत की गई थी और 13 अप्रैल 2001 के दिन बैसाखी के दिन अरदास की शुरुआत हुई। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समक्ष पहले 2004 फिर 2009 में इस मुद्दे को उठाया गया और उन्होंने पाकिस्तान के साथ इसको लेकर बातचीत करने का भरोसा दिलवाया। 2010 और 2012 में अकाली दल बादल और भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने पंजाब विधानसभा में दो बार प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजे। जुलाई 2012 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष जत्थेदार अवतार सिंह मक्कड़ ने गलियारा खोलने की वकालत करते हुए कहा था कि पाकिस्तान ने 1999 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पाकिस्तान यात्री के वक्त इसे खोलने की पेशकश की थी लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। स्थायी गलियारे की मांग करने वालों की उम्मीद उस समय टूट गई जब 2 जुलाई 2017 को शशि थरूर की अध्यक्षता वाले विदेश मामलों की सात सदस्यीय संसदीय समिति के सदस्यों ने इस कॉरिडोर की मांग को रद्द कर दिया, जिसमें यह कहा गया था कि मौजूदा राजनीतिक माहौल इस कॉरिडोर को बनाने के अनुकूल नहीं है।

इतने लंबे संघर्ष के दौरान सिख समुदाय ने अपनी मांग नहीं छोड़ी। करतारपुर साहिब के प्रति श्रद्धा को देखते हुए सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने भारत-पाक सीमा पर एक जगह बना दी जहां पर दूरबीन से लोग दूर से ही इसके दर्शन करने लगे। इस बीच गाहे-बगाहे करतारपुर गलियारे की मांग उठती रही परंतु कुछ होता नहीं दिखा। वर्तमान में दुनिया गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव वर्ष को समर्पित समारोह मना रही है तो प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने करतारपुर गलियारे की मांग को मानते हुए समारोह के हर्षोल्लास को और बढ़ा दिया है। हर्ष की बात है कि पाकिस्तान ने भी इस योजना को स्वीकृति दे दी है। ऐसा होने पर सिख तीर्थयात्री बिना वीजा करतारपुर आ सकेंगे। सरकार यहां अपने नागरिकों को हर तरह की अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं भी उपलब्ध करवाने जा रही है।

दिल्ली में आयोजित प्रकाशोत्सव पर्व पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि करतारपुर गलियारा दोनों देशों की जनता को एक दूसरे की करीब लाएगा। उन्होंने कहा कि जब बर्लिन की दीवार ढह सकती है तो हमारे बीच की दूरीयां भी खत्म हो सकती हैं। यह प्रधानमंत्री की सद्इच्छा हो सकती है परंतु सकारात्मक सोच दिखाने के तुरंत बाद पाकिस्तान से दूसरी खबर भी आई है कि उसने अपने यहां खालिस्तानी आतंकी संगठनों को दोबारा से गठित करना शुरू कर दिया है। अभी गुरुपर्व पर ननकाना साहिब स्थित गुरुद्वारे में खालिस्तान को लेकर भारत के विरुद्ध खुल कर आतंकवाद समर्थक पोस्टर लगाए गए। भारतीय श्रद्धालुओं को देश के खिलाफ भड़काया गया और भारतीय दूतावास के अधिकारियों को उन्हें मिलने तक नहीं दिया गया। केवल इतना ही नहीं अभी हाल ही में अमृतसर के राजासांसी के करीब निरंकारी आश्रम में हुए आतंकी हमले के पीछे भी पाकिस्तान का षड्यंत्र बताया जारहा है जिसमें 3 निर्दोष भारतीयों की मौत हो गई और 19 लोग घायल हो गए। गुप्चर एजेंसियों से मिल रही सूचनाएं बताती हैं कि पाकिस्तान भारतीय पंजाब में फिर से खालिस्तानी आतंकवाद को हवा दे रहा है। पाकिस्तान की यह हरकत दोनों देशों के बीच हुए शिमला समझौते व जेनेवा कान्फ्रेंस के नियमों का उल्लंघन है जिसमें साफ-साफ कहा गया है कि कोई भी देश अपने यहां पड़ौसी देश के खिलाफ सक्रिय अपराधी तत्वों को सहयोग नहीं देगा। दोनों देशों की जनता के दिलों के बीच गलियारा बनाने के लिए भी पाकिस्तान को करतारपुर गलियारे की तरह सहयोगात्मक रवैया अपनाना होगा और भारत को अभी भावनाओं में बहने की बजाय सतर्क हो कर चलना होगा। दोनों देशों का प्रयास हो कि उनके बीच बनी नफरत, अविश्वास रूपी बर्लिन की दीवार ढहनी ही चाहिए।
- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।

Sunday, 18 November 2018

ਆਰ.ਐਸ.ਐਸ. ਨੇ ਕੀਤੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਹਮਲੇ ਦੀ ਨਿੰਦਾ


ਅੱਤਵਾਦ ਖਿਲਾਫ ਇਕਜੁੱਟ ਹੋਵੇ ਪੂਰਾ ਦੇਸ਼ - ਸ. ਬੇਦੀ
ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਸ੍ਵਯੰਸੇਵਕ ਸੰਘ ਨੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਨਿਰੰਕਾਰੀ ਆਸ਼ਰਮ ਤੇ ਹੋਏ ਹਮਲੇ ਦੀ ਕੜੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿਚ ਨਿੰਦਾ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਪੂਰੇ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਅੱਤਵਾਦ ਦੇ ਖਿਲਾਫ ਇਕਜੁੱਟ ਹੋਣ ਦੀ ਅਪੀਲ ਕੀਤੀ ਹੈ। ਪ੍ਰੈਸ ਦੇ ਨਾਂ ਜਾਰੀ ਬਿਆਨ ਵਿਚ ਆਰ.ਐਸ.ਐਸ. ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਪ੍ਰਾਂਤ ਸੰਘਚਾਲਕ ਸ. ਬ੍ਰਿਜਭੂਸ਼ਣ ਸਿੰਘ ਬੇਦੀ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਅੱਜ ਜਦੋਂ ਸਾਰੀ ਦੁਨੀਆ ਸ਼ਾਂਤੀ ਅਤੇ ਵਿਸ਼ਵ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸ਼੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ 550 ਵੇਂ ਜਯੰਤੀ ਵਰਸ਼ ਦੀ ਤਿਆਰੀ ਵਿਚ ਜੁਟਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ਇਸ ਮੌਕੇ ਤੇ ਗੁਰੂਆਂ ਦੀ ਪਾਵਨ ਨਗਰੀ ਤੇ ਖੂਨ ਦੀ ਹੋਲੀ ਖੇਡ ਕੇ ਅੱਤਵਾਦੀਆਂ ਨੇ ਪੂਰੀ ਮਨੁੱਖਤਾ ਨੂੰ ਚੁਣੌਤੀ ਦਿੱਤੀ ਹੈ। ਸ.ਬੇਦੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਤੋਂ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਹੈ ਕਿ ਰਾਜ ਅੰਦਰ ਸੁਰੱਖਿਆ ਅਤੇ ਖੂਫੀਆ ਵਿਵਸਥਾ ਮਜਬੂਤ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ ਅਤੇ ਅੱਤਵਾਦੀਆਂ ਨੂੰ ਤੁਰੰਤ ਗਿਰਫਤਾਰ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕੜੀ ਤੋਂ ਕੜੀ ਸਜਾ ਦਿਲਵਾਈ ਜਾਵੇ। ਸ. ਬੇਦੀ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਅੱਤਵਾਦ ਦੇ ਖਿਲਾਫ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਸ੍ਵਯੰਸੇਵਕ ਸੰਘ ਦੇਸ਼ ਅਤੇ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਨਾਲ ਚੱਟਾਨ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖੜ੍ਹਾ ਹੈ ਅਤੇ ਅੱਤਵਾਦੀਆਂ ਦੇ ਮਨਸੂਬਿਆਂ ਨੂੰ ਕਾਮਯਾਬ ਨਹੀਂ ਹੋਣ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇਗਾ। ਸੰਘ ਨੇ ਇਸ ਘਟਨਾ ਵਿਚ ਮਾਰੇ ਗਏ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਰਧਾਂਜਲੀ ਦਿੰਦਿਆਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦੁੱਖੀ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਹਮਦਰਦੀ ਪ੍ਰਗਟਾਈ ਹੈ ਅਤੇ ਜਖ਼ਮੀ ਹੋਏ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਛੇਤੀ ਹੀ ਸਿਹਤਮੰਦ ਹੋਣ ਦੀ ਕਾਮਨਾ ਕੀਤੀ ਹੈ।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने की अमृतसर हमले की भत्र्सना

आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हो पूरा राष्ट्र : स. बेदी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अमृतसर में निरंकारी आश्रम पर हुए हमले की कड़े शब्दों में भत्र्सना करते हुए आतंकवाद के खिलाफ पूरे राष्ट्र को एकजुट होने की अपील की है। प्रैस को जारी विज्ञप्ति में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पंजाब प्रांत के संघचालक स. बृजभूषण सिंह बेदी ने कहा है कि आज जब पूरी दुनिया शांति व विश्व भाईचारे के प्रतीक श्री गुरु नानक देव जी के 550वीं जयंती वर्ष समारोह की तैयारियों में जुटी है ऐसे अवसर पर गुरुओं की पावन नगरी में आतंकियों ने खून की होली खेल कर पूरी मानवता को चुनौती दी है। उन्होंने पंजाब सरकार से मांग की है कि प्रदेश में सुरक्षा व गुप्तचल व्यवस्था को मजबूत बनाया जाए और आतंकियों को तुरंत गिरफ्तार कर उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दिलवाने का प्रयत्न करे। स. बेदी ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश व सरकार के साथ चट्टान की भांति खड़ा है और आतंकियों के उद्देश्यों को किसी भी सूरत में सफल नहीं होने देगा। उन्होंने आतंकी घटना में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए उनके परिजनों के प्रति सांत्वना व्यक्त करते हुए घायल हुए लोगों के शीघ्र स्वास्थ्य होने की कामना की है।




Thursday, 1 November 2018

अमृतसर रेल दुर्घटना, लोग ही नहीं संवेदनाएं भी मरीं

बहेलिये के बाण से घायल क्रोंच पंछी की वेदना से दुखी हो विश्व के प्रथम संस्कृत काव्य की रचना करने वाले महर्षि वाल्मीकि की कर्मभूमि अमृतसर में विजयदशमी को हुई रेल दुर्घटना में केवल 62 निर्दोष लोग ही नहीं मरे, बल्कि उनके साथ दम तोड़ती दिखीं सत्ताधीशों की मानवीय संवेदनाएं भीं। दुर्घटना होते ही ‘चाहूंदा है पंजाब कैप्टन दी सरकार’ का नारा देकर सत्ता में आई कांग्रेस सरकार का सारा राजनीतितंत्र और प्रशासनिक मशीनरी तुरंत सक्रिय हो गई, लेकिन लोगों को बचाने के लिए नहीं बल्कि एक दूसरे पर जिम्मेवारी डालने में। यह घटना मानवता के तर्पण का ही प्रसंग है कि पुलिस ने दुर्घटना में मारे गए 62 लोगों की मौत पर तो गैर-इरादतन हत्या के आरोप में भारतीय दंडावली की धारा 304 के तहत केस दर्ज किया, जबकि अपनों की तलाश में भटक रहे लोगों ने जब क्षणिक आवेश में आकर आंशिक पथराव किया तो कानून के रखवालों ने शोकसंतप्त लोगों पर हत्या के प्रयास, उपद्रव भडक़ाने, भीड़ के रूप में हमला करने, सरकारी काम में बाधा डालने और षड्यंत्र करने के आरोप में इसी विधान की संगीन धारा 307, 148, 149, 186, 353 और 120-बी के अंतर्गत मामला दर्ज कर दिया। केवल इतना ही नहीं पुलिस ने दुखी लोगों पर खूब लाठियां भी भांजी। लेकिन रुकिए इस दारुणपुराण के और भी कई अध्याय हैं। पूरी कथा की प्रस्तावना लिखी पंजाब के स्थानीय निकाय व पर्यटन मंत्री श्री नवजोत सिंह सिद्धू की धर्मपत्नी श्रीमती नवजोत कौर सिद्धू ने, जो दुर्घटना होते ही पीडि़तों का दर्द बंटाने की बजाय अपने दो दर्जन सुरक्षा कर्मियों के साथ गाड़ी में सवार हो मौके से ऐसे फरार हो गईं जैसे कि पीडि़तों से उनका केवल वोटों ही नाता हो। वही नवजोत सिंह सिद्धू जो कमेडी नाइट विद कपिल शर्मा में तुकबंदी शैली से दार्शनिक बातें करते हैं और हंसने में इतने सिद्धहस्त हैं कि मृतकों की आत्मिक शांति के लिए निकाले गए कैंडल मार्च के दौरान भी अपनी मुस्कान पर काबू नहीं रख पाए। उनकी इस मुस्कराहट में संगत की पंजाब प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष चौधरी सुनील कुमार जाखड़ ने। जाखड़ गुरदासपुर से कांग्रेस के सांसद भी हैं और गत लोकसभा सत्र के दौरान किसान मुद्दों को लेकर संसद की छत पर प्रदर्शन करते हुए देश के सामने उपस्थित हो चुके हैं। शोकसभा में मुस्कुराते हुए चेहरों को देख मानो लंकापति यह कहते लगा कि- मैं मरूं ना मरूं परंतु कुछ सत्ताधारियों की मानवीय संवेदनाएं तो मानो निष्प्राण हो ही चुकी हैं।

श्रीमती भगौड़ी, नवजोत कौर सिद्धू
श्रीमती नवजोत कौर दशहरे में मुख्य अतिथि थीं और आयोजक थे कांग्रेस के पार्षद श्री सौरभ कुमार उर्फ मिट्ठू मदान जो सिद्धू के धर्मभाई भी हैं। उनकी उपस्थिति में मंच से उद्घोषक ने कहा- ‘मैडम जी चाहे 500 ट्रेंने गुजर जाएं, ट्रैक पर खड़े लोगों को कोई फिक्र नहीं।’ फिर भी कौर ने लोगों को रेल लाइनों से हटाने को नहीं कहा। इसके तुरंत बाद दुर्घटना हो गई, दस सैकेंड में 62 जीवित लोग लाशों में बदल गए और कितने ही अंगहीन हुए। दुर्घटना के बाद श्रीमती सिद्धू ने पीडि़तों की मदद, राहत व बचाव कार्य का संचालन करना उचित नहीं लगा बल्कि उनके सुरक्षा कर्मी उन्हें मौके से भगा ले गए। घर पर जाकर जब उन्हें लगा कि उनसे बहुत बड़ी गलती हो गई तो उन्होंने टीवी स्क्रीन पर आकर यह दावा किया कि उनके समारोह स्थल छोडऩे के दस-पंद्रह मिनट बाद दुर्घटना हुई और जब उन्हें इसका पता चला तो वह घायलों का हाल जानने अस्पताल गईं। इस प्रयास में श्रीमती सिद्धू यह भूल गई कि रेल दुर्घटना जब हुई उस समय रावण का पुतला अभी जल रहा था और इसको अग्निभेंट उन्होंने ही की थी।

आयोजक कांग्रेस पार्षद मिट्ठू मदान भूमिगत
दुर्घटना के सबसे बड़े जिम्मेवार कांग्रेस पार्षद सौरभ कुमार उर्फ मिट्ठू मदान को बताया जा रहा है जो घटना के बाद से ही भूमिगत हैं। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि समारोह में भीड़ एकत्रित करने के लिए दशहरा स्थल की रेल लाइन वाली दिशा की ओर दीवार पर एलईडी लगाई गई थी जिस पर लोक गायक बूटा मोहम्मद के रंगारंग कार्यक्रम का सीधा प्रसारण चल रहा था। समारोह की अनुमति लेने में भारी लापरवाही बरती गई, केवल लाऊड स्पीकर चलाने का अनुमति ली और रेल विभाग को समारोह की सूचना तक नहीं दी गई।

गैर-जिम्मेवार मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह 
दुर्योग से घटना वाले दिन राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह प्रदेश से बाहर थे। उनका 21 अक्तूबर से इस्राईल दौरा प्रस्तावित था और इसी के चलते वे दिल्ली गए हुए थे। 19 अक्तूबर शुक्रवार की शाम लगभग सात-साढ़े सात बजे हुई दुर्घटना की सूचना तुरंत रूप से प्रशासन द्वारा मुख्यमंत्री को दी गई परंतु उन्हें दिल्ली से अमृतसर के बीच 455 किलोमीटर का मार्ग तय करते-करते 17 घंटे लग गए। इस दौरान देश के रेल राज्य मंत्री श्री मनोज सिन्हा आधी रात दिल्ली से अमृतसर पहुंचे और राहत एवं बचाव कार्यों का निरीक्षण किया। आधी रात वे अस्पताल सहित अनेक उन जगहों पर गए जो स्थान दुर्घटना से जुड़े थे। केवल इतना ही नहीं रेल मंत्री श्री पियूष गोयल ने तो अपना अमेरिका का दौरा बीच में ही छोड़ दिया परंतु पटियाला के महाराजा कुंवर अमरिंदर सिंह अगले दिन 11 बजे के बाद ही अमृतसर पहुंचे। आक्रोशित लोगों के प्रश्नों के जवाब में उन्होंने ब्रह्मज्ञान दिया कि ‘यह तू तू-मै मैं’ का समय नहीं है। राज्य का संवैधानिक मुखिया होने के नाते उनका दायित्व था कि वे यथाशीघ्र मौके पर पहुंचते और सारी सरकार मशीनरी को राहत एवं बचाव कार्य में झोंकते। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि राज्य में कांग्रेस की रजवाड़ाशाही सरकार किस तरह मुगलिया शैली में काम करती है। ऐसा नहीं कि कैप्टन ने अपना विदेश दौरा रद्द कर दिया बल्कि अगले ही दिन निर्धारित समय पर इस्राईल के लिए यह तर्क देते हुए रवाना हो गए कि पंजाब में कृषि की स्थिति को सुधारने के लिए यह दौरा बहुत जरूरी है। इस्राईल पहुंच कर वे जनसंपर्क विभाग के माध्यम से लैपटॉप पर काम करते हुए का चित्र और प्रेस नोट जारी कर यह दर्शाना नहीं भूले कि उन्हें पंजाब की कितनी चिंता है। मुख्यमंत्री की इस हरकत को उनका गैर-जिम्मेवार व्यवहार बताया जा रहा है और  राज्य की जनता में इसको लेकर आक्रोश है।

आंकड़ों को लेकर संशय
जौड़ा फाटक पर हुई दुर्घटना में मरने वालों का सरकारी आंकड़ा 62 बताया जा रहा है, लेकिन लोगों को आशंका है कि आंकड़ा उससे कहीं ज्यादा है। धरना दे रहे लोग कह रहे हैं कि सरकार बचने के लिए इस आंकड़े को कम बता रही है। बहुत से लोग अभी अज्ञात हैं। इनमें पहला नाम है सनी, उम्र 17 साल निवासी प्यारा सिंह सरपंच वाला चौक का। माता-पिता का इकलौता बेटा सनी मजदूरी कर परिवार की मदद करता था। पिता दर्शन सिंह रिक्शा चलाते हैं। उसका पोस्टमार्टम सिविल अस्पताल और संस्कार शिवपुरी में हुआ। दूसरा नाम है बुधराम, आयु 41 साल निवासी मंदिर वाली गली, प्रीत नगर का। बुधराम समेत दिनेश (31), दिनेश के बेटे अभिषेक (10) की भी मौत हुई। बुधराम की पत्नी राधा और दिनेश की पत्नी प्रीति जख्मी हैं। बुधराम का संस्कार दुग्र्याणा तीर्थ में हुआ। तीसरा नाम है कृष्ण कुमार, आयु 24 साल, पता 40 खूह रसूलपुर कलरां का। दुर्घटना में जख्मी कृष्ण की सोमवार सुबह 7 बजे न्यू लाइफ केयर अस्पताल में मौत हो गई। उसका नाम न तो घायलों में है न ही मृतकों में। कृष्णा के भाई विक्की ने बताया कि दुर्घटना के समय वह गिर गया और भीड़ ऊपर से निकली गई। वे उसे अस्पताल ले गए थे। सोमवार सुबह संस्कार करने लगे तो पुलिस ने रोका और शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। इस पर जिला उपायुक्त कमलदीप सिंह संधा ने कहा है कि अंतिम सूची अस्पतालों के आधार पर बननी है। जिनके पोस्टमार्टम हुए, उनके नाम सूची में जुड़ेंगे। पहले जो सूची बनी वह फोन के आधार पर तैयार हुई है।

सामूहिक आत्महत्या या रेलवे का नरसंहार ?
इस दुर्घटना ने सैकड़ों परिवारों की खुशी छीन ली परंतु यह सबकुछ कैसे हुआ इसकी जिम्मेवारी लेने को कोई तैयार नहीं है। पंजाब सरकार के मंत्रियों, सत्ताधारी कांग्रेस के नेताओं व प्रशासन की बातों पर विश्वास किया जाए तो या तो रेल विभाग ने नरसंहार किया है या सभी मृतकों ने सामूहिक आत्महत्या। दुर्घटना की जांच जालंधर के आयुक्त बलदेव पुरुषार्थ कर रहे हैं। कुछ लोग रेलवे प्रशासन को दोषी बता रहे हैं, कुछ पुलिस प्रशासन को, कुछ का कहना है कि लोगों की ही गलती थी क्योंकि वो रेलवे ट्रैक पर खड़े थे। वहीं बहुतों का मानना है कि ये दुर्घटना केवल और केवल आयोजकों की लापरवाही है। सबसे बड़ा प्रश्न है वो ये कि क्या आयोजकों ने धोबीघाट इलाके में रावण दहन के लिए पुलिस और नगर निगम से आवश्यक अनुमति ली थी या नहीं। दुर्घटना के तुरंत बाद, जिला पुलिस ने एक बयान जारी करके कहा कि उन्होंने आयोजकों को किसी भी तरह की अनुमति नहीं दी थी। हालांकि शनिवार को जिला उपायुक्त ने सूचना दी कि उनके कार्यालय ने इस आयोजन के लिए सुरक्षा की अनुमति दी थी, लेकिन इसके साथ ही वो ये भी कहते हैं कि अगर नगर निगम ने उस जगह पर कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति ही नहीं दी थी तो पुलिस द्वारा दी गई सुरक्षा की अनुमति भी स्वत: निरस्त हो जाती है। नगर निगम की आयुक्त सोनाली गिरी ने स्पष्ट किया उन्होंने किसी तरह की अनुमति नहीं दी। वहीं महानगर के महापौर करमजीत सिंह रिंटू ने स्पष्ट किया है कि आयोजकों ने अनुमति लेने के लिए आवेदन तक नहीं किया। ऐेसे आयोजनों के लिए दमकल विभाग, स्वास्थ्य विभाग से भी अनुमति लेनी होती है, लेकिन आयोजकों ने इनमें से किसी से भी अनुमति नहीं ली। इस बीच दशहरा समिति के अध्यक्ष श्री मिट्ठू मदान ने 15 अक्टूबर को डीसीपी को एक चि_ी लिख बताया था कि वे लोग दशहरे का आयोजन करने वाले हैं जिसमें नवजोत सिंह सिद्धू और उनकी पत्नी डॉक्टर नवजोत कौर सिद्धू मुख्य अतिथि होंगे। उन्होंने लिखा कि लोगों की सुरक्षा के लिए पुलिस सुरक्षा चाहिए होगी। मोहकमपुरा थाने के कोतवाल द्वारा 17 अक्टूबर को जारी किए गए एक रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्हें एक मेल मिला था जिसमें लाउडस्पीकर की अनुमति मांगी गई थी। याने अभी तक पूरी तरह किसी को भी स्पष्ट नहीं है कि किसने किस से कौन सी अनुमति ली या किसने कौन सी मंजूरी दी। 

तथ्य नकारते दावे
समारोह के आयोजक व कांग्रेस के नेता अपनी सफाई में तरह-तरह के दावे पेश कर रहे हैं। वे रेल विभाग पर केवल इसलिए ठीकरा फोडऩे के प्रयास में हैं ताकि रेल विभाग के माध्यम से सारा दोष केंद्र सरकार पर मढ़ा जा सके परंतु तथ्य बताते हैं कि समारोह के आयोजकों ने हर तरहे के नियमों को ताक पर रखा। धोबी घाट इलाके में एक एकड़ से भी कम में फैले इस मैदान में किसी भी सूरत में 1 हजार से ज्यादा लोग नहीं समा सकते, लेकिन उस दिन 5-7 हजार लोग एकत्रित होने का समाचार है। केवल इतना ही नहीं भीड़ बढ़ाने के लिए रेल लाइनों की तरफ एलईडी लगाई गई। रावण दहन का समय परंपरा के अनुसार, सूर्यास्त का है परंतु भीड़ की प्रतीक्षा और नवजोत कौर सिद्धू के सामने इसका शक्ति प्रदर्शन करने के लिए दहन का समय बढ़ाया गया। इस मैदान में आने और जाने के लिए केवल एक ही द्वार है और वो भी केवल दस फीट चौड़ा है। मैदान के दूसरी ओर एक मंच तैयार किया गया था और वशिष्ट अतिथियों के आने-जाने का प्रबंध मंच के पीछे ही था। आयोजकों ने रेलवे ट्रैक की ओर मुंह करके एक बड़ा एलईडी टीवी लगाया था जिस पर लोग रावण दहन देख रहे थे। रावण के पुतले की ऊंचाई 20 फीट के आसपास थी याने गिरते हुए पुतले को कम से कम 20-25 फीट की जगह चाहिए थी। लेकिन इसकी भी अनदेखी हुई और जब पुतला जला तो भीड़ में आगे खड़े लोगों में भगदड़ मच गई।

पर्वों का राजनीतिकरण
जिस तरह से हमारे पर्वों का राजनीतिकरण हो रहा है और आस्था से जुड़े समारोह भी प्रतष्ठिा के प्रतीक बनते जा रहे हैं वह भी कहीं न कहीं इस घटना के लिए जिम्मेवार है। अब शोभायात्रा हो या दशहरा या जागरण वीआईपी, विशेषकर नेताओं द्वारा फीता कटवाना प्रचलन बन गया है। जब इस तरह के समारोह में नेता जुटते हैं तो वे भीड़ की भी मांग करते हैं और इसके लिए तरह-तरह के प्रपंच किए जाते हैं और समारोह में भीड़ जुटने की प्रतीक्षा की जाती है। उक्त समराहो में यह बात देखने में आई और दुर्घटना के लिए बहुत बड़ा कारण बनी।

लापरवाह प्रशासन
इस दुर्घटना में सिविल प्रशासन यह तर्क देकर अपनी जिम्मेवारी से नहीं बच सकता कि उनसे इसकी अनुमति नहीं ली गई और बिना मंजूरी के यह क्रम कई सालों से चल रहा है। अगर ऐसा है तो प्रशासन अभी तक इस तरह के आयोजन क्यों होने देता रहा है। जब इस कार्यक्रम के पूरे शहर में बड़े-बड़े बोर्ड लगे थे तो प्रशासन यह नहीं कह सकता कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी। अगर जानकारी थी तो प्रशासन ने स्वत: संज्ञान लेकर यहां प्रबंध क्यों नहीं किए। कहा जाता है कि जब आयोजन स्थल पर कई दिनों से प्रशासन साफ सफाई करवा रहा था तो बाकी के प्रबंध क्यों नहीं किए गए?

कानून की आंख पर पट्टी
पुलिस नियमावली के अनुसार रेल लाइनों कुआं, जौहड़, नहर या नदी या अन्य संवेदनशील जगह आयोजन होने पर अवरोधक लगाने जरूरी हैं। अगर ऐसा नहीं है तो पुलिस जवानों की ऐसी कठोर दीवार तैयार की जाती है कि लोग इन स्थानों तक जा न पाएं। रेलवे परिसर के आसपास इतना बड़ा आयोजन खुद में अति संवेदनशील मामला है तो पुलिस प्रशासन क्यों आंखें मूंदे बैठा रहा ?

रेल प्रशासन की भी लापरवाही
रेल प्रशासन को जब जानकारी थी कि उक्त स्थान पर हर साल दशहरा आयोजित किया जाता है तो चालक को काशन आर्डर क्यों नहीं दिया गया? रेलवे नियमावली के तहत बिना गेट वाले फाटक, फाटक लांघने वाले स्थानों, रेल लाइनों पर संभावित आवागमन वाली जगहों पर चालक को काशन दिया जाता है। फाटक पर तैनात कर्मचारी ने हरी झंडी दिख्राते समय चालक को काशन क्यों नहीं दिया? दुर्घटना के कुछ वीडियो में दिख रहा है कि रेल पूरी तेजी से भीड़ को चीरती हुई जा रही है। ऐसे में सवाल है कि रेल चालक को क्या एक बड़ी भीड़ दिखाई नहीं दी? चालक को अगर भीड़ दिख गई थी तो उसने लगातार हॉर्न बजाया या नहीं? लगातार हॉर्न बजाने के अलावा चालक ने गाड़ी की गति कम क्यों नहीं की? रेल विभाग को भी इस दुर्घटना की जिम्मेवारी से पूरी तरह मुक्त नहीं किया जा सकता।

वीआईपी संस्कृति 
यह बीमारी बहुत पुरानी और कई बार जानलेवा साबित हो चुकी है। देखने में आता है कि वशिष्ट या अति वशिष्ट व्यकिति की सुरक्षा के लिए सैंकड़ों पुलिस जवान तैनात कर दिए जाते हैं परंतु जनसाधारण की सुरक्षा पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता। उक्त स्थान पर उमड़े 5-7 हजार लोगों के लिए मात्र 6-7 पुलिस के जवान तैनात थे जबकि इससे अधिक जवान तो समारोह में मुख्य मेहमान के तौर पर पहुंची नवजोत कौर सिद्धू व अन्यों की सुरक्षा में दिखाई दिए। वीआईपी प्रपंच के चलते ही किसी कार्यक्रम में अगर किसी बड़े आदमी का नाम जुड़ जाए तो देखने में आता है कि नागरिक प्रशासन इनको लेकर आंखें बंद कर लेता है और इन समारोहों में नियमों को ताक पर रखा जाता है। इनके परिणामस्वरूप ही होते हैं अमृतसर जैसी दुर्घटनाएं।

लापरवाह व असावधान लोग
किसी दुर्घटना के लिए पीडि़त को चाहे जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता परंतु नियमों को लेकर जनसाधारण में लापरवाही व असावधानी के चलते दुर्घटनाएं हो जाती हैं जिनका खमियाजा अंतत: उसी को ही भुगतना पड़ता है। उक्त घटना को लेकर भी कहा जा सकता है कि जबकि सभी जानते हैं कि अमृतसर-दिल्ली रेल मार्ग देश के अति व्यस्ततम रेल मार्गों में से एक है तो लोग रेल लाइनों पर एकत्रित ही क्यों हुए। ऊपर से सामने चल रही एलईडी व जलते हुए रावण से फूटती आतिशबाजी के शोर ने उन्हें काल के गाल में समा दिया। वीडियो में दिखाई दे रहा है कि मौके पर मरने वाले बहुत से लोग अपने मोबाइल पर दशहरे की वीडियो बना रहे थे। अगर वे सावधान होते तो शायद इतना बड़ा हादसा न होता। देखने में आ रहा है कि जीवन में मोबाइल की बढ़ती भूमिका व यातायात नियमों का उल्लंघन लोगों के जी का जंजाल बन रहे हैं।

हिंदू पर्वों की उपेक्षा
बड़े दुखी हृदय से लिखना पड़ रहा है कि पंजाब में हिंदू पर्वों की उपेक्षा ही की जाती रही है और उपेक्षा का क्रम इतना लंबा है कि पंजाब में रहने वाले हिंदुओं को अब यह बात सामान्य-सी लगने लगी है। अन्य धर्मों के पर्वों पर सरकारें विज्ञापन जारी करती, सरकारी अवकाश की घोषणा करती, एक दिन पहले निकलने वाली शोभायात्राओं के लिए आधे दिन का अवकाश घोषित करती व पूरे बंदोबस्त करती है परंतु हिंदू पर्वों पर कंजूसी बरती जाती है। दशहरे पर्व पर हुआ हादसा और प्रशासन की भूमिका इसका जीवंत उदाहरण है। अभी हाल ही में दो दिन पहले लोगों ने कंजक पूजन किया। उस दिन अवकाश नहीं था और कंजक पूजन करते-करते बच्चे सुबह स्कूलों के लिए लेट हो गए। इसके चलते बहुत से बच्चों की स्कूल वैन मिस हो गई या लेट हो गई। समय पर स्कूल पहुंचने के लिए स्कूल वाहन चालकों को ज्यादा स्पीड से अपने वाहन चलाने पड़े। ऐसा में अगर हादसा होता तो कौन जिम्मेवार होता। केवल इतना ही नहीं दीपावली हो या कृष्ण जन्माष्टमी या होलिका दहन, छठ पूजन जैसे सार्वजनिक पर्व इनके बंदोबस्त को कोई भी विभाग या सरकार इतना महत्त्व नहीं देती।

गाय के लिए गाड़ी रुक सकती है तो लोगों के लिए क्यों नहीं : सिद्धू
रेल दुर्घटना की पूरी जिम्मेवारी रेल विभाग पर डालते हुए पंजाब के स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा है कि जब गाय के लिए गाड़ी को रोका जा सकता तो लोगों के लिए क्यों नहीं? उन्होंने कहा कि फाटक मैन ने गाड़ी के चालक को क्लीयरेंस कैसे दी? आयोजन हर साल होता है तो रेलवे ने सावधानी क्यों नहीं बरती?

आयोजकों पर केस दर्ज हो : श्वेत मलिक
भारतीय जनता पार्टी के पंजाब प्रदेश अध्यक्ष व राज्यसभा सदस्य श्वेत मलिक ने राज्य सरकार से मांग की है कि दशहरा आयोजकों ने नियमों का घोर उल्लंघन किया है और इसी के चलते उनके खिलाफ केस दर्ज किया जाए। श्री मलिक ने बताया कि समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की धर्मपत्नी नवजोत कौर सिद्धू उपस्थित थीं और उनका यूं मौके से भाग जाना अशोभनीय व अपराधपूर्ण कार्य है।

पीडि़त परिवारों को गोद लेंगे : श्रीमती सिद्धू
पूर्व संसदीय सचिव नवजोत कौर सिद्धू ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को गलत बताते हुए कहा कि उनके घर जाने के बाद ही उन्हें दुर्घटना की जानकारी मिली। जानकारी मिलते ही वह अस्पताल पहुंची और राहत एवं बचाव कार्यों में जुट गईं और आधी रात तक अस्पताल में ही रहीं। उन्होंने कहा कि वे पीडि़त परिवारों को गोद लेंगे और उनकी पूरी देखभाल करेंगे।
पीडि़तों को कराहते छोड़ मुख्यमंत्री का विदेश जाना शर्मनाक : चुग
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के दुर्घटना के बीच ही इस्राईल दौरे पर जाने को शर्मनाक बताते हुए भाजपा के राष्ट्रीय सचिव श्री तरुण चुग ने कहा कि संकटकाल में किसी भी राज्य के अध्यक्ष का अपने लोगों के बीच रहना आवश्यक है। मुख्यमंत्री या राज्य अध्यक्ष की अनुपस्थिती में राहत, बचाव एवं पुुनर्वास कार्य प्रभावित हो सकते हैं। अपने लोगों को चीखते-चिल्लाते देख कोई गैर-जिम्मेवार नेता ही विदेश जा सकता है। उन्होंने राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर भी प्रश्नचिन्ह लगाए हैं।

न प्रचार न फोटो, स्वयंसेवक अभी तक जुटे हैं बचाव कार्य में
दुर्घटना का यह दुखद व शर्मनाक पक्ष है कि इसको लेकर राजनीतिक दलों में फोटोसत्र चल रहा है और खूब ब्यानबाजी हो रही है परंतु इन सभी प्रपंचों के बीच बिना प्रचार व प्रशंसा की इच्छा से विरक्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक दुर्घटना से लेकर अभी तक राहत एवं बचाव कार्य में लगे हैं। अमृतसर महानगर के कार्यवाह श्री कंवल कपूर को ज्यों ही दुर्घटना की सूचना मिली उन्होंने तत्काल अपनी टीम को सक्रिय कर दिया। दुर्घटनास्थल  अमृतसर के शिवाला नगर में स्थित है वहां के नगर कार्यवाह श्री रमेश कुमार, विभाग प्रचारक श्री अक्षय कुमार, महानगर सह कार्यवाह श्री अरुणजीत, प्रचार प्रमुख श्री सुरेंद्र कुमार के नेतृत्व में चालीस खूह वाली शाखा के 50 और पूरे महानगर से लगभग सवा सौ स्वयंसेवक मौके पर पहुंच गए। तत्काल राहत एवं बचाव कार्य चलाने के लिए स्वयंसेवकों को तीन टोलियों में बांटा गया। इन टीमों को रामबाग सिविलि अस्पताल, श्री गुरु नानक सिविलि अस्पताल मजीठा रोड, सिविल अस्पताल अवालेयांवाला को भेजा गया। स्वयंसेवकों ने जहां घायलों को अस्पताल पहुंचाया वहीं उनके व उनके परिजनों के लिए चाय-पानी की भी व्यवस्था की। खून के लिए रक्तदान हेतु स्वयंसेवकों की पंक्तियां लग गईं। इस बीच प्रांत प्रचार श्री प्रमोद कुमार भी मौके पर पहुंचे जिनके नेतृत्व में सारी रात राहत एवं बचाव कार्य चलता रहा। सेवा भारती की ओर से अस्पताल में मरीजों के लिए दवाई व नाश्ते पानी की व्यवस्था करवाई गई।
महानगर कार्यवाह श्री कंवलजीत ने बताया कि पीडि़त परिवारों के  लिए दीर्घगामी राहत योजना चलाई जा रही है जिसके लिए समिति का गठन किया गया है। यह समिति पीडि़त परिवारों के लिए जनसहयोग से आर्थिक सहायता, सरकारी सहायता के लिए दस्तावेज पूरे करवाने, सरकारी औपचारिकताएं पूरी करवाने का काम करेगी। पीडि़त परिवारों की गलीशह पालकों को जिम्मेवारी सौंपी जाएगी ताकि भविष्य में इन परिवारों की सहायता की जा सके। इस कार्य के लिए संघ ने अस्थाई तौर पर एक कार्यालय भी स्थापित किया है।
राहत एवं बचाव कार्य में शाह सतनाम जी ग्रीन एस वैलफेयर सोसाइटी, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति, खालसा एड सहित अनेक सामाजिक, धार्मिक संगठन भी भरपूर सहयोग कर रहे हैं।


- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
पंजाब।

कांग्रेस और खालिस्तान में गर्भनाल का रिश्ता

माँ और सन्तान के बीच गर्भनाल का रिश्ता ही ऐसा होता है, कि प्रसव के बाद शरीर अलग होने के बावजूद भी आत्मीयता बनी रहती है। सन्तान को पीड़ा हो त...