देश की राजनीति में यह आम रिवायत रही है कि कोई बड़ा नेता किसी प्रदेश में जाता है तो वहां की वेशभुषा धारण कर वहां की संस्कृति के प्रति सम्मान प्रकट करता है। पंजाब में भी समय-समय पर बड़े नेता व राजनीतिज्ञ आते रहे और पंजाबियों की आन,बान और शान की प्रतीक दस्तार को अपने शीष पर सजाते रहे हैं। वैसे तो यह परंपरा तो कईयों ने निभाई है परंतु अपने सिर पर रखी दस्तार को अपने कामों से उचित सम्मान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ही देते दिखाई दे रहे हैं। विषय चाहे 1984 के सिख दंगा पीडि़तों को न्याय दिलवाने का रहा हो या श्री करतारपुर साहिब गलियारे का या सिख गुरु साहिबानों के जीवन से जुड़े एतिहासिक पर्वों के आयोजन व यहां के भूमिपुत्र किसानों का साथ देने या फिर विकास का मोदी ने हर समय पंजाब, पंजाबियों व पंजाबियत का साथ दिया है।
साल 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश के विभिन्न हिस्सों विशेषक दिल्ली में जिस तरह से सिख समुदाय पर अत्याचार हुए वह देश के इतिहास का काला अध्याय हैं। इन दंगों में तीन हजार निर्दोष लोग मारे गए और असंख्य घायल हुए। दंगों में कितनी संपत्ति स्वाह हुई या लूटी गई इसका शायद ही सभी सही-सही अनुमान लगे। हजारों दंगा पीडि़त सिख परिवारों को दिल्ली से पंजाब सहित देश के विभिन्न हिस्सों में पलायन को विवश होना पड़ा। आहत सिख समाज शायद इन आघातों को तो सह लेता परंतु घायल समाज के रिसते जख्मों पर उस समय के राजनीतिक नेतृत्व ने यह कहते हुए नमक लगाने का पाप किया कि ‘जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है।’ संविधान व देश की एकता-अखण्डता, भाईचारे की शपथ ले सत्तारूढ़ होती रही कांग्रेस के नेतृत्व वाली विभिन्न सरकारों ने अपनी पूरी ताकत इस प्रयास में लगाई कि किस प्रकार दंगा पीडि़तों के लिए न्यायिक प्रक्रिया को अटकाया, लटकाया, भटकाया और झटकाया जाए। इन दंगों को कम कर आंकने का भरसक प्रयास हुआ परंतु भाजपा के शीर्षस्थ नेता श्री अटलबिहारी वाजपेयी द्वारा सदन में मुद्दा उठाने के बाद न केवल इन दंगों में मारे गए लोगों, घायलों व फूंकी गई संपत्ति की सही जानकारी देश को प्राप्त हो पाई बल्कि चाहे दिखावे के लिए ही सही तत्कालीन कांग्रेस सरकार को कुछ कार्रवाई करनी पड़ी। धरती हिलने वाले गैर-जिम्मेवाराना ब्यान की प्रतिक्रिया में श्री वाजपेयी ने कहा था कि ‘पेड़ गिरने से धरती नहीं हिलती बल्कि धरती हिलने से पेड़ गिरते हैं।’ उनकी भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई और 2014 के लोकसभा चुनाव में ऐसी धरती हिली कि बड़े-बड़े राजवंशीय पेड़ धाराशाही होते दिखे। दंभी कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 125 करोड़ भारतवासियों की आकांक्षाओं की पूर्ति करने वाली सरकार का गठन हुआ।
देश की कमान संभालने के बाद साल 2016 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इन सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया। एसआईटी गठन के बाद बंद पड़े केसों को दोबारा खोला गया, फाइलों को खंगाला गया और अपराधियों के गिरेबान तक कानून के हाथ पहुंचने लगे। लगभग दो साल बाद ही इन प्रयासों के सार्थक पारिणाम सबके सामने आने लगे हैं। हाल ही में नवंबर 2018 में दिल्ली की अदालत ने सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में दोषी यशपाल सिंह को सजा-ए-मौत और नरेश सहरावत को उम्रकैद की सजा सुनाई। 34 साल पुराने सिख दंगों से जुड़े किसी मामले में पहली बार किसी दोषी को मौत की सजा सुनाई गई। इस घटना के अगले ही महीने कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता सज्जन कुमार, पूर्व कांग्रेस पार्षद बलवान खोखर, गिरधारी लाल और सेवानिवृत कैप्टन भागमल को दोषी करार दिया गया। बाद में सज्जन कुमार को उम्रकैद व अन्यों को दस-दस साल की सजा सुनाई गई। न्याय के इतिहास में मोदी सरकार ने नई इबारत लिखी और लगभग नाउम्मीद हो चुके सिख दंगा पीडि़तों के जख्मों पर स्नेह, अपनत्व व न्याय का मरहम लगाया। इन दंगों से जुड़े अन्य केसों की सुनावाई भी बड़ी तेजी से चल रही है और बाकी दंगा पीडि़तों में भी विश्वास पैदा हुआ है कि भारतीय न्यायिक प्रणाली में देर भले है परंतु अंधेर नहीं। इन नाउम्मीद चेहरों पर जो उम्मीद का संतोष झलका है इसका श्रेय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की सरकार को ही जाता है।
देश के विभाजन के समय बंटवारे से सर्वाधिक पंजाब के लोग ही पीडि़त हुए। बंटवारे में न केवल लाखों लोग मारे गए बल्कि लाखों परिवारों को अपनी जमीन, जायदाद, कईयों को अपने परिजन वहां छोड़ कर विस्थापित होना पड़ा। विभाजन की पीड़ा का यही अंत नहीं होता, सबकुछ छुटने के साथ-साथ पीछे रह गए पंजाबियों के प्राणप्रिय धर्मस्थान, सिख गुरुओं के जीवन से जुड़े अनेक एतिहासिक गुरुद्वारे। इन गुरुद्वारों में प्रमुख नाम है श्री करतारपुर साहिब का जो पाकिस्तान के नारोवाल जिले में है। यह जगह लाहौर से 120 किलोमीटर दूर है जहां पर आज गुरुद्वारा है वहीं पर 22 सितंबर, 1539 को गुरुनानक देवजी ज्योति ज्योत समाए थे। गुरु जी ने इस जगह पर अपनी जिंदगी के 18 वर्ष बिताए। सिर्फ तीन किलोमीटर की दूरी यह पावन स्थल रावी नदी के करीब स्थित है और डेरा साहिब रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी चार किलोमीटर है। यह गुरुद्वारा भारत-पाकिस्तान सीमा से सिर्फ तीन किलोमीटर दूर है। गुरुद्वारा साहिब भारत की तरफ से साफ नजर आता है। वर्तमान में सीमा पर लगी दूरबीन से श्रद्धालु इस गुरुद्वारा साहिब के दर्शन दीदार करते हैं। सिख समाज अपने धर्मस्थलों के बिछुडऩे का दुख भूला नहीं और आने वाली पीढिय़ों को भी यह याद रहे इसके लिए ‘हे अकाल पुरख आपणे पंथ दे सदा सहाई दातार जीओ! श्री ननकाना साहिब ते होर गुरद्वारेयां, गुरधामां दे, जिनां तों पंथ नूं विछोड़ेया गया है, खुले दर्शन दीदार ते सेवा संभाल दा दान खालसा जी नूं बख्शो’ की अकांक्षा को दैनिक अरदास में शामिल कर लिया। अकाल पुरख ने पंजाबियों की यह अरदास सुनी और पंथ की सेवा करने का सौभाग्य श्री नरेंद्र मोदी को सुपुर्द किया जिन्होने बरसों से लटके आ रहे इस मुद्दे को अंजाम तक पहुँचाया।
श्री गुरु नानक देव जी के 550 वें प्रकाश पर्व के इस साल में मोदी सरकार द्वारा इस समारोह को देश सहित दुनिया भर में पूरी श्रद्धा से मनाने का निर्णय लिया गया। कार्यक्रमों के तहत डाक टिकट, सिक्के जारी किए जाएंगे और नए साहित्य का सृजन किया जाएगा ताकि गुरुजी की शिक्षाएं और सिद्धांत पूरी दुनिया में फैल सकें। गुरुजी के जीवन से जुड़े सुल्तानपुर लोधी शहर में मुख्य कार्यक्रम आयोजित होंगे और इस नगर को स्मार्ट सिटी में शामिल किया गया। दुनिया भर में फैले भारतीय दूतावासों में भी यह समारोह आयोजित होंगे जिसमें दुनिया भर के विद्वान, लेखक, साहित्यकार, राजनेता, अनुसंधानकर्ता शामिल होंगे। सबसे बड़ी बात श्रद्धालुओं के लिए करतारपुर साहिब गलियारे का निर्माण रही, जिसका 26 नवंबर को उपराष्ट्रपति श्री वैंकेयानायडू के नेतृत्व में शिलान्यास किया जा चुका है। अब जल्द ही श्रद्धालु करतारपुर साहिब जाकर गुरुघर के खुले दर्शन दीदार व सेवा कर पाएंगे। इस गलियारे में वह सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाने की योजना है जो किसी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर यात्रियों को उपलब्ध रहती हैं। इस महान सेवा को निभा कर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने न केवल इतिहास बल्कि समूह पंजाबियों के दिलों में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित करवा लिया है। इसी तरह श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हाल ही में पूरे देशभर में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के जन्म की 350वीं जयंती मनाई गई। सार भर चले कार्यक्रमों के दौरान अनेक एतिहासिक समारोह आयोजित किए गए जिनमें गुरुजी के जन्मस्थान श्री पटना साहिब में आयोजित हुआ कार्यक्रम विशेष वर्णननीय है।
पंजाब वीरों और भूमिपुत्रों की धरती है और यहां का जवान व किसान पूरी दुनिया में अपने कर्म तथा शौर्य के बल पर विख्यात है। पूरी दुनिया के साथ-साथ जवानों और किसानों का हाथ थामा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने। देश की स्वतंत्रता के बाद से सेना वन रैंक वन पेंशन की मांग करती आ रही थी। आजादी के छह-सात दशक बीत जाने के बाद भी जवानों को सिवाय राजनीतिक धोखे के कुछ नहीं मिला परंतु प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सरकार में आते ही अगस्त 2015 में वन रैंक वन पेंशन योजना को लागू कर दिया। जहां तक किसानों का सवाल है किसान सोयल हैल्थ कार्ड, फसल बीमा योजना, गोबरधन योजना, निर्बाध यूरिया की आपूर्ति, निर्विघ्न बिजली की सप्लाई, रबि व खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों में आशातीत वृद्धि, पशुधन योजना सहित अनेक किसान व कृषि हितैषी योजनाएं ऐसी चलाई गई हैं जिससे पूरे देश सहित पंजाब के किसानों ने राहत की सांस ली है। श्री मोदी की योजना साल 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने की है जिस पर वे बड़ी तेजी से काम कर रहे हैं और इस योजना के परिणाम दिखाई भी देेने लगे हैं। पंजाब में ढांचागत विकास में मोदी सरकार की विशेष भूमिका रही है। उनके प्रयासों से ही राज्य में राष्ट्रीय राजमार्गों, बड़े-बड़े फ्लाइओवरों, पुलों, सडक़ों, ग्रामीण सडक़ों का निर्माण संभव हो पाया है। वर्तमान केंद्र सरकार के प्रयासों से ही अमृतसर में इंडियन इंस्टीच्यूट आफ मैनेजमेंट, बठिंडा में एम्स, फिरोजपुर में पीजीआई सेटेलाइट सेंटर जैसी दीर्घकालिक योजनाएं पंजाब में आनी संभव हुईं। इसके अतिरिक्त भारत सरकार 1919 में हुई जलियांवाला दुखांत की 100वीं सालगिरह मनाने जा रही है जिससे देशभर में देशभक्तिपूर्ण कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। पंजाब के व्यापार,उद्योगों के उत्थान में केंद्र सरकार विशेष रूप से सक्रिय है। पूरे देश के लिए स्टै्ंड अप योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री श्री मोदी लुधियाना की सरजमीं से कर चुके हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को पंजाब दा सच्चा मित्र ' कहना कोई अतिशयोक्ति न होगी।
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