Wednesday, 19 February 2020

शिवरात्रि का सन्देश, सन्युक्त परिवार व समरस समाज



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत ने हाल ही में एक जगह अपने प्रबोधन में कहा है कि शिक्षित समाज में तलाक की प्रवृति अधिक देखने को मिल रही है। हमारी शिक्षा पद्धति समाज को स्वावलम्बी तो बना रही है परन्तु कहीं न कहीं घरों में प्रेम, सहिष्णुता, सहनशीलता और समरसता खोती जा रही है। हाल ही में एक समाचार सुनने को मिला कि शादी के तीसरे दिन ही पति-पत्नी में तलाक हो गया। कारण बताया कि नवब्याहताओं को एक-दूसरे की आदतें पसन्द नहीं आईं। दोनों के निजी अहं इतने भारी पड़ गए कि सात दिनों का रिश्ता सात दिन भी नहीं चल पाया। सन्तान द्वारा वृद्ध माता-पिता के साथ दुर्रव्यवहार की घटनाएं आज किसी को चौंकाती नहीं, क्योंकि ये घर-घर की कहानी हो चुकी। अभी चण्डीगढ़ में एक महिला ने प्रेम सम्बन्धों में अन्धी हो कर अपने दो दूधमुंहे बच्चों की हत्या कर दी। माता भी कुमाता हो गई। सामाजिक स्तर पर भी देखने को मिलता है कि जातिवाद व छूआछूत के चलते किस तरह अत्याचारों की घटनाएं देखने,सुनने व पढऩे को मिलती रहती हैं। आज महाशिवरात्रि है जो सन्देश देती है कि हम किस तरह परिवार, हमारे परिवार किस तरह मोहल्ले व मोहल्ले किस भान्ति नगर और देश-प्रदेश के साथ मिलजुल कर रह सकते हैं।

बहुत शिक्षाप्रद है भगवान शिव का परिवार। परिवार में जितने सदस्य उतनी रुचियां, सभी की अलग-अलग प्रकृति, विभिन्न प्रकार के व्यवहार परन्तु इनके बावजूद सभी का एक छत के नीचे रहना समाज को बहुत कुछ सिखाता है। देखें तो शिव परिवार में शामिल हैं माँ पार्वती, विनायक जी, भगवान कार्तिकेय, शिव के गले में फनियर नाग, जटा में गंगा व चन्द्रदेव, गणेश जी का वाहन मूषक, कार्तिकेय का वाहन म्यूर, शिव का वाहन नन्दी, पार्वती का वाहन सिंह। इनमें प्राकृतिक रूप से सांप दुश्मन है चूहे का तो मोर की शत्रुता है भुजंग से। इसी तरह सिंह का आहार है बैल, तो शिव की जटा में अग्निपुंज चन्द्रदेव व गंगा विभिन्न तासीर के हैं। इतने विरोधाभास के बाद भी सभी न केवल एक परिवार के सदस्य हैं बल्कि कभी सुनने में नहीं आया कि इस परिवार में कभी फूट पड़ी हो। एक दूसरे के दुश्मन होते हुए आपस में मिलजुल कर रहते हैं। परिवार में रहन-सहन और खानपान में काफी विषमता होने के बावजूद भी सभी प्रेम, एकता और भाईचारे की भावना से रहते हैं। सामाजिक तौर पर देखें तो परिवारों में भी यह जरूरी है अलग-अलग विचारों, अभिरूचियों, स्वाभावों के बावजूद हम लोग हिलमिल कर रहें अपनी सोच दूसरों पर न थोपी जाये और सबसे खास बात यह कि मुखिया और अन्य बड़े सदस्यों के गले में गरल थामें रखने का धीरज और सबको साथ लेकर चलने की आदत हो तभी संयुक्त परिवार चल सकते हैं। शिव परिवार के विभिन्न विचारों वाले मोतियों को एक माला में पिरोते हैं भगवान शिव जैसे मजबूत सूत्रधार। शिव जिनकी अपनी निजी महत्त्वाकांक्षा नहीं, परिवार की रुचि ही उनको मन भाती है। वो दूसरे के लिए विष पीने को तैयार हैं, स्वभाव इतना सरल कि भस्मासुर तक को वरदान दे दे और क्रोध इतना कि तीसरा नेत्र खोले तो तीन लोक भस्मीभूत हो जाएं। शिव अपने परिवार के सभी सुख-सुविधाएं उपलब्ध करवाते हैं परन्तु खुद मृगचरम में जीवन व्यतीत करते, रूखा-सूखा खा कर गुजारा करते हैं। मीठे फल परिवार को और भांग, धतूरा व आक का सेवन खुद करते हैं। परिवार के सदस्यों की इतनी चिन्ता की अपनी शादी में रूठ जाने पर नन्दी बैल की भी लिलावरी करते दिखते हैं। परिवार के मुखिया को शिव की भान्ति जीवन जीने की कला आनी चाहिए। वह अपने परिवार की इच्छा पर अपनी इच्छा हावी न होने दे, संकट आए तो उससे निपटने को तैयार रहे और सभी की सुने-माने परन्तु व्यवहार धर्मानुसार करे।

शिव परिवार हमारे परिवार तक ही सीमित नहीं होना चाहिए वरन हमारे देश में विभिन्न धर्मों, पन्थों, सम्प्रदायों, जाति और विविधताओं के बीच एकता व सन्तुलन शिव परिवार की तरह जरूरी है। समाज में अलग-अलग आस्थाओं, विभिन्न रुचियों, स्वभाव, गुण-दोष के लोग निवास करते हैं। हमें किसी पर अपनी मर्जी या विचार थोपने का प्रयास नहीं करना चाहिए बल्कि इन विविधताओं को प्रेम के धागे में पिरो कर एक ऐसे कण्ठाहार का निर्माण करना चाहिए जो देश व समाज की शोभा बढ़ाए। सर्वमान्य और सर्वोचित निर्णय ठण्डे दिमाग से ही लिये जा सकते हैं, यह शिव परिवार बताता है। महाशिव के मस्तक पर चन्द्रमा और गंगा का होना इस बात का संकेत है कि मस्तिष्क को सदा शीतल रखो। चन्द्रमा और गंगाजल दोनों में असीम शीतलता है। घर हमेशां ठण्डे दिमाग से ही चलते हैं। गणेश जी के शरीर से बड़ा सिर बताता है कि शक्ति से बुद्धि बड़ी, उनके बड़े कान कहते हैं कि सुनने की शक्ति विकसित करो।

सन्युक्त परिवार भारतीय संस्कृति के आधार हैं। संस्कृति का विकास पुस्तकें पढऩे या शिक्षा के पाठ्यक्रमों से नहीं बल्कि परिवारों में होता है। बच्चे को जीवन जीने का ढंग दादा-दादी की वह सरल-सुन्दर कहानियां सिखाती हैं जो रात के समय एक ही खाट पर सोते हुए सुनाई जाती हैं। होली-दीवाली के दिन घर में होने वाली चहल-पहल व पकने वाले पकवान, होने वाले पूजा-पाठ को देख कर बच्चे रामायण व महाभारत की कथाएं कब कण्ठस्थ कर जाते हैं पता भी नहीं चलता। परिवार ही वह जगह है जहां व्यक्ति को जीवन जीने की हर सुविधा, अवसर व साधन मिलते हैं। हमारे समाज में जो सामाजिक आचार-विहार प्रचलित है, जिसे हम भारतीय संस्कृति कहते हैं वह संयुक्त परिवारों की ही देन है।

आजकल महंगाई व आर्थिक परेशानी का रोना लगभग हर परिवार में रोया जाता है परन्तु भारतीय अर्थशास्त्र कहता है कि सन्युक्त परिवार में रह कर हम इन परेशानियों से आसानी से पार पा सकते हैं। अकसर कहा जाता है कि चाहे चार व्यक्तियों की खाना बने या छह का रसोई का खर्च लगभग वही रहता है परन्तु अगर छह लोगों की अलग-अलग रसोई चले तो कुल मिला कर खर्च डेढ़ से दो गुना तक हो जाता है। सन्युक्त परिवारों में देखने में आता है कि परिवार का कोई सदस्य इतना धन अर्जित नहीं कर पाता जितना कि दूसरे परन्तु सांझे चूल्हे के चलते उसके बच्चे भी पल जाते हैं और उसका जीवन आसानी से कट  जाता है। ऐसे परिवार में महिलाएं व बच्चे भी एकल व बिखरे परिवारों की तुलना में अधिक सुरक्षा महसूस करते हैं। मानव को भावनात्मक सुरक्षा भी सांझे परिवारों में ही मिलती है। एकल परिवारों में जहां कामकाजी माओं के बच्चे मातृत्व प्रेम से अतृप्त रह जाते हैं वहीं सांझे परिवार में बूआ-दादी, चाची-ताई के रूप में बच्चे को एक से अधिक माओं का प्यार नसीब होता है।

इन सब बातों के इतर यह भी व्यहारिक बात भी है कि परिवार बढ़ जाने पर इन्सान क्या करे ? तो सरल तरीका है कि परिवार का विस्तार हो। ज्ञात रहे कि विभाजन व विस्तार ऊपर से चाहे एक दिखें परन्तु इनमें जमीन आसमान का अन्तर है। यह व्यवहारिक है कि परिवार में दूसरी या तीसरी पीढ़ी का एकसाथ रहना मुश्किल हो जाता है और निवास के साथ-साथ व्यवसाय की दृष्टि से भी अलग सोचना पड़ता है परन्तु यह काम प्रेम व स्नेह के आधार पर हो न कि झगड़े के। झगड़ा कर परिवार से अलग होना विभाजन है और प्रेम से विलग होना विस्तार। विभाजन परिवार में ही दुश्मनी के बीज बोता है और विस्तार के बाद अलग होने के बाद भी उस परिवार के सदस्यों में एकात्मता बनी रहती है। बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि जहां प्यार है वहीं सुख-शान्ति है और जहां शान्ति है वहीं समृद्धि। इसी तरह सन्युक्त परिवार हमारी उन्नति और हमारा विकास समाज के विकास और इसी तरह समाज का उत्थान देश के ऊंचा उठने से जुड़ा है। शिवरात्रि आपके परिवार में एकता, प्रेम, स्नेह, त्याग की भावना का संचार करे और आपका कुटुम्ब समाज व देश की उन्नति का पथप्रदर्शक बने इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, हर-हर महादेव।
- राकेश सैन
सम्पर्क - 77106-55605

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