जलियांवाला बाग नरसन्हार के 100 वीं वर्षगांठ पर एंग्लिकन चर्च के सबसे वरिष्ठ पादरी और केन्टबरी के आर्चबिशप जस्टिन वेल्बी ने यहां हुए नरसन्हार के लिए माफी मांगी। कुछ समय पहले पोप फ्रान्सिस ने अमेरिका और लैटिन अमेरिका में अपनी यात्रा के दौरान उपनिवेश काल में अमेरिका में मूल निवासियों पर किए अत्याचारों में रोमन कैथोलिक चर्च की भूमिका के लिए माफी मांगी। उन्होंने कहा, कुछ लोगों की यह बात सही है कि पोप जब उपनिवेशवाद की बात करते हैं तो चर्च की करतूतों को नजरन्दाज कर देते हैं, लेकिन मैं बहुत खेदपूर्वक आप से कह रहा हूं कि ईश्वर के नाम पर अमेरिका के मूलनिवासियों के खिलाफ कई गम्भीर पाप किए गए। मैं विनम्रतापूर्वक माफी मांगता हूं। इससे पहले लैटिन अमेरिका के बोलिविया में भी पोप ने इसी तरह माफी मांगी थी। देश के उत्तर पूर्व में पिछले लगभग दो दशकों से अधिक समय से चली आरही ब्रू-रियांग की समस्या सुलझ गई। 16 जनवरी को नई दिल्ली में केंद्र सरकार, त्रिपुरा और मिजोरम सरकार तथा ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों के बीच एक समझौता हुआ। इस समझौते के अनुसार लगभग 34000 ब्रू शरणार्थियों को त्रिपुरा में ही बसाया जाएगा। उन्हें सीधे सरकारी तन्त्र से जोड़कर राशन, यातायात, शिक्षा आदि की सुविधा प्रदान कर उनके पुनर्वास में सहायता प्रदान की जाएगी। इस समस्या के हल होने से देशवासियों विशेषकर कई सालों से निर्वासित हो कर राहत कैम्पों में जीवन व्यतीत कर रहे हजारों लोगों ने राहत की सांस ली है परन्तु प्रश्न पैदा होता है कि क्या चर्च कभी रियांग जनजाति पर हुए अत्याचारों के लिए माफी मांगेगा ? अगर चर्च सदाश्यता दिखाती है तो यह केवल उत्तर-पूर्व ही नहीं बल्कि देशभर में सामाजिक व साम्प्रदायिक सौहार्द स्थापित करने की दिशा में मीलपत्थर साबित होगी।
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के मूल निवासी वैष्णव रियांग समुदाय जो मुख्यत: त्रिपुरा, मिजोरम, असम तथा बांग्लादेश के चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र में रहते हैं धर्मांतरणवादी चर्च की नीतियों से पीडि़त रहे हैं। मिजोरम में इसाई मिजो बहुसंख्यक हैं अत: अपना सर्वाधिपत्य स्थापित करने के लिए सभी को ईसाई बनाना चाहते हैं। रियांग अपनी संस्कृति के उपासक तथा धर्म में अटूट विश्वास रखने वाले, अत: वे इसाईकरण के लिए तैयार नहीं हुए। दोनों की संस्कृति, भाषा, वेशभूषा तथा मान्यताओं में अंतर होने के कारण मिजो ने रियांग को ब्रू नाम दिया और यह जनधारणा विकसित की कि ब्रू यहाँ के मूल निवासी नहीं हंै। मिजोकरण, ईसाईकरण तथा चर्च प्रायोजित धर्मपरिवर्तन को स्वीकार न करने के कारण मिजो इनके खिलाफ रहते रहे हैं और दोनों में तनाव रहता है। सुनियोजित भेदभावपूर्ण नीति का प्रयोग कर रियांग लोगों को न केवल अलग-थलग कर दिया गया, बल्कि उन्हें जंगलों से लकड़ी व राशन से भी वंचित कर दिया और बच्चों को स्कूलों से बाहर रखा। मीजो के रूप में राज्य प्रायोजित हिन्सा का परिणाम यह रहा कि रियांग को मिजोरम से विस्थापित होकर त्रिपुरा तथा अन्य राज्यों में शिविरों में शरण लेनी पड़ी।
ब्रू और मिजो के बीच संघर्ष का पुराना इतिहास रहा है। 1990 के दशक में रियांग ने अपने ऐतिहासिक उत्पीडऩ और राजनीतिक बहिष्कार को व्यक्त करते हुए, अपनी तीन मांगे रखीं-ऑल इंडिया रेडियो आइजॉल में रियांग-ब्रू कार्यक्रम शामिल करना, सरकारी सेवाओं में आरक्षण व विधानसभा में प्रतिनिधियों का नामान्कन और रियांग-ब्रू के लिए एक स्वायत्त जिला परिषद् (एडीसी) का निर्माण, लेकिन एडीसी के लिए उनकी माँग अनसुनी हो गई। वर्ष 1995 में ब्रू समुदाय द्वारा स्वायत्त जिला परिषद् की माँग और चुनावों में भागीदारी के अन्य मुद्दों पर ब्रू और मिजो के बीच तनाव हो गया। सितम्बर 1997 में, ब्रू नैशनल यूनियन (बीएनयू) ने मिजोरम के पश्चिमी पट्टी में सन्विधान की छठी अनुसूची के अनुसार रियांग के लिए उसी स्वायत्त जिला परिषद् की माँग करने के लिए एक प्रस्ताव रखा। इसके खिलाफ मिजो की प्रतिक्रिया ने बड़े पैमाने पर हिन्सा को भड़का दिया। सरकार ने उनकी माँगों को दबाने के लिए उनके खिलाफ बड़े पैमाने पर हिन्सा की। मिजो, नौकरशाही, पुलिस और अन्य शक्तिशाली समूह रियांगों को स्थायी रूप से नष्ट करने को आतुर थे। आपसी झड़प के बाद 'यंग मिजो एसोसिएशन' तथा 'मिजो स्टूडेंट्स एसोसिएशन' ने यह माँग रखी कि ब्रू लोगों के नाम राज्य की मतदाता सूची से हटाए जाएं क्योंकि वे मूल रूप से मिजोरम के निवासी नहीं हैं। इसके बाद ब्रू समुदाय द्वारा समर्थित समूह ब्रू नेशनल लिब्रेशन फ्रन्ट तथा एक राजनीतिक संगठन के नेतृत्व में वर्ष 1997 में मिजो से हिन्सक संघर्ष हुआ। परिणामत: वर्ष 1997 में नस्ली तनाव के कारण ब्रू-रियांग समाज को मिजोरम छोड़कर त्रिपुरा में शरण लेने पर मजबूर होना पड़ा। इन शरणार्थियों को उत्तरी त्रिपुरा के कंचनपुर में अस्थायी कैम्पों में रखा गया था। उस समय लगभग 37000 ब्रू लोगों को मिजोरम छोडऩा पड़ा।
वर्ष 1997 में विस्थापित के बाद से ही भारत सरकार ब्रू-रियांग परिवारों के स्थायी पुनर्वास के प्रयास करती रही है, लेकिन समस्या का कोई हल नहीं निकला। 3 जुलाई, 2018 को ब्रू-रियांग समुदाय के प्रतिनिधियों, त्रिपुरा और मिजोरम की राज्य सरकारों एवं केन्द्र सरकार के बीच इस समुदाय के पुनर्वास के लिये एक समझौता किया गया था, जिसके बाद ब्रू-रियांग परिवारों को दी जाने वाली सहायता में बढ़ोतरी की गई। इस समझौते के तहत 5260 ब्रू परिवारों के 32876 लोगों के लिए 435 करोड़ रुपए का राहत पैकेज दिया गया। बच्चों की पढ़ाई के लिये एकलव्य स्कूल भी प्रस्तावित किये गए। ब्रू परिवारों को मिजोरम में जाति एवं निवास प्रमाणपत्र के साथ वोट डालने का भी अधिकार दिया जाना था। इस समझौते के बाद वर्ष 2018-19 में 328 परिवारों के 1369 लोगों को त्रिपुरा से मिजोरम वापस लाया गया, परन्तु यह समझौता पूर्ण रूप से लागू नहीं हो सका क्योंकि अधिकतर ब्रू परिवारों ने मिजोरम वापस जाने से इनकार कर दिया। लेकिन इस साल 16 जनवरी को ब्रू-रियांग समझौते ने दो दशकों पुराने शरणार्थी संकट को समाप्त कर दिया, जिसके कारण मिजोरम में 34000 से अधिक शरणार्थियों को मदद और राहत मिली है। मोदी सरकार ब्रू-रियांग परिवारों को पक्के निवास, सभी सरकारी सुविधाएं, मकान बनाने के लिए धनराशि व एक निर्धारित धनराशि सावधि के रूप में बैंकों में जमा करवाने जा रही है।
देश के उत्तर-पूर्व इलाकों में चर्च का जबरदस्त प्रभाव है और इस पर यह भी आरोप लगते रहे हैं कि वह गाहे-बगाहे वहां साम, दाम, दण्ड, भेद जैसे सभी तरह के तरीके अपना कर जनजातीय समाज का धर्मांतरण करवाती रही है। चर्च की धर्मांतरणवादी नीति के चलते ही ब्रू-रियांग जनजाति के हजारों लोगों को दो-अढ़ाई दशकों से अपने घरों से दूर अस्थाई शिविरों में रहना पड़ा। अब विस्थापितों के लिए घोषित समझौते से उन्हें भौतिक रूप से तो राहत मिली है परन्तु मानसिक रूप से तभी उनके जख्मों पर मरहम लगेगी जब चर्च अपनी गलती के लिए क्षमायाचना करे और भविष्य में ऐसी गलती से तौबा करे। चर्च अगर ऐसा कर पाती है तो सूर्योदय के इलाके पूर्वोत्तर में शांति व साम्प्रदायिक सौहार्द के नए युग की शुरुआत होगी।
- राकेश सैन
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