Wednesday, 24 June 2020

25 जून, 1989 का वह गोलीकांड, स्वयंसेवकों के बलिदान ने हिंदू-सिख एकता को दिया नवजीवन


मोगा शहर के इतिहास में 25 जून, 1989 का दिन एक ऐसा दिन आया जिसने दुनिया को दिखा दिया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किसी ओर ही मिट्टी का बना है। इस दिन नेहरू पार्क (अब शहीदी पार्क) में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा पर आतंकियों ने हमला कर 25 स्वयंसेवकों व नागरिकों को शहीद कर दिया। सुबह के समय चहल-पहल के दौरान हुई इस घटना के बाद एक दम हर तरफ मातम पसर गया, जिसने आंखों से यह मंजर देखा वह उसे आज तक नहीं भुला सका। यदि उक्त घटना का इतिहास पढ़ा जाये तो पढऩे वाला भी कांप उठता है। इस घटना बारे शहीद स्मार्क से जुड़े पदाधिकारी डॉ. राजेश पुरी बताते हैं कि आतंकवादियों ने संघ का ध्वज उतारने के लिए कहा था, पर स्वयंसेवकों ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया और उनको रोकने का यत्न किया था, पर किसी की बात न सुनते हुए आतंकवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग करनी शुरू कर दी थी, जिसमें 25 कीमती जानें गई थीं। इस घटना ने न केवल पंजाब में हिंदू-सिख एकता को नवजीवन दिया बल्कि आतंकवाद पर भी गहरी चोट की क्योंकि घटना के अगले ही दिन उस जगह दोबारा शाखा लगी जिससे आतंकियों के हौंसले पस्त हो गए और हिंदू-सिख एकता जीत गई।
25 जून, 1989 को अब शहीदी पार्क में रोजाना ही भारी तदाद में शहर निवासी सैर सपाटे के लिए आये थे। रोजाना की तरह उस दिन भी जहां शहरी पार्क में सैर का आनंद ले रहे थे, वहीं दूसरी तरफ आरएसएस स्वयंसेवकों की शाखा भी लगी हुई थी। इस दिन शहर की सभी शाखाएं नेहरू पार्क में एक जगह पर लगी थीं और संघ का एकत्रीकरण था। सुबह 6 बजे संघ का विचार शुरू हुआ तो अचानक 6.25 पर सभा को संबोधित कर रहे स्वयंसेवकों पर आतंकवादियों ने आकर हमला कर दिया, हर तरफ भगदड़ मच गई। गोलियों की बरसात रुकने के बाद हर तरफ खून का तालाब दिखाई दे रहा था। घायल स्वयंसेवक तड़प रहे थे। गोलियां लगने कारण कई सेवकों का शरीर भी बेजान हो गये और कईयों ने अस्पताल में जाकर अंतिम सांस ली। इस गोली कांड दौरान जहां 25 लोग शहीद हो गए, वहीं शाखा में शामिल लोगों के साथ कई आसपास के 31 के करीब लोग घायल भी हो गए थे। इस गोली कांड ने पूरे शहर को हिलाकर रख दिया था लेकिन फिर भी आरएसएस सेवकों ने हिम्मत नहीं छोड़ी और अगले ही दिन 26 जून, 1989 को फिर से शाखा लगाई। बाद में नेहरू पार्क का नाम बदल कर शहीदी पार्क कर दिया गया, जो आज देशभक्तों के लिए तीर्थस्थान बना हुआ है। 

जो शहीद हुए
इस गोली कांड में शहीद होने वालों में सर्वश्री लेखराज धवन, बाबू राम, भगवान दास, शिव दयाल, मदन गोयल, मदन मोहन, भगवान सिंह, गजानंद, अमन कुमार, ओमप्रकाश, सतीश कुमार, केसो राम, प्रभजोत सिंह, नीरज, मुनीश चौहान, जगदीश भगत, वेद प्रकाश पुरी, ओम प्रकाश और छिंदर कौर (पति-पत्नी), डिंपल, भगवान दास, पंडित दुर्गा दत्त, प्रह्लाद राय, जगतार राय सिंह, कुलवंत सिंह शामिल हैं। गोली कांड में प्रेम भूषण, राम लाल आहूजा, राम प्रकाश कांसल, बलवीर कोहली, राज कुमार, संजीव सिंगल, दीना नाथ, हंस राज, गुरबख्श राय गोयल, डॉ. विजय सिंगल, अमृत लाल बांसल, कृष्ण देव अग्रवाल, अजय गुप्ता, विनोद धमीजा, भजन सिंह, विद्या भूषण नागेश्वर राव, पवन गर्ग, गगन बेरी, राम प्रकाश, सतपाल सिंह कालड़ा, करमचंद औेर कुछ अन्य स्वयं सेवक घायल हुए थे। 

जब निहत्थे दंपति ने आतंकियों को ललकारा
इस कांड की मिली जानकारी अनुसार गोली कांड बाद छोटे गेट से भाग रहे आतंकवादियों को वहां मौजूद एक साहसी पति-पत्नी ओम प्रकाश और छिंदर कौर ने बड़े जोश से ललकारा और पकडऩे की कोशिश की पर एके-47 से हुई गोलीबारी ने उनको भी मौत की नींद सुला दिया और साथ ही आतंकवादियों को पकड़ते समय पास के घरों के पास खेल रहे 2-3 बच्चों में से डेढ़ साल की डिंपल को भी मौत ने अपनी तरफ खींच लिया। 

मौत का मंजर सामने होने के बावजूद भी डटे स्यवंसेवक
इस कांड को देखने वाले एक और जख्मी संघ वर्कर ने बताया कि जब सभा हो रही थी तो अचानक पिछले गेट से भागदौड़ की आवाज सुनाई दी तथा फिर संघ की कार्रवाई चला रहे वर्कर ने कहा कि देखो छोटे गेट से आतंकवादी आ गए हैं, यह सुनकर सभा में हाजिर निवासियों का ध्यान उस तरफ गया तथा सभी ने जोश से उनका सामना किया।

ध्वज न उतारने पर आतंकवादियों ने किया था फायर
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार आतंकवादियों ने आते ही सभा में संघ के पदाधिकारियों को आर.एस.एस. का ध्वज उतारने के लिए कहा लेकिन वहां मौजूद सीनियर पदाधिकारियों ने ऐसा करने से मना कर दिया तथा उनको रोकने का प्रयत्न किया लेकिन किसी की बात न सुनते हुए आतंकवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग करनी शुरू कर दी। 

10 साल की उम्र में देखा मौत का मंजर
10 साल की उम्र में गोलीकांड आंखों से देखने वाले एक नौजवान नितिन जैन ने बताया कि उनका घर शहीदी पार्क के बिल्कुल सामने था तथा रविवार का दिन होने के कारण वह सुबह पार्क में चला गया तथा जैसे ही आतंकवादियों ने धावा बोलकर गोलियां चलानी शुरू कीं तो वह धरती पर लेट गया तथा जब आतंकवादी भाग रहे थे तो सभी ने उनको पकडऩे की कोशिश की तथा मैं भी इसको खेल समझकर भागने लगा, तो एक व्यक्ति ने उसको पकडक़र घर भेजा। नितिन ने कहा कि चाहे किसी व्यक्ति को 10 वर्ष की उम्र की बातें न याद हों, पर 25 जून, 1988 का रविवार आज भी उसको हर पल दर्द देता हुआ आंखों के सामने शहीद हुए निर्दोष लोगों की याद दिलाता है।

दंगा चाहने वाले भी हुए निराश
ये दिन वे थे जब अभी दिल्ली सहित देश के सिख विरोधी दंगों की आग में अभी तपिश जारी थी। आतंकियों ने तो संघ पर हमला कर हिंदू-सिख एकता में दरार डालने का प्रयास किया ही साथ में कुछ दंगा संतोषियों ने भी कहना शुरू कर दिया कि सिखों ने अब लगाया है शेर की पूंछ को हाथ। इनका तात्पर्य था कि शायद सेक्युलर दल कांग्रेस की भांति संघ भी इसके बाद सदियों पुराने संबंध भुला कर देशभर में सिखों पर टूट पड़ेगा परन्तु शायद वे संघ को समझने में चूक गए। संघ ने न तो देश में सांप्रदायिक माहौल खराब होने दिया और अगले ही दिन शाखा लगा कर आतंकियों व देशविरोधी ताकतों को संदेश दिया कि हिंदुओं-सिख एकता को कोई तोड़ नहीं सकता और न ही सिख पंथ के नाम पर चलने वाला आतंकवाद पंजाबी एकता को तोड़ सकता। संघ ने आतंकियों के साथ-साथ दंगासंतोषियों को भी निशब्द कर दिया। 25 जून जख्मी हुआ संघ 26 जून की सुबह ही उसी स्थान पर गुनगुना रहा था ‘कौन कहंदा हिंदू-सिख वक्ख ने, ए भारत माँ दी सज्जी-खब्बी अक्ख ने’ अर्थात कौन कहता है कि हिंदू-सिख अलग-अलग हैं, ये तो भारत माता की बाईं और दाईं आंख के समान हैं। संघ के इस गीत को सुन कर आतंकियों ने भी माथा पीट लिया था।

नेहरू पार्क से शहीदी पार्क की हुई स्थापना
अगली ही सुबह जब स्वयंसेवकों की ओर से शाखा का आयोजन किया तो उस दौरान शहीदों की याद को जीवित रखने के लिए शहीदी स्मारक बनाने का संकल्प लिया गया। इस कार्य अधीन मोगा पीडि़त मदद और स्मारक समिति का गठन हुआ। शहीदी स्मारक का नींवपत्थर 9 जुलाई को माननीय भाऊराव देवरस द्वारा रखा गया। इस स्मारक का उद्घाटन 24 जून, 1990 को प्रो. रजिंदर सिंह रज्जू भैया द्वारा रखा गया। आज भी हर साल शहीदों की याद में श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया जाता है। आज भी मोगा पीडि़त मदद और स्मारक समिति के प्रधान डॉ. राजेश पुरी और अन्य अधिकारियों के सहयोग से अपनी, सेवाएंं निभा रहे हैं।

- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी
वीपीओ लिदड़ां
जालंधर।
संपर्क - 77106-55605



Sunday, 7 June 2020

आग से न खेलें जत्थेदार

श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा है कि खालिस्तान की मांग जायज है, अगर केंद्र सिखों को खालिस्तान देता है तो सिख इससे इंकार नहीं करेंगे। वहीं शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने शिकायत की है कि सिख भारत में बेगानापन महसूस कर रहे हैं। 6 जून, 1984 को श्री हरि मंदिर साहिब को आतंकियों के चंगुल से मुक्त करवाने के लिए सेना द्वारा किए गए आप्रेशन ब्ल्यू स्टार की 36 वीं बरसी पर कट्टरपंथी संगठनों ने खालिस्तान के समर्थन के नारे लगाए। अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान के बेटे ईमान सिंह मान के नेतृत्व में पहुंचे पार्टी कार्यकर्ताओं और सिख यूथ फेडरेशन भिंडरांवाला के नेता बलवंत सिंह गोपाला के नेतृत्व में आए कार्यकर्ताओं की पुलिस कर्मियों के साथ हाथापाई भी हुई। पंजाब भाजपा के अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के खालिस्तान के बारे में दिए गए बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। शर्मा ने कहा कि ऐसे महान तख्त के जत्थेदार होने के नाते उन्हें ऐसा बयान नहीं देना चाहिए जो देश की एकता, अखंडता और पंजाब के समाजिक सद्भाव को चोट पहुंचाने वाला हो। केवल पंजाबी ही नहीं बल्कि करोड़ों भारतीयों की आस्था श्री अकाल तख्त साहिब में है और इस बयान से करोड़ों लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं। पंजाब ने पहले ही बहुत संताप झेला है, हजारों निर्दोष पंजाबियों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। पंजाबियों ने खालिस्तान के विचार को हमेशा नाकारा है और अनगिनत बलिदान देकर पंजाब में शांति व भाईचारा स्थापित किया है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय बेअंत सिंह के पुत्र सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने भी देश को तोडऩे वाले इन ब्यानों की निंदा की है।

निष्पक्ष तौर पर देखा जाए तो ज्ञानी हरप्रीत सिंह और भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने जो बयान दिये हैं वह दुर्भाग्यपूर्ण हैं और भ्रमपूर्ण भी। दोनों व्यक्ति उन पदों पर बैठे हैं जिनसे सिख समाज हमेशा आशाभरी निगाहों से देखता व मार्गदर्शन लेता है लेकिन जिस तरह का बयान देकर सिख समाज में भ्रम फैलाने व राष्ट्रभक्त देशवासियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाया वह अति दुर्भाग्यपूर्ण है। जिस प्रकार के भाव ज्ञानी हरप्रीत सिंह व स. गोबिन्द सिंह ने प्रकट किए हैं इस तरह के बयान ही ऑपरेशन ब्ल्यूस्टार से करीब एक दशक पहले शुरू हो गए थे। राजनीतिक स्वार्थ के लिए देश की अखण्डता को चुनौती देना और देश की जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करने का सलसिला तो पुराना है लेकिन 1978 में निरंकारियों और जरनैल सिंह भिंडरावाले के अनुयायियों के कदम ने पंजाब की राजनीति को जो करवट बदली उसका परिणाम ऑपरेशन ब्ल्यूस्टार के रूप में सामने आया। 1978 से लेकर 1984 और फिर 84 के बाद ऑपरेशन ब्लैक थण्डर से लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री स. बेअंत सिंह के कत्ल तक पंजाब में आतंकवाद व अलगाववाद के कारण राज्य के घर-आंगन व खेत खलियान अगर खून से लाल हो गये तो इसका मुख्य कारण ज्ञानी हरप्रीत हरप्रीत सिंह और गोबिंद सिंह की तरह महत्वपूर्ण पदों पर बैठे जिम्मेवार लोगों के गैर जिम्मेदराना ब्यान ही थे। तत्कालीन नेतृत्व ने अगर जिम्मेवारी से अपनी भूमिका निभाई होती तो न आतंकवाद फैलता और न ही ऑपरेशन ब्ल्यूस्टार की नौबत आती। देखा जाए तो इस तरह के जिम्मेवाराना ब्यान, पंजाब का आतंकवाद, आप्रेशन ब्ल्यू स्टार, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का बलिदान और दुखद दिल्ली के सिख विरोधी दंगे ऐसी घटनाएं हैं जो शृंखलाबद्ध परस्पर गुंथी हुई हैं। 1970 के दशक में नेताओं ने इस तरह गैर-जिम्मेवाराना ब्यान न दिए होते, सिखों के साथ अन्याय व भेदभाव की झूठी कहानियां न फैलाई होतीं, पंजाब के हितों की अनदेखी का बाजूका न खड़ा किया होता तो पंजाब के आतंकवाद के रूप में लगभग अढ़ाई दशक तक संताप न झेलना पड़ता। चिंता की बात है कि आज फिर से वही खून और खाक के खेल के लिए मंच सजाने की चेष्टा हो रही दिखती है। श्री अकाल तख्त के जत्थेदार और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष जो कह रहे हैं उससे सिख समाज भ्रमित हो सकता है। भ्रमवश अगर कुछ सिख नौजवान अगर फिर मार्ग भटकते हैं तो इसके लिए कौन जिम्मेवार होगा ? यूं तो खालिस्तान मिलने वाला नहीं यह बात तो ज्ञानी हरप्रीत सिंह भली-भांति जानते ही हैं। फिर भ्रम फैला सिख नौजवानों को भटकाने की कोशिश क्यों की जा रही है ? 

1984 में ब्ल्यूस्टार होता ही नहीं अगर धार्मिक व राजनीतिक पदों पर बैठे जिम्मेवार व्यक्ति जिम्मेवारी से कार्य करते। आतंकियों व देशविरोधी तत्वों ने श्री हरि मंदिर साहिब को देश के खिलाफ एक मजबूत किले में बदल दिया तो उस समय अकाल तख्त व शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी क्यों खामोश रहे? यह तो संभव नहीं कि इनके नियंत्रण वाले गुरुद्वारे में हथियारों का जखीरा एकत्रित होता रहा, आतंकी दनदनाते रहे, निर्दोष लोगों की हत्याओं के फरमान जारी किए जाते रहे और एसजीपीसी व अकाल तख्त के नेतृत्व को इसका भान तक नहीं हुआ ? क्या उस समय का नेतृत्व अपने दायित्वों के प्रति गंभीर रहा ? उत्तर है नहीं, क्योंकि यही नेतृत्व गंभीर होता तो स्वर्ण मंदिर रक्त पिपासुओं का अड्डा न बनता। पंजाब में 30 हजार निर्दोष हिंदू-सिख न मारे जाते और न ही होता आप्रेशन ब्ल्यू स्टार। पंजाब में 1980-90 के दशक में जितना खून बहा है उसे कोई नहीं भुला सकता, लेकिन हमें यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि देश की एकता व अखण्डता को चुनौती देने वाला चाहे कोई बड़े से बड़ा व्यक्ति हो या संगठन, उसको देश हल्के में नहीं ले सकता। देश की एकता-अखण्डता से कोई बड़ा नहीं है।

आग से खेलने का शौक पालने वालों को ये नहीं भूलना चाहिए कि देश के अंदर व विदेशों में सक्रिय खालिस्तानी लॉबी इसी तरह के अवसरों की तलाश में रहती है और इस तरह के गैर-जिम्मेवाराना ब्यानों से इन शक्तियों को प्रोत्साहन मिलता है। सोशल मीडिया पर खालिस्तानी तत्वों की सक्रियता व समय-समय पर इस आतंकवाद से जुड़े लोगों की होने वाली गिरफ्तारियां बताती हैं कि देश में खालिस्तानी आतंकवाद की आग बुझी है परंतु पूरी तरह शांत नहीं हुई है। ऊपर से गुरुद्वारा एक्ट-1925 के तहत भारतीय संविधान व्यवस्था के अंतर्गत देश की एकता अखण्डता की सौगंध खा कर चुने जाने वाले शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष देश को तोडऩे का समर्थन करते हैं तो यह संवैधानिक रूप से भी गंभीर अपराध है। देश के निर्माण में सिख समाज का कितनी शानदारी हिस्सेदारी है और सिख समाज को देश में कितनी स्वतंत्रता व समानता है इस पर कभी कोई संदेह नहीं किया जा सकता परंतु आग से खेलने का काम बंद होना चाहिए।

- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ लिदड़ां,
जालंधर।
संपर्क : 77106-55605

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