श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा है कि खालिस्तान की मांग जायज है, अगर केंद्र सिखों को खालिस्तान देता है तो सिख इससे इंकार नहीं करेंगे। वहीं शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने शिकायत की है कि सिख भारत में बेगानापन महसूस कर रहे हैं। 6 जून, 1984 को श्री हरि मंदिर साहिब को आतंकियों के चंगुल से मुक्त करवाने के लिए सेना द्वारा किए गए आप्रेशन ब्ल्यू स्टार की 36 वीं बरसी पर कट्टरपंथी संगठनों ने खालिस्तान के समर्थन के नारे लगाए। अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान के बेटे ईमान सिंह मान के नेतृत्व में पहुंचे पार्टी कार्यकर्ताओं और सिख यूथ फेडरेशन भिंडरांवाला के नेता बलवंत सिंह गोपाला के नेतृत्व में आए कार्यकर्ताओं की पुलिस कर्मियों के साथ हाथापाई भी हुई। पंजाब भाजपा के अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के खालिस्तान के बारे में दिए गए बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। शर्मा ने कहा कि ऐसे महान तख्त के जत्थेदार होने के नाते उन्हें ऐसा बयान नहीं देना चाहिए जो देश की एकता, अखंडता और पंजाब के समाजिक सद्भाव को चोट पहुंचाने वाला हो। केवल पंजाबी ही नहीं बल्कि करोड़ों भारतीयों की आस्था श्री अकाल तख्त साहिब में है और इस बयान से करोड़ों लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं। पंजाब ने पहले ही बहुत संताप झेला है, हजारों निर्दोष पंजाबियों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। पंजाबियों ने खालिस्तान के विचार को हमेशा नाकारा है और अनगिनत बलिदान देकर पंजाब में शांति व भाईचारा स्थापित किया है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय बेअंत सिंह के पुत्र सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने भी देश को तोडऩे वाले इन ब्यानों की निंदा की है।
निष्पक्ष तौर पर देखा जाए तो ज्ञानी हरप्रीत सिंह और भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने जो बयान दिये हैं वह दुर्भाग्यपूर्ण हैं और भ्रमपूर्ण भी। दोनों व्यक्ति उन पदों पर बैठे हैं जिनसे सिख समाज हमेशा आशाभरी निगाहों से देखता व मार्गदर्शन लेता है लेकिन जिस तरह का बयान देकर सिख समाज में भ्रम फैलाने व राष्ट्रभक्त देशवासियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाया वह अति दुर्भाग्यपूर्ण है। जिस प्रकार के भाव ज्ञानी हरप्रीत सिंह व स. गोबिन्द सिंह ने प्रकट किए हैं इस तरह के बयान ही ऑपरेशन ब्ल्यूस्टार से करीब एक दशक पहले शुरू हो गए थे। राजनीतिक स्वार्थ के लिए देश की अखण्डता को चुनौती देना और देश की जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करने का सलसिला तो पुराना है लेकिन 1978 में निरंकारियों और जरनैल सिंह भिंडरावाले के अनुयायियों के कदम ने पंजाब की राजनीति को जो करवट बदली उसका परिणाम ऑपरेशन ब्ल्यूस्टार के रूप में सामने आया। 1978 से लेकर 1984 और फिर 84 के बाद ऑपरेशन ब्लैक थण्डर से लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री स. बेअंत सिंह के कत्ल तक पंजाब में आतंकवाद व अलगाववाद के कारण राज्य के घर-आंगन व खेत खलियान अगर खून से लाल हो गये तो इसका मुख्य कारण ज्ञानी हरप्रीत हरप्रीत सिंह और गोबिंद सिंह की तरह महत्वपूर्ण पदों पर बैठे जिम्मेवार लोगों के गैर जिम्मेदराना ब्यान ही थे। तत्कालीन नेतृत्व ने अगर जिम्मेवारी से अपनी भूमिका निभाई होती तो न आतंकवाद फैलता और न ही ऑपरेशन ब्ल्यूस्टार की नौबत आती। देखा जाए तो इस तरह के जिम्मेवाराना ब्यान, पंजाब का आतंकवाद, आप्रेशन ब्ल्यू स्टार, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का बलिदान और दुखद दिल्ली के सिख विरोधी दंगे ऐसी घटनाएं हैं जो शृंखलाबद्ध परस्पर गुंथी हुई हैं। 1970 के दशक में नेताओं ने इस तरह गैर-जिम्मेवाराना ब्यान न दिए होते, सिखों के साथ अन्याय व भेदभाव की झूठी कहानियां न फैलाई होतीं, पंजाब के हितों की अनदेखी का बाजूका न खड़ा किया होता तो पंजाब के आतंकवाद के रूप में लगभग अढ़ाई दशक तक संताप न झेलना पड़ता। चिंता की बात है कि आज फिर से वही खून और खाक के खेल के लिए मंच सजाने की चेष्टा हो रही दिखती है। श्री अकाल तख्त के जत्थेदार और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष जो कह रहे हैं उससे सिख समाज भ्रमित हो सकता है। भ्रमवश अगर कुछ सिख नौजवान अगर फिर मार्ग भटकते हैं तो इसके लिए कौन जिम्मेवार होगा ? यूं तो खालिस्तान मिलने वाला नहीं यह बात तो ज्ञानी हरप्रीत सिंह भली-भांति जानते ही हैं। फिर भ्रम फैला सिख नौजवानों को भटकाने की कोशिश क्यों की जा रही है ?
1984 में ब्ल्यूस्टार होता ही नहीं अगर धार्मिक व राजनीतिक पदों पर बैठे जिम्मेवार व्यक्ति जिम्मेवारी से कार्य करते। आतंकियों व देशविरोधी तत्वों ने श्री हरि मंदिर साहिब को देश के खिलाफ एक मजबूत किले में बदल दिया तो उस समय अकाल तख्त व शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी क्यों खामोश रहे? यह तो संभव नहीं कि इनके नियंत्रण वाले गुरुद्वारे में हथियारों का जखीरा एकत्रित होता रहा, आतंकी दनदनाते रहे, निर्दोष लोगों की हत्याओं के फरमान जारी किए जाते रहे और एसजीपीसी व अकाल तख्त के नेतृत्व को इसका भान तक नहीं हुआ ? क्या उस समय का नेतृत्व अपने दायित्वों के प्रति गंभीर रहा ? उत्तर है नहीं, क्योंकि यही नेतृत्व गंभीर होता तो स्वर्ण मंदिर रक्त पिपासुओं का अड्डा न बनता। पंजाब में 30 हजार निर्दोष हिंदू-सिख न मारे जाते और न ही होता आप्रेशन ब्ल्यू स्टार। पंजाब में 1980-90 के दशक में जितना खून बहा है उसे कोई नहीं भुला सकता, लेकिन हमें यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि देश की एकता व अखण्डता को चुनौती देने वाला चाहे कोई बड़े से बड़ा व्यक्ति हो या संगठन, उसको देश हल्के में नहीं ले सकता। देश की एकता-अखण्डता से कोई बड़ा नहीं है।
आग से खेलने का शौक पालने वालों को ये नहीं भूलना चाहिए कि देश के अंदर व विदेशों में सक्रिय खालिस्तानी लॉबी इसी तरह के अवसरों की तलाश में रहती है और इस तरह के गैर-जिम्मेवाराना ब्यानों से इन शक्तियों को प्रोत्साहन मिलता है। सोशल मीडिया पर खालिस्तानी तत्वों की सक्रियता व समय-समय पर इस आतंकवाद से जुड़े लोगों की होने वाली गिरफ्तारियां बताती हैं कि देश में खालिस्तानी आतंकवाद की आग बुझी है परंतु पूरी तरह शांत नहीं हुई है। ऊपर से गुरुद्वारा एक्ट-1925 के तहत भारतीय संविधान व्यवस्था के अंतर्गत देश की एकता अखण्डता की सौगंध खा कर चुने जाने वाले शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष देश को तोडऩे का समर्थन करते हैं तो यह संवैधानिक रूप से भी गंभीर अपराध है। देश के निर्माण में सिख समाज का कितनी शानदारी हिस्सेदारी है और सिख समाज को देश में कितनी स्वतंत्रता व समानता है इस पर कभी कोई संदेह नहीं किया जा सकता परंतु आग से खेलने का काम बंद होना चाहिए।
- राकेश सैन
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जालंधर।
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