Sunday, 13 February 2022

पंजाब में आतंकवाद और वाजपेयी जी का साहस

पूर्व प्रधानमन्त्री एवं उच्च कोटि के कविहृदय दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी जी का भाषण कौशल, वाकपटुता, कुशल राजनेता व विश्व स्तर के कूटनीतिज्ञ होने के गुण से तो सभी परिचित हैं परन्तु बहुत कम लोग जानते हैं कि उनमें अदम्य साहस व शूरवीरता के गुण भी विद्यमान थे। पंजाब में जब आतंकवाद का काला दौर चल रहा था तो वाजपेयी जी ने आतंकवादियों द्वारा राज्य की उद्यौगिक नगरी बटाला की की गई नाकाबन्दी तुड़वा कर ऐसे शौर्य का प्रदर्शन किया जिसके आज भी पंजाब के लोग कायल हैं। उन्होंने केवल नाकाबन्दी ही नहीं तुड़वाई बल्कि खुंखार आतंकवादी सन्त जरनैल सिंह भिण्डरांवाला के गढ़ में जाकर सिंहनाद किया कि भारत के लोग इन भाड़े की बन्दूकों से डरने वाले नहीं हैं।

1980 का दशक पंजाब के लिए डरावना और भयानक था। भय के मारे लोग शाम के पांच बजे ही घरों में बन्द हो जाते। राज्य सरकारें बेबस थीं, पुलिस लाचार। उद्योग व व्यापार ठप्प हो गये थे। कोई दिन ऐसा नहीं जाता था जिस दिन यहां कोई आतंकी घटना न हो। आतंकी भिण्डरांवाले के सूरमाओं द्वारा आम लोगों को बसों-गाडिय़ों से उतार कर गोलियों से भूना जा रहा था। जगह-जगह मासूम नागरिकों जिनमें बच्चे, बूढ़े, बीमार और महिलाएं भी शामिल थीं, की जान ली जा रही थी। उन्हीं दिनों की बात है जब 6 मार्च, 1986 को आतंकियों ने पंजाब के औद्योगिक शहर बटाला के सभी 16 प्रवेश मार्गों की नाकेबन्दी करके शहर को बन्धक बना कर लोगों का अन्दर-बाहर आना-जाना भी बन्द कर दिया। यह नाकाबन्दी लगभग वैसी ही थी जैसी कि हाल ही में दिल्ली की सिंघू सीमा पर कथित किसानों द्वारा की गई थी। शहर की सीमा पर हथियारबन्द गुण्डे दनदना रहे थे और पुलिस बेबस। शहर में दूध, सब्जी व जरूरी सामान की आपूर्ति रोक दी गई। पूरे शहर में18 दिन कफ्र्यू लगा रहा। शहर में आवश्यक खाद्य वस्तुओं का अभाव हो गया। भूख से व्याकुल बच्चे दूध के लिए तरसने लगे। न मरीजों को दवाई मिल रही थी, न सब्जी, न राशन और न ही मवेशियों के लिए चारा तथा अन्य सामान।
नाकाबन्दी के दौरान आतंकवादियों ने भारी लूटमार भी की। इस दौरान वहां अन्य वस्तुओं के साथ ही 14 कारखानों और 34 दुकानों को लूटने के अलावा 20 बन्दूकें भी लूटी गईं और 18 लाख रुपए से अधिक की सम्पत्ति नष्ट की गर्ई। नाकाबन्दी खुलवाने के लिए बनाई गई शान्ति समिति में भी यह मामला बार-बार उठा परन्तु इसमें शामिल बटाला क्षेत्र के तीन मन्त्री और अन्य नेता भी यह नाकाबन्दी समाप्त नहीं करवा सके। लोगों में हाहाकार मचा हुआ था। केन्द्र में उस समय श्री राजीव गान्धी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी जबकि पंजाब में स. सुरजीत सिंह बरनाला मुख्यमन्त्री थे।
पंजाब केसरी के सम्पादक श्री विजय चोपड़ा के लेख अनुसार, उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य स. दरबारा सिंह को फोन किया। उन्होंने चोपड़ा जी को कहा कि वह बात करके अगले दिन बताएंगे। उनकी बात सुन कर लगा कि बात बन जाएगी परन्तु जब उनकी ओर से कोई सन्तोषजनक उत्तर न मिला तभी भाजपा के वरिष्ठï नेता श्री कृष्णलाल शर्मा से सम्पर्क किया गया और कहा कि यदि अटल जी बटाला आ जाएं तो यह ‘नाकेबन्दी’ खुल सकती है। अटल जी उस समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। काम तो कठिन था, पर उन्होंने प्रयास किया। श्री चोपड़ा के अनुसार, भाजपा नेता डॉ. बलदेव प्रकाश से सम्पर्क किया गया और श्री वाजपेयी को फोन द्वारा सारे घटनाक्रम और हालात की गम्भीरता के बारे में बताया गया। एक दिन श्री कृष्णलाल शर्मा ने बताया कि श्री वाजपेयी जी आने के लिए राजी हो गए हैं। केवल चोपड़ा जी ही नहीं, बल्कि पंजाब के कई नेताओं ने भी इस ओर प्रयास किया जो सफल रहा। अटल जी के बटाला आने के समाचार से पंजाब के राज्यपाल और सरकार पर बहुत दबाव पड़ा। पंजाब सरकार तुरन्त हरकत में आई और श्री वाजपेयी तथा उनके साथ दिल्ली से आने वाले भाजपा नेता श्री केदारनाथ साहनी एवं पंजाब के कुछ भाजपा नेताओं को भारी सुरक्षा प्रबन्धों में बटाला पहुंचाने की व्यवस्था की गई।
अमृतसर से बटाला जाने के दो रास्ते हैं। पहला अमृतसर से सीधा बटाला जाता है और दूसरा खालिस्तानी आतंकियों के गढ़ के रूप में बदनाम मेहता चौक से बटाला जाता है। यह कहने के बावजूद कि अमृतसर से सीधे बटाला जाना ही सुरक्षित है, अटल जी ने कहा,‘चाहे जो भी हो, मैं तो उस रास्ते से ही जाऊंगा जहां आतंकवादी अपना डेरा लगाए हुए हैं।’ वाजपेयी जी का मानना था कि जो नाकाबन्दी किए बैठे हैं आखिर वे भी तो अपने ही लोग हैं। जान हथेली पर रख कर अटल जी मेहता चौक के रास्ते ही 25 मार्च,1986 को बटाला पहुंचे और लोगों का मनोबल बढ़ाने के लिए किला मण्डी बटाला के प्रांगण में एक विशाल रैली को सम्बोधित किया जिसे सुनने हजारों लोग पहुंचे। इसके साथ ही उन्होंने सभी पक्षों के साथ बैठकें करके आतंकियों की नाकेबन्दी समाप्त करवा दी जिससे बटाला वासियों के साथ-साथ पूरे पंजाब के लोगों ने राहत की सांस ली। शायद पंजाब के इन्हीं हालात को देख कर उनका कवि हृदय विवहल हो उठा और जिससे दर्दनाक कविता निकली कि -
दूध में दरार पड़ गई
खून क्यों सफेद हो गया ?
भेद में अभेद खो गया।
बण्ट गये शहीद, गीत कट गए।
कलेजे में कटार दड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
खेतों में बारूदी गन्ध।
टूट गये नानक के छन्द
सतलुज सहम उठी।
व्यथित सी बितस्ता है।
वसन्त से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई।
अपनी ही छाया से बैर।
गले लगने लगे हैं गैर।
खुदकुशी का रास्ता।
तुम्हें वतन का वास्ता।
बात बनाएँ, बिगड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।

- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ां
जालंधर।
संपर्क - 77106-55605

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