Friday, 19 April 2024

पंजाब का लोकजीवन : लक्ष्मण ने बन्धनमुक्त करवाई राम की बारात

रामनवमी पर समस्त चराचर जगत को हार्दिक शुभकामनाएं। भगवान श्रीराम सर्वत्र है और सर्वज्ञ है फिर ऐसे में पंजाबी साहित्य व यहां का लोक जीवन किस तरह रामनाम से अछूता रह सकता था। पंजाब के लोकजीवन व लोकगीतों में भगवान श्रीराम की बारात जनकपुर की महिलाओं द्वारा बांधने और भ्राता लक्ष्मण द्वारा अपनी साहित्य योग्यता के बल पर बारात को मुक्त करवाने का जिक्र है। बात उस समय की है जब यातायात के साधन इतने विकसित नहीं थे और बारातें एक-एक सप्ताह या कई -कई दिनों तक रुका करती थी। ऐसे में वधु पक्ष के रिश्तेदार व बिरादरी के लोग बारी-बारी से बारात की रोटी किया करते थे अर्थात भोज करते थे। बारातियों को खेस या दरियों पर बैठा दिया जाता और वधु पक्ष के युवा बारातियों को भोजन परोसते। बारातियों का भोजन करना इतना आसान नहीं था क्योंकि उनके कला कौशल की परीक्षा ली जानी बकाया थी। जहां बारात भोजन कर रही होती वहां छतों व मुण्डेरों पर महिलाएं व वधु की सहेलियां बैठ जातीं और सीठने देतीं। सीठने दे कर महिलाएं बारात को बन्धन में बान्ध देतीं, जब तक वर पक्ष से उनके सीठनों का जवाब नहीं आता तब तक बारात न तो भोजन कर सकती थी और न ही उठ सर जा सकती थी। अगर वर पक्ष के लोग बारात को बन्धनमुक्त नहीं करवा पाते तो उनको तरह-तरह के हिकारत भरे उलाहने सुनने पड़ते। जन्न खाणे छत्ती बन्न तु बठाई के। अड्डी चोटी लक्क धोण जिन्दे लाई के। कोट चोगे कुड़ते रुमाल बन्नां। पग्ग साफा चीरा भोथा नाल बन्नां। लड्डू पेड़ा बरफी पतीसे थालीयां। गड़वे गलास बन्न देयां प्यालियां। अर्थात भोजन करने बैठी बारात को इस तरह बान्ध दिया कि एडी से चोटी तक कमर से गर्दन तक जैसे ताले लग गए। कपड़े, कुर्ते, रुमाल, पगड़ी, लड्डू, पेड़ा, बरफी, पतीले और थालीयां सब बांध दी गईं। इसी महिलाएं एक अन्य गीत गाती हैं। बन्नां घिउ खण्ड विच पाए थाल वे। बन्नां तेरे मित्तर पिआरे नाल वे। बन्नां थोडी मासी तिक्खे तिक्खे नैण वे। बन्नां थोडी मासी भूआ भैण वे। बन्न दियां पतोड़ दुद्ध दही खीर वे। लम्मे लुंजे बन्नां मधरे सरीर वे। झटका शराब बन्नां सणे बोटां दे। बन्नां थोडे बटुए जो डक्के नोटां दे। कुड़ते पजामे बन्न देयां धोतीयां। ऊठ घोड़े बन्न देवां खोतीयां। जुत्तीयां जुराबां बन्न देवां बूट वे। कोट पतलून जो हडाउंदे सूट वे। अर्थात : महिलाएं बारातियों के खाने की चीजों के साथ-साथ वर के घर की महिलाओं, उनके तीखे नैनों, हर उम्र के बाराती, कपड़े, बूट-जुराबें, बारात को लाने वाले ऊंट, घोड़े, गधों समेत सभी को अपने सीठनों से बान्ध देती हैं। बारात बान्धने के बाद बारातियों की हालत खराब हो जाती क्योंकि इन सीठनों के जवाब भी गीतों से ही देना पड़ता था। एसे में याद आती नाई, भाण्ड व मरासी की जो बारात के साथ चलते और सीठनों, लोकजीवन, लोकगीत की कला में पारंगत होते। कोई कुशल बराती या दूल्हे के यार-दोस्त भी इनका जवाब देने के लिए उठ खड़ा होते और हाथ में लोटे से जल छिडक़ कर महिलाओं के सीठनों का जवाब देता। जब महिलाएं इन जवाबों से संतुष्ट हो जातीं तो बारात को बन्धन मुक्त कर देतीं और गीत गातीं ... लाड़ा छुटेया निराला, फेर बाला सरबाला। उच्चा सिंघां दा दुमाला, मल्ल पूरी बरात दे। रथ गड्डीयां शिंगारां, लारी साईकल ते कारां, छुटे सणे असवारां, झांजी दी बरात दे। छुट गए पकौड़े सणे तेल मट्ठीयां, बन्न देवां नारीयां कट्ठीयां, छुट गए शक्करपारे दुद्ध घ्यो नी। माता भैण भाई तेरा बन्नां प्यो नी। अर्थात : पहले दुल्हा बन्धनमुक्त हुआ फिर सरबाला (दूल्हे के साथ चलने वाला बच्चा जो दूल्हे के ही वेष में रहता है)। इसके बाद रथ, गाडिय़ों, बसों, साईकिल व कारों के सवार मुक्त हुए। इसी तरह बारात के खाने का सामान मुक्त हुआ। इसके बाद बराती खाना शुरू करते और महिलाएं उनके घरों की महिलाओं, परिवार के सदस्यों को लेकर हंसी-मजाक भरे गीत गातीं। पंजाबी लोकसाहित्य में भगवान राम की बारात बांधने का भी जिक्र है जिसको वाकपटु व कलाकौशल से निपुण भ्रता लक्ष्मण जी मुक्त करवाते हैं... सीता वरी राम ने धनुश तोड़ के, उत्थे जन्न बद्धी नारीयां जोड़ के। लछमण जती ने छड़ाई जन्न नी, जनकपुरी होई धन्न धन्न नी। अर्थात : राम ने धनुष तोड़ कर जब सीता का वरण किया तो जनकपुर की महिलाओं ने इकट्ठा हो कर उनके साथ आई अयोध्या वासियों की बारात को बान्ध दिया। इस पर लक्ष्मण जी ने खड़े हो कर बारात को मुक्त करवाया और इससे जनकपुरी धन्य-धन्य हो गई। पंजाब के मालव इलाके के गीतकार शादीराम अपने ‘पत्तल काव्य’ में इस प्रथा का वर्णन करते हुए रामजी के विवाह के बारे लिखते हैं ... कोरिआं से बठाई जन्न जीमणे नूं जनकजी ने, आप जनक पत्तलां ते भोजन जो पांवदा. जन्न बन्न दित्ती रामचन्दर दी नारीआं ने, ‘शादीराम’ लक्षमण जी उट्ठ के छुड़ांवदा ... अर्थात : जब रामजी की बारात भोजन करने बैठी तो स्वयं जनक जी ने उनके सम्मुख पत्तल बिछाए और भोजन परोसा। इस पर महिलाओं ने बारात को बान्ध दिया और लक्ष्मण जी ने उसे मुक्त करवाया। आज शादी विवाह के नाम पर होने वाली सर्कस दौरान कानफोड़ डीजे की आवाज में भोण्डे गीतों पर थिरकने के बाद थोड़ी फुर्सत मिले तो हमें अपनी गौरवशाली परम्पराओं का भी तनिक स्मरण कर लेना चाहिए। शायद यही रामनवमी पर हमारी ओर से भगवान श्रीराम को अनुपम भेण्ट होगी।

Tuesday, 2 April 2024

केजरीवाल रामायण का सीता वनवास प्रसंग जरूर पढ़ें

दिल्ली के बहुकरोड़ी आबकारी घोटाले के आरोप में तिहाड़ जेल पहुंचे वहां के मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल ने पढऩे के लिए रामायण, श्रीमद्भगवद् गीता व नीरजा चौधरी की पुस्तक ‘हाऊ प्राईम मिनिस्टर्स डिसाईड’ मांगी हैं। श्री केजरीवाल चाहें तो रामायण में वर्णित सीता वनवास प्रसंग से काफी कुछ सीख सकते हैं। एक धोबी द्वारा अपवाद उठाए जाने के बाद श्रीराम ने अपनी प्राणप्रिय पत्नी सीता का इसलिए त्याग कर दिया था क्योंकि उनका मत था कि सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्ति का जीवन कलंक रहित होना चाहिए। उस पर छोटा सा भी लांछन लगे तो उसे अपने निजी हितों की बजाय जनाकांक्षाओं व पद की मर्यादा के अनुरूप व्यवहार करना चाहिए। माता सीता पर लांछन लगने के बाद श्रीराम ने उनकी पवित्रता पर पूर्ण विश्वास होने का बाद भी बचाव नहीं किया और न ही किसी दूसरे को दोष दिया, बल्कि उन्होंने अपनी भावनाओं का दमन कर मर्यादा को प्राथमिकता दी। श्री केजरीवाल को स्वयं से पूछना चाहिए कि क्या वे श्रीराम अनुरूप व्यवहार कर रहे हैं ?

श्री केजरीवाल के समर्थक दलील देते हैं कि संविधान में इसकी कोई व्यवस्था नहीं है कि कोई मुख्यमंत्री जेल में सरकार नहीं चला सकता। इस प्रश्न को पलट कर भी पूछा जा सकता है कि क्या संविधान में इसकी व्यवस्था है कि एक मुख्यमंत्री जेल में रह कर सरकार चला सकता है ? दरअसल हमारे संविधान निर्माताओं ने इस बात की कल्पना भी नहीं की होगी कि देश को ऐसे दिन भी देखने पड़ेंगे कि जब एक मुख्यमंत्री को जेल जाना पड़े। देश के संचालन में केवल संवैधानिक व्यवस्थाएं ही सबकुछ नहीं होतीं बल्कि लोकलाज के बिना लोकराज सम्भव ही नहीं है। आखिर राजनीतिक शूचिता व नैतिकता भी तो कुछ अर्थ रखती हैं। देश में इससे पहले ऐसी कभी पेचीदा स्थिति पैदा नहीं हुई कि किसी मुख्यमंत्री को अपने पद पर रहते हुए जेल जाना पड़ा हो। एक सामाजिक आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी के एकछत्र नेता श्री अरविन्द केजरीवाल तो नैतिकता के मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव व झारखण्ड के मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन से भी उन्नीस निकले, क्योंकि इन नेताओं ने गिरफ्तारी से पहले कम से कम अपने-अपने पदों से त्यागपत्र देने का तो हौंसला दिखाया। पर लगता है कि अन्ना हजारे के शिष्य श्री केजरीवाल तो नाखून कटाने जैसे बलिदान का भी साहस नहीं कर पा रहे हैं।

एक मुख्यमंत्री जेल में सरकार चला सकता है या नहीं इसको लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय उभर कर सामने आ रही हैं। लगता है कि इस मामले को लेकर श्री केजरीवाल दो विकल्प लेकर चल रहे हैं, पहला कि अगर जेल में ही सरकार चला सकें तो वे मुख्यमंत्री बने ही रहेंगे परंतु अगर ऐसा न कर पाए तो वे इसके लिए अपनी धर्मपत्नी श्रीमती सुनीता केजरीवाल को नंबर दो के रूप में स्थापित कर रहे हैं। श्रीमती केजरीवाल जिस तरह से दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई इंडी गठजोड़ की महारैली में गठबंधन के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठी नजर आईं और जिस तरह से आम आदमी पार्टी के विधायकों की बैठकें ले रही हैं उससे यह पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि दिल्ली में लालू-राबड़ी वाला इतिहास दोहराया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो नई तरह की राजनीति के दावे के साथ आई आम आदमी पार्टी पर भ्रष्टाचार के बाद परिवारवाद के आरोपों के भी छींटे पडऩे शुरू हो जाएंगे। कैसी विडम्बना है कि पार्टी अक्तूबर, 2012 में जन्मी आम आदमी पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र व्यक्ति विशेष के पंजों में दम तोड़ता नजर आरहा है, पार्टी के आरम्भ से ही श्री केजरीवाल इसके राष्ट्रीय संयोजक चले आ रहे हैं। क्या उनके दल में कोई ऐसा नेता नहीं जो इस पद पर पहुंच पाए ? अब श्री केजरीवाल ने अपनी धर्मपत्नी को अपनी क्रान्तिकारी पार्टी पर थोपना शुरू कर दिया है जो भारतीय राजनीति में परिवारवाद की निकृष्टतम उदारहणों में से एक है।

भ्रष्टाचार को लेकर अब आम आदमी पार्टी ही दुविधा में दिखाई दे रही है। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार आते ही मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में हुए कथित घोटालों का मामला उठाया और विभिन्न मामलों में लगभग एक दर्जन पूर्व कांग्रेसी मंत्रियों व पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ केस दर्ज किए। इन कार्रवाईयों के जरिए भगवंत मान ने जनता को भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने व अपनी छवि ईमानदार नेता के रूप में बनाने का प्रयास किया। लेकिन अब यह कहने में कोई संशय नहीं है कि भगवंत मान की राजनीतिक कमाई दिल्ली की आप सरकार ने लुटा दी है। आज भगवंत मान को न केवल अपनी पार्टी के सुप्रीमो श्री अरविंद केजरीवाल का बचाव करना पड़ रहा है बल्कि उस कांग्रेस पार्टी के नेताओं के साथ  भी मंच सांझा करना पड़ रहा है जिसको वे पंजाब में पानी पी-पी कर कोसते रहे हैं। पंजाब में आप कार्यकर्ताओं को लगने लगा है कि श्री केजरीवाल ने खुद की ही पार्टी को गहन संकट में ला कर खड़ा कर दिया है। आशा की जानी चाहिए कि जेल में स्वाध्याय करते समय श्री केजरीवाल को अवश्य ऐसा कोई धर्मसम्मत मार्ग मिलेगा जिससे वे अपनी पार्टी की डोलती हुई नैया को पार लगा सकेंगे।

राकेश सैन

32, खण्डाला फार्म

ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ा

जालन्धर।

सम्पर्क : 77106-55605

कांग्रेस और खालिस्तान में गर्भनाल का रिश्ता

माँ और सन्तान के बीच गर्भनाल का रिश्ता ही ऐसा होता है, कि प्रसव के बाद शरीर अलग होने के बावजूद भी आत्मीयता बनी रहती है। सन्तान को पीड़ा हो त...