
सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि फिल्म कानूनी सीमाओं में रहकर की गई 'कलात्मक अभिव्यक्ति' है और इस पर रोक लगाने का कोई उचित कारण नहीं। फिल्म पर रोक लगाने की मांग करने वाले याचिकाकर्ता का कहना था कि फिल्म मनगढ़ंत तथ्यों से भरी हुई है और ये एक प्रचार (प्रोपगेंडा) फिल्म है। न्यायालय ने ये आरोप खारिज कर दिए। संजय निरुपम और जगदीश टाइटलर जैसे कांग्रेसी नेताओं ने फिल्म पर आपत्ति जताई थी। कांग्रेसी नेता चाहते थे कि रिलीज से पहले फिल्म उन्हें दिखाई जाए लेकिन मधुर भंडारकर ने इससे इनकार कर दिया। मधुर भंडारकर के वकील ने सर्वोच्च अदालत से कहा कि उन्होंने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) द्वारा बताए गए 14 हिस्सों को फिल्म से हटा दिया और उसके बाद उसे बोर्ड से प्रमाणपत्र मिल चुका है।
प्रश्न उठता है कि आखिर कुछ कांग्रेसी नेता 'इंदु सरकार' से क्यों डर रहे हैं? असल में फिल्म इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाए गए आपात्काल पर आधारित है। फिल्म के ट्रेलर को देखकर साफ जाहिर है कि फिल्म के दो मुख्य भूमिकाएं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी से प्रेरित हैं। इंदु, इंदिरा गांधी का घरेलू नाम था। कांग्रेसी नेता जगदीश टाइटलर का दावा है कि फिल्म में एक चरित्र उन पर आधारित है। फिल्म को लेकर कांग्रेसियों के डर को समझने से पहले इसके प्रचार दृश्य (ट्रेलर) के कुछ संवाद देखें- 'अब इस देश में गांधी का मायना बदल चुका है;, 'इमरजेंसी में इमोशन नहीं मेरे ऑर्डर चलते हैं', 'आज से आपका टारगेट 350 से नहीं, 700 नसबंदियां हैं', 'भारत की एक बेटी ने देश को बंदी बनाया हुआ है, तुम वो बेटी बनो जो देश को मुक्ति का मार्ग दिखा सके;, 'सरकारें चैलेंजेज से नहीं चाबुक से चलती हैं;, 'तुम लोग जिंदगी भर माँ-बेटे की गुलामी करते रहोगे' इत्यादि इत्यादि।
स्पष्ट है फिल्म में कांग्रेस की सबसे दुखती रग आपातकाल को छुआ गया है। फिल्म में संजय गांधी के तानाशाही रवैये, इंदिरा गांधी सरकार द्वारा विपक्ष के दमन, प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों के हनन आदि सबकुछ दिखाया गया है। ये सारे मुद्दे कांग्रेस के लिए पिछले दशकों से सिरदर्द का कारण रहे हैं। इसी के चलते कांग्रेस इस फिल्म पर रोक चाहती है।
हैरानी की बात है कि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर भारत के टुकड़े करने, देश से आजादी चाहने वाले देशद्रोहपूर्ण नारों का समर्थन करने वाली कांग्रेस पार्टी अब किसी फिल्मकार को इसकी आज्ञा नहीं देना चाहती कि कोई उनके नेताओं की गलतियों को उजागर करे। कांग्रेस इससे पूर्व किस्सा कुर्सी का, आंधी, नसबंदी जैसी फिल्मों का विरोध कर चुकी है। लोगों को याद है कि आपात्काल का विरोध करने पर कांग्रेस ने 1981 में गायकार किशोर के गाने आकाशवाणी से गायब करवा दिए थे। देश की जिस पीढ़ी ने आपात्काल का संताप झेला वह अपनी जीवन यात्रा की ढलान पर है। मेरी पीढ़ी ने भी इसके किस्से ही सुने व संताप झेल चुकी पीढ़ी का अनुगामी होने के चलते कुछ दर्द भी महसूस किया परंतु आज की नस्ल तो इससे पूरी तरह से अंजान है। आखिर उसे क्यों नहीं बताना चाहिए कि देश को स्वतंत्रता मिलने के 28 साल बात साल 1975 में देश के लोकतंत्र को बंधक बना लिया गया था। किस तरह मनमर्जी से सत्ताधीशों ने अपने राजनीतिक विरोधियों को जेलों में ठूंसा, उन पर गोलियां-लाठियां चलाईं, धरना-प्रदर्शन और हड़ताल जैसे लोकतांत्रिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। विचारों की स्वतंत्रता पर सीधा कुठाराघात करते हुए प्रेस का गला घोंटा गया। नौजवानों की जबरन नसबंदियां की गईं। नागरिकों के हर तरह के मौलिक अधिकारों में सरकारी व राजनीतिक हस्तक्षेप हुआ। नई नस्ल जब तक इसके बारे नहीं जाने की तब तक उसे लोकतंत्र के महत्त्व का कैसे भान होगा। उन्हें कैसे पता चलेगा कि लोकतंत्र की बहाली के लिए देशवासियों ने किस तरह जनतांत्रिक तरीके से संगठित हो और जीवन का बलिदान दे कर तानाशाही को समाप्त किया। क्या इन लोकतांत्रिक संग्रामियों का महत्त्व स्वतंत्रता सेनानियों से कम है? आपात्काल देश का काला अध्याय है तो इसके खिलाफ जननायक जयप्रकाश नारायण उपाख्य जेपी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अकाली दल व अन्य संगठनों के नेतृत्व में जनता का संघर्ष लोकतंत्र के प्रति भारतीयों की आस्था का उज्जवल पक्ष है। यह हमारी युवा पीढ़ी को लोकतंत्र से जोडऩे वाला इतिहास है। कांग्रेस क्यों अपना चेहरा छिपाने के लिए युवाओं को अपने देश के इतिहास ज्ञान से वंचित करना चाहती है।
अभिव्यक्ति का स्वतंत्रता की मनमाफिक व्याख्या नहीं हो सकती कि मीठा मीठा गप्प गप्प और कड़वा कड़वा थू थू। कांग्रेस को जिन विचारों से लाभ हो वह तो ठीक और जिससे नुक्सान हो उसका विरोध। इसे कांग्रेस की बौद्धिक बेईमानी कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा। कांग्रेस को इंदु सरकार फिल्म के कालेपन से डरने की बजाय अपने मन की कलुषता को धोने का प्रयास करना चाहिए।
- राकेश सैन
Good Job....
ReplyDeleteSave democracy from dictatorship of Congress
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