Wednesday, 30 August 2017

ये कहानी है दीये की और तूफान की

निर्बल से लड़ाई बलवान की
यह कहानी है दीये की और तूफान की
इक रात अंधियारी, थीं दिशाएं कारी-कारी
मंद-मंद पवन था चल रहा
अंधियारे को मिटाने, जग में ज्योत जगाने
एक छोटा-सा दीया था कहीं जल रहा
अपनी धुन में मगन, उसके तन में अगन
उसकी लौ में लगन भगवान की ...1
कहीं दूर था तूफान, दीये से था बलवान
सारे जग को मसलने मचल रहा
झाड़ हों या पहाड़, दे वो पल में उखाड़
सोच-सोच के जमीं पे था उछल रहा
एक नन्हा-सा दीया, उसने हमला किया
अब देखो लीला विधि के विधान की ...2
दुनिया ने साथ छोड़ा, ममता ने मुख मोड़ा
अब दीये पे यह दुख पडऩे लगा
पर हिम्मत न हार, मन में मरना विचार
अत्याचार की हवा से लडऩे लगा
सर उठाना या झुकाना, या भलाई में मर जाना
घड़ी आई उसके भी इम्तेहान की ...3
फिर ऐसी घड़ी आई, घनघोर घटा छाई
अब दीये का भी दिल लगा काँपने
बड़े जोर से तूफान, आया भरता उड़ान
उस छोटे से दीये का बल मापने
तब दीया दुखियारा, वह बिचारा बेसहारा
चला दाव पे लगाने, बाजी प्राण की ... 4
लड़ते-लड़ते वो थका, फिर भी बुझ न सका
उसकी ज्योत में था बल रे सच्चाई का
चाहे था वो कमजोर, पर टूटी नहीं डोर
उसने बीड़ा था उठाया रे भलाई का
हुआ नहीं वो निराश, चली जब तक साँस
उसे आस थी प्रभु के वरदान की ... 5
सर पटक-पटक, पग झटक-झटक
न हटा पाया दीये को अपनी आन से
बार-बार वार कर, अंत में हार कर
तूफान भागा रे मैदान से
अत्याचार से उभर, जली ज्योत अमर
रही अमर निशानी बलिदान की
ये कहानी है दीये की और तूफान की
दिल करता है गीतकार भरत व्यास के लिखे और गायकार मन्ना डे मधुरकण्ठ से निकले इस सदाबाहार गीत को बार-बार गाऊं, चीख-चीख कर दुनिया को सुनाऊं कि जीत अंतत: धर्म की होगी, सच्चाई की ही होगी। सच्चाई को झूठ परेशान कर सकता है परास्त नहीं। गीत में अगर तूफान की जगह पर डेरा सच्चा सौदा के संचालक संत गुरमीत राम रहीम और दीये के स्थान पर बलात्कार पीडि़ता बहनों को रख दिया जाए तो लगता है कि दशकों पूर्व है भरत व्यास ने इस घटना का स्टीक विश्लेषण कर दिया था। मैं याद करता हूं उस दिन को जब पीडि़त बहनें अपने मन में भगवद् प्राप्ति की आस लिए घर से निकली होंगी और दुर्भाग्य से उस इंसान की शरण में आईं जो तूफान की भांति सत्ता और ताकत के घमण्ड में उमड़-घुमड़ रहा था।
ये अकड़ आए भी क्यों! न जब पूरी प्रदेश सरकार नत्मस्त हो, बड़े-बड़े मंत्री, सांसद, विधायक मिलने के लिए घंटों-घंटों बारी का इंतजार करे। नौकरशाही सेवा करने को तत्पर रहे तो गर्दन ऐंठी जाना स्वभाविक ही है। ऐसा तूफान फिर दीये को 'क्या पिद्दी क्या पिद्दी का शोरबा' ही मानता होगा और माना भी, कर दिया दीये पर हमला। मसल डाली उसकी लौ।
जैसा कि सामान्यत: होता है मसले जाने के बाद दुनिया दीये का ही साथ छोडऩे लगी। याद करें उन दिनों को जब न तो पुलिस प्रशासन ने इन पीडि़ताओं की सुनी न ही सरकार ने। प्रधानमंत्री को कोई पत्र तब ही लिखता है जब निचले स्तर पर हर कहीं सुनवाई बंद हो जाए। ये तो भला हो पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय का जिसने इन अज्ञात पीडि़ताओं के पत्र का संज्ञान लेते हुए केंद्रीय जांच ब्यूरो को जांच का काम सौंप दिया। उस समय की चौधरी ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली इंडियन नैशनल लोकदल की सरकार ने इस जांच को रोकने के लाख प्रयास किए परंतु वह सफल नहीं हो पाई। सीबीआई के संयुक्त निदेशक व जांच अधिकारी मुलिंजा नारायणन ने पटाक्षेप किया है कि बाबा की ताकत का ही कमाल था कि तत्कालीन यूपीए सरकार के दौरान कांग्रेस के 4-5 सांसदों ने सीबीआई के निदेशक पर दबाव डाला कि पूरे केस को बंद कर दिया जाए। इस अहंकारी तूफान की तीव्रता बढ़ाने का काम हर राजनीतिक दल ने किया, चाहे वो इनैलो हो या कांग्रेस या वर्तमान में सत्ताधारी भाजपा की सरकार। हरियाणा की सत्तारूढ़ सरकार तो यह कह कर कानून का मखौल उड़ाती रही कि 'आस्था पर धारा 144 लागू नहीं होती।' अहंकारी बाबा का साथ देने की यह निकृष्ठतम उदाहरण है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकार अंत तक बाबा के मौखिक आदेश मानती दिखी और सुरक्षा के प्रबंधों के नाम पर लीपापोती होती रही। सरकारी महाधिवक्ता द्वारा एक अपराधी घोषित इंसान का सूटकेस उठाने राजनीति के पतन की पराकाष्ठा नहीं थी तो और क्या था। हर किसी ने मतों के सौदागर बाबा की देहरी पर सिर पटका।
इतनी विपरीत परिस्थितियों में स्वभाविक ही है कि दीये की भांति लड़ते-लड़ते हताश भी हुई होंगी और थकी भी होंगी। जिस तूफानी बाबा व अनुयायियों को रोकने के लिए पांच-पांच राज्यों की पुलिस, पूरी व्यवस्था, अर्धसैनिक बल, सेना तक लगानी पड़ी हो उसके सामने 'दीये' सी कमजोर अबलाओं की क्या बिसात रही होगी परंतु उन्होंने लडऩा नहीं छोड़ा। दीये की भांति ये चाहे कमजोर थीं परंतु उनकी इंसाफ की डोर नहीं टूटी। दुर्योधन की भांति सरकार व राजनीतिक दलों की नारायणी सेना के बल पर चाहे भगवान होने के दावे तूफान की ओर से किए जा रहे थे परंतु धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र की भांति विराटरूप धारी कृष्ण खड़े थे सच्चाई के साथ, धर्म के साथ। अहंकारी तूफान ने खूब पांव पटके, ताकत के लटके झटके दिखाए। बाबा के श्रद्धालुओं ने खूब हिंसा की, खून बहाया,सरकारी व निजी संपत्ति को जलाया जीत अंतत: धर्म की हुई, सच्चाई व न्याय की ही हुई।
'दीये और तूफान' का यह महासमर सदियों तक स्मरण किया जाता रहेगा भारतीय न्यायिक व्यवस्था की ऊंचाई व राजनीतिक पतन का। पूरे प्रकरण में जहां राजनीति ने बेशर्मी का प्रदर्शन किया वहीं न्याय व्यवस्था ने जनसाधारण के मन में इस धारणा को पुख्ता किया कि देश में शासन है कानून का। दिल से निकलता है 'दीये' की जय, न्यायाधिकारी जगदीप सिंह की जय जिन्होंने मामले का नीर-क्षीर विवेचन किया, जांच अधिकारी सीबीआई के संयुक्त निदेशक मुलिंजा नारायणन, सतीश डागर की जय जिन्होंने बाबा, उनके अनुयायियों के साथ-साथ सरकार का दबाव झेलते हुए भी सच्चाई का साथ नहीं छोड़ा, न्याय की नाजीर साबित की। जब भी हमारी न्यायिक व्यवस्था की चर्चा होगी तो इस मामले का अवश्य जिक्र होगा और देशवासियों का सिर स्वत: ही इनके सम्मान में झुक जाएगा।


- राकेश सैन
मोबाईल - 097797-14324

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