कश्मीरी पंडितों को देख कर अनायस ही 1969 में आई हिंदी फिल्म संबंध का वह गीत जिव्हा पर तैर जाता है -
अंधेरे में जो बैठे हैं, नजर उन पर भी कुछ डालो, अरे ओ रोशनी वालो
आज देश के सेक्युलर, बुद्धिजीवी, मानवतावादी पूरी ताकत के साथ रोहिंग्याओं के कुछ सच्चे तो कुछ काल्पिनक दु:ख पर अपने आंसुओं से पूरे देश को डुबो देने की जिद्द किए हुए हैं परंतु उन 3 लाख कश्मीरी पंडितों के बारे में एक शब्द नहीं कहा जा रहा जो केवल इसलिए अपने घरों से उजाड़ दिए गए क्योंकि वे हिंदू थे, भारत को अपनी माता मानते थे। 27 साल पहले कश्मीर में हिंदू बहनों की इज्जत को सड़कों पर उछाला गया, दुराचार और हत्या के बाद नग्न शरीरों को पेड़ों से लटकाया गया और लोहे की तारों से मासूम बच्चों के गले रेते गए। बहनों ने अपनी लाज बचाने के लिए घरों की छतों से कूद कर जानें दीं, लोगों जो जबरन धर्म बदलने के लिए मजबूर किया गया या उनकी हत्या कर दी गई। जो बचे वो आज भी जम्मू, दिल्ली सहित देश के विभिन्न हिस्सों में लाखों की संख्या में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। रोहिंग्याओं के पक्ष में मानवतावादी तर्क देने वाले इन कश्मीरी पंडितों पर क्यों निशब्द हो जाते हैं।
कश्मीरी पंडितों पर असहिष्णु व अत्याचारी संस्कृति के अत्याचारों की इतिहासिक पृष्ठभूमि रही है। महर्षि कश्यप की धरती कश्मीर वैदिक संस्कृति का केंद्र थी और शायद यही इसका अपराध भी बन गया। 14वीं शताब्दी में तुर्किस्तान से आये मुस्लिम हमलावर दुलुचा ने 60,000 लोगो की सेना के साथ कश्मीर में आक्रमण किया और कश्मीर में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना की। दुलुचा ने नगरों और गाँवों को नष्ट कर दिया और हजारों हिन्दुओ का नरसंहार किया। बहुत सारे हिन्दुओ को जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया। बहुत सारे हिन्दुओ ने जो इस्लाम नहीं कबूल करना चाहते थे, उन्होंने जहर खाकर आत्महत्या कर ली और अन्य पलायन कर गए या शहीद कर दिए गए। आज जो भी कश्मीरी मुस्लिम है उन सभी के पूर्वजो को इन अत्याचारों के कारण जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया था।
1947 में ब्रिटिश संसद के 'इंडियन इंडीपेंडेंस एक्ट' के अनुसार ब्रिटेन ने तय किया की मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को पाकिस्तान बनाया जायेगा। 150 राजाओं ने पाकिस्तान चुना और बाकी 500 राजाओ ने भारत। केवल एक जम्मू और कश्मीर के राजा बच गए थे जो फैसला नहीं कर पा रहे थे। इस्लाम के नाम पर बने पाकिस्तान को यह गंवारा नहीं था कि एक मुस्लिम बाहुल्य रियासत उसके कब्जे से बाहर जाए। उसने 1948 में कबाइलियों व पठानों के वेष में अपनी सेना भेज दी तो कश्मीर के राजा ने भी हिंदुस्तान में कश्मीर के विलय के लिए हस्ताक्षर कर दिए। भारत ने कश्मीर को बचाने के लिए अपनी सेना भेजी और सेना अभी पाकिस्तानी सेना व कबाइलियों को खदेड़ ही रही थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने संघर्ष विराम की घोषणा कर दी। परिणामस्वरूप एक तिहाई कश्मीर पाकिस्तान में ही रह गया। इसी के साथ चला वहां के हिंदुओं पर पाकिस्तानी सेना व कट्टर इस्लामिक विचारधारा के अत्याचार का दौर। इससे प्रताडि़त हो कर असंख्य हिंदू भारत पलायन करने को विवश हुए।
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मेरे खून की कीमत कुछ भी नहीं ? |
1990 में कश्मीरी पंडितों पर दोबारा अत्याचार का क्रम चला। बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्य और जाने माने वकील कश्मीरी पंडित तिलक लाल तप्लू का आतंकियों ने क़त्ल कर दिया। उसके बाद न्यायाधीश नीलकान्त गंजू को गोली मार दिया गया। सारे कश्मीरी नेताओ की हत्या एक एक करके कर दी गयी। उसके बाद 300 से ज्यादा हिन्दू महिलाओ और पुरुषो की नृशंस हत्या की गयी। कश्मीरी पंडित नर्स जो श्रीनगर के सौर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में काम करती थी, का सामूहिक बलात्कार किया गया और बाद में मार-मार कर उसकी हत्या कर दी गयी।
आफताब, एक स्थानीय उर्दू अखबार ने हिज्ब -उल -मुजाहिदीन की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, कि सभी हिन्दू अपना सामन पैक करें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएं। एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र, अल सफा ने इस निष्कासन आदेश को दोहराया। मस्जिदों में भारत और हिन्दू विरोधी भाषण दिए जाने लगे। सभी कश्मीरी हिन्दू/मुस्लिमो को कहा गया की इस्लामिक ड्रेस कोड अपनायें। सिनेमा और विडियो पार्लर वगैरह बंद कर दिए गए। लोगों को मजबूर किया गया की वो अपनी घड़ी पाकिस्तान के समय के अनुसार करे लें।
सारे कश्मीरी पंडितो के घर के दरवाजो पर नोट लगा दिया जिसमे लिखा था 'या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ कर भाग जाओ या फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ।' पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने टीवी पर कश्मीरी मुस्लिमो को भारत से आजादी के लिए भड़काना शुरू कर दिया। सारे कश्मीर के मस्जिदों में एक टेप चलाया गया, जिसमे मुस्लिमों को कहा गया कि वो हिन्दुओं को कश्मीर से निकाल बाहर करें। उसके बाद सारे कश्मीरी मुस्लिम सड़कों पर उतर आये। उन्होंने कश्मीरी पंडितों के घरों को जला दिया, कश्मीर पंडित महिलाओं का बलात्कार करके, फिर उनकी हत्या करके उनके नग्न शरीर को पेड़ पर लटका दिया गया। कुछ महिलाओं को जिन्दा जला दिया गया और बाकियों को लोहे के गर्म सलाखों से मार दिया गया। बच्चों को स्टील के तार से गला घोटकर मारा गया। कश्मीरी महिलाये ऊंचे मकानों की छतों से कूद-कूद कर जान देने लगीं। कश्मीरी मुस्लिम, हिन्दुओं की हत्या करते चले गए और नारा लगते चले गए की उन पर अत्याचार हुआ है और उनको भारत से आजादी चाहिए।
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कल जहां बसती थी खुशियां आज है मातम वहां, घाटी में विरान पड़े कश्मीरी पंडितों का घर |
3,50,000 कश्मीरी पंडित अपनी जान बचा कर कश्मीर से भाग गए। कश्मीरी पंडित जो कश्मीर के मूल निवासी हैं उन्हें अपना घर कश्मीर छोडऩा पड़ा। यह सब कुछ चलता रहा लेकिन सेकुलर मीडिया चुप रहा उन्होंने देश के लोगों तक यह बात कभी नहीं पहुंचाई इसलिए देश के लोगों को आज तक नहीं पता चल पाया की क्या हुआ था कश्मीर में। देश- विदेश के लेखक चुप रहे, भारत की संसद चुप रही, सारे सेकुलर चुप रहे।दुर्भाग्य की बात देखो कि आज जो लोग रोहिंग्याओं को भारत में शरण देने की बात करते हैं वही लोग कश्मीर में पंडितों को मकान बनाने के लिए सुरक्षित स्थान देने की बात चलते ही सड़कों पर तोडफ़ोड़ मचाना शुरू कर देते हैं। इन लोगों ने इसी तरह का अभियान अपने ही देश के नागरिक इन कश्मीरी पंडितों के लिए चलाया होता तो आज ये लोग शरणार्थी शिविरों में नहीं बल्कि अपने घरों में रह रहे होते।
राकेश सैन
मो. 097797-14324
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