Friday, 22 September 2017

खामोश गम का एक साल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पंजाब प्रांत के सह-संघचालक रहे ब्रिगेडियर जगदीश गगनेजा जी के देवलोक गमन को एक साल गुजर चुका है। यह हमला व्यक्ति विशेष से अधिक एक विचार पर ज्यादा फोकस था, वह विचार जो पंजाब में सांप्रदायिक सौहार्द का पक्षधर, हिंदू-सिख एकता की वकालत करने वाला व देश की इस 'खडग़बाहू' को मुख्यधारा के साथ अक्षुण्ण रखने वाला है। वह विचार जो देश के इस सीमावर्ती राज्य को राष्ट्रवाद की मंदाकिनी से पल्लवित करने को कहता है ताकि यह प्रदेश युगों से चली आरही सीमाप्रहरी की भूमिका और परंपरा निभाता रहे।




राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पंजाब प्रांत के सह-संघचालक रहे ब्रिगेडियर जगदीश गगनेजा जी के देवलोक गमन को एक साल गुजर चुका है। जमाना कहता है कि मैं खामोश हूं, चाहे  स्वयंसेवक के अनुशासन धर्म से बंधा मैं सड़कों पर उतर कर धरने नहीं दे रहा परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि गमगीन नहीं। मैं इंसान हूं पत्थर नहीं, जैसा कि जमाने ने समझ लिया। आखिर मेरे परिवार का वरिष्ठ सदस्य गया है, कोई सोच भी कैसे सकता है कि मेरा दिल रो नहीं रहा होगा। अनुशासन की खामोशी है परंतु दिल जल रहा है कि आखिर एक साल बाद भी हत्यारे पकड़े जाना तो दूर क्यों अभी तक पहचाने भी नहीं गए? आखिर गगनेजा जी जैसे भले इंसान ने किसका क्या बिगाड़ा होगा कि जो उनके खून का प्यासा हो गया? आखिर किस विचारधारा और किन ताकतों को गगनेजा जी से खतरा या नफतर थी?
मैं मानता हूं कि यह हमला किसी व्यक्ति विशेष से अधिक एक विचार पर ज्यादा फोकस था, वह विचार जो पंजाब में सांप्रदायिक सौहार्द का पक्षधर, हिंदू-सिख एकता की वकालत करने वाला व देश की इस 'खडग़बाहू' को मुख्यधारा के साथ अक्षुण्ण रखने वाला है। वह विचार जो देश के इस सीमावर्ती राज्य को राष्ट्रवाद की मंदाकिनी से पल्लवित करने को कहता है ताकि  यह प्रदेश युगों से चली आरही सीमाप्रहरी की भूमिका और परंपरा निभाता रहे।
केवल आज के युग की ही बात नहीं, सदियों से चला आरहा है कि सीमावर्ती राज्य होने के कारण पंजाब विदेशी षड्यंत्रों की भूमि रहा है। देश के दुश्मन यहां के लोगों को पथभ्रष्ट कर अपना उल्लू सीधा करने की कुचेष्टा करते रहे हैं। चाहे आंभी-अलक्षेंद्र (सिकंदर) का प्रकरण हो या मोहम्मद गौरी व जयचंद का अपवित्र गठजोड़, देश के सीमांत इलाकों में सदैव विदेशी आक्रांता पैर धरने की जगह तलाशते रहे हैं ताकि यहां की धरती को पददलित कर बाकी देश की अस्मिता को रौंदा जा सके। लेकिन षड्यंत्रों के सम्मुख चाणक्य और पृथ्वीराज की परंपरा रूपी चुनौती भी रही है जो शस्त्र और शास्त्र से विदेशियों को पराभूत करती आरही है। राष्ट्र के लिए सर्वस्व बलिदान करने वाली इसी परंपरा के अनुगामी थे ब्रिगेडियर गगनेजा जो हिंदू-सिख समाज में टकराव पैदा करने वाले हर प्रयासों से विफल करने का काम कर रहे थे। विदेश पौषित कुछ ताकतें हैं जो पंजाब में फिर से आतंकवाद का दावानल देखने की हसरत पाले हुए हैं। समय-समय पर यह ताकतें दोनो समाज में भेद पैदा करने का प्रयास करती रही परंतु उन्होंने सदैव अपने सम्मुख गगनेजा जी के रूप में बड़ी बाधा को पाया। पंजाब में जब भी समाज में टकराव के प्रयास किए गए तो श्री गगनेजा जी के नेतृत्व में संघ व समाज ने इसका तीव्र प्रतिकार किया। अढ़ाई दशक तक चले आतंकवाद और दुश्मनों की लाख कोशिशों के बावजूद भी पंजाब में सांप्रदायिक टकराव की कोई घटना नहीं हुई तो यह उसी राष्ट्रवादी विचारधारा की विजय है जिसके पुरोधा गगनेजा जी थे।
अपने दुश्मन देश को परास्त करने का एक बहुत बड़ा साधन रहा है व्यसन। पंजाब में आतंकवाद फैलाने से पहले पाकिस्तान की ओर से पहले नशे की तस्करी शुरु की गई। आतंकवाद समाप्त होने के बाद पिछले कुछ सालों से इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास किया और इसके चलते सीमापार से फिर से नशे की तस्करी का दौर चल पड़ा। नशों के खिलाफ गगनेजा जी के नेतृत्व में संघ और समाज ने पूरे प्रांत में जो अभियान चलाया उससे दुश्मन के मंसूबों पर पानी फेरने में काफी सहयोग मिला। पंजाब में जब-जब राष्ट्रीय संकट की समस्या खड़ी हुई तब-तब श्री गगनेजा जी ने मार्गदर्शन किया। समाज को विभाजित करने वाली कैंचीनुमा देशविरोधी ताकतें अपना काम करती रहीं तो गगनेजा जी सुईं बन कर समाज की दरारों पर एकता के पैबंद लगाते गए। शायद यही काम पसंद नहीं आया देश विरोधी ताकतों को, विचार व बुद्धि के बल पर गगनेजा जी को परास्त नहीं किया जा सकता था और न ही एक वीर सैनिक होने के कारण उन्हें चुनौती देकर समाप्त किया जा सकता था, सो कायरों ने हथियार चुना छिप कर वार करने का। गगनेजा जी चाहे शहीद हो गए परंतु उनके खून का एक-एक कतरा खाद पानी दे गया उस राष्ट्रवाद को जो कश्मीर से कन्याकुमारी, कच्छ से कोहिमा तक की पग-पग भूमि को एक अखण्ड राष्ट्र मानता है और इस भू-ख्रण्ड पर निवास करने वालों को एक परिवार की संतान।
अब शासन व प्रशासन की जिम्मेवारी बनती है कि वह मेरी अनुशासित खामोशी का मर्म समझे। अनुशासन से बंधा हुआ स्वयंसेवक धरने-प्रदर्शन नहीं करूंगा परंतु मेरी मांग रहेगी कि हत्यारों को गिरफ्तार कर उन्हें कानून सम्मत सजा मिले। आखिर पूूरा देश जानना चाहता है कि वह कौनसी विचारधारा है जिसे 'भारत के सिद्धांत' से इतनी घृणा है।
- राकेश सैन
मो. 097797-14324

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