Monday, 18 September 2017

स्वयंसेवकों की हत्याएं गौरी लंकेश के लिए 'क्लीन केरला'


छह माह पहले केरल में 'लाल सलाम' के क्रांतिदूतों ने कम्यूनिस्ट सरकार की शह पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या की थी तो गौरी लंकेश ने ट्वीट कर इसे 'क्लीन केरला' बताया था। किसी की हत्या पर प्रसन्नता कौन व्यक्त करता है? आसान उत्तर है कि वह मानव नहीं। किसी एक खास संगठन के कार्यकर्ताओं को केवल इसलिए मारा जाए कि वह हत्यारों की विचारधारा से सहमत नहीं तो इसे अलोकतंत्र, आतंकवाद, तानाशाही, असहिष्णुता या तीनों ही कहा जा सकता है। अगर कोई इन नृशंस हत्याकांडों को 'स्वच्छता अभियान' कहे तो? एसा व्यक्ति कुछ भी कहलाए परंतु 'इंसान' कहलाने के लायक नहीं है। पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या में दुबले-पतले हुए जा रहे सेक्युलरों व बुद्धिजीवियों को ज्ञात होना चाहिए कि उनकी प्राणप्रिया 'नायिका' इसी श्रेणी में आती हैं। 



गौरी लंकेश इतिहास की कितनी भी घृणित व विभत्स पात्र हो परंतु उसकी हत्या को उचित नहीं ठहराया जा सकता। यह न तो मानव संस्कृति है और न ही हमारी परंपरा। हमारी संस्कृति तो शिशुपाल जैसों को भी सौ बार सुधरने का अवसर प्रदान करती है परंतु वह कौन सी विचारधारा है जो मानव खून के खाद पानी से फलती-फूलती व प्रसन्न होती है। गौरी लंकेश जिस नक्सली समूह में काम करती थी वह अकसर वहां देखती होगी कि किस तरह अपने विरोधियों का खून पानी की तरह बहाया जाता है। हत्याओं के समर्थन के संस्कार अवश्य ही उन्हें इन्हीं नक्सलियों से मिले होंगे। गौरी जिस माक्र्सवादी साहित्य का अध्ययन करती होगी तो हत्याओं पर ताली पीटने की कला वहीं से सीखी होगी जो कहती है कि 'सत्ता बंदूक की नली' से निकलती है। माओ जे त्सुंग, स्टालिन जैसे हत्यारों को क्रांतिकारी बताते-बताते गौरी भूल गई होंगी कि मानव जीवन का भी कोई मूल्य होता है और विरोधियों को भी जीने का अधिकार है। परंतु गौरी लंकेश हमारे मन में तुम्हारे लिए चाहे सम्मान हो या न हो परंतु हम तु्म्हारी मौत पर आंखों में अश्रु लिए हैं।

''लंकेश मामले में यदि निष्पक्ष विचार करें तो निष्कर्ष यह निकलता है कि सिद्धारमैया सरकार में कोई सुरक्षित नहीं चाहे वामपंथी गौरी लंकेश हों या तर्कवादी एमएम कलबुर्गी, जिनके हत्यारे दो साल बाद भी पकड़े नहीं जा सके। कर्नाटक में पूरी अराजकता है। सवाल है कि जब लंकेश ने अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी, तब राज्य सरकार ने उन्हें सुरक्षा क्यों नहीं दी? दुर्भाग्या है कि कानून-व्यवस्था से जुड़े एक मामले का प्रयोग विश्व पटल पर देश को बदनाम करने में किया जा रहा है।''


अब एक प्रश्न गौरी लंकेश जैसी सोच वाली महिला को लेकर देशभर में हायतौबा मचाने वालों से। हत्या किसी की तर्कसंगत नहीं ठहराई जा सकती और गौरी के हत्यारों को भी उनके अंजाम तक पहुंचाया जाना चाहिए परंतु आपके पास क्या प्रमाण है कि गौरी की हत्या हिंदुनिष्ठ लोगों ने या संगठन ने की है ? यदि इनके पास साक्ष्य हैं तो विशेष जांच दल (एसआईटी) के सामने पेश करें। इसके पूर्व भी कई पत्रकार मारे गए हैं। 2013 में मुजफ्फरनगर में आईबीएन 7 के रिपोर्टर राजेश वर्मा का दंगाइयों ने कत्ल किया। जून 2015 में शाहजहांपुर में सोशल मीडिया पत्रकार जागेंद्र सिंह को कथित रूप से अखिलेश सरकार के एक मंत्री राममूर्ति यादव के उकसावे पर जिंदा जलाकर मारा गया। इन मामलों में यह वर्ग मुखर नहीं हुआ। क्यों? क्योंकि हिंदुवादियों को बदनाम करने का उन घटनाओं में मौका नहीं था! एक बात और, वामपंथी प्रचारतंत्र लंकेश को बहुत सुलह व अमनपरस्त बता रहा है। उनके ये गुण केवल नक्सलियों के लिए सुरक्षित थे, हिंदू समाज व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों के बाबत वे विषैली फुफकार के अलावा कुछ नहीं छोड़ती थीं। छह माह पहले जब एक आरएसएस कार्यकर्ता की केरल में हत्या हुई तब लंकेश ने ट्वीट किया- 'क्लीन केरला' (केरल की सफाई कर दो)। ये शांतिप्रियता है या हिंसा को उकसावा? क्या यही इंसानियत व वामपंथियों की प्रगतिशीलता रही है ?
लंकेश मामले में यदि निष्पक्ष विचार करें तो निष्कर्ष यह निकलता है कि सिद्धारमैया सरकार में कोई सुरक्षित नहीं चाहे वामपंथी गौरी लंकेश हों या तर्कवादी एमएम कलबुर्गी, जिनके हत्यारे दो साल बाद भी पकड़े नहीं जा सके। कर्नाटक में पूरी अराजकता है। सवाल है कि जब लंकेश ने अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी, तब राज्य सरकार ने उन्हें सुरक्षा क्यों नहीं दी? दुर्भाग्या है कि कानून-व्यवस्था से जुड़े एक मामले का प्रयोग विश्व पटल पर देश को बदनाम करने में किया जा रहा है।
- राकेश सैन
मो. 097797-14324

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