Monday, 18 September 2017

पत्रकारिता विरोधी कलम के सिपाही

पत्रकार मृणाल पांडे 
पत्रकार सुप्रतीक

 मोदी के जन्मदिन पर  पत्रकार मृणाल पांडे ने ट्विटर पर गधे की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा- 'जुमलाजयंती पर आनंदित, पुलकित, रोमांचित वैशाखनंदन।' उन्होंने  मोदी का समर्थन करने वालों की तुलना गधे से की जो हर हाल में खुश है। इस ट्वीट का और सरलीकरण करें तो मृणाल पांडे कहना चाहती हैं कि उनके कहे अनुसार देश की हालत खराब है और श्री मोदी के समर्थक फिर भी प्रसन्न हैं। अमेरिका के अखबार हफिंगटन पोस्ट में काम करने वाले भारतीय मूल के पत्रकार सुप्रतीक ने ट्वीट किया कि 'ये जानकर खुशी हो रही है कि मोदी अपने रिटायरमेंट और मौत के एक साल और करीब आ गए हैं।'


चाहे कोई बहुत अच्छा लिख लेता हो, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अच्छी पकड़ हो और लंबे समय तक बड़े मीडिया समूह के संपादक पद को भी गौरवान्वित कर चुका हो इतनी योग्यता के बावजूद कोई गारंटी नहीं है कि वह अच्छा पत्रकार भी हो। इसी तरह अपने अंग्रेजी ज्ञान के बल पर विदेशी पत्रिकाओं के पन्ने भरने वाले भी पत्रकारिता की कसौटी पर खरे उतरें यह कोई जरूरी नहीं। पत्रकारिता का अर्थ है अपनी निजी पसंद-नापसंद को दरकिनार कर तथ्यों को जनता के सम्मुख प्रस्तुत करना और विरोध को भी सम्मान देना परंतु प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को लेकर दो विख्यात पत्रकारों की खीझ उनके जन्मदिन पर जनता के सामने आगई। हिंदुस्तान समाचारपत्र की संपादक मृणाल पांडे और अमेरिका के मशहूर अखबार हफिंगटन पोस्ट में काम करने वाले भारतीय मूल के पत्रकार सुप्रतीक चैटर्जी ने श्री मोदी के जन्मदिन पर ट्वीट कर पत्रकारिता को शर्मसार कर दिया है।
मृणाल पांडे का ट्वीट

 पत्रकार सुप्रतीक का ट्वीट

मृणाल पांडे ने ट्विटर पर गधे की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा- 'जुमलाजयंती पर आनंदित, पुलकित, रोमांचित वैशाखनंदन।' यानि उन्होंने श्री मोदी का समर्थन करने वालों की तुलना गधे से की जो हर हाल में खुश रहता है। इस ट्वीट का और सरलीकरण करें तो मृणाल पांडे कहना चाहती हैं कि उनके कहे अनुसार देश की हालत खराब है और श्री मोदी के समर्थक फिर भी प्रसन्न हैं। मोदीफोबिया से ग्रसित एक अन्य पत्रकार ने तो सारी सीमाएं लांघ दीं। अमेरिका के मशहूर अखबार हफिंगटन पोस्ट में काम करने वाले भारतीय मूल के पत्रकार सुप्रतीक ने ट्वीट किया कि ये जानकर खुशी हो रही है कि मोदी अपने रिटायरमेंट और मौत के एक साल और करीब आ गए हैं। मृणाल पांडे पत्रकारिता की दुनिया का बहुत बड़ा नाम है। मृणाल पांडे हिंदुस्तान अखबार की संपादक रही चुकी हैं। वो प्रसार भारती के अध्यक्ष पद पर भी काम कर चुकी है। इसके अलावा दूरदर्शन के लिए भी उन्होंन काम किया है. मृणाल पांडे को 2006 में पद्म श्री से भी नवाजा जा चुका है।
एक पत्रकार होने के नाते इस तरह के ट्वीट पढ़ कर बहुत दु:ख हुआ। पत्रकार लोकतंत्र की बात करते हैं। आलोचना और विरोध के लोकतांत्रिक अधिकारों की बात करते हैं ..लेकिन लोकतांत्रिक अधिकारों के इस्तेमाल के वक्त मृणाल जैसी पत्रकार /लेखिका और संपादक अगर अपनी नाख़ुशी या नापसंदगी जाहिर करने के लिए असभ्य शब्दों और चित्रों का प्रयोग करेगा .. किसी के समर्थकों की तुलना गधों से करेगा तो कल को दूसरा पक्ष भी मर्यादाओं की सारी सीमाएँ लाँघकर हमले करेगा तो उन्हें गलत किस मुँह से कहेंगे?

विचारनीय पक्ष यह है कि कुछेक लोगों को छोड़ कर मीडिया के एक बड़े वर्ग की खामोशी किस तरफ इशारा करती है। अब कहां है एडीटर्स गिल्डस व प्रेस काउंसिल जिन पर पत्रकारिता के मानदंडों को बनाए रखने की जिम्मेवारी है। अगर यही गलती किसी और से हुई होती तो मीडिया जगत परे राष्ट्र को शोक स्नान करवा रहा होता। अब पूछने वाले तो पूछेंगे ही क्या मृणाल पांडे पद्म पुरस्कार देने वालों का ऋण उतार रही हैं ?


इन ट्वीटों से किसी और को नहीं बल्कि खुद मृणाल व सुप्रतीक को ही नुक्सान हुआ है क्योंकि इनकी वैचारिक दासता का खुलासा हो गया। अतीत में इनके द्वारा किए गए या भविष्य में किए जाने वाले राजनीतिक विश्लेषणों का वजन कम हो गया है। एक संपादक जिसे अपनी निजी भावनाओं, पसंद व नापसंद की इतनी चिंता हो या वो इसे छिपा न सके वह किस तरह अपने पत्रकारिता के धर्म का निष्पक्षता से पालन करता होगा ? इसका जवाब  बहुत मुश्किल बात नहीं है। इससे भी आगे जाते हुए विचारनीय पक्ष यह है कि कुछेक लोगों को छोड़ कर मीडिया के एक बड़े वर्ग की खामोशी किस तरफ इशारा करती है। अब कहां है एडीटर्स गिल्डस व प्रेस काउंसिल जिन पर पत्रकारिता के मानदंडों को बनाए रखने की जिम्मेवारी है। अगर यही गलती किसी और से हुई होती तो मीडिया जगत परे राष्ट्र को शोक स्नान करवा रहा होता। अब पूछने वाले तो पूछेंगे ही क्या मृणाल पांडे पद्म पुरस्कार देने वालों का ऋण उतार रही हैं?
जहां तक सुप्रतीक के ट्वीट का सवाल है वह अत्यंत असभ्य और संस्कारविहीनता का प्रतीक है। दुनिया की किसी भी संस्कृति में अपने दुश्मन की भी मौत की कामना नहीं की जाती। हमारी संस्कृति को सर्वेभवंतु सुखिन: वाली है परंतु कान्वेंट स्कूलों से निकली एक पीढ़ी जब संस्कारों से दूर कर दी गई हो तो वह वही कुछ करेगी जो सुप्रतीक ने किया है।

राकेश सैन
मो. 097797-14324

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