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रोहिंग्या आतंकियों से पीडि़त म्यांमार के हिंदू |
दो जमा दो बराबर चार मानने वाले इसे पक्षपात कहेंगे और नाक की सीध में चलने वाले विरोधाभास कि देश में रोहिंग्या मुसलमानों का विरोध करने वाले रोहिंग्या हिंदुओं का स्वागत करने की बात करते हैं। म्यांमार में हिंदू रोहिंग्याओं पर अत्यधिक अत्याचार हो रहा है। अराकाइन रोहिंग्या साल्वेशन आमी के आतंकी व कट्टरपंथी उन्हें इस्लाम कबूल करने को विवश कर रहे हैं। वहां हिंदू पुरुषों की हत्या कर महिलाओं व बच्चों को कट्टरपंथी मुसलमान अपने पास रहने को मजबूर कर रहे हैं। इनका जबरन धर्मांतरण किया जा रहा है। इसका प्रमाण वहां से विस्थापित हो कर बांग्लादेश में शरण लिए सैंकड़ों हिंदू परिवार हैं जो रो-रो कर अपनी व्यथा सुनाते हैं परंतु उनकी न तो नोबेल पुरस्कार विजेता म्यांमार की कौंसलर सूची सुन रही और न ही मलाला का ध्यान इन पर गया है। ऐसे में भारत का दायित्व बनता है कि वह या तो म्यांमार की सरकार के समक्ष इस मुद्दे को उठा कर हिंदुओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करे या इन्हें भारत में शरण दी जाए। जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि दो और दो चार की तर्ज पर सोचने वाले व नाक की सीध में चलने वाले इसे दोगलापन बता सकते हैं और कह सकते हैं कि जब रोहिंग्या मुसलमानों को शरण का विरोध हो रहा है तो हिंदुओं का स्वागत क्यों ? देश के कट्टरपंथी इसे बेईमानी कहेंगे तो छद्म धर्मनिरपेक्ष इसे सांप्रदायिकता परंतु ऐसा कुछ भी नहीं है। यह दोगलापन नहीं, इसे विशुद्ध मानवता व न्याय का ही दर्जा दिया जा सकता है और तो और यह भारतीय कानून सम्मत बात भी है। न्याय व मानवता की व्यवहारिक बात हो तो दो और दो बाईस भी हो सकते हैं और ठोकर से बचने के लिए नाक की उलट दिशा में भी चलना पड़ सकता है।
पूरी बात समझने के लिए आज से दो-तीन सदी पीछे जाना होगा। आज का दक्षिण एशिया जिसमें भारत के साथ-साथ पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, तिब्बत, अफगानिस्तान, म्यांमार (ब्रह्मदेश), श्रीलंका (सिंहलीद्वीप) और यहां तक कि प्राचीन काल में इंडोनेशिया, मलेशिया, जावा के द्वीप, सिंहपुर (सिंगापुर) एक ही राष्ट्र के भू-भाग थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज भी अखण्ड भारत की बात करता है तो उक्त सभी देश इसमें शामिल हो जाते हैं। हिंदू इसी अखण्ड भारत का मूल निवासी है अर्थात भारत से अलग हुए इन देशों में रहने वाले हिंदू भारत के भी निवासी रहे हैं। इतिहास साक्षी है कि समय-समय पर देश के उक्त हिस्से मूल भाग से कटते गए परंतु देश के इन विभाजनों में हिंदुओं की कहीं भी कोई भूमिका नहीं रही बल्कि हिंदू अपनी क्षमता व योग्यता अनुसार देश के विखण्डन का विरोध ही करते रहे। जब दूसरी ताकतों के चलते देश का विभाजन हुआ तो इसका दंड उन हिंदुओं को नहीं दिया जा सकता जो आज भी वहां रह रहे हैं जो किसी कारण उस समय भारत नहीं आए। विभाजन से पीडि़त हो कर अधिकतर हिंदू उस समय भारत आगए परंतु बहुत से आने बाकी हैं। विस्थापन उस समय हुआ हो या आज होना हो इसमें कोई अंतर नहीं पड़ता। हिंदू भारत-भू को मातृ भूमि-पितृ भूमि मानता है। समय-समय पर हुए विभाजनों की बाकी प्रक्रियाएं तो पूरी कर ली गईं परंतु अभी इन हिंदुओं का अपनी मातृ भूमि में आगमन बकाया है। देश के विभिन्न हिस्सों का विभाजन चाहे सदियों पहले हुआ हो परंतु पीडि़त हिंदुओं का विस्थापन अब होना हो तो इसमें किसको आपत्ति हो सकती है? वैसे भी भारत हिंदुओं का मूल देश है। दुनिया में कहीं भी हिंदुओं पर अत्याचार होता है तो वह सहायता के लिए भारत की ओर ही तकते हैं।
रोहिंग्या हिंदुओं को भारत में शरण देना कानून का उल्लंघन भी नहीं। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने आते ही 31 दिसंबर, 2014 को पास्पोर्ट अधिनियम 1920 और विदेशी अधिनियम 1946 में संशोधन संबंधी अधिसूचना जारी करके करके भारत के पड़ौसी देशों में रह रहे अल्पसंख्यकों जिनमें हिंदू, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध, इसाई शामिल हैं को भारत प्रवेश की अनुमति दी। इसमें इन नागरिकों को यह भी सुविधा दी गई कि अगर इनके पास उचित कानून दस्तावेज नहीं या इनकी अवधि समाप्त हो गई तो भी इनको यहां बसाया जा सकता है। इस अधिसूचना के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में पाकिस्तान, बांग्लादेश से आए हिंदुओं को यहां नागरिकता दी जा चुकी है और उनका पुनर्वास किया जा चुका है। आज इस्लामिक कट्टरपंथियों से परेशान व पीडि़त रोहिंग्या हिंदू भारत की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं। ऐसे में भारत का दायित्व बनता है कि मानवता के आधार पर इन हिंदुओं को या तो मूल निवास पर सुरक्षित रहने का अधिकार दिलवाए अन्यथा अपने देश में सम्मानजनक शरण दे। हम देश के वासी अपने रोहिंग्या हिंदुओं के स्वागत के लिए तैयार हैं।
- राकेश सैन
मो. 097797-14324
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