प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी विलक्षण कार्यशैली और विचारों के चलते पूरी दुनिया में पहचाने जाते हैं। इस दशहरे के दिन मोदी ने रावण पर निशाना साधने के लिए धनुष की प्रत्यंचा खींची तो धनुष ही टूट गया। उन्होंने दूसरे धनुष का इंतजार करने की बजाय अपनी इसी विलक्षणता का परिचय देते हुए तीर को हाथ से ही फेंक दिया और रावण के वध की प्रक्रिया संपन्न हुई। लगता है कि देश की अर्थव्यवस्था भी इसी विशेष मार्ग पर चल कर पटरी पर आने वाली है। विगत यूपीए सरकार के कार्यकाल में देश ने कथित तेज गति वाली अर्थव्यवस्था के नाम पर 'भ्रष्ट अनर्थव्यवस्था' का संताप भोगा और अब 'ईमानदार अर्थव्यवस्था' जन्म ले रही है। देश चाहे इस नई आर्थिक व्यवस्था के जन्म की प्रसव पीड़ा से गुजर रहा है परंतु प्रसन्न भी है कि वह इसी अनर्थशास्त्र को अर्थशास्त्र में परिवर्तित होने के एतिहासिक पलों का साक्षी भी बन रहा है।
अपनी शुरू करने से पहले आपसे अनुभव सांझा करना चाहता हूं। मेरा एक मित्र जो कैमिस्ट शॉप करता है, जीएसटी से बहुत दुखी है। झोली भर-भर कर गालियां उलीचता है मोदी सरकार पर। उसको कष्ट है कि अब एक-एक गोली का हिसाब रखना पड़ रहा है। गोली कहां से आई, कौन कंपनी से आई, कितने में आई, किसको बेची, कितने में बेची इत्यादि इत्यादि। वह मनमोहन सिंह सरकार के आर्थिक तेजी वाले उन दिनों को याद करता है जब टॉफी चाकलेट की तरह दवाएं बेची जा सकती थीं। बस हैल्थ इंस्पेक्टर व इस विभाग के छोटे से छोटे कर्मचारी को खुश रखना पड़ता था। मैने कहा यह तो अ'छी बात है अब तुम्हारा सारा काम पारदर्शी हो गया। तुम्हे भी आसानी काम चलाने की और हैल्थ इंस्पेक्टर साहिब के दर्शन भी नहीं करने पड़ेंगे। इस पर मित्र महोदय बोले, सिस्टम तो अ'छा है परंतु इसकी आदत नहीं है ना।
यह हालत केवल मेरे मित्र की नहीं, बल्कि लगभग हर उस व्यक्ति की है जो अपनी अपरिपक्व समझ से जीएसटी में खामियां ही खामियां गिनवा रहे हैं। मोदी ने नोटबंदी और जीएसटी के राजनीतिक और आर्थिक खतरे को जानते हुए भी ऐसा क्यों किया, इसे समझने के लिए 2014 के जनादेश को समझना जरूरी है। मोदी को देश के मतदाताओं ने तीस साल बाद जो पूर्ण बहुमत दिया वह भ्रष्टाचार के बिना विकास का था। भ्रष्टाचार के साथ विकास तो संप्रग सरकार के समय भी हो रहा था। तेज विकास और तेज भ्रष्टाचार। मोदी को जनादेश अर्थव्यवस्था से भ्रष्टाचार की सफाई के लिए है। भ्रष्टाचार के खिलाफ तमाम कदमों के साथ सबसे बड़ा कदम नोटबंदी का था। यह ऐसा कदम था जो मोदी को राजनीतिक रूप से खत्म भी कर सकता था, लेकिन मोदी ने जोखिम मोल लिया। उनके विरोधी जब तलवार लहरा रहे थे तो देश का गरीब समझ रहा था कि मोदी क्या और किसके लिए कर रहे हैं? यही वजह है कि नोटबंदी के समय लाइन में खड़े होकर हर तरह की तकलीफ उठाने वालों ने राजनीतिक दृष्टि से सबसे अधिक अहमियत रखने वाले उत्तर प्रदेश में लाइन लगाकर मोदी के नाम पर वोट दिया।
नोटबंदी के झटके से अर्थव्यवस्था उबर भी नहीं पाई थी कि मोदी ने जीएसटी लागू करने का फैसला करके एक और झटका दिया। नरेंद्र मोदी की आप चाहे जितनी आलोचना करें, लेकिन उन्हें राजनीतिक नासमझ नहीं कह सकते। उन्हें भी पता था कि इन दोनों कदमों से अर्थव्यव्स्था न केवल थम जाएगी, बल्कि कुछ समय के लिए नीचे भी चली जाएगी। सवाल है कि फिर उन्होंने ऐसा क्यों किया? इसके दो कारण नजर आते हैं, एक अपनी नीति पर भरोसा और दूसरे यह विश्वास कि देश के आम लोगों को उनकी नीयत पर भरोसा है। उनके सामने दो विकल्प थे। एक, भ्रष्टाचार होने दें और विकास की दर गिरने न दें। दूसरा, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाएं भले ही विकास दर गिर जाए। मोदी ने दूसरा रास्ता चुना। एक लाख मुखौटा कंपनियों का पंजीकरण रद कर दिया गया है और दो लाख संदिग्ध कंपनियों के बैंक खाते सील कर दिए गए हैैं। बैंकों से राजनीतिक रसूख और बैंक अधिकारियों से दोस्ती के आधार पर कर्ज मिलना और मुखौटा कंपनियों के जरिये उनको बाहर भेजने का धंधा बंद हो गया है। नोटबंदी ने देश के गरीब के मन में यह विश्वास जगाया है कि अवैध कमाई करने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है। सब पैसे बैंक में आ गए, इसका मतलब सब काले से सफेद हो गए, ऐसा निष्कर्ष राजनीतिक विरोधी ही निकाल सकते हैं। यह पैसा अपने साथ पुराने काले पैसे की लंबी लीक भी लेकर आया है। नोटबंदी और जीएसटी ने कांग्रेस राज में संस्थागत हो गए भ्रष्टाचार पर प्रहार किया है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था को नैतिक, पारदर्शी और कानून का पालन करने वाले को प्रोत्साहित करने वाला कदम है। इन सुधारों के बिना तेज विकास भ्रष्टाचार की नींव पर ही खड़ा होता। मनमोहन सरकार के दस साल इसका उदाहरण हैं।
यूपीए सरकार की कथित तेज अर्थ गति की बानगी देखिए। मोदी सरकार ने 1.6 करोड़ नकली राशन कार्ड रद्द कर दिए। इससे सालाना सब्सिडी बिल में करीब 10,000 करोड़ रुपए तक की बचत होगी। प्रश्न उठना स्वभाविक है कि अभी तक इन करोड़-डेढ़ करोड़ खातों में जाने वाला राशन किसकी जेब में जाता रहा है। इन राशन कार्डों के आधार पर कितने गैस कनेक्शन फर्जी रूप में चल रहे होंगे। केवल राशन कार्ड की रद्द नहीं हुए बल्कि इस पर मिलने वाली सब्सिडी की चोरी भी रुकी है। सरकार ने एलपीजी पर उपभोक्ताओं को डायरेक्ट सब्सिडी देकर 14,872 करोड़ रुपए बचाए हैं। देश के खजाने की बड़ी मोरी को बंद किया है केंद्र सरकार ने। आखिर जब इतनी बड़ी काली कमाई का अर्थचारे में प्रवाह रुका है तो इसका एक बार असर तो होगा ही।
कोई सोच सकता है कि वर्तमान में 250 रूपये में मिलने वाला एलईडी बल्ब मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में 600 रूपये में मिलता रहा है। आखिर किसको कमीशन मिलता रहा है और इसका क्या असर पड़ा? मोदी सरकार अब तक 7 करोड़ से अधिक एलईडी बल्ब वितरित कर चुकी है और इनके प्रयोग से देश में इतनी बिजली की बचत हुई है कि जिसको पैदा करने के लिए हर साल पांच लाख करोड़ रूपये खर्च करने पड़ते। केवल बिजली ही नहीं बची बल्कि इससे कम प्रदूषण भी हुआ है जो इस बिजली को पैदा करने की प्रक्रिया में उत्पन्न होता है। इससे देश में बिजली की उपलब्धता बढ़ी और उद्योगों को निर्बाध रूप से बिजली मिलने लगी है।
अबकी बार अगस्त-सितंबर महीनों में डेंगू, चिकनगुनिया व मलेरिया को लेकर इतना हाहाकार नहीं सुना जितना कि पहले अखबारों व टीवी पर पढ़ा व देखा जाता रहा है। इसकी क्या वजह रही होगी? स्पष्ट तौर पर यह स्व'छता अभियान का असर है, जिससे देश में गंदगी कम हुई और इससे पैदा होने वाली बीमारियों का असर भी कम होना शुरू हो गया है। स्व'छता में देश भर में अव्वल नंबर पर रहे इंदौर शहर के स्वास्थ्य अधिकारी ने राज्यसभा टीवी को एक साक्षात्कार में बताया कि अबकी बार मलेरिया, चिकनगुनिया व डेंगू की दवाओं में 20 करोड़ रूपये की कमी आई है। इंदौर की जनसंख्या अगर दस लाख भी मानी जाए तो प्रति व्यक्ति 20 रूपये लाभ केवल इन्हीं बीमारियों के इलाज में हुआ है।
जीएसटी को लेकर वर्तमान में व्यापारियों, उद्योगपतियों व व्यवसायियों को जो परेशानियां गिनवाई जा रही हैं वह अंशकालिक है और यह परेशानियां कम और आर्थिक अनुशासन अधिक हैं। घर हो या संस्था या सरकार जहां अभी तक अंधेर नगरी चौपट राजा वाली व्यवस्था चल रही हो और अचानक आर्थिक अनुशासन लागू कर दिया जाए तो इस तरह की परेशानी सामने आती ही हैं। इस अनुशासन के खिलाफ शोर मचाने वाले व नकारात्मकता फैलाने वाले शायद नहीं जानते या इस बात से अंजान बनते हैं कि यही आर्थिक अनुशासन देश को स्थाई प्रगति, ईमानदार व्यवस्था, विकसित राष्ट्र का निर्माण करने वाला है। देश की अब तक की अनर्थव्यवस्था अपनी स्वभाविक गति से अर्थव्यवस्था बनने की ओर कदम उठा रही है। इसके लिए हमें सुझाव व सहयोग देना चाहिए न कि झूठे-सांचे तर्क पेश कर धमाचौकड़ी मचानी चाहिए।
- राकेश सैन
मो. 097797-14&24
No comments:
Post a Comment