Controvercial Picture in American Text books |
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Hindu Organisations Protesting in America |
अमेरिका के विद्यालयों में पढ़ाई जाने वाली पाठ्यपुस्तकों की बानगी देखिए। एक चित्र में दिखाया जाता है इस्लाम के मक्का मदीना की भव्य ईमारत, मिस्र सभ्यता के लिए एक भव्य प्रतिमा, ईसाईयत के लिए भव्य प्राचीन ईमारत और पारसी धर्म के लिए एक हंसते हुए बच्चे के साथ ज्ञान की प्रतीक पुस्तक की। इसी के साथ दूसरी तस्वीर भी दिखती है, ऊपर लिखा है हिंदू और भारतीय सभ्यता और नीचे है गंदगी से सनी नालियों के आसपास बैठी गायें, गंदी बस्ती, गोबर के बट्ठल उठाए दो बच्चे और बंदरों के बीच एक श्रमिक और भी न जाने क्या-क्या ? केवल यही दो चित्र ही काफी है हालात ब्यान करने को कि किस तरह अमेरिका जैसे सभ्य समाज में जानबूझ कर हिंदुत्व व भारतीयता को जानबूझ कर बदनाम किया जा रहा है। इसके परिणाम घातक निकल रहे हैं, न केवल भारतीय बच्चों में अपने धर्म व देश के प्रति आत्मनिंदा व घृणा बढ़ रही है बल्कि दूसरे बच्चों में भारतीय बच्चों के प्रति नस्लीय हेय भावना। इसको बदलने की मांग को लेकर भारतीय समाज काफी समय से संघर्ष कर रहा है परंतु वहां पर वामपंथी, जिहादी, ईसाई मिशनरी, अलकायदावादी दलित संगठन, खालिस्तानी लॉबी इस दुषप्रचार को बनाए रखने का प्रयास कर रही है और संघर्ष छेड़े हुए है। दोनों पक्ष अपने-अपने प्रयासों के लिए संघर्षरत हैं परंतु संभावना है कि अमेरिकी सरकार अपने पाठ्यक्रमों की त्रुटि सुधारने जा रही है।
लगता है कि अमेरिका में हिंदू धर्म और समाज की दोषपूर्ण छवि दिखाने को लेकर छिड़ा एक दोतरफा आंदोलन अपने अंतिम दौर में पहुंच गया है। कैलिफोर्निया स्टेट बोर्ड ऑफ एजुकेशन स्कूलों के लिए अगले साल से नया पाठ्यक्रम लाने जा रहा है। इतिहास और सामाजिक विज्ञान के विषयों को लेकर हर 10 साल में बदलाव की यह प्रक्रिया होती है। नए पाठ्यक्रम में क्या नए बदलाव करने हैं, इसके लिए बोर्ड का इन्स्ट्रक्शनल क्वॉलिटी कमीशन सिफारिश करता है। पुराने पाठ्यक्रम में दक्षिण एशिया के इतिहास से संबंधित पुस्तकें भी हैं। इन पुस्तकों में हिंदू धर्म और हिंदू समाज को गलत, भ्रामक तरीके से दिखाए जाने को लेकर वहां के कुछ संगठनों ने 2005-06 से आंदोलन छेड़ा हुआ है। 'हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन', 'ओबेरॉय फाउंडेशन' और 'हिंदू एजुकेशन फ़ाउंडेशन' नाम के ये संगठन पाठ्यक्रम में बदलाव की मांग कर रहे हैं। इन संगठनों का कहना है कि मौजूदा पाठ्यक्रम में हिंदू धर्म से संबंधित पुस्तकें पुरानी, अशुद्ध और घिसी-पिटी हैं जिनमें भारतीयों और हिंदुओं की छवि गलत तरीके से पेश की गई है। यह पुस्तकें 19वीं सदी के औपनिवेशिक दौर के भारत को चित्रित करती हैं। स्कूलों में दी जा रही गलत जानकारी के चलते भारतीय बच्चों से स्कूलों में गलत व्यवहार किया जाता है और उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है। इन संगठनों ने एक ऑनलाइन याचिका दायर कर लोगों से समर्थन मांगा था। याचिका में कहा गया था, 'नए ड्राफ़्ट में संवेदनाहीन ढंग से हिंदू देवी-देवताओं को हास्यास्पद तरीके से दिखाया गया है जिससे उनका गलत चरित्र चित्रण हो रहा है। भारत की प्राचीन सभ्यता की उपेक्षा करने के लिए किताबों में आधुनिक दौर की उन तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया है जिनमें झोपड़-पट्टियां और कचरा खाती गाय दिख रही हैं। वहीं, दूसरी प्राचीन संस्कृतियों और धर्मों के बारे में संवेदनशील, सकारात्मक और सौंदर्यपूर्ण ढंग से बताया जाता है।' इन संगठनों के कई सालों से चल रहे इस आंदोलन का प्रभाव यह हुआ कि पिछले साल कैलिफोर्निया एजुकेशन बोर्ड अपने नए पाठ्यक्रम में हिंदू धर्म से संबंधित विषय सूची में कुछ बदलाव करने को राजी हो गया। हालांकि संगठन के मुताबिक ये बदलाव नाकाफी हैं, लिहाजा उनका विरोध जारी है।
इस पूरे मामले में दूसरा पक्ष है वामपंथी विचार से प्रेरित साउथ एशियन हिस्ट्रीज फॉर ऑल (साहफा) नामक संगठन का। अध्यापकों, छात्रों और समुदायों के सदस्यों वाले इस संगठन में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश के सभी धार्मिक समाजों के लोग शामिल हैं। ईश्वर को नहीं मानने वाले यानी नास्तिक भी इस संगठन का हिस्सा हैं। साहफा के मुताबिक हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व कर रहे संगठनों के विरोध का एक प्रमुख कारण हिंदू धर्म में जातिवाद है। साहफा का यह भी कहना है कि हिंदू संगठन नए पाठ्यक्रम में धार्मिक एजेंडा चलाना चाह रहे हैं। इनमें 'पौराणिक सरस्वती नदी को सिंधु घाटी की सभ्यता का हिस्सा बताना, भारत में इस्लाम की शुरुआत इस उपमहाद्वीप पर (मुस्लिम शासकों की) जीत के रूप में दिखाना शामिल है। साहफा का दावा है कि हिंदू संगठन पाठ्यक्रम से उन शब्दों को हटवाना चाहते हैं जो भारत की जातिवादी व्यवस्था की तरफ ध्यान खींचते हैं। इनमें जातिवाद की उत्पत्ति के अलावा जाति के नाम पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ संघर्ष और दलित शब्द हटाने जैसी मांगें शामिल हैं।
अमेरिका में कैलिफोर्निया और टेक्सास के स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली किताबों के बाजार का खासा प्रभाव है। इन राज्यों का पाठ्यक्रम देश के बाकी राज्यों के लिए मानक तय करता है। यही वजह है कि साहफा और हिंदू संगठन अपनी-अपनी मांगों को लेकर सालों से प्रदर्शन कर रहे हैं। अब यह तय होने वाला है कि दोनों तरफ के इस संघर्ष का परिणाम क्या होगा।
- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324
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