श्री गुरु ग्रंथ साहिब में मानव को 'मन नीवां मत्त उच्ची' अर्थात विनम्रता और शिक्षित होने का संदेश दिया गया है। स्वयं गुरु नानक देव जी उच्च कोटि के अध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ विद्वान, चिंतक, समाज सुधारक भी थे। शेष गुरुओं ने भी इसी परंपरा को अपने-अपने जीवन में ऊंचाई दी। इसी गुरु परंपरा से ही गुरमुखी के वर्णो को लिपीबद्ध किया जाना संभव हुआ। गुरु गोबिंद सिंह जी स्वयं संस्कृत, गुरुमुखी, हिंदी, फारसी सहित अनेक भाषाओं के विद्वान थे। सिख समाज ने शिक्षा, परिश्रम व ईमानदारी के बल पर न केवल खुद दुनिया के हर हिस्से में सफलता पाई बल्कि शिक्षा को प्रोत्साहन भी दिया। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी ने एक सपना देखा और उस स्वप्न को साकार करने में सबसे अग्रणी भूमिका निभाई महान सिख महापुरुष संत अतर सिंह, महाराजा पटियाला, महाराजा नाभा, महाराजा कपूरथला सहित संपूर्ण सिख समाज ने। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्यालय की नींव भी संत अतर सिंह जी के नेतृत्व में श्री गुरु ग्रंथ साहिब के पाठों की शृंखला के बाद डाली गई थी। सौभाग्यवश आज शिक्षा व संघर्ष के प्रतीक और धर्म ध्वजावाहक श्री गुरु गोबिंद सिंह जी व पंडित मदनमोहन मालवीय जी की एक साथ जयंती का सौभाग्य प्राप्त हुआ है तो इन महानुभावों का स्वत: चिंतन हो उठा। स्वतंत्रता सेनानी व कांग्रेस के राष्ट्रवादी नेता मालवीय जी का जन्म 25 दिसंबर, 1861 में हुआ। वे शिक्षा विशेषकर राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत शिक्षा के माध्यम से देश का उत्थान करना चाहते थे। इसी उद्देश्य से उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की बीजारोपण किया। उनके सतत् प्रयासों से 15 दिसंबर, 1911 को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय अधिनियम पारित हुआ परंतु इसके लिए लगभग एक करोड़ रूपये की आवश्यकता थी जो उस समय बहुत बड़ी राशि थी। मालवीय जी ने इसके लिए देशवासियों को अह्वान किया और सामने आया सिख समाज जिन्होंने तन, मन, धन से इस उद्देश्य के लिए अपने आप को खपा दिया। विश्वविद्यालय के शिष्टमंडल ने इसके लिए पंजाब का भ्रमण किया तो उनका जगह-जगह स्वागत हुआ और धन की वर्षा होने लगी। पटियाला के सम्राट यादविंदर सिंह (पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के पिताश्री) ने 50000 रुपये तत्काल रूप से दिए और 24000 रुपये वार्षिक अनुदान देने की घोषणा की। नाभा रियासत के सम्राट रिपुदमन सिंह ने 100000 रुपये, कपूरथला के सम्राट 10000 रुपये नकद और वनस्पति विज्ञान पीठ के लिए 6000 रुपये वार्षिक देना स्वीकार किया।

संस्कृत महाविद्याल
'हिंदू विश्वविद्यालय की नींव पवित्र अत्तर हरि ने धरी कर से।'
काशी के सिंहासन पर वहां के शासक कभी विराजमान नहीं होते थे और माना जाता था कि यहां काशी विश्वानाथ का निवास है और भगवान शिव के नाम पर शासन चलता था। लेकिन जब संत जी राजदरबार पहुंचे तो सम्राट प्रभुनारायण सिंह ने संत जी को उस सिंहासन पर विराजमान करवाया। 4 फरवरी 1916 को जब वायसराय लार्ड हार्डिंग्स ने यूनिवर्सिटी का नींवपत्थर रखा तो श्री गुरु ग्रंथ साहिब के पाठों की शृंखला संपन्न हुई। मालवीय जी ने अपने भाषण में अपने सिख गुरुओं व श्री गुरु ग्रंथ साहिब की महिमा का गुणगान किया।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की समिति का गठन हुआ तो इसमें ब्रिटिश साम्राज्य के भारतीय प्रतिनिधि को पदेन अधिकारी और 18 भारतीय रियासतों के सम्राटों को पदाधिकारी बनाया गया। इनमें महाराजा जगजीत सिंह, महाराजा रिपुदमन सिंह को भी शामिल किया गया। जब इस समिति की संख्या बढ़ाई गई तो नाभा के शिक्षा मंत्री सरदार बचन सिंह, लुधियाना जिले के बागडिय़ां के रहने वाले बाबा अर्जुन सिंह, रावलपिंडी के बाबा गुरबख्श सिंह, कपूरथला के मेजर जनरल बख्शी पूरन सिंह, हैदराबाद (सिंध) के दिवान लीलाराम सिंह, सिक्ख रिव्यू दिल्ली के संपादक भाई सर्दूल सिंह को भी इसमें शामिल किया गया। विश्वविद्यालय के इतिहास में अनेक सिक्ख विद्वान यहां के कुलपति, प्राचार्य, प्राध्यापक, अनुसंधानकर्ता रहे। आओ गुरुपर्व व महामना जी की जयंती पर हम फिर से देश में शिक्षा व ज्ञान का प्रकाश फैलाने के लिए एकजुट होने का संकल्प लें।
- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324
- संदर्भ ग्रंथ-'जीवन कथा, गुरमुख प्यारे संत अतर सिंह जी महाराज'(भाग-1)
लेखक संत तेजा सिंह
(एमए पंजाब, एलएलबी हार्वर्ड-यूएसए)
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