Sunday, 24 December 2017

मुफ्त का चंदन, घिस रहे 'पटियालाशाही नंदन'

एक समय देश में कौटिल्य जैसे ऐसे ऋषितुल्य राजपुरुष भी हुए जो निजी काम करते हुए राजकोष से खर्च की गई राशि का तेल भी दीपक में प्रयोग नहीं करते थे तो दूसरी ओर वर्तमान नेता भी हैं जो 'मुफ्त का चंदन जमकर घिस मेरे नंदन' के सिद्धांत में विश्वास करते हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री एवं पटियाला राजवंश के होनहार कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अप्रैल 2017 में निवेशकों को निमंत्रित करने के लिए मुंबई की सरकारी यात्रा में 25 लाख रुपये से अधिक फूक डाले। एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा सूचना के अधिकार के अंतर्गत मांगी गई जानकारी में यह सामने आया है कि पंजाब जैसे उस राज्य के मुख्यमंत्री अपने साथियों सहित दुनिया के सबसे महंगे होटलों में शामिल मुंबई के ताज होटल में दो दिन खूब ठाठ से रहे जहां विरासत में खाली खजाना मिलने का दावा किया जा रहा है। धनाभाव के कारण जहां कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के ताजा सिद्धांत पर चलते हुए 'विकास' को 'पागल' मान कर पिछले 9 महीनों से पागलखाने में बंद रखा जारहा है।

समाचार एजेंसी वार्ता द्वारा प्रकाशित समाचार के अनुसार, एक गैर-सरकारी संगठन सोशल रिफार्मर्स के अध्यक्ष राजेश गुप्ता ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह व उनके सहयोगियों द्वारा 10 से 12 अप्रैल 2017 में की गई मुंबई यात्रा का विवरण मांगा। यह यात्रा राज्य में निवेशकों को आमंत्रित करने के नाम पर की गई। इस टोली में वित्तमंत्री मनप्रीत सिंह बादल, ऊर्जा मंत्री राणा गुरजीत सिंह, मुख्यमंत्री के मुख्य सलाहकार, मीडिया सलाहकार को मिला कर 20 सदस्य थे। पूरी यात्रा पर 25.07 लाख का खर्चा आया जिसमें 6.58 लाख रुपये यात्रा खर्च,  होटल ताज का 15.32 लाख रुपये बिल आया। बाकी राशि विभिन्न मदों में खर्ची बताई गई। यात्रा खर्च के विवरण में बताया गया कि मुख्यमंत्री, ऊर्जा मंत्री सहित पांच लोगों ने व्यवसायिक श्रेणी (बिजनेस क्लास) से जबकि मनप्रीत सिंह बादल सहित बाकी लोगों ने सामान्य वर्ग (इक्नोमी क्लास) से दिल्ली से मुंबई के बीच वायुमार्ग से आवागमन किया। मुख्यमंत्री जिस कमरे में ठहरे उसका प्रतिदिन का किराया 80 हजार रुपये था और उसके साथ लघु मदिरालय (मिनी बार) की सुविधा भी थी। पूरी टीम दो दिन में 5 लाख का रात्रिकालीन भोजन जीम गई। खर्चों का विवरण और भी दिया गया है परंतु कुल मिला कर सारांश यही निकला कि सभी ने मुफ्त का चंदन रगड़ा और वो भी खूब दबा-दबा कर।

विपक्ष में रहते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह तत्कालीन अकाली-भाजपा सरकार पर आरोप लगाते रहे हैं कि गठजोड़ की सरकार ने राज्य को दिवालिया बना दिया है। सत्ता संभालने के बाद भी कैप्टन से लेकर वार्ड-मोहल्ला स्तर तक के कांग्रेसी नेता यही दावा करते रहे कि उन्हें विरासत में खाली खजाना मिला। ऐसे में वे अपने चुनावी वायदों को पूरा कैसे करें। अपने चुनावी घोषणापत्र में कांग्रेस पार्टी ने किसानों के ऋण माफ करने, युवाओं को स्मार्टफोन, हर घर में नौकरी देने जैसे वह सभी तरह के वायदे किए थे जिनको देख कर कोई भी व्यवहारिक व्यक्ति पहले ही अनुमान लगा सकता था कि इन्हें पूरा करना केवल धन की देवी लक्ष्मी या देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर के लिए ही संभव है। फिलहाल प्रदेश में दस सालों से सत्तारूढ़ प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाली अकाली-भाजपा गठजोड़ सरकार के खिलाफ राज्य में व्यवस्था विरोधी भावनाएं ही ऐसी फैली थीं कि प्रदेशवासियों ने सहज ही 'चाहुंदा है पंजाब-कैप्टन दी सरकार' अर्थात पंजाब कैप्टन की सरकार चाहता है जैसे कांग्रेस पार्टी के आकर्षक नारे में विश्वास कर लिया। अब वर्तमान कांग्रेस सरकार के लगभग 9 माह से अधिक के कार्यकाल में विकासकार्य या तो ठप हो गए या फिर कच्छप गति से रेंग रहे हैं। कर्मचारियों को देने के लिए वेतन बहुत मुश्किल से जुड़ पाता है और कई विभागों में वेतन विलंब से मिल रहा है। जब सामान्य कामकाज के लिए धन नहीं है तो वायदों और आश्वासनों का क्या कहें, देश की राजनीति में वे तो शायद गढ़े  ही जाते हैं भुलाने या भरमाने के लिए। ऐसे में मुख्यमंत्री और उनके सहयोगियों को लेकर आए उक्त समाचार ने सभी को हिला कर रख दिया है विशेषकर तब जब कि किसी राज्य का संवैधानिक मुखिया सत्ता में आया ही इस वायदे के साथ हो कि उनकी सरकार सार्वजनिक धन का दुरुपयोग रोकेगी।

वैसे यह समस्या केवल पंजाब या कांग्रेस पार्टी तक सीमित नहीं है, देश में कोई भी दल या सरकारें इससे अछूती नहीं। यह बात अलग है कि विपक्ष में रहते हुए इस तरह के खर्चों की आलोचना की जाती है और सत्ता मिलते ही सादगी की धोती खूंटी पर टांग दी जाती है। लोकतंत्र में नेताओं का जनप्रतिनिधि व जनसेवक माना जाता है। जनता उन्हें इस विश्वास के साथ शिरोधार्य करती है कि सरकार में जाकर यह लोग उनके जीवन में विकास का प्रकाश फैलाएंगे, देश को उन्नति के मार्ग पर प्रशस्त करेंगे। सरकारी खजाना जिसे देश के नेता मुफ्त का माल समझते हैं वास्तव में वह बड़े उद्योगपति से लेकर रेहड़ी-ठेला लगाने वाले व्यवसायी और सामान्य नागरिक द्वारा खून पसीने से कमाई गई धनराशि है जो करों के रूप में सरकार को मिलती है। यह खजाना किसी व्यक्ति या दल विशेष की का नहीं, अपितु जनसाधारण व देश की धरोहर है। इसकी रक्षा करना व इससे देश और समाज का पोषण करना जनप्रतिनिधियों का न केवल संवैधानिक बल्कि नैतिक दायित्व भी है। लेकिन देखने में आरहा है कि हमारे बहुत से नेता इसे अपनी निजी संपति मान कर शाही ठाठबाठ, दिखावे, फिजूलखर्ची में पानी की तरह बहा देते हैं। हाल ही में गुजरात में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में 5 लाख मतदाताओं ने नोटा (इन प्रत्याशियों में से कोई नहीं) के अधिकार का प्रयोग किया अर्थात वे मानते हैं कि चुनाव लडऩे वाले सभी प्रत्याशियों में कोई ऐसा नहीं है जो उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरे। अगर नप्रतिनिधियों का यही व्यवहार रहा और उन्होंने अपने में सुधार नहीं किया तो लाखों की यह संख्या बढ़ कर करोड़ों में हो सकती है। यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के लिए अत्यंत अपशकुनी संकेत है।

- राकेश सैन
32-खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो-097797-14324

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