मैं इस देश का कंकर हूं, थोड़ा-थोड़ा शंकर हूं। राष्ट्र की खातिर विषपान करना आता है, देश प्यार में मीरा बनना सीखा है सो जातिवाद का जितना जहर है मुझे दे दो। आप निर्मल हो जाओ, दिल में भरा सारा तेजाब निकाल दो। अन्यथा जला डालेगा यह विष अंदर तक तुम को भी, हमें भी और इस देश को भी। विष पीने की विशेषता मैने चाणक्य से सीखी, संघ का स्वयंसेवक होते हुए इसका प्रशिक्षण लिया। सो बन जाने दें मुझे नीलकंठ।
1. मेरे पूर्वज मनु ने दुनिया को वर्ण व्यवस्था के रूप में सर्वश्रेष्ठ सामाजिक व्यवस्था दी। आपको पसंद नहीं तो इसके लिए मैं क्षमायाचक हूं।
2. मेरे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने दुनिया को वेदों के रूप में ज्ञान का भण्डार दिया। जिनको जातिवाद फैलाने वाला लगा उन सभी से मेरी क्षमायाचना।
3. मेरे एक पूर्वज गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के जरिए घर-घर राम की अलख जलाई। जिनको इसमें जातिवाद दिखा उनसे मेरी क्षमायाचना।
4. तुम कहते हो मेरे पूर्वजों ने आपके जातिवाद को लेकर पूर्वजों पर अत्याचार किए। उसके लिए मेरी ओर से क्षमयाचना।
5. तुम दलित, वंचित, जातिवाद की जितनी भी सच्ची-झूठी कथाएं जानते हो चलो मैं उन्हें सभी को सच्च मान लेता हूं। अपने ऊपर सभी जिम्मेवारी लेता हूं। इन सभी घटनाओं के लिए मेरी ओर से क्षमायाचना।
धर्मग्रंथों में जितनी भी वह बातें जो कालबह्य हो चुकी हैं उसको मैं छोडऩे को तैयार हूं। धर्मगं्रथों का हिस्सा होने के कारण में उसको केवल पढ़ूंगा और दोहराऊंगा परंतु अमल नहीं करूंगा। चाहे कितना भी धार्मिक व प्रिय ग्रंथ क्यों न हो उसके असंगत हो चुके सिद्धांत मैं त्यागने को तैयार हूं परंतु हां उन्हें बदलने का अधिकार मेरा नहीं है। उनको बदला नहीं जा सकता। धर्मग्रंथों में संशोधन का अधिकार किसी को नहीं है। शास्त्र हैं हमारे सामाजिक संबंधों में शस्त्र न बनें। समाज में एकता बनी रहनी चाहिए।
जो पीड़ है वो पहाड़ नहीं बननी चाहिए। सदियों से समाज में रिश्तों की बर्फ जमी है पिंघलनी चाहिए। परस्पर अविश्वास की दीवार है ढहनी चाहिए। आप सभी माहनुभावों ने दलित चेतना विषय पर चर्चा में हिस्सा लेकर इस दिशा में समाज में नई बहस को जन्म दिया इसके लिए सभी मित्रों का आभार। चर्चा के दौरान किसी ने कटुवचन या अप्रिय शब्दों का प्रयोग किया हो तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं। शिकवे-शिकायतों, मित्रता-चर्चा का दौर यूं ही चलता रहना चाहिए। शिकवे भी अपने से होते हैं यह भी ठीक है कि अपनों के दिए दुख अधिक सालते हैं। पर अपने तो अपने होते हैं। भाई से भाई जो कुछ मरजी बांट ले पर बुजुर्गों को कोई नहीं बांट सकता। हमारे सभी के पूर्वज एक हैं, हमारी रगों में दौड़ रहा लहु एक है, हमारे सुख-दुख, इतिहास, वर्तमान, अतीत एक हैं फिर झगड़ा कैसा।
- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324
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