देश आज 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार की 99 वीं पुण्यतिथि मना रहा है। इस नृशंस हत्याकांड ने जहां अंग्रेजों के प्रति केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में सभ्य लोगों के मनों में अंग्रेजों के प्रति नफरत की भावना पैदा कर दी वहीं पूरे देश को एकजुट कर दिया। रोचक बात है कि इस एकता के प्रणेता कोई और नहीं बल्कि देश की रग-रग में बसे भगवान श्रीराम थे। इस कांड से पहले अमृतसर में मनाई गई रामनवमी ने हिंदू-मुसलमानों को एकजुट कर दिया और इसी से खफा हो कर ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को मजा चखाने की सोची और मौका मिला 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग होने वाली कान्फ्रेंस के दौरान। महान क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खान अपने साथी रामप्रसाद बिस्मिल को श्रद्धापूर्वक राम के नाम से पुकारते थे। भगवान श्रीराम इस देश की आस्था के प्रतीक ही नहीं बल्कि क्रांति की अग्निशिखा भी रहे हैं।
1919 वह वर्ष था, जब भारत के लोग आजादी को पाने के लिए नई हिम्मत और एकता का उदाहरण पेश कर रहे थे। अंग्रेजों ने रोलेट एक्ट लागू किया था, जिसने आग में घी का काम किया और आजादी की ज्वाला को और भड़का दिया। पंजाब में हिन्दू, सिख और मुस्लिम समुदाय की एकता अंग्रेजों को देखे नहीं सुहा रही थी। अंग्रेज किसी भी कीमत पर इस एकता को तोडऩे और भारतीय लोगों के मन में से निकल चुके डर को फिर से स्थापित करना चाहते थे। और इसके लिए किसी भी हद तक जा सकते थे। रोलेट एक्ट के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में एक जनसभा रखी गई थी। अंग्रेजों ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए 10 अप्रैल 1919 को दो बड़े नेताओं डॉक्टर सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को तथा महात्मा गांधी को भी गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन अपने नेताओं की गिरफ्तारी से आम जनता का क्रोध और भी भड़क उठा।
रोलेट एक्ट के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को शांतिपूर्ण तरीके से अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक जनसभा रखी गई, जिसे विफल करने के लिए अंग्रेज जबर्दस्त हिंसा पर उतर आए। यह विरोध इतना जबर्दस्त था कि छह अप्रैल को पूरे पंजाब में हड़ताल रही और 10 अप्रैल 1919 को हिन्दू एवं मुसलमानों ने मिलकर बहुत बड़े स्तर पर रामनवमी के त्योहार का आयोजन किया। यह आयोजन इतना जबरदस्त था कि बांटो और राज करो की नीति पर चल रही अंग्रेज सरकार इससे हिल गई। रामनवमी को निकाली गई शोभायात्रा का जगह-जगह स्वागत किया गया। केवल हिंदू-सिख समाज ही नहीं बल्कि मुसलमानों ने भी जगह-जगह स्टाल लगा कर शोभायात्रा का स्वागत किया। श्रद्धालुओं को मीठा शरबत पिलाया गया और मस्जिदों के बार स्टाल लगा कर शोभायात्रा पर पुष्पवर्षा की गई। अंग्रेजों ने इस आयोजन को रोकने की कई कुचालें रचीं परंतु सामाजिक एकता की भावना के सामने उनकी एक न चली। हिन्दू-मुसलमानों की इस एकता से पंजाब का तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडवायर घबरा गया। अंग्रेजों ने 13 अप्रैल की जनसभा को विफल करने के लिए साम, दाम, दंड, भेद के सभी तरीके अख्तियार कर लिए। अंग्रेजों ने खौफ पैदा करने के लिए लोगों के इस जमावड़े से कुछ दिन पहले ही 22 देशभक्तों को मौत के घाट उतार दिया। इस नरसंहार में मरने वालों की संख्या ब्रितानिया सरकार ने 300 बताई, जबकि कांग्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इसमें एक हजार से अधिक लोग मारे गए। जलियांवाला बाग में गोलियों के निशान आज भी मौजूद हैं, जो अंग्रेजों के अत्याचार की कहानी कहते नजर आते हैं।
- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324
No comments:
Post a Comment