Friday, 4 May 2018

हिंदू होगा अमेरिका का राष्ट्रपति

दुनिया में हिंदुत्व की स्वीकार्यता और हिंदुओं का सम्मान बढ़ रहा है। हमारे गुण अब दूसरों के ध्यान में आने शुरु हो चुके हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने विदायी भाषण में कहा है कि किसी दिन हिंदू होगा उनका राष्ट्रपति। जी हां वही हिंदू! जिसे मिटाने के लिए आज से बारह सौ साल से कभी अरब, कभी तुर्क, कभी अफगान तो कभी मुगल आते रहे है। वही हिंदू !जिसे साम्राज्यवादी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल ने असभ्य बताया और अपनी पीठ इसलिए थपथपाई थी कि उन्होंने दो सौ साल भारत पर राज कर इस जंगली जाति को जीने का तरीका सिखाया। 12 सौ सालों से बर्बर अफगानों व लालची अंग्रेजों को पराभूत करने के बाद आज हिंदू समाज फिर विश्व का नेतृत्व करने को तैयार दिखाई देने लगा है। बधाई हो। 

आज अपनी मेधा के बल पर अब पुन: हिंदू उभार पर है, दुनिया में हमें देखे जाने का नजरिया बदल रहा है। मोहम्मद बिन कासिम नामक लुटेरे के आने से पहले हमारा देश उन्नति के शिखर पर था। हिंदुओं पर विदेशी हमला कोई नई बात न थी। इससे पहले शक, हुण, कुषाण, अलक्षेंद्र (सिकंदर) जैसे हमलावर आए और हमसे परास्त हुए या हममें ही समाहित हो गए, परंतु इस हमलावर में कुछ नयापन था। इसके हाथ में तलवार के साथ कुरान, इरादों में लूटखसूट और व्यवहार में बर्बरता व नीचता थी। हिंदू समाज ने पहला जाहिल दुश्मन देखा जो बच्चों, महिला, कमजोर, वृद्ध तक को मारने वालों को गाजी की संज्ञा से सम्मानित करता। शरण में आए कमजोरों को गुलाम बनाता और अपने देश में कौडिय़ों के भाव बेचता।

अंग्रेजों के आने तक हिंदू समाज ने नाम बदल-बदल कर आरहे जंगली मानसिकता वाले इन हमलावरों का सामना किया। प्रारंभ में कुछ विचलित हुआ परंतु फिर लड़ा। जीता तो आगे बढ़ा परास्त हुआ तो झाड़-पोंछ कर फिर उठ खड़ा हुआ परंतु इन 12 शताब्दियों में लडऩा नहीं छोड़ा। हमसे लड़ते-लड़ते मुस्लिम शासक भी कहीं न कहीं हिंदू योग्यता व शूरवीरता का लोहा मान बैठे और अंग्रेजों के आते-आते परिस्थितियां यहां तक बदल गईं कि मुगलों का तो केवल नाम मात्र रह गया और बागडोर फिर हिंदुओं के हाथों आगई।

यह हिंदू समाज की योग्यता ही थी कि सदियों की लूटखसूट के बावजूद अंग्रेजों के आने तक भारत की विश्व व्यापार में हिस्सेदारी 25 प्रतिशत से भी अधिक थी। हमारे उद्योग-धंधे, व्यापारी, कारीगर विश्वविख्यात थे। आयात के नाम पर हम केवल सोना मंगवाते और कोई ऐसी वस्तु न थी जिसका हम निर्यात न करते हों। खुद अंग्रेजों ने हमारी समृद्धि के गुणगान किए, लेकिन इन दो सौ सालों में स्थिति बिलकुल विपरीत हो गई। भारत भूख और अभावों से ग्रस्त हो गया। इतिहास में कई बार ऐसा हुआ है कि दुर्दांत जातियां सभ्य समाज को एक समय तो अधीन करने में सफल हो जाती हैं, परंतु सभ्य लोग अपने पराक्रम, परिश्रम, मेधा के बल पर पुन: स्थापित हो जाते हैं। अपने इन्हीं गुणों के बल पर जहां भारतीय अपने देश के अंदर बदलाव ला रहे हैं वहीं असंख्य भारतीयों ने विदेश में जाकर देश की छवि को बदला है। आज भारत के वैज्ञानिक, टैक्नोक्रेट्स, सूचना क्रांति के विशेषज्ञ, चिकित्सक सहित, व्यापारी, व्यवसायी, कुशल कारीगर सहित अनेक क्षेत्र के विशेषज्ञ दुनिया में छाए हुए हैं। दुनिया का भारत को देखने का दृष्टिकोण बदल रहा है। तभी तो ओबामा कह रहे है कि एक दिन कोई हिंदू अमेरिका का राष्ट्रपति होगा।

यह ठीक है कि तस्वीर का दूसरा पहलु भी है, जहां हिंदू दुनिया में योग्यता का डंका बजा रहा है तो दूसरी ओर समाज भांति-भांति के विखण्डन, जातिवाद, क्षेत्रवाद, निर्धनता, संगठन शक्ति का अभाव जैसे समस्याएं भी मुंह बाए खड़ी हैं, परंतु 'अंधेरा बहुत घना है, पर दीपक जलाना कहां मना है।' हमें अभी लंबा सफर तय करना है, भारत माता को पुन: विश्व गुरु के पद पर आसीन करना है। इसके लिए न तो किसी से उलझने की आवश्यकता है न ही बहसने की। बस योग्यता के बल पर मंजिल की ओर अग्रसर होते रहना है। हमने दुनिया नहीं, उसका दिल जीतना है। सामने कई तरह की चुनौतियां हैं तो इनका निराकरण भी हमीं को करना है। मुझे विश्वास ही नहीं बल्कि पूर्णत: यकीन है कि अतीत की भांति अपने बाहुबल, बुद्धिबल व कौशल से हिंदू समाज इन बाधाओं को सर कर लेगा।

- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 09779-14324

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