पंजाब के लोगों ने उस कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में पसंद किया है जो मतदान से कुछ समय पहले तक कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी को नापसंद थे। सन् 1965 का भारत-पाक युद्ध लड़ चुके फुलकिया मिसल की पटियाला रियासत के महाराजा यादविंदर सिंह के राजकुमार कैप्टन अमरिंदर सिंह के नाम पर ही कांग्रेस ने ये विधानसभा चुनाव लड़े। पार्टी का नारा था 'चाहुंदा है पंजाब, कैप्टन दी सरकार।' सन् 11 मार्च, 1942 को जन्मे कैप्टन को 75वें जन्मदिन पर 77 विधानसभा सीटों का उपहार मिला। अत: कहा जा सकता है कि देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने चाहे एक प्रदेश जीता, परंतु राहुल पांचों राज्यों में हारे। राज्य में सत्तारूढ़ शिअद-भाजपा गठजोड़ की दस सालों से सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ लहर देखने को मिली और गठजोड़ 18 सीटों पर सिमट गया।
अकाली-भाजपा गठजोड़ जीत की तिकड़ी बनाने के लिए अपनी सरकार द्वारा करवाए विकास के नाम पर चुनावी समर में उतरा, लेकिन सफल नहीं हो पाया। बादल सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार की आंधी ने दस साल पुरानी सत्ता को उखाड़ फेंका। लोगों में आक्रोश अकाली दल के खिलाफ अधिक था परंतु खमियाजा भाजपा को भी बराबर भुगतना पड़ा।
चुनावों में बड़ा धक्का सत्ता की सबसे मजबूत दावेदार होने का दावा करती आई दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आआपा)को लगा जिसका अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा अपनी सहयोगी लोक इंसाफ पार्टी के साथ 22 सीटों पर हांफ गया। राज्य की राजनीति में उस समय बदलाव महसूस किया गया था जब दिल्ली में पैदा हुुई आआपा ने लोकसभा चुनाव में पूरे देश में से केवल पंजाब में 4 सीटें जीत कर यहां की राजनीति को तिकोणीय बनाने का प्रयास किया। विगत तीन सालों में आआपा ने अपनी गतिविधियां भी अत्यधिक बढ़ा दीं और उससे विश्लेषकों को एकबारगी भ्रम भी होने लगा था कि चाहे पार्टी राज्य में 100 सीटें जीतने के अतिशयोक्तिपूर्ण दावे कर रही है, परंतु वह बहुमत तो आसानी से जुटा सकती है।
साल 2016 के श्री मुक्तसर साहिब के माघी मेले व तलवंडी साबो के बैसाखी मेले में पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक रैलियों में जिस तरह भीड़ जुटी उनसे आआप को सत्ता के करीब माना जाने लगा। लेकिन इन रैलियों से जहां पार्टी का उभार सामने आया वहीं पतन की शुरुआत भी यहीं से हुई। आंशिक सफलता ने आआप नेताओं को अहंकारी बना दिया। चर्चा थी कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अपनी राष्ट्रीय महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति पंजाब के माध्यम से करने की इच्छा पाले बैठे थे और उन्होंने इस योजना को मूर्त रूप भी देना शुरू कर दिया। उन्होंने पहले स्थानीय आआप नेताओं को किनारे लगाना शुरू कर दिया। जैसे सुच्चा सिंह छोटेपुर को रिश्वत लेने की सीडी जारी कर बाहर का रास्ता दिखला दिया। मुख्यमंत्री पद के दावेदार सांसद भगवंत मान को शिअद अध्यक्ष सुखबीर बादल के खिलाफ जलालाबाद (प.), हिम्मत सिंह शेरगिल को बिक्रम सिंह मजीठिया के सामने मजीठा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में बलि का बकरा बना दिया। पार्टी के पंजाबी चेहरे जरनैल सिंह को लंबी विधानसभा क्षेत्र से स. प्रकाश सिंह बादल के सामने उतारा। केजरीवाल की आधी योजना तो सफल रही कि मुख्यमंत्री पद के तीनों दावेदार चुनाव हार गए, परंतु शेष योजना में नाकामी हाथ लगी। यह कहना $गलत न होगा कि दिल्ली की राजनीतिक सनसनी पंजाब में चटकी और गोवा में दरक गई। दोनों राज्यों ने केजरीवाल की राजनीतिक योजनाओं को धूल धूसरित कर दिया। अब दिल्ली के मुख्यमंत्री का कद किसी महानगर के महापौर के आसपास सिमट गया है।
चुनाव प्रक्रिया शुरू होने तक आआपा की स्थिति मजबूत कही जा रही थी परंतु टिकटों के आवंटन में 5-5 करोड़ की रिश्वत, महिला कार्यकर्ताओं के यौन शोषण, पूरी तरह नकारात्मक प्रचार, सिख मर्यादाओं से खिलवाड़ ने पार्टी की छवि को दा$गदार कर दिया। पार्टी पर खालिस्तानी आतंकियों की मदद लेने के आरोप तो काफी समय से लगते रहे, परंतु मतदान से पहले केजरीवाल के मोगा स्थित एक पूर्व आतंकी के घर रुकने की घटना ने आआप की छवि को तार-तार कर दिया। बठिंडा •िाले के मौड़ में हुए बम विस्फोट की घटना ने लोगों को हिला कर रख दिया। उन्हें लगने लगा कि कहीं आआप के रूप में खालिस्तानी आतंकी सत्ता पर काबिज हो बैठे तो देश की एकता अखण्डता खतरे में पड़ सकती है। ऊपर से दिल्ली सरकार के मंत्रियों की उछलकूद, सरकार के खराब प्रदर्शन,मंत्रियों की दा$गदार छवि का भी विपरीत असर पड़ा है क्योंकि पंजाब-दिल्ली के लोगों के बीच करीबी व घनिष्ठ संबंध हैं और दोनों पड़ौसी प्रदेश हैं।
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राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 09779-14324
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