मैं विदेश नीति का विशेषज्ञ तो क्या कोई बड़ा जानकार भी नहीं हूं, परंतु इतना ज्ञात है कि अभी तक हमारे और पाकिस्तान के संबंध काफी सीमा तक वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई, सेना व आतंकियों द्वारा ही तय किए जाते रहे हैं। दोनों पक्षों की सरकारें समय-समय पर आपसी संबंध सुधारने के अनेक प्रयास करती रही हैं, परंतु कभी आईएसआई तो कभी आतंकी संगठन भारत पर हमले करवा कर इन प्रयासों को पलीता लगाते रहे हैं। मैं यह नहीं कह रहा कि इन हमलों के पीछे वहां की सरकार का हाथ नहीं हो सकता, लेकिन अब समय आ गया है कि हमें अपनी विदेश नीति व भारत-पाक संबंधों को आतंकियों व आईएसआई या सेना की जकडऩ से मुक्त करवाना ही होगा और कहीं न कहीं से नई शुरुआत करनी ही होगी।
विगत माह 26 दिसंबर को अफगानिस्तान से लौटते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाहौर पहुंच कर पूरी दुनिया को चौंका दिया। ठीक उसी तरह जिस तरह मिस्र के नेता अनवर सादात ने 1970 में दुनिया को हैरान कर दिया था। सादात भी मोदी की तरह जहा•ा पर सवार हो कर येरुशलम पहुंच गए थे, अपने कट्टर दुश्मन देश इसराईल की संसद को संबोधन करने के लिए। मोदी की तरह सादात का कदम भी साहसिक था। इतिहास साक्षी है कि मिस्र और ईसराईल के बीच संबंधों में जो आज मधुरता है उसके पीछे सादात की दिलेरी ही सबसे बड़ा कारण है। पाकिस्तान जाकर मोदी ने कूटनीतिक जूआ खेला जिसका परिणाम तो भविष्य में समय के तराजू पर तोला जाएगा, परंतु ऐसा साहसिक दांव कोई 56 इंच के सीने वाला ही लगा सकता है। ऐसा नहीं कि मोदी पाकिस्तान की जाति-गौत्र और अतीत में इस तरह के शांति प्रयासों की कभी कारगिल तो कभी घुसपैठ के रूप हुई परिणति को जानते नहीं थे। अगर अनभिज्ञ होते तो पठानकोट हमले से पहले हाईअलर्ट क्यों जारी होता। यह तो हमारे ही कुछ लोगों की गद्दारी व ग$फलत से आतंकी वायु सेना के अड्डे में प्रवेश कर गए, अन्यथा केंद्र सरकार की ओर से तो कोई सामरिक चूक नहीं हुई थी।
पाकिस्तान पर $गुस्सा करने से पहले हमें वहां की आंतरिक स्थिति को समझना होगा। वहां चुनी हुई सरकार पर उस सेना और आईएसआई का प्रभुत्व है जो आतंकवाद को संचालित करते हैं। सेना का अस्तित्व केवल और केवल भारत विरोध पर टिका है। पाक सेना अपने देशवासियों को भारत का भय दिखा कर ही बरगलाती रही है। यही कारण है कि जब भी वहां की चुनी हुई सरकार भारत से संबंध सुधारने का प्रयास करती है तो आईएसआई या सेना के इशारे से भारत पर हमला हो जाता है। स्वाभाविक तौर पर इन हमलों को लेकर भारत में होने वाली प्रतिक्रिया दोनों देशों की जनता के मनों में द्वेष को और बढ़ा देती है। इस क्रम को तोडऩे के लिए हमें सावधान रहते हुए आपसी संबंधों को उक्त दोनों के बंधनों से मुक्त करना होगा। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और शांति प्रक्रिया दोनों मोर्चों पर सफलता प्राप्त करनी होगी।
लेकिन यह काम इतना आसान भी नहीं है। हमें शांति तो चाहिए, परंतु अपने लोगों की बलि देकर नहीं। पंचतंत्र की कहानी के नायक बगुले की नीति का हमें पालन करना होगा। गले में हड्डी फंस जाने से शेर दर्द में कराहते हुए बगुले को अपनी चोंच से हड्डी निकालने और बदले में पुरस्कार देने को कहता है। शेर की प्रवृत्ति से परिचित बगुला शेर के दोनों जबड़ों के बीच लकड़ी फंसा मुंह में बैठ कर शेर के गले से हड्डी निकाल देता है और बाहर आते समय लकड़ी भी निकाल लाता है। बाहर आकर बगुला शेर से पुरस्कार की मांग करता है तो शेर हंस कर कहता है, ''बेटा, शेर के मुंह से जिंदा निकल आया यह क्या किसी बड़े पुरस्कार से कम है।'' हमें पाकिस्तान के गले से सेना और आईएसआई की फांस भी निकालनी है, परंतु अपनी सुरक्षा के पुख्ता प्रबंधों के साथ। मोदी सरकार को हवन करते समय कुण्ड की अग्नि से हाथ भी बचा कर रखने होंगे।
- राकेश सैन
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