Saturday, 23 June 2018

योग, दुनिया को स्वीकार और सेक्युलरों का बहिष्कार

21 जून गुरुवार को चौथे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर देहरादून में आयोजित समारोह के दौरान 55 हजार से अधिक साधकों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि-योग व्यक्ति,परिवार,समाज,देश-विश्व और सम्पूर्ण मानवता को जोड़ता है। योग आज दुनिया की सबसे एकीकृत शक्ति में से एक बन गया है। भारतीयों के लिए एक तरफ सुखद अनुभव है कि आज पूरी दुनिया इस देश की एतिहासिक विरासत को स्वीकार करती जा रही है तो तस्वीर का दु:खद पहलु यह भी है कि हमारे देश की सेक्युलर बिरादरी अब भी योग को हेयदृष्टि से देखती है और सांप्रदायिक मानती है। यही कारण है कि जब 21 जून को पूरी दुनिया के 190 देशों के करोड़ों लोग योग-ध्यान कर रहे थे तो कांग्रेस सहित सभी सेक्युलरों ने इसका अघोषित बहिष्कार कर रखा था। दुनिया धरती, आकाश, सागर, पहाड़ों, नदियों, अरब देश के रेतीले टीलों तक में योग कर रही थी और सेक्युलर बिरादरी कोपभवन की मेहमान बनी बैठी थी। बात-बात पर ट्वीट करने वाले सेक्यूलर नेताओं ने इतने बड़े आयोजन पर 40 शब्दों के विचार रखने में भी उचित नहीं समझे।

युगों प्राचीन भारतीय योग पद्धति का दुनिया द्वारा अपनाया जाना अपने आप में सुखद अनुभव देता है। जब कोई भारतीय न्यूयार्क, वाशिंगटन या किसी अन्य बड़े देश में जाता है और वहां योग केंद्र देखता है तो वह स्वभाविक रूप से गौरव महसूस करता है। योग की स्वीकृति केवल शारीरिक व्यायाम की वैश्विक स्वीकार्यता नहीं बल्कि यह प्रमाण है कि दुनिया ने भारत के सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामय: और वसुधैव कुटुंबकम के सिद्धांतों को भी स्वीकार किया है। विश्व में दो विचारधाराएं सदा से समानांतर चलती रही हैं जिसमें एक कहती है सबकुछ मैं, सारा मेरा, सभी मेरे लिए। यह संस्कृति थोड़ी बहुत छूट भी देती है तो मैं के साथ मेरा को रियायत देती है जैसे मेरे साथ मेरा परिवार और मेरी आस्था मानने वाले भी सुविधा पा सकते हैं यानि संकीर्णता ही संकीर्णता। दूसरी ओर हमारी संस्कृति है जो पूरे विश्व को ही परिवार मानती है और जब सभी अपने हैं तो सभी कुछ अपनों के लिए ही तो है। इसी दूसरी विचारधारा का प्रतिनिधि है योग जो देश, काल, वातावरण, नस्ल, पंथ, जाति, अमीरी-गरीबी सभी भेदभावों से ऊपर उठना सिखाता है। लेकिन भारतीय होने के बावजूद देश की सेक्युलर बिरादरी भारतीय मन से अपरिचित दिखाई देती है और योग दिवस को राजनीतिक रूप से भारतीय जनता पार्टी और निजी तौर पर नरेंद्र मोदी से ही जोड़ कर देखती है। अन्यथा क्या कारण था कि खुशी-खुशी इस्लामिक टोपी डाल कर इफ्तार पार्टी में फोटो खिंचवाने वाले राहुल गांधी, अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव, तेजस्वी यादव, नीतिश कुमार, अरविंद केजरीवाल इस अंतर्राष्ट्रीय आयोजन से दूर रहे। 

आम भारतीयों के लिए गर्व का विषय है कि 2014 में 11 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर वर्ष 21 जून को योग का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने का फैसला लिया गया। महासभा के अपने संबोधन के दौरान 2014 में 27 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा आह्वान के बाद योग दिवस मनाने की घोषणा की गई थी। इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी देश के द्वारा दिये गये प्रस्ताव को यू.एन. के द्वारा मात्र 90 दिनों में ही लागू कर दिया गया हो। लोगों के स्वास्थ्य और भले के लिये पूरे विश्व भर के लोगों के लिये एक पूर्णतावादी दृष्टिकोण उपलब्ध कराने के लिये आम सभा के द्वारा वैश्विक स्वास्थ्य और विदेश नीति के तहत इस स्वीकृत प्रस्ताव को अंगीकृत किया गया है। भर्तृहरिशतकम् जिसका जिक्र 26 मई को मन की बात के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी किया में कहा गया है कि - 

धैर्य यस्य पिता क्षमा च जननी शान्तिश्चिरं गेहिनी
सत्यं मित्रमिदं दया च भगिनी भ्राता मन:संयम:।
शय्या भूमितलं दिशोस्पि वसनं ज्ञानामृतं भोजनं
ह्येते यस्य कुटिम्बिनो वद सखे कस्माद् भयं योगिन:।।

अर्थात जिसका पिता धैर्य, मत क्षमाशीलता हो और शांति चिरकाल तक साथ देने वाली पत्नी हो, सत्य मित्र, दया बहन, भाई मन का संयम हो। भूमि शैय्या, दिशाएँ ही वस्त्र हैं, ज्ञानरुपी अमृत ही भोजन है। ऐसे योगी जिसके कुटुम्बजन (परिवार) ही ऐसे हों, उसे कैसा भय? योग मानव जीवन में इन्हीं गुणों को पैदा करता है और इन्हीं गुणों से युक्त व्यक्तियों से बना समाज विश्व और पूरी मानवता के लिए कितना कल्याणकारी हो सकता है इसका अनुमान भी शायद सेक्युलरवादी नहीं लगा सकते।

असल में देश में पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन से पहले ही कुछ कठमुल्ला किस्म के लोगों ने योग की संकीर्ण व्याख्या कर इसे पंथ व संप्रदाय से जोडऩे का प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। लगता है कि तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले हमारे सेक्युलर राजनेता आज भी इन कठमुल्लाओं से भयभीत हैं और मानते हैं कि अगर योग करते दिख गए तो उनकी सेक्युलर पंथ की छिछालेदारी हो जाएगी। इस तरह की सोच रखने वाले सेक्युलरों को देखना चाहिए कि अरब देश भी योग को अपना रहे हैं और अबकी बार तो साऊदी अरब में महिलाओं ने योग समारोहों का नेतृत्व व आयोजन किया। हर बात पर सेक्युलर-सेक्युलर चिल्लाने वाले हमारे कुछ नेताओं को वास्तविक सेक्युलरवाद सीखने की अत्यधिक जरूरत है। वह सेक्युलरवाद जो सही अर्थों में धर्मनिरपेक्ष होगा और पाखण्डवाद से दूर होगा।

- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो-097797-14324

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