विगत यूपीए सरकार के कार्यकाल में सत्ताधारी पार्टी का नारा था, कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ। वर्तमान की बदलती परिस्थितियों में यह हाथ जन साधारण का तो पता नहीं परंतु आम आदमी पार्टी के साथ खिसकता अवश्य दिखाई देने लगा है। चाहे कांग्रेस के दिल्ली अध्यक्ष अजय माकन ने इससे यह कहते हुए इंकार किया है कि 'आप' को जब दिल्ली की जनता नकार रही है तो हम स्वीकार क्यों करें। लेकिन सभी जानते हैं कि देश में नकारी केवल आम आदमी पार्टी ही नहीं बल्कि कांग्रेस भी जा रही है और माना जा रहा है कि साल 2019 के लिए विपक्ष द्वारा किए जा रहे महागठजोड़ के प्रयासों के तहत दोनों दलों के बीच नजदीकीयां बनने लगी हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के पांच लोकसभा सीटों पर प्रभारी नियुक्त करना और दो को छोड़ देना संकेत करता है कि कांग्रेस में अजय माकन की दलील नहीं चलने वाली। उधर आम आदमी पार्टी के दूसरे बड़े गढ़ माने जाने वाले पंजाब में भी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कह दिया है कि इस गठजोड़ का फैसला हाईकमान को करना है अर्थात उन्हें कोई आपत्ति नहीं।
इस तरह की संभावनाओं को दूर की कौड़ी बताने वाले दावा कर सकते हैं कि सोनिया गांधी जब भी विपक्षी दलों की एकता के लिए बैठकें बुलाती थीं तो उसमें अरविंद केजरीवाल को कभी नहीं बुलाया परंतु पिछले महीने कर्नाटक में जब एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में अरविंद केजरीवाल और सोनिया-राहुल एक मंच पर खड़े थे। केवल इतना ही नहींकर्नाटक विधानसभा के बाहर लगी कुर्सियों की अगली कतार में सबसे किनारे की तरफ वे भी बैठे थे।
राजनीतिक गलियारों में फैली चर्चाओं की मानें तो धुआं तभी उठता है जब कहीं न कहीं चिंगारी सुलग रही होती है। कांग्रेस नेता अजय माकन की गठजोड़ को लेकर व्यक्त प्रतिक्रिया का जवाब देते हुए आम आदमी पार्टी के नेता दिलीप पांडे का जवाब आया कि-अजय माकन जी! कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता आम आदमी पार्टी के संपर्क में हैं और वे हरियाणा, दिल्ली और पंजाब में हमारा साथ हैं, और दिल्ली में हमसे वे एक सीट मांग रहें हैं। राजनीति के जानकार मानते हैं कि जब कर्नाटक में धुरविरोधी जनता दल (धर्मनिरपेक्ष) और कांग्रेस का गठबंधन हो सकता है तो आम आदमी पार्टी से क्यों नहीं। अतीत में दोनों दल मिल कर दिल्ली में सरकार चला चुके हैं। वर्तमान में कांग्रेस का ध्येय केवल और केवल भाजपा को पराजित करना है तो माना जा रहा है कि वह किसी भी स्तर पर जा कर अपमान का घूंट पीने को तैयार हो सकती है। इसके लिए आम आदमी पार्टी ने उन्हें दिल्ली में केवल एक-दो सीटें देने की बात हवा में उछाली है, देखना है कि वह कहां जाकर मार करती है। दिल्ली में लोकसभा की 7 सीटें हैं, पंजाब में 13 और हरियाणा में 10। साल 2014 की मोदी लहर में दिल्ली व हरियाणा की सारी सीटें बीजेपी के खाते में गईं थीं। बीजेपी का वोट प्रतिशत 46.6 और आम आदमी पार्टी का वोट प्रतिशत 33.1 था. कांग्रेस को 15.2 फीसदी वोट मिले थे। हालांकि इन चार सालों में राजनीतिक परिस्थितियों में काफी बदलाव आया है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी का ग्राफ ढलान पर है तो विधानसभा चुनाव में पंजाब में आप को जहां जबरदस्त झटका लगा वहीं उसके बाद समय-समय पर हुए उपचुनावों, निकाय चुनावों में केजरीवाल पार्टी के उम्मीदवार अपनी जमानतें तक नहीं बचा पाए। अभी हाल ही में पंजाब के शाहकोट में हुए उपचुनाव में आम आदमी पार्टी को केवल 199 मत मिले वहीं कांग्रेस की स्थिति पहले की भांति मजबूत रही। हरियाणा में आम आदमी पार्टी चाहे बंद मुट्ठी है परंतु प्रदेश की राजनीति में उसे इतना गंभीर राजनीतिक खिलाड़ी नहीं माना जाता। कांग्रेस और आप के संभावित गठजोड़ के खिलाफ आम आदमी पार्टी के नेताओं ने ही खतरे की घंटी बजानी शुरू कर दी है। सिख दंगा विरोधी राजनीति करने वाले पंजाब के विधायक एचएस फूलका इसको लेकर पार्टी छोडऩे की धमकी तक दे चुके हैं।
पर्यवेक्षक बताते हैं कि दोनों दलों में गठजोड़ होता है तो इसका लाभ आम आदमी पार्टी को मिलेगा क्योंकि उसके सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो चुका है। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल कांग्रेस को दो सीटें भी दे देते हैं तो शेष पांच में संभावना है कि वह टक्कर देने वाली स्थिति में तो आ ही जाएंगे। कांग्रेस को चाहे मतों या सीटों की दृष्टि से अधिक लाभ हो या न हो परंतु वह देश में विपक्षी दलों को यह संकेत देने में सफल अवश्य होगी कि वह महागठजोड़ को सफल करने के प्रति कितनी संजीदा है। फिलहाल अभी सभी तरह की चर्चाएं हवा में हैं परंतु राजनीति में चर्चाएं भी तो फैलाई जाती हैं ताकि अपनों व जनता की प्रतिक्रिया जानी जा सके। पूरी संभावना है कि सोनिया गांधी की अगली संभावित जीमनवार में एक पत्तल दिल्ली के मुख्यमंत्री का भी लगा दिखाई दे तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।
- राकेश सैन
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जालंधर।
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