Wednesday, 6 June 2018

ट्रंप और किम जोंग की सुरक्षा हिंदू गोरखों के हवाले

इसी महीने 12 जून को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग की सिंगापुर में बैठक होने जा रही है। दुनिया के सबसे हाईप्रोफाइल नेताओं की बैठक के दौरान सिंगापुर के सामने इनकी सुरक्षा को लेकर सबसे बड़ी चुनौती सामने आई तो वहां की सरकार को याद आए हिंदू गोरखा सैनिक, जिन्हें नेपाल से विशेष तौर पर भर्ती किया गया है। बहादुरी, ईमानदारी व स्वामी भक्ति में पूरी दुनिया में अग्रणी हिंदू गोरखा सबसे विश्वसनीय सैनिकों के रूप में दुनिया के सामने आए हैं। रोचक बात है कि तमाम हथियारों के बावजूद यह सैनिक अपने पास खुखरी रखेंगे जो गोरखाओं का पसंदीदा हथियार है और इसके बारे कहा जाता है कि जब हाथ में आती है तो दुश्मन का लहू पी कर ही म्यान में जाती है।

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन की मुलाकात पर दुनियाभर की नजऱें टिकी हुई हैं। इस ऐतिहासिक मुलाकात के लिए तैयारियां भी जोर-शोर से की जा रही हैं। इन तैयारियों का बहुत अहम हिस्सा है दोनों नेताओं की सुरक्षा। ट्रंप और किम की सुरक्षा के लिए गोरखा टुकड़ी भी तैनात की जाएगी। सिंगापुर में वीआईपी सुरक्षा की जानकारी रखने वाले राजनयिकों ने बताया कि दोनों नेता अपनी निजी सुरक्षा टीम भी लेकर आएंगे, लेकिन, सिंगापुर की पुलिस में गोरखा जवान शामिल होंगे जो बैठक की जगह, सड़क और होटल की सुरक्षा करेंगे। सिंगापुर में गोरखा जवानों की संख्या बहुत ज्यादा तो नहीं है लेकिन खास मौकों पर इस टुकड़ी को सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। हाल ही में शांगरी-ला होटल में सुरक्षा मुद्दे पर हुए सम्मेलन के दौरान गोरखा जवान तैनात किए गए थे। इस कॉन्फ्रेंस में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमरीकी रक्षा मंत्री जिम मैटिस और अन्य देशों के नेता शामिल थे। सिंगापुर पुलिस में 1800 गोरखा जवान हैं जो छह अर्धसैनिक कंपनियों का हिस्सा हैं। गोरखा सिंगापुर पुलिस का अहम हिस्सा माने जाते हैं। वीआईपी सुरक्षा से लेकर दंगों के दौरान भी इनका इस्तेमाल किया जाता है। सिंगापुर पुलिस की वेबसाइट पर इन्हे सख्त, सतर्क और दृढ़ कहा गया है जो सिंगापुर की सुरक्षा में सहयोगी हैं। सिंगापुर में गोरखा जवानों की नियुक्त ब्रिटिश पंरपरा से जुड़ी है जिसमें 200 से अधिक सालों तक सैनिकों की कुलीन रेजिमेंटों के लिए नेपाल से भर्तियां की गईं और भुगतान किया गया। गोरखा सैनिकों का पश्चिम के साथ पहला संपर्क 19वीं सदी में हुआ था जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने नेपाल के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। हालांकि, इस लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई थी लेकिन वो गोरखा जवानों की बहादुरी और युद्धक्षमता से बेहद प्रभावित हुए। इसके बाद अंग्रेजों ने ब्रिटिश सेना में इनकी भर्ती शुरू कर दी। अब गोरखा ब्रिटिश, भारतीय, नेपाली सेना में सेवा दे रहे हैं। वे ब्रूनेई और सिंगापुर के सुरक्षाबलों का भी हिस्सा हैं।

- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी
वीपीओ रंधावा मसंदा
जालंधर।
मो. 097797-14324

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