Saturday, 1 September 2018

रणजीत आयोग की रिपोर्ट बनाम श्री सत्यनारायण कथा

पंजाब की राजनीति वर्तमान में सेवानिवृत न्यायाधीश रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट पर गर्माई हुई है। कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने सत्ता संभालते ही इस आयोग का गठन किया था जिसको राज्य में हुई विभिन्न धर्मग्रंथों के अपमान, बहबलकलां गोलीकांड और कोटकपूरा में हुए लाठीचार्ज की घटनाओं की जांच का काम सौंपा गया था। रिपोर्ट पर 28 अगस्त मंगलवार को विधानसभा में चर्चा हुई जिसका सीधा प्रसारण किया गया। बहस में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी, विपक्षी आम आदमी पार्टी उसकी सहयोगी लोकइंसाफ पार्टी ने हिस्सा लिया जबकि अकाली दल बादल और भारतीय जनता पार्टी ने यह कहते हुए चर्चा का बहिष्कार किया कि विधानसभा में उनको बोलने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया। चर्चा के दौरान पूरी रिपोर्ट जांच दस्तावेज कम और श्री सत्यनाराण जी की कथा ज्यादा लगी। वही सत्यनारायण कथा जिसका वाचन करने वाले पुरोहित जानते हैं कि श्रोता क्या सुनना चाहते हैं और भक्तों को भी मालूम होता है कि पंडित जी क्या सुनाने वाले हैं। अंतर केवल इतना था कि श्री सत्यनारायण कथा सभ्य शब्दों में कही जाती है और रिपोर्ट पर बहस चौक-चोराहे पर बोली जाने वाली भाषा में हुई। देखने में आया कि बहुत से तथ्यों की अनदेखी कर इन घटनाओं का पूरी तरह से ठीकरा अकाली दल बादल पर फोड़ा गया और वह भी असंसदीय शब्दों में। रही सही कसर सरकार ने पूरे मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से छीन कर पंजाब पुलिस के विशेष जांच दल को सौंप दी। इससे देश की जनता में यह संदेश गया कि शायद कैप्टन सरकार को या तो सीबीआई पर विश्वास नहीं या वह अपने तरीके से जांच का निष्कर्ष निकलवाना चाहते हैं। सही अर्थों में रणजीत आयोग की ने पूरे मामले को सुलझाने की बजाय और उलझा दिया लगता दिख रहा है। ज्ञात रहे कि उक्त घटनाओं में जहां कई श्री गुरु ग्रंथ साहिब सहित कई धर्म ग्रंथों की बेअदबी हुई वहीं कोटकपूरा व बहबलकलां में प्रदर्शनकारियों व पुलिस के बीच झड़पें हुई जिसमें दो प्रदर्शनकारी मारे गए और कई घायल हुए। तत्कालीन मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल ने विपक्षी दल कांग्रेस की ही मांग पर पूरा मामला सीबीआई को सौंप दिया और जोरा सिंह बराड़ के नेतृत्व में आयोग का गठन किया। 2017 में कांग्रेस सरकार ने सत्ता संभालते ही इस आयोग को निरस्त कर रणजीत सिंह आयोग का गठन किया जिन्होंने हाल ही में अपनी जांच रिपोर्ट सरकार को पेश की है।

पंजाब की विधानसभा में पेश की गई श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी, बहबलकलां गोली कांड और कोटकपूरा लाठीचार्ज पर जस्टिस रणजीत सिंह की रिपोर्ट ने जहां प्रदेश की राजनीति में भूचाल लाया हुआ है वहीं अधिकारियों में भी बेचैनी पाई जा रही है। कुछ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि रिपोर्ट में एक डीएसपी, एक एसपी और एक डीआईजी स्तर के अधिकारी का नाम छोड़ दिया गया। इन घटनाओं में घायल लोगों ने भी अपने बयानों में इन पुलिस अधिकारियों के नाम लिखवाए थे और वे गोलीबारी के समय बहबलकलां में मौके पर मौजूद थे परन्तु उनके नाम रिपोर्ट में शामिल नहीं किए गए। यहां तक कि इन घटनाओं में घायल हुए 40 पुलिस कर्मचारियों के बयान भी रिपोर्ट का हिस्सा नहीं बने, जिनको प्रदर्शनकारियों ने तलवारों और लाठियों से गंभीर रूप से घायल कर दिया गया था। कमीशन के पास गए इन कर्मचारियों को बिना बयान लिए वापस भेज दिया गया। रिपोर्ट में शामिल न किए गए अधिकारियों बारे बताया जाता है कि एक डीएसपी और एक एसपी इस ऑप्रेशन समय मौके पर मौजूद थे। इनके बारे बहबलकलां के घायल सिख युवा बेअंत सिंह ने अपने बयान दर्ज करवाए थे, परंतु उनके नाम इसलिए शामिल नहीं किए गए क्योंकि ये दोनों अधिकारी खालिस्तानी आंदोलन सिख रेफरेंडम 2020 के एक प्रमुख नेता के रिश्तेदार हैं। एक अन्य डीआईजी को इसमें मौके पर मौजूद होने और वीडियो में भी दिखाई देने के बावजूद इसलिए शामिल नहीं किया गया क्योंकि वह वर्तमान में पंजाब के एक मंत्री के रिश्तेदार हैं। विधानसभा में ही शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने एक विवादित खालिस्तानी नेता बलजीत सिंह दादूवाल व मुख्यमंत्री की बैठक की तस्वीर जारी करते हुए दावा किया कि उक्त रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने से पहले मुख्यमंत्री ने अलगाववादी तत्वों से सांझी की है। इस पटाक्षेप पर विवाद बढ़ता देख सरकार ने एक विधायक के नेतृत्व में जांच टीम का गठन कर दिया है। आयोग की रिपोर्ट में तत्कालीन मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल पर किसी प्रकार का प्रत्यक्ष आरोप नहीं लगाया गया तथा न ही उन्हें इसके लिए किसी प्रकार से भागीदार ही बनाया गया है, परन्तु बाद में सेवामुक्त हो रहे उस समय के पुलिस प्रमुख सुमेध सैनी से एक बयान दिलाया गया है, जिसमें कहा गया है कि इस सम्पूर्ण घटनाक्रम का उस समय के मुख्यमंत्री को पता था। सच्चाई कुछ चाहे कुछ हो परंतु रणजीत आयोग की रिपोर्ट ने मामले को और पेचीदा कर दिया लगता है।

दूसरी तरफ कांग्रेस सरकार ने इस रिपोर्ट को आधार बना कर इससे पूरा राजनीतिक लाभ लेने का यत्न किया है। जिस प्रकार यह रिपोर्ट सदन में पेश की गई, जिस प्रकार इसके सीधे प्रसारण के प्रबंध किए गए, जिस प्रकार इस हेतु मुख्य पक्ष माने जाते अकाली दल को बहस के लिए सिर्फ 14 मिनट का समय निर्धारित किया गया, उससे यह स्पष्ट जाहिर होता है कि कांग्रेस सरकार अकालियों को बदनाम करने के लिए इस रिपोर्ट का पूरा लाभ लेना चाहती थी। अकाली दल एवं भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने कम समय मिलने के कारण सदन से वाकआऊट कर दिया। कांग्रेस एवं अन्य दलों को अकालियों के विरुद्ध भड़ास निकालने का पूरा मौका मिल गया तथा जिस प्रकार की बहस सदन में की गई तथा इसमें जिस प्रकार की शब्दावली प्रयुक्त की गई, वह अत्यधिक निम्न स्तर की कही जा सकती है। रोचक है कि जिस तरीके से पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील कुमार जाखड़ सहित अनेक मंत्रियों ने रिपोर्ट सदन में रखे जाने से पहले ही अकाली दल व इसके नेताओं के खिलाफ अभद्र ब्यानबाजी शुरू कर दी उससे साफ संकेत गया कि आयोग की रिपोर्ट कोई जांच रिपोर्ट कम और लिखी लिखाई कथा अधिक हो सकती है।

पंजाब की राजनीति में पंथक एजेंडा अत्यधिक प्रभावित रहा है। राज्य की वर्तमान कांग्रेस सरकार प्रदेश वासियों को चांद की सैर करवाने जैसे असंभव वायदों के साथ सत्ता में आई जिनको पूरा करना अब गौरीशंकर की चोटी पर चढऩे जैसा मुश्किल हो रहा है। ऊपर से देश में आरहे लोकसभा चुनावों ने पार्टी में चिंता बढ़ा दी है कि लोग अब उससे हिसाब मांग सकते हैं। अपनी विगत सरकार के कार्यकाल के अंतिम चरण में भी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंथक एजेंडे पर चलने का प्रयास किया था परंतु वह सफल नहीं हुए, रणजीत आयोग की रिपोर्ट को कैप्टन के इसी प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।

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