Wednesday, 5 December 2018

डा. अंबेडकर, शिव शंकर की भांति विष पिया अमृत बांटा

बाबा साहिब भीमराव रामजी अंबेडकर को लेकर बहुत कुछ लिखा, कहा और सुना जा चुका है। दुखद है कि उनका चरित्र चित्रण एक ऐसे विभाजक नेता के रूप में किया जाता रहा है जो केवल एक समुदाय विशेष के पक्षधर व दूसरे वर्ग के दुश्मन थे। विभाजक शक्तियां अपनी दलील रखने के लिए उन पर हुए अत्याचारों का जिक्र करती हैं, लेकिन स्वयं बाबा साहिब ने इन अत्याचारों को लेकर कभी मन मैला नहीं किया। भगवान नीलकंठ की भांति खुद विष पीया और समाज को अमृत बांटा। भारतीय राजनीति अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए जैसे अपने क्रांतिकारियों को जाति के आधार पर विभाजित कर लेती है वैसे ही महान व्यक्तित्वों को भी हमने जाति भेद के आधार पर विभाजित कर लेती है। डॉ अम्बेडकर। यह नाम सुनते ही पाठकों के मन में एक दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले नेता उजागर होगी। मगर डॉ अम्बेडकर के जीवन के एक ऐसा पक्ष भी है जिसमें राष्ट्रवादी चिंतन के महान नेता के रूप में उनके दर्शन होते है। डॉ अम्बेडकर के नाम पर दलित राजनीति करने वाले लोग जिन्हें हम छदम अम्बेडकरवादी कह सकते हैं, विदेशी ताकतों के हाथों की कठपुतली बनकर डॉ अम्बेडकर के सिद्धांतों की हत्या करने में लगे हुए हैं। अम्बेडकरवाद के नाम पर याकूब मेनन की फांसी की हत्या का विरोध, यूनिवर्सिटी में बीफ फेस्टिवल बनाना, कश्मीर में भारतीय सेना को बलात्कारी बताने, वन्देमातरम और भारत माता की जय का नारा लगाने का विरोध, दलित-मुस्लिम गठजोड़ बनाने की कवायद, अलगाववादी कश्मीरी नेताओं की प्रशंसा जैसे कार्यों में लिप्त होना डॉ अम्बेडकर की मान्यताओं का स्पष्ट विरोध हैं। अम्बेडकरवादियों के क्रियाकलापों से सामान्य जन कि डॉ अम्बेडकर के विषय में धारणा भी विकृत हो जाती हैं। इस लेख का उद्देश्य यही सिद्ध करना है की अम्बेडकरवादी डॉ अम्बेडकर के सिद्धांतों के हत्यारे है।
राष्ट्र पुरुष बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर, कृष्ण गोपाल एवं श्री प्रकाश, फरवरी 1940, पृष्ठ 50 में उन्होंने लिखा कि -मैं यह स्वीकार करता हूँ कि कुछ बातों को लेकर सवर्ण हिन्दुओं के साथ मेरा विवाद है, परन्तु मैं आपके समक्ष यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। बाबा साहिब आर्यों के विदेशी होने के सिद्धांत को नकारते रहे। डॉ अम्बेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज,खण्ड 7, पृष्ठ 70 पर उन्होंने कहा कि -आर्यों के मूलस्थान (भारत के बाहर) का सिद्धांत वैदिक सहित्य से मेल नहीं खाता। वेदों में गंगा, यमुना, सरस्वती के प्रति आत्मीय भाव है। कोई विदेशी इस तरह नदियों के प्रति आत्मस्नेह सम्बोधन नहीं कर सकता। वे हिंदुओं के हो रहे धर्मांतरण को गलत मानते थे। वे कहते थे -हिन्दू समाज ने अपने धर्म से बाहर जाने के मार्ग तो खुला रखा है, किन्तु बाहर से अंदर आने का मार्ग बंद किया हुआ है। यह स्थिति पानी की उस टंकी के समान है जिसमें पानी के अंदर आने का मार्ग बंद किया हुआ है। किन्तु निकास की टोटीं सैदेव खुली है। अंत: हिन्दू समाज को आने वाले अनर्थ से बचाने के लिए इस व्यवस्था में परिवर्तन होना आवश्यक है। (बाबा साहेब बांची भाषणे- खण्ड 5)। हिन्दू अपनी मानवतावादी भावनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं और प्राणी जीवन के प्रति तो उनकी आस्था अद्भुत है। कुछ लोग तो विषैले सांपों को भी नहीं मारते। हिन्दू दर्शन सर्वव्यापी आत्मा का सिद्धांत सिखाता है और गीता उपदेश देती है कि ब्राह्मण और चांडाल में भेद न करो। प्रश्न उठता है कि जिन हिन्दुओं में उदारता और मानवतावाद की इतनी अच्छी परम्परा है और जिनका अच्छा दर्शन है वे मनुष्यों के प्रति इतना अनुचित तथा निर्दयता पूर्ण व्यवहार क्यों करते हैं? डॉ अम्बेडकर का मत था कि प्रत्येक हिन्दू वैदिक रीति से यज्ञोपवीत धारण करने का अधिकार रखता है और इसके लिए अम्बेडकर जी ने बम्बई में समाज समता संघ की स्थापना कि जिसका मुख्य कार्य अछूतों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करना तथा उनको अपने अधिकारों के प्रति सचेत करना था। यह संघ बड़ा सक्रिय था। इसी समाज के तत्वाधान में 500 महारों को जनौउ धारण करवाया गया ताकि सामाजिक समता स्थापित की जा सके। यह सभा बम्बई में मार्च 1928 में संपन्न हुई जिसमें डॉ अम्बेडकर भी मौजूद थे। (डॉ बी आर अम्बेडकर- व्यक्तित्व एवं कृतित्व पृष्ठ 116-117)। तरुणों की धर्म विरोधी प्रवृति देखकर मुझे दु:ख होता है। कुछ लोग कहते हैं कि धर्म अफीम की गोली है। परन्तु यह सही नहीं है। मेरे अंदर जो भी अच्छे गुण हैं अथवा मेरी शिक्षा के कारण समाज हित के काम जो मैंने किये हैं वे मुझ में विद्यमान धार्मिक भावना के कारण ही हैं। मुझे धर्म चाहिए लेकिन धर्म के नाम पर चलने वाला पाखण्ड नहीं चाहिए। (हमारे डॉ अम्बेडकर जी, पृष्ठ 9 श्री आश्चर्य लाल नरूला)
वे कहते थे -मुस्लिम भ्रातृभाव केवल मुसलमानों के लिए है। इस्लाम एक बंद निकाय की तरह है, जो मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच जो भेद यह करता है, वह बिल्कुल मूर्त और स्पष्ट है। इस्लाम का भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृत्व है। यह बंधुत्व है, परन्तु इसका लाभ अपने ही निकाय के लोगों तक सीमित है और जो इस निकाय से बाहर हैं, उनके लिए इसमें सिर्फ घृणा ओर शत्रुता ही है। इस्लाम का दूसरा अवगुण यह है कि यह सामाजिक स्वशासन की एक पद्धति है और स्थानीय स्वशासन से मेल नहीं खाता, क्योंकि मुसलमानों की निष्ठा, जिस देश में वे रहते हैं, उसके प्रति नहीं होती, बल्कि वह उस धार्मिक विश्वास पर निर्भर करती है, जिसका कि वे एक हिस्सा है। एक मुसलमान के लिए इसके विपरीत या उल्टे सोचना अत्यन्त दुष्कर है। जहाँ कहीं इस्लाम का शासन हैं, वहीं उसका अपना विश्वासहै। दूसरे शब्दों में, इस्लाम एक सच्चे मुसलमानों को भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट सम्बन्धी मानने की इ?ाजत नहीं देता। सम्भवत: यही वजह थी कि मौलाना मुहम्मद अली जैसे एक महान भारतीय, परन्तु सच्चे मुसलमान ने, अपने, शरीर को हिन्दुस्तान की बजाए येरूसलम में दफनाया जाना अधिक पसंद किया। (बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर सम्पूर्ण वाड्मय, खंड 15-‘पाकिस्तान और भारत के विभाजन, 2000)


- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर

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