- डा. नित्यानन्द'भारतीय संघर्ष का इतिहास' पुस्तक के साभार
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ।।
Sunday, 10 January 2021
हिंदू दुनिया के बेहतरीन योद्धा
Sunday, 3 January 2021
संत बाबा राम सिंह जी के देहांत से उपजे सवाल
पंजाब में फूट रही नक्सलवादी अमरबेल
25 दिसंबर को बठिंडा में कुछ शरारती तत्वों ने पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्मदिन समारोह में जम कर तोडफ़ोड़ की। कहने को ये किसान संगठन से जुड़े थे परंतु कार्यशैली छापामार रही। ऐसा केवल बठिंडा में नहीं बल्कि जालंधर, चंडीगढ़ और राज्य के कई शहरों में हुआ। राज्य में किसान संगठनों के नाम पर शरारती तत्व 120 से अधिक मोबाइल टावरों को क्षतिग्रस्त कर चुके हैं और एक कंपनी के शोरूमों को कई सप्ताह से घेरे हुए हैं। अब इनकी दृष्टि पतंजलि के बिक्री केंद्रों पर है और कई जगह इन केंद्रों पर प्रदर्शन भी किया जा चुका है। कहने को यह किसान आंदोलन के नाम पर किया जा रहा है परंतु सभी जानते हैं कि यह रणनीति नक्सलियों की छापामार नीति है जिसमें अपने विरोधियों की आवाज को पूरी तरह दबाने व तोडफ़ोड़ का सहारा लिया जाता है। राज्य में किसान आंदोलन के नाम पर नक्सलवाद की पदचाप साफ-साफ सुनने को मिल रही है और जल्द इस पर नकेल न डाली गई तो आने वाले दिन राज्य की कानून व्यवस्था व लोकतांत्रिक प्रणाली को अनेक तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। पंजाब में नक्सलवाद को बीत चुकी समस्या माना जाता रहा है, परंतु किसान आंदोलन के नाम पर बढ़ रही नक्सली गतिविधियां प्रमाण हैं कि नक्सलवाद की अमरबेल पुन: फूटने लगी है। कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसान संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं। इस बीच पंजाब के किसान प्रदर्शनकारियों के आंदोलन में वामपंथी आतंकियों (अल्ट्रा-लेफ्ट ऐक्टिविस्ट्स) की मौजूदगी को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं।
हालांकि, वामपंथियों से पंजाब का नाता कोई नई बात नहीं है। साल 1967 के नक्सली आंदोलन के समय भी पंजाब में वामपंथियों की सक्रियता देखने को मिली थी। पंजाब में राज्य सरकार द्वारा नक्सली आंदोलन को बलपूर्वक कुचल दिया गया था। इस दौरान 85 वामपंथी आतंकियों को खत्म किया गया था। इस दौरान आंदोलन के कुछ जो युवा बच गए थे, उन्होंने बाद में ऐक्टिविज्म, जॉर्नलिज्म और साहित्यिक क्षेत्रों में प्रमुखता से काम किया। साल 1967 में नक्सली आंदोलन शुरू होने के साथ ही पंजाब पहुंच गया था। हालांकि यह छात्रों और कुछ बुद्धिजीवियों के बीच में ही लोकप्रिय हुआ। किसी बड़े जननेता ने इसमें हिस्सा नहीं लिया। सीपीआई और सीपीएम के कुछ कैडर इसमें शामिल हुए थे। नक्सलियों द्वारा हिंसा के शुरुआती चरण में ही राज्य सरकार ने उन्हें कुचलने की नीति पर काम करना शुरू कर दिया था। इसके बाद एक दशक तक जमीनी संगठन काफी बढ़ गए जबकि कोर ग्रुप अभी भी भूमिगत रहा। साल 80 के दशक के शुरुआत में आतंकवाद के उभार के साथ सब कुछ बदल गया। वाम आंदोलन में गिरावट शुरू हुई और बहुत से नक्सलियों ने खालिस्तानी लबादा ओढ़ लिया।
इन चरमपंंथी वामपंथियों ने बाद में किसानों के बीच काफी काम किया और अपनी यूनियनों का गठन किया। इस काम में पुराने कार्यकर्ता भी जुड़े। उनके संगठनात्मक कौशल, अनुभव और लगन ने काम कर दिखाया। उन्होंने कर्ज के जाल, किसानों की आत्महत्या और कृषि मुआवजे के मुद्दों पर खूब काम किया। उनका ज्यादातर आधार उन सिख किसानों के बीच में है, जिनका वामपंथी विचारधारा से कोई खास लेना-देना नहीं है। करीब दर्जन भर किसान यूनियन वामपंथियों या चरम वामपंथियों द्वारा संचालित किए जाते हैं। सिख समाज में अलगाववाद, व्यवस्था के प्रति संदेह, भ्रमजाल फैलाने में इन चरम वामपंथी संगठनों का बहुत बड़ा हाथ है। इस काम में उनका साथ कठमुल्ला सिख संगठन व विदेशों में बैठे अलगाववादी तत्त्व देते रहे हैं। पिछले साल पंजाब में हुई कश्मीरी आतंकियों की गिरफ्तारी बताती है कि राज्य की उक्त सारी गड़बड़ी की दाल में जिहादी सोच विषाक्त छोंक लगा रही है। पाकिस्तान राज्य में नशे व हथियारों की तस्करी कर समस्या को और विकट बना रहा है।
फिलहाल बात करते हैं नक्सलवाद की •ाहरीली अमरबेल की, देश में नक्सल गतिविधियां सिर्फ सेंट्रल और पूर्वी भारत तक ही सीमित नहीं हैं। बल्कि उत्तर भारत में भी इसकी जड़ें तेजी से मजबूत हो रही हैं। इंटेलिजेंस ब्यूरो की यूपीए-2 सरकार के कार्यकाल में आई एक इंटरनल रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब में भी नक्सल शक्तियां तेजी से सिर उठा रही हैं। एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया था कि प्रतिबंधित समूह भाकपा (माक्र्सवादी) दल को देश भर में 128 फ्रंटल ऑर्गेनाइ•ोशन के जरिए चलाया जा रहा है। ये संगठन पंजाब समेत हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड,उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और केरल राज्यों में मौजूद हैं। 2009 में पंजाब से वामपंथी नेता जय प्रकाश दुबे को गिरफ्तार किया गया था। पुलिस का कहना था कि दुबे गिरफ्तारी के समय पंजाब में नक्सलवाद को सक्रिय करने की कोशिश कर रहा था। नक्सली नेता कोबाड गांधी का पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला से गहरा संबंध है और पंजाबी मीडिया का बहुत बड़ा वर्ग नक्सलवादी जहर से सना है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जनवरी 2013 में अपनी चिंतन शिविर रैली में कहा था कि पंजाब के सभी 22 जिलों में नक्सलवाद सक्रिय हो गया है। प्रदेश में चल रहे कथित किसान आंदोलन में आंदोलनकारी जिस तरह अपनी जिद्द पर अड़े और बे सिर-पैर की बातें कर रहे हैं उससे साफ है कि बहुत से किसान नेताओं का खेत और खेती से कोई लेना-देना नहीं। वे केवल किसानों को भड़का कर अपना उल्लू सीधा करने की फिराक में हैं। प्रदेश की जनता, सरकार व सुरक्षा एजेंसियों को इन खतरों के प्रति सावधान रहना होगा। सीमावर्ती राज्य होने के कारण वैसे भी बड़े उद्योगपति इस राज्य में पूंजीनिवेश को जल्दी से तैयार नहीं होते और अगर नक्सलियों की तोडफ़ोड़ की हरकतों पर नकेल नहीं डाली गई तो पंजाब उद्योगित दृष्टि से अत्यंत पिछड़ सकता है। एक तरफ तो राज्य सरकार समय-समय पर पूंजीनिवेश के लिए मेले आयोजित कर उद्योगपतियों को आमंत्रित करती है और अनिवासी भारतीयों को भी निवेश के लिए कहा जाता है परंतु दूसरी ओर नक्सली गतिविधियां निवेशकर्ताओं को भयभीत कर रही हैं। राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तोडफ़ोड़ करने वालों को ऐसा नहीं करने की अपील की है परंतु उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि नक्सलियों का अपील जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर कोई विश्वास नहीं है, उनके साथ सख्ती से ही निपटना होगा।
- राकेश सैन
ਪੰਜਾਬ ਅੰਦਰ ਫੁੱਟ ਰਹੀ ਨਕਸਲੀ ਅਮਰਵੇਲ
- ਰਾਕੇਸ਼ ਸੈਨ32, ਖੰਡਾਲਾ ਫਾਰਮਿੰਗ ਕਲੋਨੀਵੀਪੀਓ ਲਿਦੜਾਂ,ਜਲੰਧਰ।ਮੋ. 77106-55605
- ਰਾਕੇਸ਼ ਸੈਨ
राजधर्म निभाएं कैप्टन अमरिंदर
शास्त्रों ने अयोग्य राजाओं के तीन लक्षण बताए हैं, किंकर्तव्यविमूढ़ता यानि जो हालत कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन की थी, कर्तव्यविमूढ़ता की श्रेष्ठ उदाहरण पूर्व प्रधानमंत्री स. मनमोहन सिंह कहे जा सकते हैं जो अपने सहयोगियों के भ्रष्टाचार पर मौन धारण किए रहे और धर्मविमूढ़ता की ताजा मिसाल हैं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह। पंजाब धीरे-धीरे अराजकता की ओर बढ़ रहा है और कैप्टन अमरिंदर अपने को किसान हितैषी दिखाने की लालच में अपनी संवैधानिक जिम्मेवारियों की तरफ पीठ करके बैठे दिखाई दे रहे हैं। केंद्रीय कृषि सुधार कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन की आड़ में पंजाब में आराजकता की स्थिति बनती दिख रही है। उक्त पंक्तियां लिखे जाने तक पंजाब में 1624 मोबाइल टावर पूरी तरह क्षत्रिग्रस्त किए जा चुके हैं और बहुत सा सामान खुर्दबुर्द हो चुका है। प्रदर्शनकारी एक निजी टेलीकॉम कंपनी के शोरूमों व मॉल्स को घेर रहे हैं और पतंजलि के बिक्री केंद्र भी घेरने की बात की जा रही है। केवल इतना ही नहीं राज्य की राजनीति में पहले ही अछूत घोषित हो चुकी भारतीय जनता पार्टी के कार्यक्रमों पर नक्सली अंदाज में हमले हो रहे हैं। राज्य सरकार इन घटनाओं पर मौन धारण किए हुए है और पुलिस कार्रवाई के नाम पर केवल कागजी लिपाई पुताई हो रही है। राजनीति में मिथ्या कथन व मिथ्या सिद्धांत स्थापित करने के क्या दुष्परिणाम निकल सकते हैं उसकी सबसे बड़ी उदाहरण है पंजाब में जीओ कम्पनी के मोबाइल टावरों से हो रही तोडफ़ोड़, रिलान्यस कम्पनी के केन्द्रों की हो रही घेराबन्दी। भारी भरकम चुनावी चंदे लेने के बावजूद उद्योगपतियों को राजनीतिक बुराई और गरीब विरोध प्रचारित करने का काम लगभग हर राजनीतिक दल ने किया है। वर्तमान में अंबानी-अडानी को इस बुराई का प्रतीक बना कर पेश किया जाता है। ऐसा करते समय नेता भूल जाते हैं कि उनके कहे का असर नीचे तक होता है और जनसाधारण उसी दृष्टि से व्यवहार करते हैं। केंद्र सरकार के नए कृषि सुधार कानूनों को लेकर भी यही दुष्प्रचार किया जा रहा है कि यह सबकुछ इन्हीं अंबानियों-अडानियों को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया है। हालांकि उक्त उद्योगपतियों का कृषि सुधार कानूनों से कोई लेना देना नहीं परंतु राजनीतिज्ञों द्वारा स्थापित मिथ्या सिद्धांतों व दुष्प्रचार का ही असर है कि इन कंपनियों के आधारभूत ढांचों से तोडफ़ोड़ की जा रही है और इनके खिलाफ अभियान चलाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा था कि मोबाइल टावरों पर तोडफ़ोड़ करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। इसके बावजूद तोडफ़ोड़ का सिलसिला नहीं रुक रहा है। पंजाब में जिओ के 9000 टावर हैं और इन्हें निशाना बनाए जाने के कारण शिक्षा क्षेत्र सहित दुकानदार, व्यापारी और वर्क फ्रॉम होम कर रहे कर्मचारी प्रभावित हुए हैं। सबसे ज्यादा समस्या नेट बैंकिंग को लेकर आई है। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में लोग परेशान हुए हैं। दूरसंचार सेवाओं में बाधा पहुंचाए जाने पर अपेक्स इंडस्ट्री बाडी सेलुलर आपरेटर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (सीओएआइ) के डायरेक्टर जनरल एसपी कोचर ने कहा कि दूरसंचार सेवाएं करोड़ों लोगों की लाइफ लाइन हैं। अन्य क्षेत्रों के साथ साथ कोविड-19 के कठिन समय में आनलाइन सेहत सलाह लेने वाले लोग भी शामिल हैं। निवर्तमान मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और वर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह हर साल पूंजीनिवेश दिवस मनाते और देश के प्रसिद्ध उद्योगपतियों, व्यवसाइयों को राज्य में निवेश करने को प्रोत्साहित करते रहे हैं। यह क्रम आज भी जारी है परंतु सवाल पैदा होता है कि राज्य में अराजकता यूं ही जारी रही तो कौन उद्योगपति राज्य में निवेश करना चाहेगा ? राज्य में दो दशकों तक चले खालिस्तानी आतंक की काली आंधी ने देश के सीमांत क्षेत्र को विकास की दृष्टि से इतनी करारी चोट मारी है जिससे राज्य के लोग आज भी कराह रहे हैं। इस साल कोरोनाकाल के बाद शुरू हुए किसान आंदोलन ने दाद में खुजली का काम किया। पहले तो किसान रेल पटडिय़ों पर धरना दिए बैठे रहे जिससे उद्योग जगत के साथ-साथ सामान्य व्यवसाय पर विपरीत असर पड़ा और अब तोडफ़ोड़ की बढ़ रही घटनाओं ने व्यवसाइयों में भय की लहर पैदा कर दी है परंतु मुख्यमंत्री संकट को देख कर रेत में सिर छिपाने का प्रयास कर रहे हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भाजपा को पंजाब में लगभग बंगाल जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। राज्य में कई महीनों से चल रहे किसान आंदोलन की आड़ में कुछ शरारती तत्वों ने गांवों की सीमाओं पर बोर्ड व पोस्टर लगा दिए कि इस गांव में भाजपाईयों का आना मना है। लोगों की इस असंवैधानिक गतिविधियों को नजरंदाज करने का परिणाम यह हुआ कि आज सरेआम भाजपाईयों को निशाना बनाया जा रहा है, सोशल मीडिया पर उन्हें भारी-भरकम गालियां निकाली जा रही हैं। पंजाब भाजपा अध्यक्ष अश्विनी शर्मा के काफिले पर हमला हो चुका है। 25 दिसंबर को वाजपेयी जी की जयंती पर बठिंडा में कुछ लोगों ने नक्सली शैली में समारोहस्थल पर आतंक फैलाया और बहुत से स्थानों पर इन समारोहों का विरोध हुआ। संगरूर में कुछ प्रदर्शनकारियों ने विश्व हिंदू परिषद् की बैठक के दौरान भी बवाल किया जो राम मंदिर निर्माण के लिए चलाए गए धन संग्रह अभियान के तहत बुलाई गई थी। राज्य में हो रही इस तोडफ़ोड़ को हल्के में नहीं लिया जा सकता क्योंकि कोरोनाकाल के बाद जिस तरह से बहुराष्ट्रीय कंपनियों का चीन से मोहभंग और भारत के प्रति रुख हुआ है उससे संदेह पैदा होना स्वभाविक है कि बात सामान्य नहीं है जैसा कि प्रचारित किया जा रहा है। कोई न कोई शक्ति तो है जो भारत को अशांत व अस्थिर साबित कर उसे बदनाम करने के प्रयास में है। देश के नक्सल प्रभावित इलाकों में इसी तरह की गतिविधियों से उद्योगपतियों व व्यवसाइयों को डराया धमकाया जाता रहा है और पंजाब-हरियाणा में चल रहे किसान आंदोलन में नक्सली घुसपैठ की खबरें किसी से छिपी नहीं। चाहे हर प्रदर्शनकारी नक्सली नहीं है परंतु लगता है कि वामपंथी शक्तियां किसानों के भड़के हुए आक्रोश का प्रयोग अपने उद्देश्य के लिए कर रही हैं। इतना सब होने के बावजूद कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार की अपराधियों के प्रति लुंजपुंज कार्रवाई बताती है कि वे अपने राजधर्म से विमुख हो चुके हैं। यह सर्वविदित है कि दो दिन पहले अपना 136वां जन्मदिन मना चुकी कांग्रेस पार्टी वृद्धावस्था में राजनीतिक वियाग्रा की तलाश कर रही और किसान आंदोलन में अवसर खोज रही है। यही कारण लगता है कि कैप्टन ऐसी कोई कार्रवाई नहीं करना चाहते जिससे कांग्रेस की छवि ऐसी बने कि वह आंदोलन को तारपीडो कर रही है। देश की नौकरशाही की यह विशेषता रही है कि वह अपने राजनीतिक आकाओं की इच्छा उनके इशारों से पहले ही भांप लेती है और यही कारण है कि राज्य में हुड़दंग मचाने वालों के प्रति पुलिस का रवैया आंख मूंदे गांधी जी के त्रिमूर्ति बंदर जैसा रहा है। पुलिस केस तो दर्ज कर रही है परंतु अनाम लोगों पर और जाहिर है जब केस ही अनाम लोगों पर हो तो गिरफ्तारी किसकी होती होगी। पंजाब देश का सीमांत राज्य है और सीमावर्ती क्षेत्र सदैव राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्रों के अड्डे माने जाते हैं। पांच नदियों के नाम पर बना पंजाब पहले ही नक्सलवाद, खालिस्तानी आतंकवाद और अलगाववाद की आग झेल चुका है। दुखद तो यह है कि यह आग बुझी हुई जरूर दिख रही है परंतु राख में कभी-कभी चिंगारियां भी महसूस होती रही हैं। ऐसे में अगर अपराधियों व तोडफ़ोड़ करने वालों से नरमी दिखाई जाती रही और राजधर्म की उपेक्षा हुई तो इसका दुष्परिणाम भुगतने के लिए हमें तैयार रहना होगा।
- राकेश सैन32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ांजालंधर।संपर्क - 77106-55605
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