Sunday, 10 January 2021

हिंदू दुनिया के बेहतरीन योद्धा


किसान संघर्ष के दौरान क्रिकेट खिलाड़ी श्री युवराज सिंह के पिता श्री योगराज सिंह ने हिंदुओं के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की, जिसका लब्बोलुआब यही था कि हिंदू समाज डरपोक व कायर है और लडऩा नहीं जानता। श्री सिंह का इसमें कसूर नहीं क्योंकि पंजाब में कुछ शरारती व अलगाववादी तत्वों का छोटा सा समूह है जो हिंदू-सिखों में दरार डालने के लिए इतिहास को अपनी कपोलकल्पित व्याख्या के अनुसार तोड़ मरोड़ कर पेश करता है। एतिहासिक सच्चाई तो यह है कि पूरे विश्व में केवल हिंदू जाति ही ऐसी है जिसने अपने जीवन में सबसे अधिक संघर्ष किया और अपने ऊपर हुए असंख्य हमलों के बावजूद अपनी आस्था व संस्कृति को बचाए रखा। भारत पर विदेशी हमलावरों के जो हमले हुए हम पंजाबियों ने मिलजुल कर उनका मुकाबला किया। पंजाबियों के शौर्य, बहादुरी, संघर्ष की गाथा और उन पर हुए अत्याचारों की व्यथा सबकी सांझी है। 'पथिक संदेश' के सुधी पाठकों के लिए हम 'हिंदू दुनिया के सर्वश्रेष्ठ योद्धा' शीर्षक से लेखमाला शुरू कर रहे हैं ताकि योगराज जैसी विकृत मनोवृति को तथ्यों के आधार पर जवाब दिया जा सके।

हिंदू राजाओं ने सिकंदर व यवनों को परास्त किया
विश्वविजय की आकांक्षा लेकर जब सिकन्दर पूर्व की ओर बढ़ा, तब उसकी दुर्दम्य सेना के सामने मिस्र, मैसोपोटामिया और ईरान पहले ही धक्के में परास्त हो गए। परन्तु जब वह भारत की उत्तरी सीमा पर आकर टकराया तब छोटे-छोटे हिन्दू राज्यों ने ऐसी वीरता से सामना किया कि सिकन्दर के सैनिकों के हौसले पस्त हो गये। पश्चिमी गांधार का राजा अष्टक एक मास तक सिकन्दर की सेनाओं से वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए अजेय रहा। वह तभी पराजित हुआ, जब पूर्वी गांधार का राजा आम्भीक देशद्रोह कर सिकन्दर की सहायता के लिए आ गया। 326 ई.पू. कैकेय प्रदेश के राजा पुरु पर सिकन्दर का आक्रमण हुआ, जिसका अन्त दोनों की मैत्री सन्धि में हुआ। रावी के पूर्व में 'कठ' नाम का गणराज्य था। जब सिकन्दर ने इस गणराज्य पर आक्रमण किया, तब पुरु ने 6,000 सैनिकों से सिकन्दर की सहायता की थी, जिसके कारण कठों की पराजय हुई। 17,000 कठ वीरगति को प्राप्त हुए। परंतु कठों की वीरता के कारण सिकन्दर के सैनिक अत्यन्त हतोत्साहित हो गए। उन्हें अपने घरों की याद आ गई और उन्होंने अपने देश यूनान लौटने की जिद पकड़ ली। सिकन्दर को विवश होकर अपना विश्वविजय का अभियान रोककर लौटना पड़ा। लौटते समय सिकन्दर की टक्कर मालव व क्षुद्रक गणराज्यों से हुई। इस संघर्ष में सिकन्दर के सीने में ऐसी घातक चोट लगी कि बाद में उसी के कारण उसकी मृत्यु हो गई। इसके बीस वर्ष उपरान्त उत्तर-पश्चिमी भारत में सेल्यूकस एक विशाल सेना लेकर आया। किन्तु इस समय तक चाणक्य व चन्द्रगुप्त नेतृत्व में के यहां एक प्रबल शक्ति का उदय हो चुका था चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस को परास्त किया। सेल्यूकस ने अपनी पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त से कर दिया तथा कलात, कन्धार, हेरात व काबुल के क्षेत्र दहेज में प्रदान किए।

तीसरा प्रबल यवन आक्रमण 185 ई. पू. में दिमित्र (डेमेट्रियस) का हुआ। वह मथुरा व पांचाल के क्षेत्रों को विजय कर पाटलिपुत्र की ओर बढ़ा। मौर्य वंश का अन्तिम राजा बृहद्रथ निकम्मा था, वह दिमित्र का सामना न कर सका। इस समय कलिंग के जैन राजा खारवेल ने पाटलिपुत्र को फिर से विजय कर दिमित्र को अयोध्या के समीप परास्त किया और मथुरा से परे तक खदेड़ दिया। इस समय पाटलिपुत्र में भी एक क्रान्ति हुई, जिसमें अयोग्य एवं कुलकलंकी बृहद्रथ का वध कर प्रधान सेनापति पुष्यमित्र राजा बना। इसमें पतंजलि ने पुष्यमित्र का उसी प्रकार मार्ग दर्शन किया था जिस प्रकार चाणक्य ने चन्द्रगुप्त का। इस काल में यवन सिन्धु के तट पर परास्त हुए और इसके बाद उनका कोई प्रबल आक्रमण नहीं हुआ।

विक्रमादित्य : शकों का सफाया
आक्रमणकारियों की दूसरी लहर शकों की आई। 64 ई. पू. शकों को उज्जैन पर विजय प्राप्त हुई। राजा दर्पण (गभिल्ल) वीरगति को प्राप्त हुआ। उसकी रानी सरस्वती अपने दस वर्षीय पुत्र को लेकर आरण्यक क्षेत्र में वनवासियों के बीच रही। वनवासियों की सहायता से राजकुमार ने 17 वर्ष की आयु में 57 ई. पू. मालवगण को स्वतन्त्र किया, जिसके उपलक्ष में उसको 'विक्रमादित्य' की उपाधि से विभूषित किया गया और विक्रम सम्वत् प्रारम्भ किया गया। गौतमीपुत्र सातकर्णी (शकारि विक्रमादित्य प्रथम 68 ई. पू. से 44 ई. पू.) ने शक महाक्षत्रप नहपाण से संघर्ष किया और भारत के एक बड़े भाग से शकों के राज्य का अन्त किया। 78 ईसवी में कुन्तल सातकर्णी ने कुषाण के पुत्र विम को मुल्तान के समीप परास्त किया और शकारि विक्रमादित्य द्वितीय कहलाया। इसी वर्ष से शक सम्वत् प्रारम्भ हुआ।

पाटलिपुत्र के राजा रामगुप्त पर शकराज का आक्रमण हुआ। रामगुप्त दुर्बल एवं भीरु था। उसने युद्ध को टालने के लिए अपनी रानी ध्रुवस्वामिनी को शकराज के खेमे में भेजने का वचन देकर निर्लज्जता पूर्ण सन्धि की। रामगुप्त के छोटे भाई चन्द्रगुप्त को यह सहन नहीं हुआ। ध्रुवस्वामिनी के स्थान पर वह स्वयं वेश बदलकर, पालकी में बैठकर, सैनिकों के साथ शकराज के खेमे में आ गया और शिवराज का वध कर दिया। इसके उपरान्त अयोग्य रामगुप्त का वध कर चन्द्रगुप्त (378-414 ईसवी) में सिंहासन पर बैठा।
हूण भी मिट्टी में समा गए
आक्रमणकारियों की तीसरी लहर हूणों की आई। इनकी प्रबल लहरों ने यूरोप में रोम के विशाल साम्राज्य को ध्वस्त कर दिया था। जब भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर इन्होंने आक्रमण किया, तब स्कन्दगुप्त ने उन्हें पराजित किया और गांधार से आगे नहीं बढऩे दिया। जीवन भर अविवाहित रहकर उसने 12 वर्ष का पूर्ण समय युद्धक्षेत्र में ही व्यतीत किया। हूणराज तोरमाण ने मालवा तक आक्रमण किया। उसे 150 ई. में भानुगुप्त बालादित्य ने परास्त किया। 530 ई0 में मिहिरकुल ने मध्यभारत पर आक्रमण किया, जहां उसे यशोधर्मा ने परास्त किया। मिहिरकुल ने दूसरी बार भी आक्रमण किया जिसे फिर भानुगुप्त ने पराजित किया और हूणों को अन्तिम रूप से भारत से खदेड़ दिया। मिहिरकुल को यशोधर्मा व बालादित्य ने परास्त तो किया, किन्तु उसे समाप्त नहीं किया और सम्मान सहित वापिस जाने दिया। वह लौटते समय कश्मीर के राजा की शरण में गया। राजा ने दया करके एक छोटा सा प्रदेश उसे दे दिया। कुछ समय पश्चात् मिहिरकुल ने अपने पर उपकार करने वाले इस राजा के विरुद्ध ही विद्रोह कर दिया और कश्मीर के सिंहासन पर कब्जा कर लिया। बाद में गांधार के राजा के ऊपर आक्रमण कर वहां के राजा को भी विश्वासघात से मार दिया और राज्य जीत लिया। मिहिरकुल को नष्ट न करके उसे वापिस लौटने देने की बालादित्य की उदारता दो अन्य भारतीय राज्यों के लिये घातक सिद्ध हुई।

यवन, शक और हूण आक्रमणकारियों को परास्त ही नहीं किया गया वरन् उन्हें भारतीय संस्कृति में आत्मसात् भी किया गया। उस समय हिन्दू समाज की पाचनशक्ति इतनी प्रबल थी कि सभी आक्रान्ता धीरे-धीरे हिन्दू समाज के अंग बन गए। सभी जातियां युद्धप्रिय व वीर थीं, अत: उन्हें क्षत्रियों की श्रेणी में सम्मिलित कर लिया गया। एक कथा यह भी प्रचलित है कि आबू पर्वत पर एक महान यज्ञ हुआ, जिसमें इन सभी को क्षत्रिय की संज्ञा दी गई और ये अग्निकुल के राजपूत कहलाए।
- डा. नित्यानन्द
'भारतीय संघर्ष का इतिहास' पुस्तक के साभार

Sunday, 3 January 2021

संत बाबा राम सिंह जी के देहांत से उपजे सवाल

नए कृषि सुधार कानून को लेकर किसानों और केंद्र सरकार के बीच जारी विवाद के बीच आदरणीय संत बाबा राम सिंह जी का गोली लगने से देहावसान हो गया। दिल्ली के साथ लगते सिंघु बार्डर पर किसानों के धरने में शामिल संत बाबा राम सिंह ने किसानों के समर्थन में कथिततौर पर खुद को गोली मार ली। घायल अवस्था में उन्हें पानीपत के निजी अस्पताल में ले जाया गया था, जहां पर चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। बाद में करनाल के सरकारी अस्पताल में पुलिस ने 174-ए के तहत कार्रवाई करते हुए पोस्टमार्टम करवाया।

संत बाबा राम सिंह जी का डेरा हरियाणा के करनाल जिले में निसंग के पास सिंगड़ा गांव में है। दुनिया भर में उन्हें सिंगड़ा वाले बाबा जी के नाम से ही जाना जाता रहा है। बाबा राम सिंह पंजाब और हरियाणा के अलावा विश्वभर में प्रवचन करने के लिए जाया करते थे। संत बाबा राम सिंह नानकसर संप्रदाय से जुड़े हुए थे और संप्रदाय में संत बाबा राम सिंह का बहुत ऊंचा स्थान था। दावा किया जा रहा है कि जब से किसान आंदोलन की शुरुआत हुई थी उस समय से ही बाबा राम सिंह किसान आंदोलन से जुड़ी हर छोटी बड़ी जानकारी हासिल कर रहे थे। उनके आसपास रहने वाले उनके शिष्यों के मुताबिक बाबा किसान आंदोलन को लेकर काफी दुखी रहते थे। दावा किया जा रहा है कि इसी दुख के चलते बाबा जी ने कथिततौर पर आत्महत्या कर ली। दावे के अनुसार, संत बाबा राम सिंह ने खुद को गोली मारने से पहले डायरी में एक नोट लिखा। इस नोट में उन्होंने लिखा, 'मैंने किसानों का दुख देखा है। अपने हक के लिए उन्हें सड़क पर इस तरह से देखकर मैं काफी दुखी हूं। सरकार किसानों को न्याय नहीं दे रही है, जो कि जुल्म है। जो जुल्म करता है वह पापी है और जो जुल्म सहता है वह भी पाप का भागी है। किसी ने किसानों के हक के लिए तो किसी ने किसानों पर हो रहे जुल्म के लिए कुछ न कुछ किया है। किसी ने पुरस्कार वापस कर सरकार को अपना गुस्सा दिखाया है। सरकार के इस जुल्म के बीच सेवादार आत्मदाह करता है। यह जुल्म के खिलाफ एक आवाज है। यह किसानों के हक के लिए आवाज है वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरुजी की फतेह।'

पुलिस एवं जांच कर रही टीमों ने आत्महत्या को लेकर अहम बातें उजागर की हैं। बाबा राम सिंह के बारे में बताया गया है कि, उन्होंने खुद की कनपटी पर गुरुद्वारे के सेवादार की पिस्तौल से कथिततौर पर गोली मारी थी। पुलिस ने वो पिस्तौल बरामद भी कर ली है। इसके अलावा पुलिस ने डायरी-पैन खोज निकाले हैं और बाबा के कथित सुसाइड नोट के पेज का डायरी की लिखाई से मिलान किया गया है। पुलिस का कहना है कि, आवश्यकता पडऩे पर इसकी फॉरैंसिक जांच भी करवाई जा सकती है। अभी तक यह स्पष्ट हो गया है कि, जिस पिस्तौल की गोली बाबा की कनपटी पर लगी वो उनके गुरुद्वारा के एक सेवादार की पिस्तौल है। उसका लाइसेंस सेवादार के नाम पर ही है। मामले की गहराई से जांच चल रही है और सही स्थिति का पता पूरी जांच के बाद होगा परंतु सामान्य दिखने वाली इस घटना ने अपने पीछे इतने सवाल छोड़ दिए हैं जिनका उत्तर मिले बिना घटना की पूरी सच्चाई का सामने आना असंभव सा लगता है।

साधारण सी बात है कि गोली लगने के बाद गंभीर रूप से घायल बाबा राम सिंह जी को सिंघू सीमा से ईलाज के लिए घटनास्थल से 60-65 किलोमीटर दूर पानीपत क्यों ले जाया गया। उन्हें पास ही दिल्ली के किसी अस्पताल ले जाया जा सकता था और पानीपत लाते हुए रास्ते में सोनीपत में भी उनको किसी अस्पताल में भर्ती करवाया जा सकता था। सवाल पैदा होता है कि यह चूक अकास्मात हुई या फिर किसी सोची समझी साजिश के तहत ? आखिर कौन चाहता होगा कि गंभीर रूप से घायल बाबा जी को तत्काल चिकित्सा उपलब्ध न हो ? क्या उसे डर सता रहा होगा कि अगर बाबा जी के प्राण बच गए तो उसके खुद के प्राण सांसत में फंस जाएंगे ?

संदेह इस बात से भी पैदा होता है कि घटना के तत्काल बाद इसकी सूचना पुलिस प्रशासन को क्यों नहीं दी गई ? बताया जाता है कि पुलिस के एक घंटे के बाद इसकी सूचना मिली। पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची तो वहां कुछ नहीं मिला, बाबाजी को अस्पताल ले जाया जा चुका था और वहां उन्हें मृत घोषित किया जा चुका था। पुलिस को घटनास्थल से वह कार भी नहीं मिली जिसमें बाबाजी को गोली लगने का दावा किया जा रहा था और मौके से वह पिस्तौल भी नदारद थी। क्या सबकुछ सोची समझी सााजिश के तहत हुआ का संदेह पैदा होना स्वभाविक ही है। प्रश्न है कि बाबाजी की कथित आत्महत्या या संदिग्ध मौत के मौके से सबूत किसने मिटाए होंगे ?
तीसरा सवाल है कि कोई भी व्यक्ति खुद को गोली मार कर पिस्तौल गायब नहीं कर सकता, तो इस घटना में प्रयुक्त पिस्तौल घटनास्थल से किसने गायब की। उसका क्या उद्देश्य रहा होगा ? यह प्रश्न भी अनुत्तरित है कि बाबाजी को घायल अवस्था में पहले किसने देखा ? बाबाजी सदैव अंगरक्षकों व सेवादारों से घिरे रहते थे, कार में उनके साथ और कौन था ? अगर कोई था तो उसने बाबाजी को ऐसा करने से रोका क्यों नहीं ? उसने बाबाजी को कथिततौर पर आत्महत्या करते देखते समय शोर क्यों नहीं मचाया ? वह व्यक्ति कथित आत्महत्या के बाद मौके से फरार क्यों हुआ ? पिस्तौल क्यों और कैसे गायब की गई ?

सोशल मीडिया पर संत राम सिंह की आत्महत्या की खबरों के साथ-साथ एक अमरजीत कौर नामक नर्स की ऑडियो वायरल हुई। इसमें नर्स एक पंजाबी न्यूज चैनल को बता रही हैं कि वह लंबे समय से बाबा संत राम से जुड़ी हुई थीं। ये जो खबर आ रही है कि बाबा ने खुद को गोली मारी वो गलत है। वह कहती हैं कि बाबा खुद को गोली मार ही नहीं सकते। इसके अलावा जो बाबा के नाम पर सुसाइड नोट जारी किया गया है, वह उनका नहीं है। यह उनकी लिखावट नहीं है। वह कहती हैं कि जो व्यक्ति सब को डटे रहने की सलाह देता हो, वो खुद को मार ही नहीं सकता। अमरजोत के इस दावे के बाद लोगों का पूछना है कि यदि सुसाइड नोट में लिखावट बाबाजी की नहीं है तो इस बात की कैसे पुष्टि होगी कि उन्होंने आत्महत्या की या फिर उन्हें मारा गया? सोशल मीडिया पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि जब संत आत्महत्या जैसा अपराध कर ही नहीं सकते थे तो कहीं ये किसी की कोई साजिश तो नहीं?

बताया जाता है कि पानीपत में बाबाजी के देहांत के बाद उनकी पार्थिव देह को पहले उनके डेरे ले जाया गया और उसके बाद पोस्टमार्टम के लिए। इसे संयोग कहा जाए या कोई षड्यंत्र ? बताया जाता है कि बाबा राम सिंह जी प्रखर राष्ट्रभक्त थे और वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में भी आते जाते रहे हैं और इसी कारण खालिस्तानियों व कट्टरपंथियों की आंख में खटते रहे हैं। बता दें कि कठमुल्ला सिख संगठन डेरों के प्रबल विरोधी हैं और इनमें आपसी खानाजंगी इस कदर है कि एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते। पंजाब व हरियाणा में अनेक सिख संत, प्रचारक, रागी,ढाडी, कथावाचक, डेरा संचालक अपने आप को श्रेष्ठ सिख साबित करने के लिए एक दूसरे को नीचा दिखाते रहते हैं और इनकी यही प्रतिस्पर्धा कई बार हिंसक टकराव में भी बदलती रही है। इस्लामिक कट्टरपंथियों की तरह कठमुल्ला सिख भी कई सिख संप्रदायों को सिख तक नहीं मानते और परस्पर तितर-बटेरों की भांति आपस में उलझे रहते हैं। बाबा राम सिंह जी केवल सिख ही नहीं बल्कि समस्त समाजों के लिए सम्मानित संत थे और उनके देहांत की सच्चाई देश के सामने लाने के लिए पुलिस प्रशासन को हर पक्ष से जांच करनी होगी।

- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
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पंजाब में फूट रही नक्सलवादी अमरबेल

25 दिसंबर को बठिंडा में कुछ शरारती तत्वों ने पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्मदिन समारोह में जम कर तोडफ़ोड़ की। कहने को ये किसान संगठन से जुड़े थे परंतु कार्यशैली छापामार रही। ऐसा केवल बठिंडा में नहीं बल्कि जालंधर, चंडीगढ़ और राज्य के कई शहरों में हुआ। राज्य में किसान संगठनों के नाम पर शरारती तत्व 120 से अधिक मोबाइल टावरों को क्षतिग्रस्त कर चुके हैं और एक कंपनी के शोरूमों को कई सप्ताह से घेरे हुए हैं। अब इनकी दृष्टि पतंजलि के बिक्री केंद्रों पर है और कई जगह इन केंद्रों पर प्रदर्शन भी किया जा चुका है। कहने को यह किसान आंदोलन के नाम पर किया जा रहा है परंतु सभी जानते हैं कि यह रणनीति नक्सलियों की छापामार नीति है जिसमें अपने विरोधियों की आवाज को पूरी तरह दबाने व तोडफ़ोड़ का सहारा लिया जाता है। राज्य में किसान आंदोलन के नाम पर नक्सलवाद की पदचाप साफ-साफ सुनने को मिल रही है और जल्द इस पर नकेल न डाली गई तो आने वाले दिन राज्य की कानून व्यवस्था व लोकतांत्रिक प्रणाली को अनेक तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। पंजाब में नक्सलवाद को बीत चुकी समस्या माना जाता रहा है, परंतु किसान आंदोलन के नाम पर बढ़ रही नक्सली गतिविधियां प्रमाण हैं कि नक्सलवाद की अमरबेल पुन: फूटने लगी है। कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसान संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं। इस बीच पंजाब के किसान प्रदर्शनकारियों के आंदोलन में वामपंथी आतंकियों (अल्ट्रा-लेफ्ट ऐक्टिविस्ट्स) की मौजूदगी को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। 

हालांकि, वामपंथियों से पंजाब का नाता कोई नई बात नहीं है। साल 1967 के नक्सली आंदोलन के समय भी पंजाब में वामपंथियों की सक्रियता देखने को मिली थी। पंजाब में राज्य सरकार द्वारा नक्सली आंदोलन को बलपूर्वक कुचल दिया गया था। इस दौरान 85 वामपंथी आतंकियों को खत्म किया गया था। इस दौरान आंदोलन के कुछ जो युवा बच गए थे, उन्होंने बाद में ऐक्टिविज्म, जॉर्नलिज्म और साहित्यिक क्षेत्रों में प्रमुखता से काम किया। साल 1967 में नक्सली आंदोलन शुरू होने के साथ ही पंजाब पहुंच गया था। हालांकि यह छात्रों और कुछ बुद्धिजीवियों के बीच में ही लोकप्रिय हुआ। किसी बड़े जननेता ने इसमें हिस्सा नहीं लिया। सीपीआई और सीपीएम के कुछ कैडर इसमें शामिल हुए थे। नक्सलियों द्वारा हिंसा के शुरुआती चरण में ही राज्य सरकार ने उन्हें कुचलने की नीति पर काम करना शुरू कर दिया था। इसके बाद एक दशक तक जमीनी संगठन काफी बढ़ गए जबकि कोर ग्रुप अभी भी भूमिगत रहा। साल 80 के दशक के शुरुआत में आतंकवाद के उभार के साथ सब कुछ बदल गया। वाम आंदोलन में गिरावट शुरू हुई और बहुत से नक्सलियों ने खालिस्तानी लबादा ओढ़ लिया।

इन चरमपंंथी वामपंथियों ने बाद में किसानों के बीच काफी काम किया और अपनी यूनियनों का गठन किया। इस काम में पुराने कार्यकर्ता भी जुड़े। उनके संगठनात्मक कौशल, अनुभव और लगन ने काम कर दिखाया। उन्होंने कर्ज के जाल, किसानों की आत्महत्या और कृषि मुआवजे के मुद्दों पर खूब काम किया। उनका ज्यादातर आधार उन सिख किसानों के बीच में है, जिनका वामपंथी विचारधारा से कोई खास लेना-देना नहीं है। करीब दर्जन भर किसान यूनियन वामपंथियों या चरम वामपंथियों द्वारा संचालित किए जाते हैं। सिख समाज में अलगाववाद, व्यवस्था के प्रति संदेह, भ्रमजाल फैलाने में इन चरम वामपंथी संगठनों का बहुत बड़ा हाथ है। इस काम में उनका साथ कठमुल्ला सिख संगठन व विदेशों में बैठे अलगाववादी तत्त्व देते रहे हैं। पिछले साल पंजाब में हुई कश्मीरी आतंकियों की गिरफ्तारी बताती है कि राज्य की उक्त सारी गड़बड़ी की दाल में जिहादी सोच विषाक्त छोंक लगा रही है। पाकिस्तान राज्य में नशे व हथियारों की तस्करी कर समस्या को और विकट बना रहा है।

फिलहाल बात करते हैं नक्सलवाद की •ाहरीली अमरबेल की, देश में नक्सल गतिविधियां सिर्फ सेंट्रल और पूर्वी भारत तक ही सीमित नहीं हैं। बल्कि उत्तर भारत में भी इसकी जड़ें तेजी से मजबूत हो रही हैं। इंटेलिजेंस ब्यूरो की यूपीए-2 सरकार के कार्यकाल में आई एक इंटरनल रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब में भी नक्सल शक्तियां तेजी से सिर उठा रही हैं। एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया था कि प्रतिबंधित समूह भाकपा (माक्र्सवादी) दल को देश भर में 128 फ्रंटल ऑर्गेनाइ•ोशन के जरिए चलाया जा रहा है। ये संगठन पंजाब समेत हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड,उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और केरल राज्यों में मौजूद हैं। 2009 में पंजाब से वामपंथी  नेता जय प्रकाश दुबे को गिरफ्तार किया गया था। पुलिस का कहना था कि दुबे गिरफ्तारी के समय पंजाब में नक्सलवाद को सक्रिय करने की कोशिश कर रहा था। नक्सली नेता कोबाड गांधी का पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला से गहरा संबंध है और पंजाबी मीडिया का बहुत बड़ा वर्ग नक्सलवादी जहर से सना है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जनवरी 2013 में अपनी चिंतन शिविर रैली में कहा था कि पंजाब के सभी 22 जिलों में नक्सलवाद सक्रिय हो गया है। प्रदेश में चल रहे कथित किसान आंदोलन में आंदोलनकारी जिस तरह अपनी जिद्द पर अड़े और बे सिर-पैर की बातें कर रहे हैं उससे साफ है कि बहुत से किसान नेताओं का खेत और खेती से कोई लेना-देना नहीं। वे केवल किसानों को भड़का कर अपना उल्लू सीधा करने की फिराक में हैं। प्रदेश की जनता, सरकार व सुरक्षा एजेंसियों को इन खतरों के प्रति सावधान रहना होगा। सीमावर्ती राज्य होने के कारण वैसे भी बड़े उद्योगपति इस राज्य में पूंजीनिवेश को जल्दी से तैयार नहीं होते और अगर नक्सलियों की तोडफ़ोड़ की हरकतों पर नकेल नहीं डाली गई तो पंजाब उद्योगित दृष्टि से अत्यंत पिछड़ सकता है। एक तरफ तो राज्य सरकार समय-समय पर पूंजीनिवेश के लिए मेले आयोजित कर उद्योगपतियों को आमंत्रित करती है और अनिवासी भारतीयों को भी निवेश के लिए कहा जाता है परंतु दूसरी ओर नक्सली गतिविधियां निवेशकर्ताओं को भयभीत कर रही हैं। राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तोडफ़ोड़ करने वालों को ऐसा नहीं करने की अपील की है परंतु उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि नक्सलियों का अपील जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर कोई विश्वास नहीं है, उनके साथ सख्ती से ही निपटना होगा।



- राकेश सैन
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ਪੰਜਾਬ ਅੰਦਰ ਫੁੱਟ ਰਹੀ ਨਕਸਲੀ ਅਮਰਵੇਲ

25 ਦਿਸੰਬਰ ਨੂੰ ਕੁਝ ਸ਼ਰਾਰਤੀ ਅੰਸਰਾਂ ਨੇ ਬਠਿੰਡਾ ਅੰਦਰ ਸਾਬਕਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸ਼੍ਰੀ ਅਟਲ ਬਿਹਾਰੀ ਵਾਜਪਈ ਦੀ ਜਯੰਤੀ ਮਨਾ ਰਹੇ ਭਾਜਪਾ ਕਾਰਜਕਰਤਾਵਾਂ ਤੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ | ਹਮਲੇ ਦੌਰਾਨ ਕਾਰਜਕਰਤਾਵਾਂ ਨਾਲ ਖਿੱਚ-ਧੂਅ ਕਰਨ ਦੀ ਵੀ ਕੋਸ਼ਿਸ ਹੋਈ ਅਤੇ ਸਾਰਾ ਪੰਡਾਲ ਉਜਾੜ ਸੁੱਟਿਆ | ਕਹਿਣ ਨੂੰ ਤਾਂ ਇਹ ਸਭਕੁਝ ਕੇਂਦਰ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਖੇਤੀ ਸੁਧਾਰ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਖਿਲਾਫ਼ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਸੀ ਪਰੰਤੂ ਇਸ ਹਮਲੇ ਦੀ ਸ਼ੈਲੀ ਨਕਸਲਵਾਦੀਆਂ ਨਾਲ ਮਿਲਦੀ ਜੁਲਦੀ ਦਿਸੀ | ਪੰਜਾਬ ਅੰਦਰ ਸ਼ਰਾਰਤੀ ਅੰਸਰਾਂ ਵੱਲੋਂ 1600 ਤੋਂ ਵੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮੋਬਾਈਲ ਟਾਵਰਾਂ ਨੂੰ ਨੁਕਸਾਨ ਪਹੁੰਚਾਇਆ ਜਾ ਚੁਕਿਆ ਹੈ | ਕੁਝ ਅਖੌਤੀ ਕਿਸਾਨ ਇਕ ਖਾਸ ਉਦਯੋਗਿਕ ਘਰਾਨੇ ਦੇ ਸ਼ੋਰੂਮਾਂ, ਮਾਲਸ, ਪਟ੍ਰੋਲ ਪੰਪਾਂ ਦੇ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ ਧਰਨੇ ਦੇ ਰਹੇ ਹਨ, ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਇਹਨਾਂ ਥਾਵਾਂ ਤੇ ਵਿਉਪਾਰਿਕ ਸਰਗਰਮੀਆਂ ਠਪ ਹੋ ਚੁਕੀਆਂ ਹਨ | ਪਤੰਜਲੀ ਦੇ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ ਵੀ ਧਰਨੇ ਦੇਣ ਦੀ ਤਿਆਰੀ ਵਿੱਢੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ | ਕੇਵਲ ਇੰਨਾ ਹੀ ਨਹੀਂ ਕੁਝ ਸੰਗਠਨਾਂ ਵੱਲੋਂ ਕਟਰਾ-ਅੰਮਿ੍ਤਸਰ ਐਕਸਪ੍ਰੈਸ ਵੇ ਦੇ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ ਵੀ ਅਭਿਆਨ ਚਲਾਉਣ ਦੀ ਤਿਆਰੀ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ | ਇਹਨਾਂ ਸਾਰੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਜਾਪਦਾ ਹੈ ਕਿ ਰਾਜ ਅੰਦਰ ਨਕਸਲਵਾਦ ਦੀ ਜ਼ਹਿਰੀਲੀ ਅਮਰਵੇਲ ਮੁੜ ਤੋਂ ਫੁੱਟਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਨਕਸਲ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਰਾਜਾਂ ਵਿਚ ਇਹੋ-ਜਿਹੀਆਂ ਹਰਕਤਾਂ ਦੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲਦੀਆਂ ਹਨ | ਜੇਕਰ ਇਸ ਵੇਲ ਦੀਆਂ ਕਰੁੰਬਲਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ 'ਚ ਹੀ ਨਾ ਕੁਚਲਿਆ ਗਿਆ ਤਾਂ ਇਹ ਮਨਹੂਸ ਵੇਲ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਖੁਸ਼ਹਾਲੀ ਅਤੇ ਕਾਨੂੰਨ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਨਿਗਲ ਜਾਵੇਗੀ |

ਨਕਸਲਵਾਦ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਅੰਦਰ ਖਤਮ ਹੋ ਚੁਕੀ ਸਮੱਸਿਆ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਪਰੰਤੂ ਰਾਜ ਅੰਦਰ ਚਲ ਰਹੇ ਕਿਸਾਨ ਅੰਦੋਲਨ ਦੌਰਾਨ ਦਿਖਾਈ ਦੇ ਰਹੇ ਨਕਸਲਵਾਦੀਆਂ ਦੇ ਚਿਹਰੇ ਸਬੂਤ ਹਨ ਕਿ ਰਾਜ ਅੰਦਰ ਨਕਸਲੀ ਦੀ ਅਮਰਵੇਲ ਦੁਬਾਰਾ ਫੁੱਟਣ ਲੱਗੀ ਹੈ | ਕੇਂਦਰ ਦੇ ਖੇਤੀ ਸੁਧਾਰ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਦੇ ਖਿਲਾਫ ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਹਰਿਆਣਾ ਦੇ ਕਿਸਾਨ ਸੰਗਠਨ ਅੰਦੋਲਨ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ | ਇਸ ਦੌਰਾਨ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨਕਾਰੀਆਂ ਵਿਚ ਖੱਬੇਪੱਖੀ ਅੱਤਵਾਦੀਆਂ (ਅਲਟ੍ਰਾ ਲੈਫਟ ਐਕਟੀਵਿਸਟਾਂ) ਦੀ ਮੌਜੂਦਗੀ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਸਵਾਲ ਉਠਾਏ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ | ਉਂਝ ਖੱਬੇ ਪੱਖੀ ਅੱਤਵਾਦ ਨਾਲ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਰਿਸ਼ਤਾ ਕੋਈ ਨਵੀਂ ਗੱਲ ਨਹੀਂ ਹੈ | ਸਾਲ 1967 ਦੇ ਨਕਸਲੀ ਅੰਦੋਲਨ ਦੌਰਾਨ ਵੀ ਇਸ ਅੱਤਵਾਦ ਨੇ ਰਾਜ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਉੱਪਰ ਜੁਲਮ ਢਾਏ ਸਨ ਪਰੰਤੂ ਰਾਜ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਇਸ ਅੰਦੋਲਨ ਨੂੰ ਸਖ਼ਤੀ ਨਾਲ ਕੁਚਲ ਦਿੱਤਾ | ਉਸ ਵੇਲੇ 85 ਖੱਬੇਪੱਖੀ ਅੱਤਵਾਦੀਆਂ ਦਾ ਸਫਾਇਆ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਪੁਲਿਸ ਸਖਤੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਬਚੇ ਹੋਏ ਨਕਸਲੀ ਐਕਟੀਵਿਜ਼ਮ, ਜਰਨਲਿਜ਼ਮ ਅਤੇ ਸਾਹਿਤ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਉਤਰ ਗਏ | 1967 ਵਿਚ ਦੇਸ਼ ਅੰਦਰ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਨਕਸਲੀ ਅੰਦੋਲਨ ਪੰਜਾਬ ਅੰਦਰ ਵੀ ਪਹੁੰਚ ਗਿਆ ਸੀ | ਇਹ ਅੰਦੋਲਨ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਅਤੇ ਬੁੱਧੀਜੀਵੀਆਂ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਹੋਇਆ ਪਰੰਤੂ ਕਿਸੇ ਵੱਡੇ ਨੇਤਾ ਨੇ ਇਸ 'ਚ ਹਿੱਸਾ ਨਹੀਂ ਲਿਆ | ਸੀਪੀਆਈ ਅਤੇ ਸੀਪੀਆਈ (ਐਮ) ਦਾ ਕੁਝ ਕਾਡਰ ਇਸ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹੋਇਆ ਸੀ | ਇਸਦੇ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਦੌਰ ਵਿਚ ਹੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਇਸਨੂੰ ਕੁਚਲਨ ਦਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਇਕ ਦਹਾਕੇ ਤਕ ਰਾਜ ਅੰਦਰ ਖੱਬੇਪੱਖੀ ਜ਼ਮੀਨੀ ਸੰਗਠਨ ਕਾਫੀ ਵਧੇ, ਪਰੰਤੂ ਕੋਰ ਗਰੁਪ ਭੂਮੀਗਤ ਰਹਿ ਕੇ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਰਿਹਾ | 80 ਦੇ ਦਹਾਕੇ ਅੰਦਰ ਰਾਜ ਵਿਚ ਪੈਦਾ ਹੋਏ ਖਾਲਿਸਤਾਨੀ ਅੱਤਵਾਦ ਦੇ ਉਭਾਰ ਦੌਰਾਨ ਸਭ ਕੁਝ ਬਦਲ ਗਿਆ | ਕੁਝ ਨਕਸਲੀਆਂ ਨੇ ਖਾਲਿਸਤਾਨੀਆਂ ਦਾ ਲਬਾਦਾ ਓਢ ਲਿਆ ਅਤੇ ਖੱਬੇਪੱਖੀ ਅੱਤਵਾਦ ਖ਼ਤਮ ਹੋਇਆ ੰਮੰਨ ਲਿਆ ਗਿਆ | ਪਰੰਤੂ ਮੌਜੂਦਾ ਸਮਾਂ ਦੱਸਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਭੁਲੇਖਾ ਸੀ, ਨਕਸਲੀ ਅੱਤਵਾਦ ਖ਼ਤਮ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ਬਲਕਿ ਅੰਦਰ ਹੀ ਅੰਦਰ ਉਹ ਆਪਣੀਆਂ ਜ਼ਹਿਰੀਲੀਆਂ ਜੜਾਂ ਫੈਲਾਉਂਦਾ ਰਿਹਾ |
ਇਹਨਾਂ ਅੱਤਵਾਦੀ ਤੱਤਾਂ ਨੇ ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਵਿਚ ਕਾਫੀ ਕੰਮ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਯੂਨੀਅਨਾਂ ਦਾ ਗਠਨ ਕੀਤਾ | ਇਸ ਕੰਮ ਵਿਚ ਪੁਰਾਣੇ ਕਾਰਜਕਰਤਾ ਵੀ ਜੁੜੇ | ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਅਧਾਰ ਸਿੱਖ ਸਮਾਜ ਰਿਹਾ ਜਿਸ ਦਾ ਖੱਬੇਪੱਖੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਨਾਲ ਕੋਈ ਜ਼ਿਆਦਾ ਲੈਣਾ-ਦੇਣਾ ਨਹੀਂ ਹੈ, ਪਰੰਤੂ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਕਿਸਾਨ ਕਰਜ਼ਾ, ਕਰਜ਼ਾ ਮਾਫੀ, ਕਿਸਾਨ ਆਤਮ ਹੱਤਿਆ, ਖੇਤੀ ਮੁਆਵਜ਼ੇ ਦੇ ਮੁੱਦਿਆਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਨਾਲ ਜੋੜਿਆ ਗਿਆ | ਰਾਜ ਅੰਦਰ ਦਰਜਨ ਦੇ ਕਰੀਬ ਕਿਸਾਨ ਯੂਨੀਅਨਾਂ ਖੱਬੇ ਪੱਖੀਆਂ ਵੱਲੋਂ ਸੰਚਾਲਿਤ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਹਨ | ਸਿੱਖ ਸਮਾਜ ਅੰਦਰ ਵਿਵਸਥਾ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਸ਼ੰਕੇ, ਵੱਖਵਾਦ, ਭ੍ਰਮਜਾਲ ਫੈਲਾਉਣ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਹੱਥ ਇਹਨਾਂ ਜੱਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦਾ ਹੈ | ਇਸ ਕੰਮ ਵਿਚ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਸਾਥ ਕੁਝ ਕੱਠਮੁੱਲਾ ਸਿੱਖ ਸੰਗਠਨ ਅਤੇ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਬੈਠੇ ਵੱਖਵਾਦੀ ਵੀ ਦਿੰਦੇ ਹਨ | ਪਿਛਲੇ ਸਾਲ ਪੰਜਾਬ ਅੰਦਰ ਕਸ਼ਮੀਰੀ ਅੱਤਵਾਦੀਆਂ ਦੀ ਹੋਈ ਗਿਰਫ਼ਤਾਰੀ ਦਸਦੀ ਹੈ ਕਿ ਗੜਬੜੀ ਦੀ ਇਸ ਦਾਲ ਵਿਚ ਜਿਹਾਦੀ ਅਨਸਰ ਵੀ ਜ਼ਹਿਰੀਲਾ ਤੜਕਾ ਲਗਾ ਰਹੇ ਹਨ | ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਰਾਜ ਅੰਦਰ ਨਸ਼ੇ ਅਤੇ ਹਥਿਆਰਾਂ ਦੀ ਤਸਕਰੀ ਕਰਕੇ ਸਮੱਸਿਆ ਨੂੰ ਹੋਰ ਜਟਿਲ ਬਣਾ ਰਿਹਾ ਹੈ |
ਦੇਸ਼ ਅੰਦਰ ਨਕਸਲੀ ਸਰਗਰਮੀਆਂ ਕੇਵਲ ਮੱਧ ਅਤੇ ਪੂਰਬੀ ਭਾਰਤ ਤੀਕ ਸੀਮਿਤ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਉੱਤਰੀ ਰਾਜਾਂ ਅੰਦਰ ਵੀ ਇਸਦੀਆਂ ਜੜਾਂ ਮਜ਼ਬੂਤ ਹੋ ਰਹੀਆਂ ਹਨ | ਸਾਬਕਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸ. ਮਨਮੋਹਨ ਸਿੰਘ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਕਾਰਜਕਾਲ ਦੌਰਾਨ ਆਈ.ਬੀ. ਦੀ ਇਕ ਅੰਤਰਿਮ ਰਿਪੋਰਟ ਨੇ ਜ਼ਾਹਿਰ ਕੀਤਾ ਸੀ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਅੰਦਰ ਵੀ ਨਕਸਲੀ ਤਾਕਤਾਂ ਸਿਰ ਚੁੱਕ ਰਹੀਆਂ ਹਨ | ਏਜੰਸੀ ਦੀ ਰਿਪੋਰਟ ਵਿਚ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਸੀ ਕਿ ਪਾਬੰਦੀਸ਼ੁਦਾ ਭਾਕਪਾ (ਮਾਰਕਸਵਾਦੀ) ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਅੰਦਰ 128 ਫਰੰਟਲ ਜੱਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਜ਼ਰੀਏ ਚਲਾਇਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ | ਇਹ ਜੱਥੇਬੰਦੀਆਂ ਪੰਜਾਬ ਸਮੇਤ ਹਰਿਆਣਾ, ਦਿੱਲੀ, ਉੱਤਰਾਖੰਡ, ਉੱਤਰ ਪ੍ਰਦੇਸ਼, ਬਿਹਾਰ, ਉੜੀਸਾ, ਛੱਤੀਸਗੜ੍ਹ, ਝਾਰਖੰਡ, ਗੁਜਰਾਤ, ਪੱਛਮੀ ਬੰਗਾਲ, ਆਂਧਰਾ ਪ੍ਰਦੇਸ਼, ਕਰਨਾਟਕ, ਮਹਾਰਾਸ਼ਟਰ ਅਤੇ ਕੇਰਲ ਰਾਜਾਂ ਵਿਚ ਮੌਜੂਦ ਹਨ | ਸਾਲ 2009 ਅੰਦਰ ਖੱਬੇਪੱਖੀ ਨੇਤਾ ਜੈਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੂਬੇ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਗਿਰਫਤਾਰ ਕੀਤਾ ਸੀ | ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਦਾਅਵਾ ਕੀਤਾ ਸੀ ਕਿ ਦੂਬੇ ਰਾਜ ਅੰਦਰ ਨਕਸਲਵਾਦ ਨੂੰ ਫੈਲਾ ਰਿਹਾ ਸੀ | ਨਕਸਲੀ ਨੇਤਾ ਕੋਬਾਡ ਗਾਂਧੀ ਦਾ ਵੀ ਪੰਜਾਬੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਨਾਲ ਗਹਿਰਾ ਰਿਸ਼ਤਾ ਹੈ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬੀ ਮੀਡੀਆ ਅੰਦਰ ਨਕਸਲੀ ਸੋਚ ਵੀ ਕਾਫੀ ਹਾਵੀ ਹੈ | ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਕੈਪਟਨ ਅਮਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ 2013 ਅੰਦਰ ਇਕ ਰੈਲੀ ਦੌਰਾਨ ਆਖ ਚੁਕੇ ਹਨ ਕਿ ਰਾਜ ਦੇ 22 ਜ਼ਿਲਿ੍ਹਆਂ ਅੰਦਰ ਨਕਸਲਵਾਦ ਫੈਲ ਚੁੱਕਾ ਹੈ | ਰਾਜ ਅੰਦਰ ਚਲ ਰਹੇ ਅਖੌਤੀ ਕਿਸਾਨ ਅੰਦੋਲਨ ਦੌਰਾਨ ਅੰਦੌਲਨਕਾਰੀ ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜ਼ਿੱਦ ਤੇ ਅੜੇ ਹਨ ਅਤੇ ਬਿਨਾ ਸਿਰ ਪੈਰ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ ਉਸ ਤੋਂ ਸਾਫ ਹੈ ਕਿ ਇਹਨਾਂ ਦਾ ਖੇਤ ਅਤੇ ਖੇਤੀ ਨਾਲ ਕੋਈ ਲੈਣਾ-ਦੇਣਾ ਨਹੀਂ, ਉਹ ਤਾਂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਭੜਕਾ ਕੇ ਆਪਣਾ ਉ ੱਲੂ ਸਿੱਧਾ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ | ਰਾਜ ਦੀ ਜਨਤਾ, ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਸੁਰੱਖਿਆ ਏਜੰਸੀਆਂ ਨੂੰ ਨਕਸਲਵਾਦ ਦੇ ਇਸ ਖਤਰੇ ਪ੍ਰਤੀ ਸਾਵਧਾਨ ਰਹਿਣਾ ਪਵੇਗਾ |


- ਰਾਕੇਸ਼ ਸੈਨ
32, ਖੰਡਾਲਾ ਫਾਰਮਿੰਗ ਕਲੋਨੀ
ਵੀਪੀਓ ਲਿਦੜਾਂ,
ਜਲੰਧਰ।
ਮੋ. 77106-55605

राजधर्म निभाएं कैप्टन अमरिंदर

शास्त्रों ने अयोग्य राजाओं के तीन लक्षण बताए हैं, किंकर्तव्यविमूढ़ता यानि जो हालत कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन की थी, कर्तव्यविमूढ़ता की श्रेष्ठ उदाहरण पूर्व प्रधानमंत्री स. मनमोहन सिंह कहे जा सकते हैं जो अपने सहयोगियों के भ्रष्टाचार पर मौन धारण किए रहे और धर्मविमूढ़ता की ताजा मिसाल हैं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह। पंजाब धीरे-धीरे अराजकता की ओर बढ़ रहा है और कैप्टन अमरिंदर अपने को किसान हितैषी दिखाने की लालच में अपनी संवैधानिक जिम्मेवारियों की तरफ पीठ करके बैठे दिखाई दे रहे हैं। केंद्रीय कृषि सुधार कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन की आड़ में पंजाब में आराजकता की स्थिति बनती दिख रही है। उक्त पंक्तियां लिखे जाने तक पंजाब में 1624 मोबाइल टावर पूरी तरह क्षत्रिग्रस्त किए जा चुके हैं और बहुत सा सामान खुर्दबुर्द हो चुका है। प्रदर्शनकारी एक निजी टेलीकॉम कंपनी के शोरूमों व मॉल्स को घेर रहे हैं और पतंजलि के बिक्री केंद्र भी घेरने की बात की जा रही है। केवल इतना ही नहीं राज्य की राजनीति में पहले ही अछूत घोषित हो चुकी भारतीय जनता पार्टी के कार्यक्रमों पर नक्सली अंदाज में हमले हो रहे हैं। राज्य सरकार इन घटनाओं पर मौन धारण किए हुए है और पुलिस कार्रवाई के नाम पर केवल कागजी लिपाई पुताई हो रही है। राजनीति में मिथ्या कथन व मिथ्या सिद्धांत स्थापित करने के क्या दुष्परिणाम निकल सकते हैं उसकी सबसे बड़ी उदाहरण है पंजाब में जीओ कम्पनी के मोबाइल टावरों से हो रही तोडफ़ोड़, रिलान्यस कम्पनी के केन्द्रों की हो रही घेराबन्दी। भारी भरकम चुनावी चंदे लेने के बावजूद उद्योगपतियों को राजनीतिक बुराई और गरीब विरोध प्रचारित करने का काम लगभग हर राजनीतिक दल ने किया है। वर्तमान में अंबानी-अडानी को इस बुराई का प्रतीक बना कर पेश किया जाता है। ऐसा करते समय नेता भूल जाते हैं कि उनके कहे का असर नीचे तक होता है और जनसाधारण उसी दृष्टि से व्यवहार करते हैं। केंद्र सरकार के नए कृषि सुधार कानूनों को लेकर भी यही दुष्प्रचार किया जा रहा है कि यह सबकुछ इन्हीं अंबानियों-अडानियों को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया है। हालांकि उक्त उद्योगपतियों का कृषि सुधार कानूनों से कोई लेना देना नहीं परंतु राजनीतिज्ञों द्वारा स्थापित मिथ्या सिद्धांतों व दुष्प्रचार का ही असर है कि इन कंपनियों के आधारभूत ढांचों से तोडफ़ोड़ की जा रही है और इनके खिलाफ अभियान चलाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा था कि मोबाइल टावरों पर तोडफ़ोड़ करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। इसके बावजूद तोडफ़ोड़ का सिलसिला नहीं रुक रहा है। पंजाब में जिओ के 9000 टावर हैं और इन्हें निशाना बनाए जाने के कारण शिक्षा क्षेत्र सहित दुकानदार, व्यापारी और वर्क फ्रॉम होम कर रहे कर्मचारी प्रभावित हुए हैं। सबसे ज्यादा समस्या नेट बैंकिंग को लेकर आई है। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में लोग परेशान हुए हैं। दूरसंचार सेवाओं में बाधा पहुंचाए जाने पर अपेक्स इंडस्ट्री बाडी सेलुलर आपरेटर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (सीओएआइ) के डायरेक्टर जनरल एसपी कोचर ने कहा कि दूरसंचार सेवाएं करोड़ों लोगों की लाइफ लाइन हैं। अन्य क्षेत्रों के साथ साथ कोविड-19 के कठिन समय में आनलाइन सेहत सलाह लेने वाले लोग भी शामिल हैं। निवर्तमान मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और वर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह हर साल पूंजीनिवेश दिवस मनाते और देश के प्रसिद्ध उद्योगपतियों, व्यवसाइयों को राज्य में निवेश करने को प्रोत्साहित करते रहे हैं। यह क्रम आज भी जारी है परंतु सवाल पैदा होता है कि राज्य में अराजकता यूं ही जारी रही तो कौन उद्योगपति राज्य में निवेश करना चाहेगा ? राज्य में दो दशकों तक चले खालिस्तानी आतंक की काली आंधी ने देश के सीमांत क्षेत्र को विकास की दृष्टि से इतनी करारी चोट मारी है जिससे राज्य के लोग आज भी कराह रहे हैं। इस साल कोरोनाकाल के बाद शुरू हुए किसान आंदोलन ने दाद में खुजली का काम किया। पहले तो किसान रेल पटडिय़ों पर धरना दिए बैठे रहे जिससे उद्योग जगत के साथ-साथ सामान्य व्यवसाय पर विपरीत असर पड़ा और अब तोडफ़ोड़ की बढ़ रही घटनाओं ने व्यवसाइयों में भय की लहर पैदा कर दी है परंतु मुख्यमंत्री संकट को देख कर रेत में सिर छिपाने का प्रयास कर रहे हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भाजपा को पंजाब में लगभग बंगाल जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। राज्य में कई महीनों से चल रहे किसान आंदोलन की आड़ में कुछ शरारती तत्वों ने गांवों की सीमाओं पर बोर्ड व पोस्टर लगा दिए कि इस गांव में भाजपाईयों का आना मना है। लोगों की इस असंवैधानिक गतिविधियों को नजरंदाज करने का परिणाम यह हुआ कि आज सरेआम भाजपाईयों को निशाना बनाया जा रहा है, सोशल मीडिया पर उन्हें भारी-भरकम गालियां निकाली जा रही हैं। पंजाब भाजपा अध्यक्ष अश्विनी शर्मा के काफिले पर हमला हो चुका है। 25 दिसंबर को वाजपेयी जी की जयंती पर बठिंडा में कुछ लोगों ने नक्सली शैली में समारोहस्थल पर आतंक फैलाया और बहुत से स्थानों पर इन समारोहों का विरोध हुआ। संगरूर में कुछ प्रदर्शनकारियों ने विश्व हिंदू परिषद् की बैठक के दौरान भी बवाल किया जो राम मंदिर निर्माण के लिए चलाए गए धन संग्रह अभियान के तहत बुलाई गई थी। राज्य में हो रही इस तोडफ़ोड़ को हल्के में नहीं लिया जा सकता क्योंकि कोरोनाकाल के बाद जिस तरह से बहुराष्ट्रीय कंपनियों का चीन से मोहभंग और भारत के प्रति रुख हुआ है उससे संदेह पैदा होना स्वभाविक है कि बात सामान्य नहीं है जैसा कि प्रचारित किया जा रहा है। कोई न कोई शक्ति तो है जो भारत को अशांत व अस्थिर साबित कर उसे बदनाम करने के प्रयास में है। देश के नक्सल प्रभावित इलाकों में इसी तरह की गतिविधियों से उद्योगपतियों व व्यवसाइयों को डराया धमकाया जाता रहा है और पंजाब-हरियाणा में चल रहे किसान आंदोलन में नक्सली घुसपैठ की खबरें किसी से छिपी नहीं। चाहे हर प्रदर्शनकारी नक्सली नहीं है परंतु लगता है कि वामपंथी शक्तियां किसानों के भड़के हुए आक्रोश का प्रयोग अपने उद्देश्य के लिए कर रही हैं। इतना सब होने के बावजूद कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार की अपराधियों के प्रति लुंजपुंज कार्रवाई बताती है कि वे अपने राजधर्म से विमुख हो चुके हैं। यह सर्वविदित है कि दो दिन पहले अपना 136वां जन्मदिन मना चुकी कांग्रेस पार्टी वृद्धावस्था में राजनीतिक वियाग्रा की तलाश कर रही और किसान आंदोलन में अवसर खोज रही है। यही कारण लगता है कि कैप्टन ऐसी कोई कार्रवाई नहीं करना चाहते जिससे कांग्रेस की छवि ऐसी बने कि वह आंदोलन को तारपीडो कर रही है। देश की नौकरशाही की यह विशेषता रही है कि वह अपने राजनीतिक आकाओं की इच्छा उनके इशारों से पहले ही भांप लेती है और यही कारण है कि राज्य में हुड़दंग मचाने वालों के प्रति पुलिस का रवैया आंख मूंदे गांधी जी के त्रिमूर्ति बंदर जैसा रहा है। पुलिस केस तो दर्ज कर रही है परंतु अनाम लोगों पर और जाहिर है जब केस ही अनाम लोगों पर हो तो गिरफ्तारी किसकी होती होगी। पंजाब देश का सीमांत राज्य है और सीमावर्ती क्षेत्र सदैव राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्रों के अड्डे माने जाते हैं। पांच नदियों के नाम पर बना पंजाब पहले ही नक्सलवाद, खालिस्तानी आतंकवाद और अलगाववाद की आग झेल चुका है। दुखद तो यह है कि यह आग बुझी हुई जरूर दिख रही है परंतु राख में कभी-कभी चिंगारियां भी महसूस होती रही हैं। ऐसे में अगर अपराधियों व तोडफ़ोड़ करने वालों से नरमी दिखाई जाती रही और राजधर्म की उपेक्षा हुई तो इसका दुष्परिणाम भुगतने के लिए हमें तैयार रहना होगा।

- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ां
जालंधर।
संपर्क - 77106-55605

कांग्रेस और खालिस्तान में गर्भनाल का रिश्ता

माँ और सन्तान के बीच गर्भनाल का रिश्ता ही ऐसा होता है, कि प्रसव के बाद शरीर अलग होने के बावजूद भी आत्मीयता बनी रहती है। सन्तान को पीड़ा हो त...