Thursday, 23 September 2021

 टुकड़े-टुकड़ेवादियों के चंगुल में पंजाब कांग्रेस

‘‘कश्मीर-कश्मीर के लोगों का देश है, 1947 में इण्डिया को छोड़ते समय हुए समझौते के अनुसार और यूएनओ के फैसले की उल्लंघना करते हुए कश्मीर देश के दो टुकड़े कर दिए गए, जिस पर पाकिस्तान और भारत ने कब्जा किया हुआ है।’’
यह नासमझी भरे ब्यान जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रण्ट के किसी नेता या किसी जमात या आतंकी संगठन के मुखिया के नहीं बल्कि पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के परामर्शदाता मालविन्द्र सिंह माली के हैं, जो उन्होंने 17 अगस्त को फेसबुक पर पोस्ट किए। माली के ब्यानों पर प्रदेश की राजनीति में भूचाल सा आ गया है और विपक्षी दलों ने इसे शहीदों का अपमान व देश की एकता-अखण्डता और प्रभुसत्ता के लिए खतरनाक बताते हुए उनके खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज करने की मांग की है। प्रदेश में जगह-जगह इसके खिलाफ प्रदर्शन भी हो रहे हैं। सिद्धू ने कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही अपने लिए चार सलाहकार नियुक्त किए जिनमें अधिकतर का चरित्र व गतिविधियां सन्देह के घेरे में हैं। इन नियुक्तियों को देख कर यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि पंजाब कांग्रेस टुकड़े-टुकड़ेवादियों के चंगुल में फंस चुकी है।
पूर्व पत्रकार व स्वयंभू मानवाधिकार कार्यकर्ता माली शुरू से ही सन्दिग्ध चरित्र के रहे हैं। चरम वाम विचारधारा में विश्वास रखने वाले माली 1970 में वामपन्थी विद्यार्थी संगठन पंजाब स्टूडेण्ट्स यूनियन (पी.एस.यू.) से जुड़े रहे हैं और 1990 में स्वयंभू मानवाधिकार संगठन पंजाब ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन से जुड़ गए। बाद में वे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समिति (एस.जी.पी.सी.) के पूर्व अध्यक्ष दिवंगत गुरचरण सिंह टोहड़ा के सम्पर्क में आए। वे प्रदेश में कई कट्टरपन्थी गतिविधियों से भी जुड़े रहे और इसके चलते गिरफ्तार भी हो चुके हैं। हिन्दू और भारत विरोध इनका प्रिय शगुल रहा है और पंजाब में भी अलगाववाद का समर्थन करते रहे हैं। पंजाब के बारे कश्मीर की भान्ति ट्वीट करते हुए माली ने 9 अगस्त, 2019 लिखा था -
‘‘पंजाबियों और सिखों का 15 अगस्त के दिन का नारा है- 47 की आजादी, पंजाब देश की बर्बादी है, पाकिस्तान से दुश्मनी नहीं और दोस्ती और खुली बैठक पक्की है। नेहरू, पटेल, वाजपेयी, इन्दिरा गान्धी, राजीव गान्धी, नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह और नरेन्द्र मोदी मूलरूप से भारतीय राज्य नीतियों पर ब्राह्मणवादी विचारधारा के अनुयायी थे। उनके बीच मतभेद सिर्फ विधिज्ञ के थे। कभी खुद में आकलन, कभी पकड़ो और निगल जाओ। भारत को भारत संघ बनाने का उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र है। भारतीय राष्ट्रवाद हिन्दू पौराणिक कथाओं और इतिहास की ब्राह्मणवादी धारा पर आधारित है। इसलिए इनको भारत के लिए दुश्मन बनाना पड़ता है। वो किसी समय इस्लाम, ईसाई, सिख, कश्मीरी, पाकिस्तान और कम्युनिस्ट आतंकवादी हो सकता है जो देश की एकता, अखण्डता, राष्ट्रवाद को खतरे में डालता है। इस खाने के बिना बच्चे जिन्दा और समृद्ध नहीं हो सकते... और जो इस बोतल के अन्दर हैं वो एक दिन बिखरेगा। इस भारत की कब्र पर बन रहा हिन्दुस्तान राज्यों का संघ है...।’’
सिद्धू की चण्डाल चौकड़ी में दूसरा नाम है बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ऑफ हैल्थ साइंस के पूर्व रजिस्ट्रार प्यारे लाल गर्ग का जो वर्तमान में ‘पिण्ड बचाओ-पंजाब बचाओ कमेटी’ नाम से संगठन चला रहे हैं। प्यारे लाल गर्ग चण्डीगढ़ स्थित खालिस्तान समर्थक संगठन ‘केन्द्री श्री गुरु सिंहसभा’ के मञ्चों पर अक्सर दिखाई देते हैं। इस सभा ने 26 जनवरी, 2021 में लाल किले पर असमाजिक तत्वों द्वारा केसरी झण्डा फहराने और तिरंगे के अपमान का खुल कर समर्थन किया। केवल इतना ही नहीं 15 अगस्त, 2020 को यह सभा ‘पंजाब विनाश दिवस’ मना चुकी है और सिख युवाओं को भारत के खिलाफ भडक़ाने का काम करती रही है। प्यारे लाल गर्ग के संगठन ‘पिण्ड बचाओ-पंजाब बचाओ’ नागरिकता संशोधन अधिनियम (सी.ए.ए) के विरोध के दौरान खूब विषाक्त प्रचार किया।
सिद्धू के रत्नों में तीसरे हैं पंजाब के अतिरिक्त पुलिस प्रम्मुख मोहम्मद मुस्तफा का जो 1985 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (आई.पी.एस.) के अधिकारी हैं। दिखने में धर्मनिरपेक्ष छवि के मुस्तफा वास्तव में सूक्ष्म इस्लामिक व वामपन्थी विचारधारा से प्रभावित हैं। वे मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह के भी करीबी रहे परन्तु कैप्टन द्वारा दिनकर गुप्ता को पंजाब पुलिस प्रम्मुख नियुक्त करने के बाद वे सिद्धू के खेमे में चले गए। उन्होंने इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया परन्तु असफल रहे। यहां रोचक तथ्य यह रहा कि सर्वोच्च न्यायालय में उनके केस की पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता एडवोकेट एजाज मकबूल ने की जो साल 2019 में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की ओर से श्रीराम मन्दिर केस में मन्दिर निर्माण के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर कर चुके हैं। मुस्तफा हिन्दुत्व व संघ के खिलाफ ट्वीट कर कई बार विवादों में आ चुके हैं। इनकी धर्मपत्नी रजिया सुल्ताना पंजाब सरकार में मन्त्री पद पर विराजमान हैं और राज्य के मुस्लिम बाहुल्य इलाके मालेरकोटला से विधायक चुनी जाती रही हैं।
बात करते हैं माली की, तो ज्ञात रहे कि जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों द्वारा किए गए हमले के बाद 26 अक्तूबर, 1947 को वहां के महाराजा हरिसिंह ने विलयपत्र पर हस्ताक्षर कर अपने राज्य को भारतीय गणराज्य में शामिल करने की घोषणा की थी। पाकिस्तानी हमले के बाद जम्मू-कश्मीर का कुछ हिस्सा उसके कब्जे में ही रह गया परन्तु 22 फरवरी, 1994 को संसद के दोनों सदनों में सभी दलों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर पूरे राज्य को भारत का अभिन्न अंग बताया था, जिसमें पाक अधिकृत कश्मीर के साथ-साथ गिलगिट, बाल्टिस्तान व अक्साइचिन के इलाके भी शामिल हैं। इसके बावजूद जम्मू-कश्मीर पर विवादित ब्यान दे कर कांग्रेस के नेता व सिद्धू के सलाहकार ने देश की एकता अखण्डता व प्रभुसत्ता को चुनौती देने का दु:साहस किया है जिसको स्वीकार नहीं किया जा सकता। वैसे कहावत भी है कि जैसी संगत वैसी रंगत, आदमी अपने स्वभाव के लोगों का साथ ढूण्ढ ही लेता है। पाकिस्तानी सेना के जनरल कमर जावेद बाजवा को जफ्फी डाल कर खुद सिद्धू भी विवादों में घिर चुके हैं और अब उन्होंने अपने इर्द-गिर्द इसी गौत्र की चण्डाल चौकड़ी एकत्रित कर ली है तो किसी को अधिक आश्चर्य नहीं होना चाहिए, लेकिन कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व को सोचना चाहिए कि उसे कभी देश को इन प्रश्नों के उत्तर देने पड़े तो उसके पास क्या जवाब होगा ?

- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ां
जालंधर।
संपर्क - 77106-55605

 'वैश्विक हिन्दुत्व का विघटन' कार्यक्रम,

तालिबान को कवर फायर देने का प्रयास
नब्बे के दशक में दूरदर्शन पर चले रामायण धारावाहिक के असर को कम करने के लिए लिबरलों ने पूरी दुनिया में ‘मैनी रामायंस’, ‘थ्री हण्डरेड रामायंस’ शोधग्रन्थों पर आधारित कार्यक्रम चला हिन्दुत्व को बदनाम करने का प्रयास किया था। अब उसी तर्ज पर अफगानिस्तान में कट्टर इस्लाम का चेहरा बन कर पुनर्जीवित हुए तालिबानियों को कवर फायर देने व उनके दुष्कर्मों से दुनिया का ध्यान हटाने के लिए लिबरल बिरादरी ने हिन्दुत्व को कटघरे में उतारने का प्रयास किया है। इन लिबरलों द्वारा 10 से 12 सितम्बर, 2021 को ‘वैश्विक हिन्दुत्व का विघटन’ (डिस्मेण्टलिंग ग्लोबल हिन्दुत्व), इस विषय पर एक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया है। इस सम्मेलन का आयोजन करने के लिए संसार के 40 से अधिक विश्वविद्यालयों ने पहल की है। इनमें अमेरिका के प्रिंसटन, स्टैनफोर्ड, सिएटल, बोस्टन आदि विश्वविद्यालय सम्मिलित हैं। इनके आयोजकों के नाम जानने पर स्वत: ही पता चल जाता है कि किसी कुल, गौत्र और कबीले के लोग इसके पीछे हैं। विगत कुछ वर्षों में विश्व स्तर पर हिन्दुत्व की विचारधारा से बड़ी संख्या में लोग आकर्षित हो रहे हैं। इसे चुनौती देने के लिए हिन्दू विरोधियों द्वारा इस प्रकार के सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं। विदेशों से हो रहा यह वैचारिक आक्रमण न केवल हिन्दू धर्म के विरुद्ध है; अपितु भारत के विरुद्ध भी है, जिससे सावधान रहने की आवश्यकता है।
इस समारोह के आयोजकों में पहला नाम है फिल्म निर्माता आनन्द पटवर्धन का जो हिन्दू विरोध के लिए कुख्यात हैं। 1992 में इन दी नेम आफ गॉड (राम के नाम पर) डाक्यूमेण्टरी में ये राममन्दिर आन्दोलन का प्रखरता से विरोध कर चुके हैं। इसी तरह अन्य आयोजक आयशा किदवई जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं और धुर वामपन्थी विषाक्त चाशनी से सनी हैं। जेएनयू में लगे भारत विरोधी नारों के प्रकरण के बाद वह इसके मुख्य आरोपी कन्हैया कुमार के समर्थन में आन्दोलन कर चुकी हैं। कविता कृष्णन अतिवादी वाम दल कम्यूनिस्ट पार्टी आफ इण्डिया (माक्र्सवादी-लेनिनवादी) की सदस्या व अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संगठन की सचिव हैं। समारोह से जुड़े राजस्थान स्थित दलितवादी नेता भंवर मेघवंशी की योग्यता केवल इतनी है कि वे हर साल मनुस्मृति जलाने का पराक्रम करते हैं। मोहम्मद जुनैद पाकिस्तान के युवा क्रिकेटर हैं। नन्दिनी सुन्दर छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की समर्थक मानी जाती हैं और नेहा दीक्षित वामपन्थी विचारधारा की पत्रकार हैं। समारोह की आयोजन समिति से जुड़े अन्य लोगों का परिचय भी न्यूनाधिक इन्ही गुणों से मिलता जुलता है। यह वही जुण्डली है जो समय-समय पर राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय आयोजनों में शामिल हो कर भारत, हिन्दुत्व, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा और नरेन्द्र मोदी सहित राष्ट्रीय विचारों से जुड़े लोगों की पीठ कर वैचारिक तौर पर तालिबानी कोड़े बरसाने का काम करती है।
साल 2014 में भारत में हुए सत्ता परिवर्तन पर टिप्पणी करते हुए एक विदेशी समाचार पत्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा कि - सरकार बदलने से भारतीय जनमानस नहीं बदला, बल्कि जनमानस बदलने से ही सरकार बदली है। स्वामी विवेकानन्द जैसी महान विभूतियों की भविष्यवाणी के अनुरूप हिन्दुत्व अब संक्रमण काल से निकल कर जागरण काल में प्रवेश करने जा रहा है। देशवासियों के सम्मुख भारत माता को विश्वगुरु के पद पर देेखने की ललक तीव्र होती जा रही है, जिसे राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय मञ्च पर भी महसूस किया जा रहा है। दुनिया में योग व आयुर्वेद का बढ़ता प्रचलन, विश्व योग दिवस के आयोजन, भारत से चोरी या तस्करी हुई सांस्कृति धरोहरों की दुनिया के विभिन्न देशों द्वारा की जा रही स्वैच्छिक वापसी, सबका साथ-सबका विकास के रूप में स्थापित हो रहा भारत का वैश्विक चिन्तन आदि अनेकों उदाहरण हैं जिससे साफ संकेत मिलने लगे हैं कि दुनिया में हिन्दुत्व की चमक, धमक और खनक महसूस की जाने लगी है। दूसरी ओर तालिबान के पुनर्जन्म से पन्थिक आतंकवाद का चेहरा पूरी तरह बेनकाब होता जा रहा है। उक्त कार्यक्रम के माध्यम से हिन्दुत्व की उज्जवल मुखाकृति को अधिक विभत्स बता कर इसी मजहबी आतंकवाद के चेहरे को बचाने का प्रयास होने वाला है।
हिन्दुत्व पर उक्त आक्रमण को राष्ट्र के रूप में भारत पर हमले के रूप में भी देखा जा सकता है क्योंकि देश का सर्वोच्च न्यायालय हिन्दुत्व को देश का जीवन दर्शन बता चुका है। वस्तुत: हिन्दुत्व का पूरा दर्शन ही सह-अस्तित्ववादिता पर केन्द्रित है। उदार समझा जाने वाला पश्चिमी जगत प्रगति के अपने सभी दावों के बावजूद अब तक केवल सहिष्णुता की स्थिति तक ही पहुञ्च सका है। सहिष्णुता में विवशता परिलक्षित होती है, वहीं सह-अस्तित्ववाद में सहज स्वीकार्यता का भाव है। हिन्दुत्व जड़-चेतन सभी में एक ही विराट सत्ता का पवित्र प्रकाश देखता है। वह प्राणी-मात्र के कल्याण की कामना करता है। जय है तो धर्म की, क्षय है तो अधर्म की। यहां संघर्ष के स्थान पर सहयोग और सामञ्जस्य पर बल दिया गया है। हिन्दुत्व ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा में विश्वास रखता है। यह अन्धी एवं अन्तहीन प्रतिस्पर्धा नहीं, संवाद, सहयोग और सामञ्जस्य पर बल देता है। यह संकीर्ण, आक्रामक और विस्तारवादी नहीं, अपितु सर्वसमावेशी विचारधारा है। इसमें श्रेष्ठता का दम्भ नहीं, जीवन-जगत-प्रकृति-मातृभूमि के प्रति कृतज्ञता की भावना है। यह समन्वयवादी है। यह सभी मत-पन्थ-प्रान्त, भाषा-भाषियों को साथ लेकर चलता है। यह एकरूपता नहीं, विविधता का पोषक है। यह एकरस नहीं, समरस एवं सन्तुलित जीवन-दृष्टि में विश्वास रखता है।
इन लिबरलों की भान्ति भारत के मर्म और मन को पहचान पाने में असमर्थ विचारधाराओं ने ही सार्वजनिक विमर्श में हिन्दू, हिन्दुत्व, राष्ट्रीय, राष्ट्रीयत्व जैसे विचारों एवं शब्दों को वर्जति और अस्पृश्य माना। जो चिन्तक भारत को भारत की दृष्टि से देखते, समझते और जानते रहे हैं उन्हें न तो इन शब्दों से कोई आपत्ति है, न इनके कथित उभार से, बल्कि हिन्दू-दर्शन, हिन्दू-चिन्तन, हिन्दू जीवन सबके लिए आश्वस्तकारी हैं। यहां सब प्रकार की कट्टरता और आक्रामकता पूर्णत: निषेध है। हिन्दुत्व में सामूहिक मतों-मान्यताओंं के साथ-साथ व्यक्ति-स्वातंत्र्य एवं सर्वथा भिन्न-मौलिक-अनुभूत सत्य के लिए भी पर्याप्त स्थान है।
हिन्दुत्व की उदारता का उदाहरण है सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय। शास्त्री यज्ञपुरष दास जी और अन्य विरुद्ध मूलदास भूरदास वैश्य और अन्य (1966 (3) एससआर 242) के प्रकरण में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री गजेन्द्र गडकर ने अपने निर्णय में लिखा- जब हम हिन्दू धर्म के सम्बन्ध में सोचते हैं तो हमें हिन्दू धर्म को परिभाषित करने में कठिनाई अनुभव होती है। विश्व के अन्य मजहबों के विपरीत हिन्दू धर्म किसी एक दूत को नहीं मानता, किसी एक भगवान की पूजा नहीं करता, किसी एक मत का अनुयायी नहीं है, वह किसी एक दार्शनिक विचारधारा को नहीं मानता, यह किसी एक प्रकार की मजहबी पूजा पद्धति या रीति-नीति को नहीं मानता, वह किसी मजहब या सम्प्रदाय की सन्तुष्टि नहीं करता है। बृहद रूप में हम इसे एक जीवन पद्धति के रूप में ही परिभाषित कर सकते हैं , इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं।
इसी तरह रमेश यशवन्त प्रभु विरुद्ध प्रभाकर कुन्टे (एआईआर 1996 एससी 1113) प्रकरण में उच्चतम न्यायालय को विचार करना था कि चुनावों के दौरान मतदाताओं से हिन्दुत्व के नाम पर वोट माँगना क्या मजहबी भ्रष्ट आचरण है। उच्चतम न्यायालय ने इस प्रश्न का नकारात्मक उत्तर देते हुए अपने निर्णय में कहा- हिन्दू, हिन्दुत्व, हिन्दुइज्म को संक्षिप्त अर्थों में परिभाषित कर किन्हीं मजहबी संकीर्ण सीमाओं में नहीं बान्धा जा सकता है। इसे भारतीय संस्कृति और परम्परा से अलग नहीं किया जा सकता। यह दर्शाता है कि हिन्दुत्व शब्द इस उपमहाद्वीप के लोगों की जीवन पद्धति से सम्बन्धित है। इसे कट्टरपन्थी मजहबी संकीर्णता के समान नहीं कहा जा सकता। साधारणतया हिन्दुत्व को एक जीवन पद्धति और मानव मन की दशा से ही समझा जा सकता है।
दूसरी ओर अन्तर्राष्ट्रीय विचारक व विद्वान वेबस्टर के अंग्रेजी भाषा के तृतीय अन्तर्राष्ट्रीय शब्दकोष के विस्तृत संकलन में हिन्दुत्व का अर्थ करते हुए कहा गया है कि - यह सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक विश्वास और दृष्टिकोण का जटिल मिश्रण है। यह भारतीय उप महाद्वीप में विकसित हुआ। यह जातीयता पर आधारित, मानवता पर विश्वास करता है। यह एक विचार है जो कि हर प्रकार के विश्वासों पर विश्वास करता है तथा धर्म, कर्म, अहिंसा, संस्कार व मोक्ष को मानता है और उनका पालन करता है। यह ज्ञान का रास्ता है स्नेह का रास्ता है, जो पुनर्जन्म पर विश्वास करता है। यह एक जीवन पद्धति है जो हिन्दू की विचारधारा है।
अंग्रेजी लेखक केरीब्राउन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द इसेन्शियल टीचिंग्स ऑफ हिन्दुइज्म’ में लिखा है कि- आज हम जिस संस्कृति को हिन्दू संस्कृति के रूप में जानते हैं और जिसे भारतीय सनातन धर्म या शाश्वत नियम कहते हैं वह उस मजहब से बड़ा सिद्धान्त है जिस मजहब को पश्चिम के लोग समझते हैं। कोई किसी भगवान में विश्वास करे या किसी ईश्वर में विश्वास नहीं करे फिर भी वह हिन्दू है। यह एक जीवन पद्धति, है यह मस्तिष्क की एक दशा है।
कितनी दु:खद बात है कि एक मतान्ध तालिबानी विचारधारा को क्रूर चेहरा छिपाने के लिए एक ऐसी उदार, सह-अस्तित्ववादी, सर्वसमावेशी, समरसतावादी, मानवतावादी विचार हिन्दुत्व को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास होने जा रहा है और वह भी उन उदारवादियों द्वारा जो अपने आपको प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष बताते हुए नहीं अघाते।

- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ां
जालंधर।
संपर्क - 77106-55605

 इस्लामिक जगत को

‘जुरासिक वल्र्ड’ बनने से बचाएं मुसलमान

नब्बे के दशक में जुरासिक वल्र्ड व जुरासिक पार्क के नाम से बनी लगभग दर्जन भर फिल्मों की शृंखला में एक बात सामान्य है कि इनमें सभी डायनासोर एक दूसरे की जानी दुश्मन दिखाए गए हैं। कट्टरपन्थी तालिबानों के कब्जे वाले अफगानिस्तान में दूसरे कठमुल्ला संगठन आईएस के हुए आत्मघाती हमले की घटना साक्षी है कि दुर्भाग्य से आज जुरासिक वल्र्ड जैसी स्थिति इस्लामिक जगत की भी बनती जा रही है जहां इस्लाम का हर फिरका एक-दूसरे के खून का प्यासा दिखाई दे रहा है। इसका खामियाजा पूरी दुनिया को उठाना पड़ रहा है। तालिबान जो कल तक अपने ही सहधर्मी अफगानों का खून बहा रहे थे आज उनके खून से होली खेलने को आईएस जैसा मजहबी संगठन तैयार दिख रहा है जो अपने आप को श्रेष्ठ इस्लामिक होने का दावा करता है। इस्लामिक आतंकवाद से इस समय पूरी दुनिया जूझ रही है। इन गतिविधियों का मौजूदा चर्चित गढ़ बना है अफगानिस्तान। जहां 26 अगस्त को काबुल हवाई अड्डे के बाहर दो बड़े बम धमाके हुए जिसमें 72 लोग मारे गए। इस हमले के पीछे इस्लामिक स्टेट-खोरासान (आईएस-के) को माना जा रहा है। तालिबान ने भी दावा किया है कि हवाई अड्डे की सुरक्षा में खड़े उसके लड़ाकों को भी चोटें आई हैं। ऐसे में सवाल है कि आखिर जब तालिबान और आईएस दोनों ही जिहादी आतंकी संगठन हैं, तो इन दोनों में क्या फर्क है और इस्लामिक जगत में इनके उद्देश्य कितने अलग हैं। आईएस का जन्म हुआ था इराक और सीरिया में। 2014 में इराक के मोसुल में कब्जा करने के बाद इस संगठन ने जमकर कहर बरसाया और यूरोप में कई हमलों को अञ्जाम दिया। 2014 में बेल्जियम से लेकर, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका और फ्रांस तक आतंकी हमलों में इसका नाम आया। इस संगठन के सरगना आतंकी अबु-बकर अल बगदादी ने संगठन का लक्ष्य इस्लामी जगत में खिलाफत शासन लाना रखा और खुद को इस्लामिक जगत का खलीफा घोषित कर लिया था। 2017 तक आईएस ने अफगानिस्तान में भी लड़ाके भेजने शुरू कर दिये थे। यहां उसकी असली ताकत बने तालिबान के वो खूंखार आतंकी, जो अमेरिका से लड़ाई के दौरान मुल्ला उमर के नेतृत्व वाले संगठन की कमजोरी से तंग आ चुके थे। ऐसे ही कुछ आतंकियों ने मिलकर अफगानिस्तान के खोरासान प्रान्त में आईएस की शुरुआत की। इस संगठन की विचारधारा सुन्नी इस्लाम की वहाबी-सलफी परम्परा है।
दूसरी ओर तालिबान का उदय 1992 से लेकर 1996 तक अफगानिस्तान में गृहयुद्ध के दौरान हुआ। दरअसल, सोवियत सेनाओं को देश से निकालने के बाद मुजाहिदीनों के एक कट्टरपन्थी गुट ने तालिबान नाम का संगठन बना लिया। अफगानिस्तान में गृहयुद्ध खत्म होने तक तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया। 2001 में अमेरिकी सेना के आने के बाद इस संगठन के ज्यादातर खूंखार आतंकी पाकिस्तान में छिप गए और पिछले 20 सालों से छिपकर गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से अमेरिकी सेना का मुकाबला कर रहे थे। अरबी भाषा में तालिबान का अर्थ है विद्यार्थी और इसकी शुरुआत पाकिस्तान के मदरसों में हुई, जहां सुन्नी इस्लाम का कट्टर रूप सिखाया गया। तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज होने के दौरान वादा किया था कि वह शरिया कानून के जरिए पाकिस्तान के पश्तून इलाके और अफगानिस्तान में शान्ति वापस लाएगा। लेकिन शरिया कानून के तहत अफगानिस्तान में नागरिकों पर काफी सख्त कानून लागू हुए। इस संगठन का उद्देश्य अफगानिस्तान को अफगान अमीरात में तब्दील करना है। अमीरात शब्द अमीर से बना है, इस्लाम में अमीर का मतलब प्रमुख या प्रधान से है। इस अमीर के तहत जो भी जगह या देश है, वो अमीरात कहलाता है। इस तरह इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान का मतलब हुआ एक इस्लामिक देश, जिसमें तालिबान के मौजूदा सरगना हैबतुल्लाह अखुन्दजादा सर्वोच्च नेता है। अफगानिस्तान में जिस आतंकी संगठन को खत्म करने के लिए अमेरिकी सेना ने तालिबान को 2001 में सत्ता से हटाया था, वह है अल-कायदा। इसी को अमेरिका के 9/11 हमलों का जिम्मेदार बताया जाता है। अल-कायदा मुख्य तौर पर सुन्नी इस्लाम की वहाबी विचारधारा को मानता है। अल-कायदा का अरबी में अर्थ है नींव और इसके आतंकियों का मानना है कि उन्हें इस्लाम को बचाने और उसके प्रसार के लिए जिहाद का इस्तेमाल करना चाहिए। अल-कायदा का मानना है कि यह हर मुस्लिम की जिम्मेदारी है कि वह इस्लाम का विरोध करती दिख रही ताकतों के खिलाफ एकजुट हो जाए। कई अर्थों में आईएस के उदय को अल-कायदा के पतन से जोड़ा जाता है। दरअसल, दोनों ही संगठन लगभग एक ही विचारधारा को मानते हैं और आईएस के बनने के बाद अल-कायदा ने खुद आईएस के आतंकी राज का समर्थन किया था।
दुनिया में इस्लाम को एकजुट समाज के तौर पर देखा जाता है और आमतौर पर लोग मुसलमानों की दो ही शाखाओं शिया और सुन्नी के बारे में ही सुनते रहते है, लेकिन इनमे भी कई फिरके है। इसके आलावा कुछ ऐसे भी फिरके है, जो इन दोनों से अलग हैं। इन सभी के विचारों और मान्यताओं में इतना विरोध है की यह एक दूसरे को काफिर तक कह देते हैं और इनकी मस्जिदें जला देते, लोगों को कत्ल कर देते है। शिया तो मुहर्रम के समय सुन्नियों के खलीफाओं, सहबियों और मुहम्मद साहिब की पत्नियों आयशा और हफ्शा को खुले आम गलियां देते है। इसे तबर्रा कहा जाता है। सुन्नियों के फिरको में हनफी, शाफई, मलिकी,हम्बली,सूफी,वहाबी, देवबंदी,बरेलवी,सलफी,अहले हदीस आदि के मुख्य तौर पर नाम लिए जा सकते हैं। शियाओं के फिरकों में इशना अशरी, जाफरी, जैदी, इस्माइली, बोहरा, दाऊदी, खोजा, द्रूज के नाम लिए जा सकते हैं। कुल मिला कर इस्लाम में 72 फिरके बताए गए हैं जो कहने को तो चाहे मुसलमान हैं परन्तु एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं। इस्लाम में मजहब के नाम पर दूसरों को ईमान में लाने और इसके लिए जिहाद के नाम पर दूसरे धर्मों से लडऩे की ही विसंगती नहीं बल्कि इसके फिरके भी आपस में लड़ते-झगड़ते और एक दूसरे का खून बहाते देखे जा सकते हैं। अन्यथा क्या कारण हो सकता है कि इस्लामिक देशों में भी मुसलमान अपने ही सहधर्मी मुसलमान के खिलाफ हथियार उठाए हुए है। अब इस्लाम के धर्मगुरुओं, मजहब हितैषियों, चिन्तकों, बुद्धिजीवियों, नेताओं का दायित्व बनता है कि वह इस्लाम को शान्ति का धर्म बनाएं क्योंकि किसी भी धर्म में इस तरह की खानाजंगी न तो खुद उसके लिए और न ही दुनिया के हित में है।

- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ां
जालंधर।
संपर्क - 77106-55605

राहुल का इतिहास प्रेम, नाना जी के कामों को ही भूले

61 साल पहले ही बदल दिया था
जलियांवाला बाग का स्वरूप

जलियांवाला बाग के सौन्दर्यीकरण व पुर्नोत्थान को लेकर कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गान्धी ने विरोध करते हुए ट्वीट किया है कि ‘जलियांवाला बाग के शहीदों का ऐसा अपमान वही कर सकता है जो शहादत का मतलब नहीं जानता। मैं एक शहीद का बेटा हूं। शहीदों का अपमान किसी कीमत पर सहन नहीं करूंगा। हम इस अभद्र क्रूरता के खिलाफ हैं।’ राहुल ने केन्द्र सरकार पर इस स्थल का एतिहासिक स्वरूप बदलने, इतिहास से छेड़छाड़ करने के आरोप लगाए हैं। असल में ये सारे आरोप उनके इतिहास के प्रति खतरनाक अल्पज्ञान से उपजे हैं क्योंकि इस स्मारक का स्वरूप तो 61 साल पहले ही बदला जा चुका है जब केन्द्र में पंडित जवाहर लाल नेहरू जी की सरकार थी। मोदी सरकार ने तो अब बदले हुए स्वरूप का सौन्दर्यीकरण किया है।
देश की स्वतन्त्रता के बाद 1957 को इस स्थल के पुनर्निर्माण का काम शुरू हुआ था। ये काम 1960 में पूरा हुआ तो प्रवेश वाली गली को भी बदला गया। स्मारक की जो गली अभी तक लोग देखते आए हैं वह 1919 वाली नहीं बल्कि 1960 में बनाई गई गली थी। पुरानी गली की दीवारें कच्ची ईंटों की बनी थी और फर्श व छत्त नहीं थे। 1960 में दीवारें व फर्श पक्के किए गए और कुछ खिड़कियां और दरवाजे लगाए गए। 1961 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इस नए स्वरूप का लोकार्पण किया। अब जब उस बदले हुए स्वरूप को बदलने का यह कह कर विरोध किया जा रहा है कि सरकार एतिहासिक स्थलों के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ कर रही है तो यह हास्यस्पद ही है।
अपने इतिहास के अल्पज्ञान के कारण राहुल गान्धी को पंजाब के मुख्यमन्त्री ने दर्पण दिखाने का काम किया है। राहुल गांधी द्वारा जलियांवाला बाग की रेनोवेशन पर किए ट्वीट से पंजाब की सियासत गर्मा गई है। यहां तक कि उनकी पार्टी कांग्रेस सरकार के मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इससे असहमति जताई है और इस मामले पर कैप्टन का स्टैण्ड राहुल गान्धी से बिल्कुल उलटा है। कैप्टन अमरिन्दर ने कहा है कि जलियांवाला बाग के रेनोवेशन में कुछ भी गलत नहीं है।
बता दें कि हाल ही में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने वर्चुअल तौर पर जलियांवाला बाग का नवीनीकरण के बाद उद्घाटन किया गया था। इसमें मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह भी शामिल थे। राहुल ने इस रेनोवेशन के खिलाफ आज ट्वीट किया और कहा, ‘जलियांवाला बाग के शहीदों का ऐसा अपमान वही कर सकता है जो शहादत का मतलब नहीं जानता। मैं एक शहीद का बेटा हूं। शहीदों का अपमान किसी कीमत पर सहन नहीं करूंगा। हम इस अभद्र क्रूरता के खिलाफ हैं।’ कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने राहुल के इस ट्वीट पर कहा, मैं उद्धाटन के समय पीएम के कार्यक्रम में था। मुझे तो रेनोवेशन में कुछ भी गलत नजर नहीं आता। जलियांवाला बाग रेनोवेशन के बाद मेरे हिसाब से बहुत बढिय़ा हो गया है। उन्होंने कहा, वक्त के साथ जो इमारतें कमजोर हो गई थीं और दरारें पड़ गई थी उनको दुरुस्त करना जरूरी था।
ऐसा पहली बार नहीं है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसी मुद्दे पर राहुल गांधी के स्टैंड के खिलाफ बयान दिया हो। इससे पहले जीएसटी को लेकर भी ऐसा हो चुका है। जीएसटी पर जहां पार्टी विपरीत स्टैण्ड लिया हुआ था वहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इसे राज्यों के लिए फायदेमन्द बताया और कहा कि इससे पंजाब जैसे ज्यादा खपत वाले राज्यों को फायदा मिलेगा।
राहुल इतिहास नहीं जानते : मलिक
उधर, भाजपा के राज्यसभा सदस्य और जलियांवाला बाग नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट के ट्रस्टी श्वेत मलिक ने कहा कि राहुल गांधी को इतिहास की जानकारी नहीं है। यह बाग नहीं शहीदों की धरती है। 73 साल कांग्रेस का ट्रस्ट रहा, तब कांग्रेस ने यहां कुछ नहीं किया। कांग्रेस का ट्रस्ट फेल साबित हुआ। अब डेढ़ साल पहले बने भाजपा के ट्रस्ट ने काम करवाया है तो उन्हें बुरा लग रहा है।
ट्रस्ट भंग होने पर भी हुआ था विवाद
जालियांवाला बाग नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट से कांग्रेस अध्यक्ष को स्थायी सदस्य के पद से हटाने वाले बिल पर चर्चा के दौरान लोकसभा में 2 अगस्त, 2019 को नोकझोंक हुई थी। कांग्रेस सदस्यों के वाकआउट के बीच यह बिल लोकसभा से पास हो गया। बिल पेश करने वाले संस्कृति मंत्री प्रह्लाद पटेल ने कहा था कि सरकार जालियांवाला बाग नेशनल मेमोरियल से जुड़ी राजनीति को खत्म करना चाहती है। इसलिए 1951 के एक्ट में संशोधन वाला विधेयक लाया गया है।
अब ये काम करवाए गए -
- लाइट एंड साउंड के
साथ डिजिटल डाक्यूमेंट्री तैयार की गई। यहां 80 लोग एक साथ बैठकर इसे देख सकते हैं।
- शहीदी कुएं के इर्द-गिर्द गैलरी बनाई गई है।
- सभी गैलरियों को पूरी तरह वातानुकूलित बनाया गया है।
- दीवार पर गोलियों के निशानों को सुरक्षित किया गया है, ताकि कई सौ साल तक इन यादगार को क्षति न पहुंचे।
- नरसंहार के लिए जिस गली से अंग्रेज बाग में घुसे थे वहां शहीदों के बुत बनाए गए हैं, ताकि लोगों को गली से शहीदों की शहादत के बारे में पता चल सके।
- नए वाशरूम और पीने के पानी के नए प्वाइंट बनाए गए हैं।
- पूरे बाग में सुंदर लाइटिंग की गई है।

 किसान और मजदूरों के दुश्मन बने प्रदर्शनकारी किसान

फिरोजपुर स्थित अदानी समूह का साइलो गोदाम बन्द
- पहले बन्द हो चुका है लॉजिस्टिक पार्क

तीन कृषि सुधार कानूनों के विरोध में चल रहा स्वयंभू किसानों का आन्दोलन अब किसानों व मजदूरों के पेट पर लात मारता दिखाई दे रहा है। तीन कृषि सुधार कानूनों के विरोध का असर व्यापक होता जा रहा है। लुधियाना में अदाणी समूह का लाजिस्टिक पार्क बन्द होने के बाद अब फिरोजपुर के वां गांव में साइलो प्लाण्ट भी बन्द हो गया है। यहां धान और gehoon का भण्डारण किया जाता है, लेकिन सात माह से किसान प्लाण्ट के बाहर धरने पर बैठे हैं, लिहाजा अदाणी समूह ने इसे बन्द कर दिया है। इसके साथ ही ठेके पर रखे करीब 400 श्रमिकों को भी नौकरी से निकाल दिया है। गौरतलब है कि अदाणी लाजिस्टिक पार्क बन्द होने से भी करीब इतने ही युवाओं को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था।
हैरानी की बात यह है कि साइलो प्लाण्ट से नौकरी से निकाले गए ज्यादातर श्रमिक स्थानीय हैं और किसान परिवारों से ही सम्बन्धित हैं। अब वे दिहाड़ी पर काम के लिए भी तरस रहे हैं। उन्होंने फिरोजपुर के उपायुक्त से भी गुहार लगाई, लेकिन मामला कोर्ट में होने के कारण प्रशासन भी असहाय नजर आ रहा है। पंजाब एण्ड हरियाणा हाई कोर्ट ने भी जून में जिला प्रशासन को आदेश दिए थे कि इस मामले को सुलझाने के लिए कोई रास्ता निकाला जाए। पूर्व डीसी गुरपाल सिंह चहल का कहना है कि हम किसानों से बात करके बीच का रास्ता निकालने का प्रयास कर रहे हैं। फिलहाल किसान हटने को तैयार नहीं है। गौरतलब है कि पंजाब के कई जिलों में कृषि कानूनों को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं।
क्या है साइलो प्लाण्ट

भारतीय खाद्य निगम जनता व सरकार की भागेदारी (प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप) योजना के तहत देश भर में इस तरह के प्लाण्ट लगा रही है। कनाडा की तकनीक से बने इन प्लाण्टों में खाद्यान्न के सुरक्षित भण्डारन की सुविधा रहती है। देश में असुरक्षित भण्डारन के चलते हर साल लाखों टन अनाज बर्बाद हो जाता है। इस समस्या से निपटने के लिए एफसीआई उक्त योजना लेकर आई है। इन प्लाण्टों को सुविधाजनक परिवहन व्यवस्था, उचित लदान-उतराई, मौसम अनुसार ताप को नियन्त्रित करने, खाद्यान्न को बिमारियों व खतरनाक जानवरों से बचाने, क्षरण रोकने की सारी सुविधा रहती है। फिरोजपुर के साइलो प्लाण्ट में गेहूं के साथ-साथ धान के भण्डारन की व्यवस्था है जिससे इलाके के किसानों को भारी लाभ हो रहा था परन्तु कुछ दबंग किसानों के प्रदर्शन के चलते समूह को अपना यह प्लाण्ट बन्द करना पड़ा है। इसका असर पंजाब के आधे से अधिक मालवा इलाके के किसानों व खेती पर पडऩे वाला है।

- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ां
जालंधर।
संपर्क - 77106-55605

डिसमेन्टलिंग ग्लोबल हिन्दुत्व कार्यक्रम का

दुनिया भर में विरोध

हिन्दू विरोधी शक्तियों द्वारा आयोजित डिसमेन्टलिंग ग्लोबल हिन्दुत्व कार्यक्रम का विरोध भी वैश्विक स्तर पर हो रहा है। भारत की कम्युनिस्ट और साम्यवादी विचारधारा के कट्टर समर्थक कविता कृष्णन, आनंद पटवर्धन, नलिनी सुंदर, नेहा दीक्षित, मीना कंदासामी आदि कई वक्ता इस कार्यक्रम को संबोधित करने वाले हैं। सूचना प्रद्योगिकी, पत्राचार, ऑनलाइन पटीशन, हैशटैग आदि विभिन्न माध्यमों से लाखों लोगों ने इस कार्यक्रम का विरोध करते हुए इस पर रोक की मांग की है। कार्यक्रम के विरोध में पूरी दुनिया के हिन्दू एक स्वर में बोलते दिखाई दे रहे हैं।
एक प्रमुख अमेरिकी राज्य सीनेटर ने डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व सम्मेलन की मेजबानी की कड़ी निंदा की है और इसे हिंदू विरोधी सभा के रूप में कहा है, वहीं हिंदू अधिकारों के हिमायती संगठन हिंदू अमेरिकन फाउंडनेशन ने उन विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से जवाब मांगा है जिनके इस कार्यक्रम को सपोर्ट करने के दावे किए गए हैं। इसके अलावा ओहियो स्टेट के सीनेटर नीरज अंतानी ने एक बयान में कहा, यह सम्मेलन संयुक्त राज्य भर में हिंदुओं पर एक घृणित हमले का प्रतिनिधित्व करता है, और हम सभी को इसकी निंदा करनी चाहिए। यह हिंदुओं के खिलाफ नस्लवाद और कट्टरता के अलावा और कुछ नहीं है। मैं हमेशा हिंदूफोबिया के खिलाफ मजबूती से खड़ा रहूंगा।
दरअसल अंतानी संयुक्त राज्य अमेरिका के इतिहास में सबसे कम उम्र के हिंदू निर्वाचित अधिकारी हैं और ओहियो इतिहास में पहले भारतीय अमेरिकी राज्य सीनेटर हैं। 10-12 सितंबर के सप्ताहांत पर आयोजित होने वाले, डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व के आयोजकों ने कहा है कि वे गुमनाम रहना चाहते हैं। हालांकि, उन्होंने कई प्रतिष्ठित वक्ताओं और शिक्षाविदों के नाम सार्वजनिक किए हैं जो इस कार्यक्रम में भाग लेंगे।
वहीं इस सम्मेलन से नाराज उत्तरी अमेरिका के हिंदुओं ने विश्वविद्यालयों, शिक्षाविदों और विभिन्न हितधारकों को सम्मेलन के खिलाफ 3,50,000 से अधिक ई-मेल लिखे हैं। वहीं इस इमेल पर रटगर्स विश्वविद्यालय के अध्यक्ष जोनाथन होलोवे ने कहा कि उन्हें नहीं पता था कि सम्मेलन के आयोजकों द्वारा विश्वविद्यालय के लोगो का इस्तेमाल किया जा रहा था।
हिन्दुओं के संगठन सीओएचएलए ने एक बयान में कहा, यह सम्मेलन हिंदुओं को गलत तरीके से चित्रित करता है, हिंदू लोगों के नरसंहार को सक्रिय रूप से नकारता है, और सबसे अधिक परेशान करने वाला, हिंदुत्व के रूप में असहमत होने वालों को लेबल करता है, जिसे सम्मेलन के आयोजक हिंदू चरमपंथ के रूप में परिभाषित करते हैं। सम्मेलन में हिंदुत्व उत्पीडऩ फील्ड मैनुअल को एक आधिकारिक संसाधन के रूप में पेश किया गया है जो स्पष्ट रूप से कहता है कि हिंदुओं ने कभी भी पूरे इतिहास और वर्तमान समय में व्यवस्थित उत्पीडऩ का सामना नहीं किया है। यह संसाधन इस बात से भी इनकार करता है कि हिंदू विरोधी पूर्वाग्रह के कारण कभी भी हताहतों की संख्या ज् भयानक पैमाने पर हुई है।
अमेरिका एवं कनाडा में कुल 150 हिन्दुत्व का कार्य करने वाले संगठनों, मंदिरों एवं आध्यात्मिक संगठनों ने, 40 विश्वविद्यालयों को एक निवेदन भेजकर उनसे इस सम्मेलन का समर्थन नहीं करने का आग्रह किया है। परिषद के सह-प्रायोजक होने वाले इन विश्वविद्यालयों में पढने वाले अनेक छात्रों, उनके माता-पिता एवं पूर्व छात्रों ने भी विश्वविद्यालयों को 1 लाख से अधिक ई-मेल भेजकर इस हिन्दुत्व-विरोधी परिषद का विरोध किया है। विश्वविद्यालयों को पत्र भेजने वाले इन सभी संगठनों का समन्वय ‘उत्तरी अमेरिका के हिन्दुओं के गठबंधन’ द्वारा किया है । इस निवेदन के हस्ताक्षरकर्ता हिन्दू मंदिरों, राष्ट्रीय स्तर के संगठनों, विभिन्न हिन्दू धार्मिक संगठनों एवं स्थानीय सांस्कृतिक मंडलों के सदस्य हैं। वे अमेरिका में रहने वाले सहस्रों हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । इस निवेदन की एक प्रतिलिपि कानूनी विशेषज्ञ व्यक्तियों को भेजी जाएगी। इस संदर्भ में ‘उत्तरी अमेरिका के हिन्दुओं के गठबंधन’ के अध्यक्ष निकुंज त्रिवेदी ने कहा, अमेरिका एवं कनाडा के 150 हिन्दू संगठनों द्वारा निवेदन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। यह यहां रहने वाले हिन्दुओं का क्षोभ दर्शाता है। इस अभियान में अनेक स्थानों से हिन्दू सहभागी हुए थे तथा हिन्दुत्व के संबंध में पूर्वाग्रह से ग्रसित एवं हिन्दुओं को ‘चरमपंथी विचारधारा का प्रचारक’ बताकर, हिन्दुत्व की आवाज दबाने के हिन्दुद्वेषियों के प्रयासों से चिंतित हैं।
हिंदू जनजागृति समिति के पूर्व एवं पूर्वोत्तर राज्य संगठक शंभू गवारे बताते हैं कि इसके साथ ही इसमें विश्व के 40 से अधिक विद्यापीठ भी सहभागी होंगे, ऐसा दावा आयोजकों ने किया है। परंतु पूर्ण विश्व के हिंदुओं के तीव्र विरोध के कारण इनमें से अनेक विद्यापीठों ने ‘हमारा इस कार्यक्रम से कोई भी संबंध नहीं’, ऐसा घोषित कर इस कार्यक्रम से पल्ला झाड़ लिया है। इस विश्वव्यापी आंदोलन में 13 देश, 23 राज्य और 400 गांवों के हिंदू सहभागी हुए हैं। इसके साथ ही इस आंदोलन के अंतर्गत 44 स्थानों पर प्रत्यक्ष तथा 206 स्थानों से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और विदेश मंत्री एस जयशंकर को ‘ऑनलाइन’ निवेदन भेजे गए हैं। इस आंदोलन में हिंदू जनजागृति समिति सहित पूरे देश के 32 से अधिक हिंदुत्वनिष्ठ संगठन और हिंदू धर्माभिमानी सहभागी हुए। धनबाद में इस विषय में उपायुक्त को निवेदन दिया गया।
इस कार्यक्रम द्वारा रचा जा रहा षड्यंत्र सामने लाने के लिए हिंदू जनजागृति समिति ने ‘हिंदू विरोधी प्रचार का वैश्विक षड्यंत्र’ विषय पर ‘ऑनलाइन’ विशेष संवाद आयोजित किया। इसमें इंग्लैंड के हिंदू दार्शनिक और भारतीय संस्कृति के अध्यापक पंडित सतीश शर्मा ने कहा कि पहले जिन ईसाईयों और कम्युनिस्टों ने पूरे विश्व में बड़ी संख्या में नरसंहार किया, उन्हें अब सत्य इतिहास सामने आने का भय सताने लगा है। यूरोप और अमेरिका में लोग अब योग, आयुर्वेद के अनुसार आचरण कर हिंदू संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसीलिए ‘डिसमेन्टलिंग ग्लोबल हिंदुत्व’ यह हिंदू विरोधी परिषद वास्तव में हिंदू धर्म को दुष्प्रचारित (बदनाम) करने का षड्यंत्र है। इसी कारण उन्होंने 9/11 को जानबूझकर परिषद का समय चुना है, क्योंकि यह दिन अमेरिका का दुखद और आतंकवाद का विरोध करनेवाला दिन है। इस कालावधि में हिंदू विरोधी परिषद आयोजित करने का उद्देश्य आतंकवाद और हिंदू धर्म का संबंध जोडऩा तथा पूर्ण विश्व में हिंदू द्वेष फैलाना है। यह इनका पुराना धंधा है। हिंदुओं द्वारा संगठित विरोध करने पर ही उनका षड्यंत्र असफल होगा और उनका अनेक वर्षों पुराना धंधा समाप्त होगा।
प्रसिद्ध लेखिका और मानुषी मासिक की संस्थापक संपादक प्रो. मधु पूर्णिमा किश्वर ने कहा कि भारत की उच्चतम पुरातन ज्ञानपरंपरा की तुलना में हम पिछड़े हैं, ऐसी पाश्चात्य धारणा में पहले से ही हीनभावना थी। इसलिए हिंदुओं के विरोध में घृणा फैलाई जाती है। एक को ‘गजवा-ए-हिंद’, तो दूसरे को ‘रोम राज्य’ लाना है, यह अब छिपा हुआ नहीं है। हिंदू धर्म को दुष्प्रचारित (बदनाम) करने के प्रयासों का विरोध करना होगा। सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) के विचारक डॉ. यदु सिंह ने कहा कि हिंदू, हिंदू धर्म और हिंदुत्व अलग न होकर एक ही है, परंतु उन्हें विभाजित कर हिंदू विरोधी हिंदुत्व के नाम पर पूरे हिंदू धर्म को निशाना बनाया जा रहा है। अमेरिका में परिषद् के आयोजक हिंदू धर्म द्वेषी हैं। अमेरिका और कनाडा के विद्यापीठ इसके लिए धन दे रहे हैं। हिंदुओं को अब दृढ़तापूर्वक संगठित होकर उनका वैचारिक स्तर पर विरोध करना चाहिए।
‘ट्वीटर’ पर भी विरोध
इस ‘विशेष संवाद’ के पूर्व ‘डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिन्दुत्व’ इस हिन्दू विरोधी कार्यक्रम का ‘ट्वीटर ट्रेंड’ द्वारा भी भारी विरोध किया गया। इस समय अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, नेदरलैंड, कैनडा, ऑस्ट्रेलिया, कतर, इंडोनेशिया, मलेशिया, जापान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल इत्यादि देशों के हिन्दु उत्सफूर्तता से सहभागी हुए थे।


- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ां
जालंधर।
संपर्क - 77106-55605

 कैप्टन के लिए भस्मासुर बना किसान आन्दोलन

अपने घर लगी आग को कुछ लोग आग और दूसरों के घर लगे तो उसे बसन्तरदेव कहते हैं। पंजाब के मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह भी इन्हीं लोगों में हैं, पंजाब में आन्दोलन से तंग आकर उन्होंने किसानों से कहा है कि वे पंजाब की बजाय हरियाणा व दिल्ली की सीमा पर ही धरने दें। उनके अनुसार इस आन्दोलन से पंजाब को बड़ा नुक्सान हो रहा है। हरियाणा सरकार ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है और कैप्टन अमरिन्दर पर निशाना साधा है। हरियाणा के कृषि मन्त्री जेपी दलाल और गृहमन्त्री अनिल विज ने कैप्टन पर तीखा हमला बोला है। विज ने कैप्टन के बयान को बेहद गैर-जिम्मेदाराना करार दिया है। कृषि मन्त्री जेपी दलाल ने कहा कि कैप्टन के बयान से साफ हो गया है कि यह पूरा आन्दोलन कांग्रेस और पंजाब प्रायोजित है। कैप्टन को पंजाब के साथ हरियाणा और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की भी चिन्ता करनी चाहिए। उनको किसान संगठनों को समझाना चाहिए। पूर्व केन्द्रीय मन्त्री व अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल ने इस बयान पर कहा कि कैप्टन अपने आलीशान महल में आराम करते हैं, जबकि हमारे किसान पिछले 10 महीने से खराब मौसम में दिल्ली की सडक़ों पर मर रहे हैं। यही कैप्टन की योजना थी।
होशियारपुर में एक सरकारी कार्यक्रम में बोलते हुए कैप्टन अमरिन्दर ने किसानों को अपील की कि वह पंजाब में 113 जगह दिए जा रहे धरने उठा लें, ताकि आम लोगों को राहत मिल सके और पंजाब की आर्थिकता प्रभावित न हो। कहीं न कहीं यह धरने पंजाब के लिए गम्भीर साबित हो रहे हैं। राज्य की आर्थिक हालात पहले ही ठीक नहीं है और अगर किसान अपने ही राज्य में धरने लगाएंगे तो इससे हालत और खराब हो सकती है।
उन्होंने कहा, हमें अपने राज्य की उन्नति के लिए सहयोग देना चाहिए न की बाधा पैदा करनी चाहिए। अगर हम न समझे और हालात इसी तरह रहे तो पंजाब के लिए आर्थिक संकट पैदा हो जाएगा। कैप्टन ने कहा कि राज्य का किसान तो पंजाब की उन्नति के लिए दिन रात एक करता है, परंतु यदि किसान अपने ही राज्य के लिए परेशानी पैदा करेंगे तो आगे कैसे बढ़ा जा सकता है।
यहां यह बताना जरूरी है कि कथित किसान आन्दोलनों के चलते राज्य की आम जनता तो परेशान है ही इसके साथ इससे राज्य की आर्थिक गतिविधियां पंगु हो चुकी हैं। राज्य में अडानी समूह द्वारा लुधियाना के पास लोजिस्टिक पार्क, फिरोजपुर व मोगा के पास साइलो प्लाण्ट बन्द किए जा चुके हैं। इनके बन्द होने से हजारों वो नौजवान अपनी नौकरियों से हाथ धो बैठे हैं जो ग्रामीण पृष्ठभूमि से ही आते हैं और किसानों के ही बेटा-बेटी हैं। केवल इतना ही नहीं रिलायंस कम्पनी राज्य में कई स्थानों पर अपने पेट्रोल पम्प व खुदरा विक्रय केन्द्र बन्द कर चुकी है और कई स्थानों पर अपने कर्मचारियों को नी जगहों पर नौकरी ढूण्ढने को कहा जा चुका है। कथित किसानों के धरने के चलते बठिण्डा में हाल ही में एक बड़ी कम्पनी ने अपना मार्ट बन्द कर दिया है। आन्दोलनकारी इससे पहले राज्य में करीब 15-16 सौ से अधिक मोबाइल टावर तोड़ चुके हैं। इन आन्दोलनों से राज्य के उद्योगपतियों में भय व्याप्त है और खुद मुख्यमन्त्री बता चुके हैं कि राज्य में 69000 करोड़ के निवेश के आवेदन मिले थे परन्तु कथित किसान आन्दोलन के चलते अभी तक किसी ने भी एक कोड़ी भी नहीं लगाई है। और तो और उत्तर प्रदेश व हिमाचल प्रदेश में उद्योगों के अनुकूल पैदा हुए वातावरण के चलते पंजाब के बहुत से उद्योगपतियों का इन प्रदेशों में निवेश की योजना बन रही है।
यह किसी से छिपा नहीं है कि केन्द्र सरकार के तीन कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ तिल का ताड़ बनाने में कांग्रेस विशेषकर पंजाब कांग्रेस और मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह की महती भूमिका रही है। वे चाहते तो किसानों को पंजाब में ही रोका जा सकता था परन्तु उन्होंने अपनी पार्टी के साथ-साथ पूरी सरकार का जोर लगा कर किसानों को भटकाना व गुमराह करना जारी रखा और आन्दोलन को हर तरह से मदद करते रहे।
अब वही भटके हुए किसान इस मार्ग पर इतना आगे बढ़ चुके हैं कि किसी की बात सुनने को तैयार दिखाई नहीं दे रहे। पंजाब में यही किसान 113 विभिन्न स्थानों पर धरने दे रहे हैं जिससे आम लोग, व्यापारी, उद्योगपति, नौजवान अदि सभी वर्गों के लोग परेशान हो चुके हैं और लोगों में राज्य सरकार के खिलाफ गुस्सा पनप रहा है। इसी से घबरा कर कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने किसानों से पंजाब में से धरना उठाने को कहा है।
अपनी राष्ट्रवादी सोच के लिए देश भर में जाने जाने वाले कैप्टन की यह अपील उनके व्यवहार के साथ-साथ संविधान की भावना के विपरीत भी है। एक संवैधानिक तौर पर चुना गया मुख्मन्त्री किस तरह ऐसा सोच सकता है कि कोई आन्दोलन उनके प्रदेश में तो न हो और दूसरे प्रदेशों में वह उसको समर्थन करे। क्या पंजाब, हरियाणा, दिल्ली एक ही देश नहीं ? इस कथित आन्दोलन से हरियाणा व दिल्ली के उद्योग भी प्रभावित हो रहे हैं, क्या कैप्टन नहीं जानते कि पड़ौसी राज्यों पर पडऩे वाला बुरा असर पंजाब को प्रभावित नहीं करेगा ? पंजाब, हरियाणा व दिल्ली के उद्योग परस्पर जुड़े और परस्पर निर्भर हैं, एक राज्य का उद्योग प्रभावित होता है तो असर दूसरों पर पडऩा भी स्वभाविक है। कैप्टन के लिए श्रेष्ठ तो यह होता कि वह आन्दोलनकारी किसानों को समझाते, उन्हें बातचीत व धरना उठाने के लिए मनाते। लोकतन्त्र में चाहे हर नागरिक को विरोध करने का अधिकार है परन्तु सर्वोच्च न्यायालय भी बार-बार कह चुका है कि अपने अधिकार के लिए हम नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते। भ्रमित आन्दोलनकारी किसान जिस तरह से दस महीनों से दिल्ली व हरियाणा की सीमा रोक कर रखे हुए हैं उससे वहां के निवासियों के साथ-साथ इस मार्ग से गुजरने वालों के अधिकारों को भी कुचल रहे हैं। लोकतन्त्र में स्वतन्त्रता तो है पर स्वच्छन्दता के लिए कोई स्थान नहीं। समय बदलने के साथ-साथ लोकतन्त्र में विरोध दर्ज करवाने के साधन भी बदले जाने चाहिएं और इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि हमारे विरोध के चलते किसी दूसरे को परेशानी न हो। कैप्टन की इस अपील से अब उन किसानों को भी समझ आ जानी चाहिए कि देश के राजनीतिक दल उनके कन्धों पर बन्दूक चला कर अपने निशाने साध रहे हैं।
- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ां
जालंधर।
संपर्क - 77106-55605

 पंजाब कांग्रेस,

पेट वाले की आस में गोद वाले का त्याग

ठेठ ग्रामीण कहावत है- पेट वाले की आस में गोद वाले का त्याग, याने जो बच्चा अभी पेट में पड़ा ही है उसकी आशा में गोद वाले बच्चे को त्यागना स्यानप नहीं। परन्तु पंजाब कांग्रेस ने तो पेट वाले चन्नी की आशा में गोद वाले को तो क्या, कैप्टन जैसे कमाऊ पूत को ही वनवास दे दिया है। नासमझ पांव पर कुल्हाड़ी मारते हैं परन्तु कांग्रेस ने तो गोली मारी है। कैप्टन जैसे कुशल व सशक्त नेतृत्व के चलते 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए पंजाब कांग्रेस जहां बढ़त में दिख रही थी, वह आज अन्य दलों के समकक्ष कमजोर नेतृत्व से सुसज्जित दिखाई देने लगी है। पंजाब में चुनावों के लिए ताल ठोक रहे अकाली दल बादल के पास सुखबीर सिंह बादल के बावजूद कैप्टन के समक्ष कोई नेता न था और आम आदमी पार्टी के पास भी अमरिन्दर सरीखे चेहरे का अभाव था। रही बात भाजपा की, तो वह तो अभी ताजा-ताजा ही अकालियों की गर्भनाल से अलग हुई है, सो उसके पास तो कद्दावर नेता होने की अभी अपेक्षा भी बेमानी है। कैप्टन को दरकिनार कर कांग्रेस ने अपनी राजनीतिक हराकीरी का ईमानदार व गम्भीर प्रयास किया है।
पंजाब की राजनीति शुरू से ही कांग्रेस और अकाली दल के बीच दो ध्रुवीय रही है। कहने को यहां भाजपा, बसपा, आ.आ.पा. व कई स्थानीय दल हैं परन्तु इनका अस्तित्व या तो गठजोड़ पर निर्भर है या कई दल अभी संघर्षरत हैं।1997 के विधानसभा चुनावों के बाद से कांग्रेस में राजिन्द्र कौर भट्ठल युग के अवसान के बाद एक ध्रुव पर अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल और दूसरी छोर पर कैप्टन अमरिन्दर सिंह स्थापित हो गए। पिछले दो-अढ़ाई दशकों से प्रदेश की राजनीति दो दलों की बजाय इन दोनों नेताओं के इर्द-गिर्द सिमटती अधिक नजर आने लगी। अकाली दल से आने के बावजूद कैप्टन ने अपनी आक्रामक शैली से ऐसी छवि बनाई कि वे प्र्रकाश सिंह बादल का विकल्प बने और 2002 में कांग्रेस की सरकार गठित करने में सफल रहे। इसके बाद 2007 और 2012 में प्रकाश सिंह बादल और 2017 में फिर से कैप्टन सत्ता में आए। लेकिन इस दौरान प्रकाश सिंह बादल के वयोवृद्ध हो जाने के कारण प्रदेश की राजनीति का दूसरा ध्रुव लुप्त हो गया। चाहे बड़े बादल ने अपने पुत्र सुखबीर सिंह बादल को स्थापित करने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद सहित हर तरह की नीति का पालन किया परन्तु कैप्टन के समक्ष अभी तक सुखबीर एक संघर्षरत नेता के रूप में ही नजर आ रहे थे।
इस दो ध्रुवीय राजनीति को तोडऩा इतना मुश्किल था कि 2017 के विधानसभा चुनावों में दिल्ली की सनसनी बन कर उभरी आ.आ.पा. के नेता अरविन्द केजरीवाल हर तरह के छल-बल और लटकों-झटकों का प्रयोग करने के बाद भी पंजाब की राजनीतिक सीढिय़ों से फिसल कर ओन्धे मुंह गिरे। अन्ना हजारे की चेला बिरादरी ‘केजरीवाल-केजरीवाल सारा पंजाब तेरे नाल’ नारे लगाते दिल्ली से आई और ‘केजरीवाल-केजरीवाल एह की होया तेरे नाल’ की आह भरते हुए देश की राजधानी वापिस लौट गई। निवर्तमान मुख्यमन्त्री अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व वाली साढ़े चार साल पुरानी सरकार पर चाहे चुनावी वायदे न निभाने के आरोप लगने लगे थे और विपक्ष कांग्रेस सरकार को घेरने लगा था, परन्तु इसके बावजूद भी समूचे विपक्ष के पास कैप्टन के समकक्ष कद्दावर नेता न था। इस बात को यूं भी कहा जा सकता है कि पंजाब में कैप्टन की कुछ-कुछ स्थिति केन्द्र की राजनीति के नरेन्द्र मोदी जैसी बन गई थी। प्रदेश की राजनीति पूरी तरह एक ध्रुवीय चली आरही थी जो कांग्रेस के लिए अत्यन्त लाभकारी थी, परन्तु जिस पार्टी ने एड़ी उठा कर फन्दा गले में डाल लिया हो उसकी सांसों के बारे में क्या कहा जा सकता है ?
कांग्रेस नेतृत्व को गौर करना चाहिए था कि कैप्टन में नेतृत्व का गुण अनुवांशिकी है, पूर्वजों से मिला है। उनकी आक्रामक शैली पंजाब की प्रकृति से मेल खाती है जिसके चलते लोग उन पर विश्वास करते थे। जाट समुदाय से आने के बावजूद सर्व समाज का उन पर विश्वास था। उनकी लोकप्रियता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि संघ परिवार और भाजपा का काडर भी उन्हें पसन्द करता रहा है। पंजाब में उनका राजनीतिक अस्तित्व पार्टी के खास परिवार या केन्द्रीय नेतृत्व पर निर्भर नहीं था, यही कारण रहा कि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ‘चाहूंदा है पंजाब-कैप्टन दी सरकार’ के नारे के चलते दो तिहाई बहुमत में सत्ता में लौटी। राष्ट्रीय मुद्दों पर अपने केन्द्रीय नेतृत्व के इतर बेबाकी से राय रखने वाले कैप्टन ने अपने इसी गुणों के चलते पूरे देश में वशिष्ठ पहचान बनाई थी। वे कांग्रेसी नेताओं की तरह कभी भेड़चाल में शामिल नहीं हुए और यही गुण शायद उनकी कमजोरी बन गया, क्योंकि पार्टी का खास कुनबा अपनी वंशबेल बड़ी रखने के लिए खुद के ही कद्दावर नेताओं के राजनीतिक घुटने छांगने में अधिक विश्वास करता है।
पंजाब कांग्रेस के नेतृत्व परिवर्तन घटनाक्रम ने प्रदेश की राजनीति में जातीयता की दरारों को और गहरा दिया, साथ में मजेदार बात है कि इसे कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक भी कहा जा रहा है। चरणजीत सिंह चन्नी को पहला दलित मुख्यमन्त्री बता कर प्रदेश के 32 प्रतिशत इस वर्ग के मतदाताओं को साधने का दावा किया गया है परन्तु विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को चेहरा बताया जा रहा है जो जाट सिख हैं। अगर ऐसा होता है तो दलितों का कांग्रेस से नाराज होना तय है क्योंकि चन्नी के रूप में खड़ाऊं मुख्यमन्त्री सीधा-सीधा उनका अपमान होगा। सिद्धू को अपनी शर्तों पर फैसले करवाने की आदत है, चुनावों में उन्हें पार्टी आलाकमान नाराज नहीं कर पाएगा। पार्टी यदि सिद्धू के चेहरे को मुख्यमन्त्री के रूप में आगे करती है तो न सिर्फ दलित समुदाय की नाराजगी मोल लेनी होगी, बल्कि एक दलित मुख्यमन्त्री को गैर दलित चेहरे से ‘दलित विरोधी’ छवि का भी सामना करना होगा। चाहे पंजाब के ग्रामीण समाज में जातीयता की जड़ें गहराई तक समाई हुई है परन्तु चुनावों में जाती कोई बड़ा मुद्दा नहीं बनती। कभी सुनने में नहीं आया कि यहां के लोगों ने जातीय आधार पर उच्च स्तर पर मतदान किया हो। अगर ऐसा होता तो बहुजन समाज पार्टी जो कभी पंजाब में बड़ी तेजी से उभरी थी आज रसातल में नहीं पहुंची होती। बसपा हर बार दलित चेहरे को ही मुख्यमन्त्री के रूप में पेश करती आई है परन्तु दलितों ने उसे कभी गम्भीरता से नहीं लिया। पंजाब का दलित मतदाता कांग्रेस, अकाली दल, वामदलों और न्यूनाधिक भाजपा व आ.आ.पा. में बिखरा हुआ है, चन्नी के चलते यकायक कांग्रेस के पक्ष में एकमुश्त एकजुट हो ये तो बहुत बड़ा चमत्कार ही होगा। फिलहाल कांग्रेस को कैप्टन के रूप में अपनी अमूल्य निधी को सम्भालने का प्रयास करने की जरूरत है, क्योंकि पेट वाला कैसा निकलता है पता नहीं परन्तु गोद वाला आजमाया हुआ है।
- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ां
जालंधर।
संपर्क - 77106-55605

 ‘दलित’ शब्द पर रोक

पंजाब अनुसूचित जाति आयोग ने चेतावनी दी है कि अनुसूचित जाति के लोगों के लिए प्रयोग किए जाने वाले दलित शब्द से गुरेज किया जाए। प्रदेश में हाल ही में हुए नेतृत्व परिवर्तन के दौरान नए मुख्यमन्त्री चरनजीत सिंह चन्नी को लेकर बार-बार दलित जैसे आपत्तिजनक व अपमानजनक शब्द का प्रयोग किया गया। आयोग की अध्यक्षा श्रीमती तेजिन्दर कौर ने इसे गम्भीरता से लेते हुए कहा कि देश के संविधान व विधान के किसी भी अध्याय में इस शब्द का वर्णन नहीं है, इसीलिए इण्टरनेट मीडिया, प्रिण्ट मीडिया या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ-साथ सामान्य बोलचाल की भाषा में अनुसूचित जाति के लिए दलित शब्द का प्रयोग न किया जाए।
आयोग की अध्यक्षा ने सम्दर्भ दिया है कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर पीठ की तरफ से 15 जनवरी, 2018 को जनहित याचिका 20420 का 2017, डा. मोहनलाल माहौर बनाम भारतीय संघ व अन्य के अन्तर्गत निर्देशित किया गया है कि केन्द्र या राज्य सरकार और इसके अधिकारी व कर्मचारी अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए ‘दलित’ शब्द का प्रयोग करने से परहेज करें, क्योंकि यह भारत के संविधान या किसी कानून में मौजूद नहीं है। उच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करते हुए ही केन्द्र सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मन्त्रालय सभी राज्य व केन्द्र शासित प्रदेशों को निर्देश दे चुका है कि अनुसूचित जातियों से सम्बन्धित व्यक्तियों व वर्गों के लिए ‘दलित’ के बजाय ‘अनुसूचित जाति’ शब्द का ही प्रयोग किया जाए। हाल ही में पंजाब राज्य अनुसूचित जाति आयोग 13 सितम्बर, 2021 को प्रदेश की मुख्य सचिव विनी महाजन को लिखे एक पत्र में जाति आधारित नामों वाले गांवों, कस्बों और अन्य स्थानों के नाम बदलने और ऐसे शब्दों का प्रयोग करने से परहेज करने के लिए कह चुका है। इसके अलावा साल 2017 में राज्य सरकार की तरफ से सरकारी कामकाज में हरिजन और गिरिजन शब्द न बरतने का भी निर्देश दिया था।
दलित शब्द का शाब्दिक अर्थ है-दलन किया हुआ। भारतीय वांगमय में दलित का अर्थ शंकराचार्य जी ने मधुराष्टकम् में द्वैत से लिया है। उन्होंने ‘दलितं मधुरं’ कहकर श्रीकृष्ण को सम्बोधित किया, उनके कहने का अर्थ है कि श्रीकृष्ण जी के पांवों तले दली गई या कुचली गई हर वस्तु मधुर है। परन्तु महाराष्ट्र में चले बाबा साहिब भीमराव आम्बेडकर के आन्दोलन के बाद इस शब्द का प्रयोग जाति सूचक प्रतीकों के लिए किया जाने लगा। हिन्दी में जातिसूचक शब्द के रूप में यह शब्द मराठी से आया बताते हैं जिसका अर्थ किया जाने लगा कि वह व्यक्ति या वर्ग जिसका शोषण-उत्पीडऩ हुआ है। रामचन्द्र वर्मा ने अपने शब्दकोश में दलित का अर्थ लिखा है, मसला, मर्दित, दबाया, रौन्दा या कुचला, विनष्ट किया हुआ। पिछले छह-सात दशकों में ‘दलित’ शब्द का अर्थ काफी बदल गया और पूरी तरह जातिसूचक बन गया है। देश में चलने वाली जातिवादी राजनीति ने तो इसे पूरी तरह विकृत कर दिया है।
इस दौरान देश में यह विमर्श भी चला कि दलित शब्द का प्रयोग केवल कुछ जातियों के लिए ही क्यों किया जाए, जबकि दलित तो हर भारतीय है जो कई सदियों तक कभी मुस्लिमों तो कभी युरोप के इसाई लुटेरे हमलावरों व उनकी सत्ता द्वारा कुचला जाता रहा है। इन विदेशी शक्तियों की सत्ता के चलते करोड़ों भारतीयों की हत्या, जबरन धर्मान्तरण, महिलाओं से अत्याचार, आकूत धन सम्पदा की लूट हुई। और सबसे अधिक भयावह त्रासदी तो 1947 के देश विभाजन के समय के समय झेलनी पड़ी जब युगों से अखण्ड चले आ रहे एक राष्ट्र को दो हिस्सों में बाण्ट दिया गया। लगभग 12 सदियों तक निरन्तर लूटपाट और अत्याचारों ने हर भारतीयों को मसला और दलित बना दिया। फिर प्रश्न पैदा हुआ कि इन पीडि़त भारतीयों के भीतर भी जो पिछड़े हुए लोग या वग हैं उनको क्या नाम दिया जाए ? तो इनका ‘वञ्चित वर्ग’ का नामकरण किया गया। वञ्चित वर्ग अर्थात वह वर्ग जो आज केवल संसाधनों से वञ्चित है, अन्यथा उनके और समाज के बाकी अंगों में किसी स्तर का कोई अन्तर नहीं है। इन वर्गों का यह वञ्चित वर्ग नाम अलगाव को दूर करने वाला परन्तु दलित नामकरण अपमानजनक होने के साथ-साथ समाज में विभेद पैदा करने वाला है।
देश में अलगाववाद का विमर्श स्थापित करने में लगी शक्तियों ने ‘दलित’ शब्द का खूब दोहन किया और वञ्चित वर्ग में अलगाव की भावना पैदा करने के लिए इसका खूब दुरुपयोग हुआ है। नक्सली, जिहादी व चर्च प्रायोजित संगठनों द्वारा प्रचारित दलितवाद, अम्बेडकरवाद, द्रविड़-आर्यवाद, मूलनिवासीवाद आदि इसके उदाहरण हैं कि किस तरह इस दलित शब्द को तलवार की तरह प्रयोग किया जाता रहा है। सुविधाजनक होने के चलते यह शब्द जातिवादी राजनीतिक विमर्श का भी हथियार बना, बहुजन समाज पार्टी हो या समाजवादी पार्टी या राष्ट्रीय जनता दल या फिर दक्षिण के द्रविड़ अस्मिता की राजनीति करने वाले दल सभी ने दलित शब्द की आड़ में खूब सियासी मालपूए सेके हैं। केवल इतना ही नहीं देश के छद्मधर्मनिरपेक्ष दल भी इस खेल में किसी से पीछे नहीं रहे, चाहे ऐसा करते हुए देश व समाज को कितना भी नुक्सान पहुञ्चा हो। राजनीति में यह विमर्श इतना वज्ररूप ले चुका है कि मीडिया विश्लेषणों में भी इसका प्रचलन आम बात हो गया। हर चुनाव का विश्लेषण करते हुए लगभग हर मीडिया हमें बताता है कि अमुक इलाके में कितने हिन्दू मत हैं, कितने दलित और कितने अल्पसंख्यक। इन विश्लेषणों में दलित को हिन्दुत्व की मुख्यधारा से अलग करके दिखाया जाता है। अगर दलित शब्द को पूरी तरह प्रतिबन्धित करके अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति शब्द अनिवार्य कर दिया जाता है तो इस अलगाववादी विमर्श की धार अवश्य कुन्द होगी।
देश अपनी स्वतन्त्रता की 75वीं जयन्ती मनाने की तैयारी कर रहा है और अमृत महोत्सवों की धूम है। यह बौद्धिक नवाचार व सुधारों की बेला है। यही उचित समय है कि समाज में प्रचलित भ्रामक, गलत, अपमानजनक और बिखराव पैदा करने वाली शब्दावलियों पर पूर्ण विराम लगाया जाए। हरियाणा सरकार ने हाल ही में गुरु गोरखनाथ सम्प्रदाय की भावनाओं को ध्यान में रख कर गोरखधन्धा शब्द के प्रयोग पर पूरी तरह रोक लगा दी है। कितने दशकों से गुरु गोरखनाथ जी के नाम से एक अपमानजनक विशेषण जोड़ कर उनको अपमानित किया जाता रहा है यह दुर्भाग्य की बात है। उसी तरह दलित शब्द से भारतीय समाज के एक वर्ग का भी अपमान हो रहा है और उनमें अलगाव की भावना पैदा हो रही है। उचित समय है कि दलित शब्द पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगाया जाए और समाज में चल रहे झूठे विमर्श को रोका जाए।

- राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
ग्राम एवं डाकखाना लिदड़ां
जालंधर।
संपर्क - 77106-55605

 पंजाब कांग्रेस, मरज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की

कैप्टन ने अब गान्धी परिवार को भी लिया आड़े हाथों, बोले- राहुल व प्रियंका अनुभवहीन नेता

सोशल मीडिया पर सक्रिय हुए कैप्टन के साथी


चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाने के बाद कांग्रेस ने मान लिया होगा कि राज्य में राजनीतिक संकट खत्म हो गया है परन्तु कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने पहले ही इशारा दे दिया था कि वह इतनी जल्दी हार मानने वालों में से नहीं हैं। लेकिन कैप्टन इतनी जल्दी फट पड़ेंगे ये शायद पाटीर हाइकमान को अनुमान नहीं था। कैप्‍टन अमरिंदर सिंह ने अपने विरोधी नवजाेत सिंह सिद्धू के संग गांधी परिवार पर भी निशाना साधा है। उन्‍होंने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को अनुभवहीन बताते हुए कहा कि सलाहकार उनको गलत सलाह देकर भ्रमित कर रहे हैं। उन्‍होंने अपने इस्तीफे को लेकर बड़ा खुलासा किया। उन्‍होंने कहा कि उन्‍होंने सानिया गांधी से तीन सप्‍ताह पहले भी इस्‍तीफे की पेशकश की थी, लेकिन उन्‍होंने पद पर बने रहने को कहा था। इसके साथ ही उन्‍होंने कहा कि नवजाेत सिंह सिद्धू को पंजाब का सीएम बनने से रोकेंगे। उनका सीएम बनना पंजाब के लिए खतरा होगा। उन्‍होंने कांग्रेस नेताओं केसी वेणुगोपाल, अजय माकन और रणदीप सुरजेवाला की भी आलोचना की। ऐसे में पंजाब कांग्रेस में विवाद थमता हुआ नहीं दिख रहा है। पंजाब के पूर्व मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह आक्रामक तेवर में आ गए हैं। उन्‍होंन बुधवार को एक बार फिर पंजाब कांग्रेस के अध्‍यक्ष नवजाेत सिंह सिद्धू पर निशाना साधा और उनको किसी हालत में पंजाब का मुख्‍यमंत्री न बनने देने की बात कही। कैप्‍टन ने कहा कि नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब का मुख्‍यमंत्री बनने से रोकने के लिए हर तरह का प्रयास करेंगे। इसके लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हैं।

Captain Amrinder attack on Congress HIghcommand

बता दें कि कैप्‍टन अमरिंदर सिंह ने शनिवार को मुख्‍यमंत्री पद से इस्‍तीफा देने के बाद भी नवजोत सिंह सिद्धू पर जमकर निशाना साधा था और उनको देश की सुरक्षा के लिए खतरा तक बता दिया था। उन्‍होंने कहा था कि सिद्धू के पाकिस्‍तान से संबंध हैं और ऐसे में वह देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हैं। उनके मुख्‍यमंत्री बनने से पंजाब और देश के लिए खतरा पैदा होगा।

 कैप्‍टन अमरिंदर सिंह ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि सिद्धू के पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और पाकिस्‍तानी सेना के प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा से संबंध रहे हैं। वह इमरान खान के दोस्‍त हैं और जनरल कमर जावेद बाजवा सग गले मिले थे। ऐसे में सिद्धू के यदि मुख्‍यमंत्री बने तो पंजाब सहित भारत के अन्‍य हिस्‍से के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। उन्‍होंने कहा कि पाकिस्‍तान हर समय पंजाब में गड़बड़ी करने और आतंकी हमले कराने की लगातार कोशिश कर रहा है। वह ड्रोन और घुसपैठ के जरिये हथियार व नशीले पदार्थ भेजने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में सिद्धू जैसे पा‍किस्‍तान के हिमायती का पंजाब का सीएम बनने राज्‍य के लिए कतई सही नहीं होगा।

उन्‍होंने नवजाेत सिंह सिद्धू को पंजाब का 'सीएम फेस' बनाने का भी विरोध किया। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू को राज्य का सीएम चेहरा बनाने के किसी भी कदम का विरोध करने की अपनी मंशा दोहराई। कैप्‍टन ने कहा कि वह नवजाेत सिंह की हार सुनिश्चित करने के लिए 2022 के विधानसभा चुनावों में उनके खिलाफ मजबूत उम्मीदवार खड़ा करेंगे। अमरिंदर से साफ कहा, 'वह (नवजोत सिंह सिद्धू ) राज्य के लिए खतरनाक है।'

कैप्‍टन अमरिंदर सिंह ने इसके साथ ही बड़ा खुलासा किया कि उन्‍होंने कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी से सीएम पद से अपने इस्‍तीफे की पेशकश तीन सप्‍ताह पहले हरी कर दी थी, लेकिन उस समय उन्‍होंने (सोनिया गांधी ने) इससे मना कर दिया था और सीएम बने रहने को कहा था। उन्होंने कहा ,' यदि वह मुझे फोन करतीं और सीएम पद से हटने को कहतीं ताे मैं ऐसा करता।' उन्होंने कहा, 'एक सैनिक के रूप में मुझे पता है कि मुझे अपना काम कैसे करना है और एक बार वापस बुलाए जाने पर मैं तुरंत कदम उठाता।

उन्‍होंने कहा 'प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी उनके बच्‍चे की तरह हैं। लेकिन पूरा मामला (पंजाब में सत्‍ता परिवर्तन) ऐसे नहीं होना चाहिए था। मैं आहत हूं।' उन्‍होंने कहा  कि दोनों गांधी भाई-बहन अनुभवहीन हैं और सलाहकारों ने गलत सलाह देकर उनको गुमराह कर रहे हैं। कैप्टन ने दोहराया कि उन्हें विश्वास में लिए बगैर खुफिया ढंग से कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाना उनका अपमान है। उन्होंने कहा, मैं विधायकों को जहाज पर गोवा नहीं लेकर जाता, मैं ऐसे तरीके नहीं अपनाता। गांधी परिवार के बच्चे जानते हैं कि यह मेरा तरीका नहीं है।

अपने ऊपर लगे किसी से न मिलने के आरोपों को लेकर कैप्टन अमिरंदर सिंह ने कहा कि वह सात बार विधानसभा और दो बार लोकसभा का चुनाव जीते हैं। अगर ऐसा होता तो क्या वह इतनी बार चुनाव जीतते। उन्होंने कहा, 'मुझे हटाने के लिए किसी बात को मुद्दा बनाया जाना था और वह बना लिया गया है।'

कैप्टन ने कहा कि वह अगला चुनाव जीतने के बाद राजनीति छोड़ना चाहते थे लेकिन हार कर कभी नहीं छोड़ेंगे।  कैप्टन ने कहा, 'मैं एक फौजी हूं, मुझे अपने काम के बारे में पता है और अगर वह मुझे एक बार कह देतीं तो मैं मुख्यमंत्री पद छोड़ देता।' मैंने सोनिया गांधी से कहा था कि मैं राजनीति छोड़ने को तैयार हूं। अगला चुनाव जीतने के बाद किसी भी अन्य को मुख्यमंत्री बना दिया जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ, इसलिए मैं लड़ूंगा।

कैप्टन ने कहा कि मेरा मानना था कि बादल व मजीठिया पर बेअदबी व ड्रग्स के आरोपों के मामलों में कानून अपना काम करेगा। परंतु मुझ पर कार्रवाई न करने के आरोप लगाए गए। ऐसी शिकायत करने वाले अब सत्ता में हैं। अब अगर वह कार्रवाई कर सकते हैं तो अकालियों को सलाखों के पीछे धकेल दें। कैप्टन ने रेत खनन का काम करने वाले मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई न करने के आरोपों पर कहा कि अब यह सभी मंत्री सिद्धू खेमे में हैं, सिद्धू उन पर कार्रवाई करने की हिम्मत रखें।

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि पार्टी अध्यक्ष को केवल पार्टी मामलों पर ध्यान देना चाहिए। मेरे पास एक अच्छा अध्यक्ष था, मैं उनकी सलाह लेता था लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि सरकार कैसे चलाएं। उन्होंने कहा कि अगर सिद्धू 'सुपर सीएम' की तरह काम करेंगे तो पार्टी काम नहीं कर पाएगी। कैप्टन ने कहा कि अगर कांग्रेस इस ड्रामा मास्टर के नाम पर लड़ेगी तो उन्हें संदेह है कि पार्टी दहाई का आंकड़ा भी पार कर पाएगी।

कैप्टन ने कहा कि चरणजीत सिंह चन्नी पढ़े लिखे हैं लेकिन उन्हें गृह विभाग का कोई अनुभव नहीं है। पाकिस्तान के साथ पंजाब की 600 किलोमीटर की सीमा लगती है। यहां से हथियार और ड्रग्स आते हैं इसलिए यह अतिगंभीर विषय है। वहीं चन्नी के बिजली बिल माफ करने की घोषणा पर कैप्टन ने कहा कि उन्हें पूर्व वित्तमंत्री मनप्रीत बादल के साथ विचार करना चाहिए। कैप्टन ने उम्मीद जताई कि चन्नी राज्य को दीवालिया नहीं बनाएंगे।

सोशल मीडिया पर सक्रिय हुए कैप्टन के साथी

कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ ही उनके समर्थकों की टीम भी इंटरनेट मीडिया पर सक्रिय हो गई है। कैप्टन के ओएसडी रहे और जिला फतेहगढ़ साहिब के पूर्व जिलाध्यक्ष नरेंद्र भांबरी ने फेसबुक पर पेज तैयार करके लिखा है कि कैप्टन फिर लौटेंगे। इस पेज पर कैप्टन की तस्वीर तो लगी है लेकिन कांग्रेस के चुनाव चिन्ह या ऐसा कोई प्रतीक प्रयोग नहीं किया जिससे यह पेज कांग्रेस का लग रहा हो। इससे यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या कैप्टन कांग्रेस को छोड़ रहे हैं? कैप्टन के एक और ओएसडी रहे अंकित बंसल ने भी फेसबुक पर पेज तैयार कर इसे कैप्टन ब्रिगेड का नाम दिया है। इस पेज पर कैप्टन, अंकित और पूर्व शिक्षा मंत्री विजय इंद्र सिंगला की तस्वीर दिखाई दे रही है।

कांग्रेस और खालिस्तान में गर्भनाल का रिश्ता

माँ और सन्तान के बीच गर्भनाल का रिश्ता ही ऐसा होता है, कि प्रसव के बाद शरीर अलग होने के बावजूद भी आत्मीयता बनी रहती है। सन्तान को पीड़ा हो त...